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गंगा दशहरा 2022 (Ganga Dussehra) कब है? | ज्येष्ठ दशहरा कब है 2022? जाने शुभ मुहूर्त, महत्त्व, पूजा विधि, उपाय और अवतरण कथा के बारे में

गंगा पवित्र नदियों में एक मानी जाती है। मान्यता है कि गंगाजल में कीटाणुओं को समाप्त करने की अध्भुत क्षमता होती है इसके जल को हमेश ही पवित्र माना जाता है। कहा जाता है कि गंगा नदी में एक डुबकी लगाने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं। शास्त्रों में तो गंगा को देवी माँ का दर्जा प्राप्त है। जब माँ गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुई तो यह ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि थी। इसलिए यह दिन गंगा दशहरा Ganga Dashara के रूप में में मनाया जाता है। आज हम आपको ज्येष्ठ माह गंगा दशहरा Ganga Dussehra 2022 की शुभ तिथि, पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इस दिन देवी गंगा को प्रसन्न करने का एक चमत्कारी महाउपाय के बारे में बताएँगे। 

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गंगा दशहरा 

गंगा दशहरा शुभ मुहूर्त 2022 - Ganga Dussehra Date 2022 

  • साल 2022 ज्येष्ठ माह गंगा दशहरा का पर्व 9 जून गुरुवार के दिन मनाया जायेगा। 
  • दशमी तिथि प्रारंभ होगा - 9 जून प्रातःकाल 8 बजकर 21 मिनट पर। 
  • दशमी तिथि समाप्त होगा - 10 जून प्रातःकाल 7 बजकर 25 मिनट पर। 
  • हस्त नक्षत्र प्रारंभ होगा - 9 जून प्रातःकाल 4 बजकर 31 मिनट पर। 
  • हस्त नक्षत्र समाप्त होगा - 10 जून प्रातःकाल 4 बजकर 26 मिनट पर। 

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गंगा दशहरा कब मनाते है?

पंचांग के अनुसार गंगा दशहरा हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को आता है। इस दिन गंगा में स्नान करना बहुत ही शुभ होता है। मान्यता है कि ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन ऋषि भागीरथी के अथक प्रयसों से माँ गंगा का धरती पर अवतरण हुआ। जिस कारण इस दिन को गंगा दशहरा मनाते है। 

गंगा दशहरा का महत्त्व क्या है? (Ganga Dussehra Mahatv)

शास्त्रों के अनुसार कहा जाता है जिस दिन माँ गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई उस दिन बेहद भाग्यशाली मुहूर्त था। उस दिन ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि और बुधवार का दिन था। हस्त नक्षत्र, व्यतिपात योग, गर योग, आनंद योग, कन्या राशि में चंद्रमा और वृषभ में सूर्य थे जिस कारण इस प्रकार के दस शुभ योग उस दिन बने थे। कहा जाता है कि इन दस शुभ योगों के शुभ प्रभाव से गंगा दशहरा के दिन जो व्यक्ति गंगा में स्नान करता है उसके सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते है। 

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गंगा दशहरा पूजा विधि

गंगा दशहरा के दिन यदि संभव हो तो गंगा मैया के दर्शन कर गंगा नदी के पवित्र जल में स्नान करें अन्यथा घर पर ही स्वच्छ जल में गंगाजल मिलाकर गंगा मैया का स्मरण करते हुए स्नान करें। इसके बाद माँ गंगा की प्रतिमा की विधिवत पूजा-अर्चना कर राजा भागीरथ और हिमालय देव की भी पूजा करें। गंगा पूजा के साथ ही भगवान शिव की आराधना भी अवश्य करें क्योंकि भगवान शिव ने ही गंगा जी को अपनी जटाओं पर धारण किया था। आज के इस शुभ दिन माँ गंगा की पूजा-अर्चना के साथ दान-पुण्य करना भी बहुत ही शुभ फल देता है। पूजा के बाद किसी जरूरत मंद व्यक्ति को सत्तू, पानी से भरा मटका और हाथ का पंखा दान करने से पूजा का दोगुना फल प्राप्त होता है। 

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गंगा दशहरा उपाय

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन गंगा दशहरा पर यदि आप गंगाजल मील जल से स्नान करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देकर गंगा मैया के मन्त्र गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥ या  ॐ नमो भगवति हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा का जाप करें। इससे आपके सभी कष्ट दूर हो जाते है और आपको गंगा मैया का आशीर्वाद प्राप्त होता है। आज के दिन पूजा में 10 प्रकार के फूल, दशांग, धुप, 10 दीपक, 10 प्रकार नैवेद्य, 10 ताम्बूल और 10 फलों का प्रयोग करने से जीवन में शुभता बढ़ती है और दरिद्रता हमेश के लिए दूर हो जाती है।

  • शास्त्रों के अनुसार गंगा दशहरा का बहुत महत्व माना जाता है मान्यता है की यदि इस दिन कुछ उपाय किये जाय तो व्यक्ति को सुख-समृद्धि प्राप्त होता है। 
  • गंगा दशहरा पर यदि आप गंगा जल मिले जल से स्नान कर सूर्यदेव को गंगाजल मील जल का अर्घ्य देते है तो आपके सभी कष्ट दूर हो जाते है। 
  • आज के दिन घर में गंगा जल का छिड़काव करें और भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक करें इससे धन वृद्धि के योग बनते है। 
  • गंगा दशहरा के दिन पानी से भरे मिट्टी के कलश का दान करने से सफलता की प्राप्ति होती है। 
  • गंगा दशहरा के दिन अनार का पेड़ लगाने से शुभ फल प्राप्त होते हैं। 

गंगा दशहरा नियम

  • शास्त्रों के अनुसार इस दिन गंगा स्नान करते समय सबसे पहले इष्ट देव औरसूर्यदेव को प्रणाम कर गंगा में डुबकी लगाना चाहिए। 
  • अगर आप आज के दिन गंगा गंगा स्नान करते है तो आपको स्नान के बाद शरीर को पोछना नहीं चाहिए बल्कि प्राकृतिक रूप से शरीर को सूखने देना चाहिए। 
  • सूतक काल में गंगा स्नान कभी नहीं करना चाहिए। 
  • अगर आप जक के दिन गंगा तट पर स्नान के लिए नहीं जा सकते है तो घर पर ही स्नान के जल में गंगा जल मिलाकर स्नान करें। 
  • स्नान के बाद सत्तू, पानी से भरा मटका, हाथ का पंखा दान करने से पूजा का दोगुना फल प्राप्त होता है। 

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माँ गंगा का धरती पर अवतरण कैसे हुआ -माँ गंगा की अवतरण कथा (Ganga River History in Hindi)

प्राचीन काल में एक राजा हुआ करते थे जिनका नाम सगर था। सागर एक प्रतापी और शक्तिशाली राजा थे। सागर राजा ने एक अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया। राजा के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को देवताओं के राजा इंद्र ने चुरा लिया और घोड़े को कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। अश्वमेघ घोड़े की तलाश में राजा के 60 हजार पुत्र निकल पड़े। 

तब उन्होंने मुनि के आश्रम में घोड़े को बंधा देखा तो आश्रम पर धावा बोल दिया। इसी समय तप में लीन कपिल मुनि की आंखे खुल गयी और वो क्रोधित हो उठे। मुनि की आँखों में ज्वाला उठी और राजा सागर के 60 हजार पुत्र पल भर में राख हो गए। राजा सागर के एक और पुत्र अंशुमान को जब इस बात का पता चला तो वह कपिल मुनि के आश्रम अपने भाइयों की आत्मा की शांति के लिए पहुंचे। 

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तब कपिल मिनी ने उन्हें उन्हें बताया की अगर पवित्र गंगा का जल भस्म किये हुए पुत्रों पर पड़ेगा तो उनके आत्मा को शांति मिल सकती है। `अंशुमान ने बहुत कोशिश की लेकिन वे अपने भाइयों को कपिल मुनि के क्रोध से मुक्त नहीं करा पाए। बाद में उनके पोते राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तपस्या करने का वीणा उठाया। 

पूर्वजों का उद्धार करने के लिए भारीरथ ने कठोर तपस्या करी और आखिर कर गंगा को धरती पर आने की प्रार्थना स्वीकार करना पड़ा। अब सवाल ये था गंगा धरती पर आये कैसे? गंगा की धार इतनी तेज थी कि सीधे धरती पर आना मतलब तबाही। तब भागीरथ ने एक बार फिर तपस्या कर भगवान शिव की मदद ली, भगवान शिव ने गंगा को अपने जटाओं होकर से धरती पर उतरने को कहा।

तब जाकर राजा सागर के 60 हजार पुत्रों का उद्धार हुआ और उन्हें मुक्ति मिली। भागीरथ आगे-आगे चलते रहे और माँ गंगा उनके पीछे-पीछे चलती रही। राजा भागृथ पतित पावनी को गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक ले गए। यहाँ उन्होंने कपिल मुनि से बिनती की कि वे उनको अपने श्राप से मुक्त करें। माँ गंगा की आत्म धारा भगीरथ की कठोर तपस्या का फल था। मोक्षदायिनी माँ गंगा को धरती पर देखकर महर्षि कपिल प्रसन्न हुए और उन्होंने राजा से सागर के पुत्रों को अपने श्राप से मुक्त किया। तो दोस्तों ऐसे अवतरण हुआ माँ गंगा का धरती पर।

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गंगा दशहरा की महिमा

गंगा दशहरा का पर्व ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तिथि को मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन गंगा माँ का अवतरण धरती पर हुआ था। इस दिन गंगा स्नान, गंगा जल का प्रयोग और दान करने का विशेष महत्त्व है। इस दिन माँ गंगा की आराधना करने से पापों से मुक्ति मिलता है। व्यक्ति को मुक्ति मोक्ष का लाभ मिलता है। 

क्या करें गंगा दशहरा के दिन

अगर हो सके तो गंगा नदी में स्नान करें, अगर गंगा नदी में स्नान नहीं कर सकते है तो किसी भी पवित्र नदी में स्नान करें। घी में लिअ हुआ तिल और गुड़ को पीपल के नीचे रख दें, माँ गंगा का ध्यान करके उनकी पूजा करे और उनके मंत्रों का जाप करें। पूजन में जो भी सामग्री प्रयोग करें उनकी संख्या 10 होना चाहिए। विशेष रूप से 10 दिए का प्रयोग जरूर करें, दान में भी 10 प्रह्मणो को बुलाये परन्तु ब्राह्मणों को दिए जाने वाला अनाज 16 मुठ्ठी होना चाहिए। 

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