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रानी दुर्गावती जयंती, पुण्यतिथि कब है? Rani Durgavati Jayanti, Punytithi, History, Essay in Hindi

वीर राजपूत रानी दुर्गावती जिसने अकबर की सेना को तीन बार युद्ध में हराया भारत के इतिहास में राजपूतों का एक अलग ही तिहास रहा है। जिनके शौर्य का लोहा पूरा भारत वर्ष मंटा है राजपूत अपनी मात्र भूमि के लिए अपनी जान देने के लिए तत्पर रहते थे। इन्ही राजपुरों में से एक ऐसी रानी भी हुई थी जिनके आने से मुगल तक भी कांप गए थे। वैसे राजपूतों में महिलाओं को महल  से बाहर आने की अनुमति नहीं होती थी। लेकिन रानी दुर्गावती राजपूतों की इस प्रथा को तोड़ते हुए बहादुरी के साथ रणभूमि में युद्ध किया। अन्य राजपूतों की तरह रानी दुर्गावती ने भी दुश्मन के सामने कभी घुटने नहीं टेके। 

रानी दुर्गावती एक बहादुर और साहसी महिला थी उन्होंने अपने पति की मृत्यु के बाद अपने राज्य को संभाला और अपने राज्य की रक्षा के लिए बहुत से युद्ध भी लड़ी और अंत में राज्य की रक्षा के लिए मुगलों से भी लड़ गई और अपने राज्य की रक्षा करते हुए ये वीर गति को प्राप्त हुई। इनकी वीरता औए साहस के सामने बहुत से राजा टिक भी नहीं पाते थे इसलिए राज भी रानी दुर्गावती का इतिहास में एक अलग ही पहचान है। रानी दुर्गावती के पति के मृत्यु के बाद ये गोंडवाना राज्य की उत्तराधिकारी बनीं और लगभग 15 वर्षों तक इन्होंने गोंडवाना में शासन किया। 

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रानी दुर्गावती का जयंती

रानी दुर्गावती जयंती कब मनाया जाता है?

इतिहास में महिला वीरांगनाओं की कमी नहीं है लेकिन उनमें एक सबसे चमकता हुआ नाम है रानी दुर्गावती का। उन्होंने वह इतिहास रचा जो अपने आप में अनूठा है। रानी दुर्गावती जयंती प्रत्येक वर्ष 5 अक्टूबर को सम्पूर्ण देशभर में मनाया जाता है। 

रानी दुर्गावती का प्रारंभिक जीवन (Rani Durgavati History in Hindi)

रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 ईस्वी में एक प्रसिद्द राजघराने चन्देल सम्राट कृति सिंह के परिवार में हुआ। इनका जन्म चन्देल कालिंजर किले में हुआ था। जो की वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में स्थित है। इनके पिता चंदेल राजवंश के सबसे बड़े शासक थे। रानी दुर्गावती के पिता राजा सालबान और माता का नाम माहोबा था। इन्होने अपनी वीरता और साहस से महमूद गजनी को हराया था। तथा इन्होने मध्य प्रदेश के खजुराहो मंदिर का निर्माण करवाया। 

जिसकी वजह से ये उस समय के बहुत ही प्रसिद्ध राजा हुआ करते थे। खजुराहो मंदिर जो की वर्तमान में विश्व विरासत सूची में शामिल है। इनको बचपन से ही तलवार बाजी, तीरंदाजी का बहुत ही शौक था इसके साथ-साथ ही उनको घुड़सवारी का भी बहु ज्यादा शौक था। वह अपने पिता के साथ अधिक से अधिक समय बिताती थी और कभी-कभी अपने पिता के साथ शिकार पर भी जाती थी।

ये शिकार करने में बहुत ही माहिर थी इनको शेर और चीतों का शिकार करने में बहुत मजा आता था। रानी दुर्गावती ने पिता के साथ रहकर राज्य का सारा काम सीख लिया था और वह अपने पिता का हाथ भी बटाया करती थी राज्य के कामों में। इनके काम से इनके पिता बहुत ही खुश रहते थे क्योंकि उनके अंदर रानी बनने का सारा गुण मौजूद था।     

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कैसे पड़ा रानी दुर्गावती का नाम?

रानी दुर्गावती का नाम दुर्गावती रखने के पीछे भी एक छोटी सी कहानी है।  कहा जाता है कि इनका जन्म दुर्गा अष्टमी के दिन हुआ था जिसकी वजह से इनका नाम दुर्गावती पड़ा ये अपने साहस पराक्रम और अपनी सुंदरता की वजह से बहुत ही प्रसिद्द थी। 

बचपन से ही था तलवार बाजी का शौक

दुर्गावती को बचपन से ही तीरंदाजी, तलवरवाजी और घुंसवारी का शौक था। वे बचपन में पिता के साथ जंगलों में शिकार करने जाया करती थी। पिता के सानिध्य में वे धीरे-धीरे युद्ध कलाओं में निपुण हो गई। 

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रानी दुर्गावती का वैवाहिक जीवन

जब रानी दुर्गावती विवाह के योग्य हुई तो इनके पिता ने इनकी शादी के लिए रानी दुर्गावती के योग्य राजकुमार को ढूंढ रहे थे। लेकिन रानी दुर्गावती को दलपत शाह पसंद थे ये उनके साहस और वीरता से बहुत ही प्रभावित थी और उन्हीं से शादी भी करना चाहती थी। लेकिन दलपत शाह राजकुमार ना होकर गोड़ जाती के थे इसलिए इनके पिता शादी से सहमत नहीं थे। 

दलपत शाह के पिता संग्राम शाह थे जो की गठा मंडल के शासक थे। रानी दुर्गावती के वीरता से संग्राम शाह भी बहुत प्रभावित थे, वो इनको अपनी पुत्रवधु बनाना चाहते थे। जिसकी वजह से संग्राम शाह ने दुर्गावती के पिता से युद्ध किया और इनको हरा भी दिया और इसके बाद रानी दुर्गावती के पिता ने 1542 ईस्वी में अपनी पुत्री का विवाह दलपत शाह से कर दिया। 

इनकी शादी के चार साल बाद इनके पति राजा दलपत शाह का निधन हो गया। उस समय रानी दुर्गावती के गोद में एक तीन साल का पुत्र था। जिसका नाम वीरनारायण पड़ा, जिसके कारण रानी दुर्गावती ने स्वयं गद्दी पर बैठने का निश्चय किया।

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पति के निधन के बाद संभाली गोंडवाना की बागडोर

शादी के कुछ साल बाद रानी ने एक बेटे को जन्म दिया जिसका नाम वीरनारायण रखा गया। बेटा पांच साल का हुआ ही था कि दलपत शाह का बीमारी के कारण निधन हो गया। रानी ने अपने बेटे को गद्दी पर बैठाया और गोंडवाना की बागडोर अपने हाथों में ले ली। उन्होंने अपने राज्य की राजधानी को चौरागढ़ से सिंगौरगढ़ में स्थानांतरित किया। 

मुगलों के खिलाफ संभाला मोर्चा

रानी दुर्गावती ने मुगल शासकों के विरुद्ध कड़ा संघर्ष किया था और उनको अनेक बार पराजित किया था। पर हर बार उन्होंने जुर्म के आगे झुकने से इंकार कर स्वतंत्रता और अस्मिता के लिए युद्ध को चुना। अकबर ने रानी को कमजोर समझते हुए आत्म समर्पण की बात की महारानी के ना मानने पर सिंगौरगढ़ का युद्ध हुआ। जहां महारानी दुर्गावती ने तीन युद्ध लड़ा। 

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रानी दुर्गावती एक वीरांगना के रुप में

रानी दुर्गावती ने अपने पहले ही युद्ध में भारतवर्ष में अपना नाम रोशन कर लिया था। शेरशाह की मौत के बाद सूरत खान ने उसका कार्यभार संभाला जो उस समय मालवागढ़ राज्य पर शासन कर रहा था। सूरत खान के बाद उसके पुत्र बाजबहादुर ने कमान अपने हाथ में ले ली जो रानी रूपमती से प्रेम के लिए प्रसिद्द हुआ था। सिंघासन पर बैठते ही बाजबहादुर को एक महिला शासक को हराना बहुत ज्यादा आसान लग रहा था इसलिए उसने रानी दुर्गावती के गोंड साम्राज्य पर धावा बोल दिया। 

बाजबहादुर रानी दुर्गावती को कमजोर समझने की भूल के कारण उसे भारी हार का सामना करना पड़ा और उसके कई सैनिक घायल हो गए थे। बाजबहादुर के खिलाफ इस जंग में जीत के कारन अडोस-पड़ोस के राज्यों में रानी दुर्गावती का डंका बज गया था। अब रानी दुर्गावती के राज्य को पाने की हर कोई कामना करने लगा था जिसमे से एक मुग़ल सूबेदार अब्दुल माजिद खान भी था। 

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रानी दुर्गवती का शासन काल 

रानी दुर्गवती ने अपनी राजधानी सिगौरगढ़ा किला को जो की अब तमोह जिले के पास संग्रामपुर में है चौरागढ़ किले से स्थानांतरित कर दिया। इन्होने अपनी एक अलग सेना बनाई इनके शासन काल में पूरे राज्य में खुशहाली थी। ये अपनी प्रजा से बहुत प्रेम करती थी। इसलिए उन्होंने पूरे राज्य को बदल दिया और उन्होंने कई मंदिर, भवन और कई धर्मशालाएं भी बनवाईं।

इनके शासन काल में राज्य संपन्न और खुशहाल हो गया था लेकिन मलवा के मुसलमान शासक बाजबहादुर ने इनके राज्य पर बहुत बार हमला किया। लेकिन वह हर बार रानी दुर्गावती के सैनिकों के सामने हार गया। महान मुगल शासक अकबर भी रानी दुर्गावती के राज्य को जीतना चाहता था और रानी को अपने आश्रय में रखना चाहता था।

अकबर ने विवाह शुरू करने केलिए एक पत्र लिखा उसने इसमें लिखा कि रानी अपने प्रिय हाथी सरमन और विश्वास पात्र वजीर आधार सिंह को अपने पास भेजने को कहा लेकिन रानी ने अकबर के माँग को अस्वीकार कर दिया जिससे अकबर ने अपने रिश्तेदार आसफ खान को हमला करने का आदेश दे दिया। जब रानी दुर्गावती को पता चला कि आसफ खान उन पर हमला करने आ रहा है, तो उन्होंने पूरी योजना बनाई और आसफ खान को हरा दिया।

पहली बार हारने के बाद आसफ खान ने दोबारा फिर से अपने सैनिकों की फौज तैयार किया और फिर से रानी दुर्गावती के राज्य पर हमला कर दिया। इस बार रानी दुर्गावती के पास कम सैनिक थे इन्होने जबलपुर के पास एक मोर्चा लगाया। और खुद ही पुरुष के भेष में युद्ध लड़ने के लिए आ गई पहले दिन मुगलों के तीन हजार सैनिक मारे गए लेकिन रानी के भी कई सैनिक मारे गए। 

दूसरे दिन 24 जून 1564 ईस्वी को मुग़ल सैनिकों ने फिर से हमला बोला दूसरे दिन रानी का पक्ष कम पड़ गया उस दिन रानी दुर्गवती का पुत्र वीरनारायण भी युद्ध कर रहा था और वह युद्ध में घायल हो गया था और रानी ने उसे सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। रानी दुर्गावती युद्ध कर रही थी और एक तीर आकर उनके भुजा पर लग गई। उन्होंने इस तिर को निकालकर फेंक दिया और तभी एक दूसरी तिर आँखों को भेद दिया रानी ने इस तिर को भी निकाल दिया लेकिन तीर की नोख आंख में ही रह गई। 

तभी तीसरी तीर उनके गर्दन में आकर धस गई और रानी दुर्गवती ने अंत समय में अपने वजीर अधार सिंह से आग्रह किया कि वे अपनी तलवार से उनके गर्दन को काट दे लेकिन वे ऐसा करने के लिए तैयार नहीं हुए और अन्त में रानी ने खुद की तलवार को अपने सीने में घोपकर आत्मवलिदान की और आगे बढ़ गई। वह नहीं चाहती थी कि जीते जी उनके शरीर को कोई मुगल या कोई मुगल शासक स्पर्श करे। 

जबलपुर के जिस स्थान पर ये ऐतिहासिक युद्ध हुआ था उसका नाम बरेला है वहीं रानी दुर्गावती की आज भी समधी बनी हुई है। गोंड जनजाति के लोग आज भी जाकर रानी दुर्गावती की को श्रद्धा सुमन अर्पित करते है जबलपुर में इनके नाम से एक विश्वविद्यालय भी है जिसका नाम रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय है। इस प्रकार वीरांगना रानी दुर्गावती ने युद्ध में अपने साहस और वीरता से अपने शत्रुओं का सामना करते हुए अपने प्राण त्याग दिए।

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रानी दुर्गावती बलिदान दिवस या पुण्यतिथि कब मनाया जाता है?
रानी दुर्गावती का बलिदान दिवस या पुण्यतिथि 

रानी दुर्गावती पुण्यतिथि कब मनाया जाता है? 

आदिवासी वर्ग की हितप्रहरी संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए तत्पर रहने वाली, प्राणोत्सर्ग की प्रतिमूर्ति वीरांगना रानी दुर्गावती का बलिदान दिवस या पुण्यतिथि 24 जून को मनाया जाता है। 

रानी दुर्गावती बलिदान दिवस कब मनाया जाता है (rani durgavati balidan diwas)

24 जून को देश उनका बलिदान दिवस (balidan diwas) मनाता है जब उन्होंने मुगलों की आगे की हार को स्वीकार नहीं किया और अंतिम सांस तक मुगल सेना का सामना करके अपनी इच्छाओं को कभी भी पूरा नहीं होने दिया। रानी दुर्गावती का जन्म 1524 में हुआ था। उनका राज्य गोंडवाना में था। वह कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की इकलौती संतान थी।

रानी दुर्गावती की मृत्यु कैसे हुई?

युद्ध के दूसरे दिन 24 जून 1564 ई. को मुगल सैनिकों ने पुनः आक्रमण किया। दूसरे दिन रानी दुर्गावती युद्ध कर रही थीं और एक बाण उनके हाथ में लग गया। उसने इस बाण को निकाल कर फेंक दिया और तभी यह एक और बाण की आँख में छेद कर गया, रानी ने भी इस बाण को हटा दिया लेकिन तीर का सिरा आँख में ही रह गया।

फिर तीसरा बाण उसके गले में लगा और अंत में रानी दुर्गावती ने अपने वज़ीर आधार सिंह से अपनी तलवार से उसकी गर्दन काटने का अनुरोध किया लेकिन वह ऐसा करने के लिए तैयार नहीं हुआ और अंत में रानी ने अपनी तलवार ले ली। उसके सीने में बलिदान कर दिया और आगे बढ़ गया। वह नहीं चाहती थी कि कोई मुग़ल या कोई मुग़ल शासक उसके जीवित रहते हुए उसके शरीर को छुए।

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1 टिप्पणियाँ

  1. Nice Post
    Miranda House University of Delhi – मिरण्डा हाउस एक गर्ल्स कॉलेज है ये दिल्ली यूनिवर्सिटी के लोथ कैम्पस मे स्थित है मिरण्डा हाउस की स्थापना सन् 1948 मे की गई थी। मिरण्डा हाउस को एन एस के द्वारा A+ ग्रेड दिया गया है। दिल्ली का मिरांडा हाउस Miranda House University of Delhi

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