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जाने कब से शुरू हो रहा है हिंदू नववर्ष (Hindu Nav Varsh) विक्रम संवत 2080

रात में दिन नही बदलता, जनवरी में नव वर्ष नहीं आता। जी हाँ दोस्तों अपनी भारतीय संस्कृति का ज्ञान न होने के कारण आज हिन्दू भी 31 दिसम्बर की रात्रि में एक दूसरे को Happy New Year कहते हुए नव वर्ष की शुभकामनाये देते है। 

आज के युग में अंग्रेजी कलेंडर का प्रचलन अत्यधिक तथा सर्वव्यापी हो गया है। किन्तु उससे भारतीय कैलेण्डर का महत्त्व कभी कम नहीं किया जा सकता हमारे प्रत्येक त्यौहार एवं व्रत, उपवास, युगपुरुषों की जयंती या पुण्यतिथि, विवाह तथा अन्य शुभ कार्यों के शुभमुहूर्त आदि सभी भारतीय कलेण्डर अर्थात हिन्दू पंचांग के अनुसार ही देखे जाते है।

सम्पूर्ण विश्व में नव वर्ष का उत्सव प्रति वर्ष एक जनवरी के दिन ही बड़े धूम-धाम तथा हर्षो उल्लास के साथ मनाया जाता है यह नव वर्ष अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मनाया जाता है किन्तु भारतीय सनातन पंचांग के अनुसार नव वर्ष चैत्र मास में मनाया जाता है जिसे  नव संवत्सर भी कहा जाता है। तो आइये जानते है अपने हिन्दू सनातन संस्कृति नव वर्ष के बारे में। 

जाने कब से शुरू हो रहा है हिंदू नववर्ष  (Hindu Nav Varsh) विक्रम संवत 2080
 जाने कब से शुरू हो रहा है हिंदू नववर्ष  (Hindu Nav Varsh) विक्रम संवत 2080

  • हिन्दू नव वर्ष विक्रम संवत  2080 - 22 मार्च बुधवार से शुरू हो रहा है।
  • प्रतिपदा तिथि प्रारंभ होगा - 21 मार्च प्रातःकाल 11 बजकर 53 मिनट पर
  • प्रतिपदा तिथि समाप्त होगा - 22 मार्च प्रातःकाल 11 बजकर 58 मिनट। 

हिन्दू नव वर्ष 2080 कब है या विक्रम संवत 2080 कब है? (hindu nav varsh kab hai)

हिन्दू मान्यता के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा से शुरू होने वाला वर्ष नवसंवत्सर या हिन्दू नव वर्ष के नाम से जाना जाता है। साल 2023 में हिन्दू नव वर्ष 22 मार्च बुधवार से प्रारम्भ होगा और अगले वर्ष चैत्र के कृष्ण पक्ष की अमावस्या यानि 21 मार्च 2024 में गुरुवार के दिन समाप्त होगा।

Hindu Nav Varsh, Vikram Samvat कब मनाया जाता है?

हिन्दू नव वर्ष क आरम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास मार्च या अप्रैल के महीने में आता है इस दिन को महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा तथा आंध्र प्रदेश में उगादी पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।

हिंदू नववर्ष, विक्रम संवत कब शुरु होता है?

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का दिवस ही वासंती नवरात्र का प्रथम दिवस होता है, पुरातन ग्रंथो के अनुसार इसी दिन सृष्टि के रचइता भगवान ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना प्रारम्भ की थी, चैत्र मास ही नव वर्ष मनाने के लिए सर्वोत्तोम है क्योंकि चैत्र मास में चारो ओर  पुष्प खिलते है, वृक्षों पर नए पत्ते आ जाते है चारो ओर हरियाली मानो प्रकृति ही नव वर्ष मना रही हो, चैत्र मास में सर्दी जा रही होती है तथा गर्मी का आगमन होने जा रहा होता है मनुष्य के लिए यह समय प्रत्येक प्रकार के वस्त्र पहनने के लिए उपयुक्त है।

हिंदू नववर्ष, विक्रम संवत मार्च या अप्रैल महिनेंं मेंं क्यु आता है

चैत्र मास अर्थात मार्च या अप्रैल में विद्यालयों में परिणाम आता है एवं नई कक्षा तथा नया सत्र भी प्रारम्भ होता है अतः चैत्र मास विद्यालयो के लिए नव वर्ष माना गया है चैत्र मास अर्थात 31 मार्च से 1 अप्रैल के दिन ही बैंक तथा सरकार का नया सत्र भी प्रारम्भ होता है चैत्र में नया पंचांग आता है जिससे प्रत्येक भारतीय पर्व, विवाह तथा अन्य मुहूर्त देखे जाते है चैत्र मास में ही फसल कटती है तथा नया अनाज भी घर में आता है तो किसानो का नया वर्ष भी इसे ही माना जाता है।

Hindu Nav Varsh, Vikram Samvat से ही नवरात्रि प्ररम्भ होता है

भारतीय नव वर्ष से प्रथम नवरात्र प्रारम्भ होता है जिससे घर-घर में माता रानी की पूजा की जाती है जी को वातावरण को शुद्ध तथा सात्विक बना देता है। चैत्र प्रतिपदा के दिन महाराज विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत की शुरुआत भगवान झूलेलाल का जन्म नवरात्री प्रारम्भ गुड़ी पड़वा, उगादी तथा ब्रम्हा जी द्वारा सृष्टि की रचना इत्यादि का सम्बन्ध इस दिन से है। इस प्रकार ब्रह्माण्ड से प्रारम्भ कर सूर्य, चंद्र आदि की दिशा मौसम, नक्षत्र, पौधों की नई पत्तियां, किसान की नई फसल, विद्यार्थी की नई कक्षा, मनुष्य में नया रक्त संचारण आदि परिवर्तन चैत्र मास से ही प्रारंभ होते है।

हिंदू पंचांग कि गणना

भारतीय सनातन कलेंडर अर्थात हिन्दू पंचन की गणना सूर्य तथा चन्द्रमा के अनुसार की जाती है, यह सत्य है की विश्व अन्य  प्रत्येक कलेंडर किसी न किसी रूप में भारतीय पंचांग का ही अनुशरण करते है, मान्यता तो यह भी है  की विक्रमादित्य के काल में सर्व प्रथम भारतीयों द्वारा ही कलेंडर अर्थात पंचांग का अविष्कार, गणना तथा विकास हुआ था, हिन्दू पंचांग के अनुसार से ही बारह महीनो का एक वर्ष तथा सप्ताह में सात दिनों का प्रचलन प्रारम्भ हुआ था कहा जाता है की भारत से ही यूनानियों ने  भारतीय पंचांग का विश्व के भिन्न-भिन्न राज्यों में प्रचार तथा प्रसार किया था। 

संवत कैलेंडर से भी पूर्व लगभग 6700 ईसापूर्व हिन्दुओं का प्राचीन सप्तर्षि संवत अस्तित्व में आ चूका था, किन्तु इसका विधि अनुसार प्रारम्भ लगभग 3100 ईसापूर्व मन जाता है, साथ ही इसी समय में भगवान श्री कृष्ण जी के जन्म से कृष्ण कैलेंडर का भी प्रारम्भ माना जाता है, उसके पश्चात कलयुगी संवत का भी प्रारम्भ माना गया है विक्रमी संवत का प्रारम्भ 57 ईस्वीपूर्व से माना जाता है।

विक्रम संवत को नव संवत्सर भी कहा जाता है संवत्सर पांच प्रकार का होता है जिसमे सूर्य, चंद्र, नक्षत्र, सावन तथा अधिक मास का समावेश किया गया है, यह 365 दिनों का होता है इसका आरम्भ मेष राशि में सूर्य की संक्रांति से होता है, वही चंद्र वर्ष के मास चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ आदि है इन महीनो का नाम नक्षत्रों के आधार पर रखा गया है।

चन्द्र वर्ष 354 दिनों का होता है इसी कारण जो बढे हुए 10 दिन होते है वह चन्द्र मास में ही माने जाते है किन्तु दिन बढ़ने के कारण इन्हे अधिक मास कहा जाता है। नक्षत्रों की संख्या 27 है इस प्रकार एक नक्षत्र मास भी 27 दिन का ही माना जाता है, वहीं सावन वर्ष की अवधि लगभग 360 दिन की होती है इसमें प्रत्येक महीना 30 दिन का होता है।

भारत के विभिन्न क्षेत्रो में मौसम तथा संस्कृति एवं परम्पराओं के आधार पर भिन्न-भिन्न नव वर्ष मनाया जाता है। जो इस प्रकार है-

  • वसंवत्सर - चैत्र मास शुक्ल प्रतिपदा
  • उगादी - तेलुगु नव वर्ष
  • गुड़ी पड़वा - मराठी / कोंकणी नव वर्ष
  • बैसाखी - पंजाबी नव वर्ष
  • पुथंडु - तमिल नव वर्ष
  • बोहाग बिहू - असामी नव वर्ष
  • पोहलाबोईशाख - बंगाली नव वर्ष
  • बेस्तु वर्ष - गुजराती नव वर्ष
  • विषु - मलयालम नव वर्ष 
  • नवरेह - कश्मीरी नव वर्ष

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4 टिप्पणियाँ

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  2. सर जी मुझे भी कैलेंडर बनवाने हैं उसके विषय में कुछ डिजाइनें और जानकारी चाहिए....

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जय श्री राम
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