प्रति वर्ष विश्व ब्रेल दिवस 4 जनवरी को लुई ब्रेल Louis Braille के जन्मदिन के स्मरणोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम , नेत्र रोगों को पहचान, रोकथाम और पुनर्वास विषय पर बात होता है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक विश्व भर में करीब 39 मिलियन लोग देख नहीं सकते जबकि 253 मिलियन लोगों में कोई न कोई दृष्टि विकार है। विश्व ब्रेल दिवस World Braille Day का मुख्य उद्देश्य दृष्टि-बाधित लोगों अधिकार उन्हें प्रदान करना और ब्रेल लिपि को बढ़ावा देना है।
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ब्रेल लिपि क्या है?
ब्रेल एक लेखन पद्धति है। यह नेत्रहीन व्यक्तियों के लिए सृजित किया गया था। ब्रेल एक स्पर्शनीय लेखन प्रणाली है। इसे एक विशेष प्रकार के उभरे कागज पर लिखा जाता है। इसकी संरचना फ्रांसीसी नेत्रहीन शिक्षक और अविष्कारक लुइस ब्रेल ने किया था। इन्ही के नाम पर इस पद्धति का नाम ब्रेल लिपि रखा गया है।
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ब्रेल में उभरे हुए बिंदु होते है, इन्हे सेल के नाम से जाना जाता है। कुछ बिंदुओं पर छोटे उभार होते है इन्ही दोनों को व्यवस्था और संख्या से भिन्न चरित्रों की विशिष्टता तय किया जाता है। ब्रेल की मैपिंग प्रत्येक भाषा में अलग हो सकती है, इस लिपि में स्कूली के लिए पाठ्यपुस्तकों के अतिरिक्त रामायण. महाभारत जैसे ग्रन्थ छपते है। ब्रेल लिपि में कई पुस्तकें भी निकाली गई है।
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ब्रेल लिपि से फायदे
ब्रेल लिपि के अविष्कार के बाद विश्वभर में नेत्रहीन, दृष्टिहीन या आंशिक रूप से नेत्रहीन लोगो की जिंदगी बहुत हद तक आसान हो गई है। इसकी सहायता से ऐसे कई लोग अपने पैरों पर खड़े हो सके। बहादुर वे नहीं होते जो अपनी कमियों को कमजोरी समझकर जीतें है, बहादुर वे होते है जो कमियों को चुनौती समझकर जीने की नई राह हासिल करते है।
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दुनिया में लाखो लोग ऐसे है जिनमें कुछ न कुछ कमियां है पर, बहुत कम लोग है जो कमियों को जीवन की बांधा न बनने देकर कुछ ऐसा कर गुजरते है की उनकी कमियां ख़ामोशी के साथ उनके आगे नतमस्तक हो उठती है। लुइस ब्रेल एक ऐसा ही नाम है जो एक हादसे में अपनी आँखों की रौशनी गवाने के बावजूद लाखों दृष्टिबाधितों को दुनिया दिखाने का सहारा बने।
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लुइस ब्रेल Louis Braille का जीवन परिचय
लुइस ब्रेल Louis Brailleका जन्म 4 जनवरी 1809 को फ़्रांस के एक छोटे से कसबे कुप्रे में हुआ था। इनके पिता साइमन रेल ब्रेल Braille घोड़ों की काठी बनाने का काम करते थे।लुइस के परिवार में चार भाई-बहन थे, जिसमें लुइस सबसे छोटे थे। लुइस जब मात्र 3 वर्ष के थे तब उनकी आँख में नुकीला औजार लग जाने से गंभीर चोट आई थी।
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जिसके इंफेक्शन से उनकी एक और फिर कुछ बाद दूसरी आँख की रोशनी भी पूरी तरह चली गई। दुनिया को जानने की जिज्ञासा और पढाई में लुइस की दिलचस्पी को देखते हुए लुइस के पिता साइमन ने उन्हें शिक्षा के लिए पेरिस के नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर ब्लाइंड यूथ में दाखिला दिला दिया।
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यहाँ लुइस ने मैथ्स फिजिक्स आदि विषयों को अच्छी तरह से समझ लिया था। शिक्षा के दौरान लुइस मुलाकात फ्रांसीसी सैनिक चार्ल्स बार्बियर से हुई। बार्बियर ने लुइस को सैनिकों के लिए बनी नाइट राइटिंग मून टाइप लिपि के बारे में बताया जिसे अँधेरे में पढ़ा था।
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यह लिपि कागज पर उभरी हुई थी जिसे 12 पॉइंट्स से अलग-अलग ध्वनियों के आधार पर कोडमय किया गया था। बार्बियर की बताई लिपि से लुइस काफी प्रभावित हुए थे और इसी आधार पर उन्होंने मात्र 16 साल की उम्र में एक ऐसी नई लिपि रचना की जो दृष्टिबाधितों के लिए किसी वरदान से कम नहीं था।
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लुइस की बनाई लिपि बार्बियर की उल्लेखित लिपि की कई जटिलताओं को दूर करती थी और उससे काफी सरल और आसानी से समझ में आने वाला था। बार्बियर के लिपि से जहाँ 12 बिंदुओं को 6-6 की पक्तियों में रखा गया था।और जिसमें विराम चिन्ह, संख्या और गणितीय चिन्हो का समावेश नहीं हुआ था।
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लुइस ब्रेल ने अपनी लिपि में सिर्फ 6 बिंदुओं का प्रयोग किया और 64 अक्षर और चिन्ह बनाये, इस लिपि में संगीत के नोटेशन और विराम चिन्हों को भी शामिल किया गया। लुइस ब्रेल की खोज इस नई लिपि को ब्रेल लिपि नाम दिया गया। इस लिपि में लिखी पहली पुस्तक 1829 में प्रकाशित हुई।
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आँख न होने के बावजूद लुइस ब्रेल ने वो आविष्कार कर दिखाया था जिसकी बदौलत हजारों दिव्यांग न सिर्फ स्कूल कालेजों से दूसरे विद्यार्थियों की तरह लिख पढ़ पाए बल्कि आत्मविश्वास के साथ दुनिया के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर खड़े हो सके।
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यह ब्रेल लिपि ही थी जिसकी सहायता से आज नेत्रहीन नौकरी, व्यवसाय इत्यादि वे सभी काम कर पा रहे है जिसके बारे में कभी उसके लिए सोचना भी मुमकिन नहीं था। बात करते है आज के तकनिकी युग की तो उसमे भी दृष्टीबाधियों के लिए ब्रेल लिपि ही काम आ रही है।
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इस लिपि के प्रयोग से कई तकनिकी गैजेट्स बी टाच सेलफोन,स्मार्टवॉच इत्यादि बनाये जा चुके है जिनके स्क्रीन पर ब्रेल लिपि का प्रयोग किया गया है। जिनके जरिये दृष्टिबाधित समाजकी मुख्यधारा से जुड़े हुए है। लुइस ब्रेल की खोज उनकी ब्रेल लिपि किसी देश विशेष के लिए नहीं बल्कि दुनिया भर के दिव्यांगों के लिए वरदान साबित हुआ है।
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भारत ने लुइस ब्रेल Louis Braille के जन्मदिन पर उनके सम्मान में 4 जनवरी 2009 को एक डाक टिकट भी जारी किया था अलावा भारतीय रिजर्व बैंक ने हमारी करेंसी में ब्रेल लिपि के विशेष चिन्हों को शामिल किया जिसमें नेत्रहीनों को असली और नगली नोट की पहचान करने में मदद मिलता है।
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