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परशुराम जयंती 2025: तिथि, महत्व, पूजा विधि और पौराणिक कथा | Parshuram Jayanti Date 2025

सनातनी हिन्दू धर्म के अनुसार जो वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया आती है जिसे अक्षय तृतीय भी कहते है जिस दिन कुछ भी किया हुआ दान पुण्य जो अक्षय हो जाता है जिसका कभी क्षय नहीं होता है उसी दिन परशुराम जयंती भगवान परशुराम जन्मोत्सव है 

हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान परशुराम जगत के पालनहार भगवान विष्णु जी के छठे अवतार है यह पर्व पुरे भारत में धूम-धाम के साथ मान्य जाता है नगर-नगर में भगवान परशुराम की झांकियां निकाली जाती है। भगवान परशुराम भोले नाथ के अनन्य भक्त थे
Parshuram Jayanti 2025 कब है | परशुराम जयंती पूजा मुहूर्त, पूजा विधि, उपाय और पौराणिक कथा
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परशुराम जयंती 2 मई को है हिन्दू पंचाग के अनुसार प्रत्येक वर्ष अक्षय तृतीया के दिन पड़ता है इस साल 30 अप्रैल को अक्षय तृतीया है और इसी दिन भगवान परशुराम जयंती भी है। आज हम आपको परशुराम जयंती 2025 में कब मनाया जायेगा, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इस दिन किये जाने वाले उपायों के बारे में बताएंगे। 

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परशुराम जयंती कब मनाया जाता है? (parshuram jayanti kab manaya jata hai)

परशुराम जयंती भगवान विष्णु जी के छठे स्वरूप के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन परशुराम जी के पूजा-अर्चना का विधान है। हर वर्ष हिन्दू पंचांग के अनुसार परशुराम जयंती बैशाख मास के शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को पड़ता है मान्यता है कि भगवान परशुराम का जन्म प्रदोष काल में जब तृतीया तिथि शुरू होती है तब परशुराम जयंती मनाया जाता है। इस दिन अक्षय तृतीया का प्रसिद्द त्यौहार भी मनाया जाता है। 

परशुराम जयंती कब है (parshuram jayanti kab hai)

परशुराम जयंती 2025 में 30 अप्रैल को मनाई जाएगी। यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है, जिसे अक्षय तृतीया भी कहते हैं। इस दिन भगवान परशुराम का जन्मोत्सव मनाया जाता है।

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भगवान परशुराम जयंती 2025 में 30 अप्रैल (बुधवार) को मनाई जाएगी। यह तिथि वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को आती है और अक्षय तृतीया के साथ पड़ती है। इस दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी का जन्म हुआ था।

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परशुराम जयंती 2025 में 30 अप्रैल को मनाई जाएगी। यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है, जिसे अक्षय तृतीया भी कहते हैं।

parshuram jayanti 2025 

परशुराम जयंती 30 अप्रैल 2025 (बुधवार) को मनाई जाएगी। यह तिथि वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को आती है और अक्षय तृतीया के साथ पड़ती है।

परशुराम जयंती का महत्व

  • यह भगवान विष्णु के छठे अवतार, भगवान परशुराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है।
  • इस दिन विशेष रूप से विष्णु पूजन, परशुराम चालीसा का पाठ और दान-पुण्य करने का महत्व होता है।
  • अक्षय तृतीया के कारण यह तिथि अत्यंत शुभ मानी जाती है, और इस दिन किए गए कार्यों का पुण्य फल अक्षय रहता है।

परशुराम जयंती शुभ मुहूर्त 2025 (Parshuram Jayanti Shubh Muhurt 2025)

  • साल 2025 में परशुराम जयंती का पर्व 30 अप्रैल बुधवार को मनाया जायेगा।
  • तृतीया तिथि प्रारंभ होगा - 29 अप्रैल शाम 5 बजकर 30 मिनट पर। 
  • तृतीया तिथि समाप्त होगा -  30 अप्रैल दोपहर 2 बजकर 10 मिनट पर।

परशुराम जयंती पूजा सामग्री

आज के दिन पूजा के लिए परशुराम जी की मूर्ति, चौकी, धुप, दिप, घी, नैवेद्य, चन्दन, वस्त्र, कपूर, अक्षत आदि चीजे आपको चाहिए।

परशुराम जयंती पूजा विधि

परशुराम जयंती के दिन सबसे पहले ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करके साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद एक चौली पर परशुराम जी की प्रतिमा स्थापित करें और हाथ में जल लेकर उनके मंत्रों का जाप करे, परशुराम जयंती के दिन शाम के समय पुनः पूजा करें पूजा में भगवान परशुराम जी को नैवेद्य अर्पित करे इसके बाद  भगवान परशुराम की कथा पढ़े कथा के बाद भगवान परशुराम जी को मिठाई का भोग लगाये और अंत में धुप, दिप व आरती कर भगवान परशुराम जी से प्रार्थना करें की वह आपको साहस प्रदान करे और आपको सभी प्रकार के भय से मुक्ति दें।

परशुराम जयंती पूजा मन्त्र


जमदग्निसुतो वीर क्षत्रियान्तकर प्रभो। 
गृहाणार्घ्य मया दत्तं कृपया परमेश्वर ॥

परशुराम का अर्थ

परशुराम दो शब्दों को जोड़कर बना है। परशुराम अर्थात कुल्हाडी तथा राम इन दोनों शब्दों को मिलाने पर कुल्हाड़ी के साथ  राम का अर्थ निकलता है।  

परशुराम जी के नाम 

परशुराम जी के अनेक नाम है जैसे कि 

  • रामभद्र
  • भार्गव
  • भृगुपति (ऋषभृगु के वंशज)
  • जामदग्न्य (जमदग्नि के पुत्र)

जैसे नामों से भी इन्हें जाना जाता है। 

परशुराम का जन्म स्थान

भगवान परशुराम का जन्म स्थान महेंद्रगिरि पर्वत (ओडिशा) को माना जाता है, जो वर्तमान में ओडिशा, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा के पास स्थित है।

कुछ मान्यताओं के अनुसार, उनका जन्म उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले में स्थित जानूपुर में हुआ था, जबकि कुछ अन्य मान्यताओं में मध्य प्रदेश के इंदौर के पास जनपाव पर्वत को भी उनका जन्म स्थान बताया जाता है।

हालांकि, हिंदू ग्रंथों के अनुसार, वे महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र थे और उन्होंने अपना अधिकांश समय तपस्या और शिक्षा के लिए विभिन्न आश्रमों में बिताया।

प्रमुख स्थान जुड़े हुए हैं:

1. महेंद्रगिरि पर्वत (ओडिशा) – सबसे प्राचीन मान्यता

2. जनपाव पर्वत (मध्य प्रदेश) – कई लोककथाओं में उल्लेख

3. कुंभलगढ़ (राजस्थान) – परशुराम महादेव गुफा से जुड़ी मान्यता

4. परशुराम कुंड (अरुणाचल प्रदेश) – तपस्या का स्थान


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परशुराम जयंती के उपाय

भगवान विष्णु जी का छठे अवतार भगवान परशुराम जी को साहस का देवता माना जाता है इसीलिए यदि आज के दिन उनकी पूजा में भगवान विष्णु जी और परशुराम जी को चन्दन, तुलसी के पत्ते, कुमकुम, अगरबत्ती, फूल और मिठाई चढ़ाकर विशेष पूजन किया जाय और साथ ही व्रत रखा जाय तो कहा जाता है की इस उपाय से व्यक्ति को जीवन में सफलता, साहस और बुद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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परशुराम का जीवन परिचय


परशुराम हिंदू धर्म में एक महान ऋषि, भगवान विष्णु के छठे अवतार और एक अद्वितीय योद्धा माने जाते हैं। वे त्रेतायुग और द्वापरयुग के संधिकाल में जन्मे थे और मुख्य रूप से अपने क्रोध, तपस्या और अन्याय के खिलाफ संघर्ष के लिए प्रसिद्ध हैं।

परशुराम जी का जन्म


भगवान परशुराम का जन्म महर्षि भृगु के वंश में हुआ था। उनके पिता महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका थीं। उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था, लेकिन वे क्षत्रियों के समान योद्धा भी थे। उनके वास्तविक नाम 'राम' था, लेकिन अपने परशु (फरसे) के कारण वे "परशुराम" कहलाए।

परशुराम का प्रमुख कार्य


1. क्षत्रियों का संहार: परशुराम ने धरती से अधर्मी और अत्याचारी क्षत्रियों का 21 बार संहार किया था।

2. शिवजी से शिक्षा: उन्होंने भगवान शिव से दिव्य अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा प्राप्त की थी और उन्हें त्रिलोक में सबसे महान योद्धा माना जाता था।

3. भगवान श्रीराम और कर्ण से भेंट: परशुराम ने श्रीराम को शिवधनुष भंग करने के बाद आज़माया था और कर्ण को भी उनकी क्षत्रिय पहचान के कारण शाप दिया था।

4. महाभारत में योगदान: उन्होंने भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे महान योद्धाओं को शिक्षा दी थी।

5. कर्नाटका के परशुराम क्षेत्र की स्थापना: कहा जाता है कि उन्होंने समुद्र को पीछे धकेलकर पश्चिमी तट (गोवा, केरल) का निर्माण किया।

परशुराम जी की विशेषताएँ

  • वे चिरंजीवी (अमर) माने जाते हैं और कलियुग के अंत तक जीवित रहेंगे।
  • वे अन्याय और अधर्म के विरोधी थे।
  • वे ब्राह्मण होते हुए भी महान धनुर्धर और योद्धा थे।

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भगवान परशुराम की प्रतिज्ञा


भगवान परशुराम ने अधर्म और अन्याय के विरुद्ध संघर्ष किया और क्षत्रियों के अत्याचार को समाप्त करने की प्रतिज्ञा ली। उनकी प्रतिज्ञा मुख्य रूप से हैहय वंशी क्षत्रिय राजा सहस्त्रार्जुन (कार्तवीर्य अर्जुन) द्वारा उनके पिता महर्षि जमदग्नि की हत्या से जुड़ी है।

भगवान परशुराम की प्रतिज्ञा का कारण


1. राजा सहस्त्रार्जुन का अत्याचार:

  • राजा सहस्त्रार्जुन ने अपने बल के अहंकार में परशुराम जी के आश्रम से कामधेनु गाय को बलपूर्वक छीन लिया।
  • परशुराम जी ने क्रोधित होकर राजा सहस्त्रार्जुन और उसकी सेना का वध कर दिया।

2. महर्षि जमदग्नि की हत्या:

  • राजा सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने बदला लेने के लिए परशुराम जी के आश्रम पर आक्रमण किया और उनके पिता महर्षि जमदग्नि की हत्या कर दी।
  • जब परशुराम जी को यह समाचार मिला, तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने प्रतिज्ञा ली।

परशुराम की प्रतिज्ञा


महर्षि जमदग्नि की हत्या के बाद, परशुराम जी ने प्रतिज्ञा ली:

"मैं इस धरती से अधर्मी और अहंकारी क्षत्रियों का 21 बार संहार करूंगा और धर्म की पुनः स्थापना करूंगा।"

प्रतिज्ञा की पूर्ति

  • परशुराम जी ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए 21 बार पृथ्वी से अधर्मी क्षत्रियों का संहार किया।
  • उन्होंने कई राजाओं और सेनाओं को पराजित किया और अंततः धरती को धर्ममय बनाया।
  • उन्होंने अपनी माता रेणुका और पितरों की शांति के लिए रक्त से भरा पांच सरोवर (समश्त्र सरोवर) बनाया, जिसे आज "पंच सरोवर" कहा जाता है।

निष्कर्ष

परशुराम जी न्याय, शक्ति और ज्ञान के प्रतीक हैं। वे भगवान विष्णु के अवतार थे, जिनका मुख्य उद्देश्य पृथ्वी से अधर्म का नाश करना था। वे आज भी हिंदू धर्म में पूजनीय हैं और अक्षय तृतीया को उनकी जयंती मनाई जाती है।

भगवान परशुराम के जीवन से जुड़ी पौराणिक कथा


भगवान परशुराम का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था, वे ऋषि जमदग्रि और माता रेणुका के पुत्र थे ऋषि जमदग्रि सप्त ऋषियों में से एक थे कहा जाता है कि भगवान परशुराम का जन्म 6 उच्च ग्रहों के योग में हुआ था। जिस कारण वे अतितेजश्वी, ओजश्वी और पराक्रमी थे एक बार अपने पिता की आज्ञा पर उन्होंने अपनी माता का सिर काट दिया था और बाद में माँ को पुनर्जीवित करने के लिए उन्होंने पिता से वरदान भी मांग लिया था।

जब परशुराम जी ने तोडा गणेश जी का एक दांत


भगवान परशुराम जी को क्रोध भी अधिक आता था, उनके क्रोध से स्वयं गणपति महाराज भी नहीं बच पाए थे। एक बार जब परशुराम भगवान शिव के दर्शन करने  के लिए कैलाश पहुंचे तो गणेश जी ने उन्हें उनसे मिलने नहीं दिया इस बात से क्रोधित होकर उन्होंने अपने फरसे से भगवान गणेश का एक दांत तोड़ डाला इस कारन से भगवान गणेश एक दन्त कहलाने लगे।


जब क्षत्रिय वंश के विनाश के लिए परशुराम ने ली प्रतिज्ञा


हैहयवंशी के राजा सहस्त्रार्जुन ने अपने बल और घमंड के कारण लगातार ब्राह्मणों और ऋषियों पर अत्याचार कर रहा था। प्राचीन कथा और कहानियों के अनुसार एक बार सहस्त्रार्जुन अपनी सेना सहित भगवान परशुराम के पिता जमदग्रि मुनि के आश्रम में पंहुचा जमदग्रि मुनि ने सेना का स्वागत और खान-पान की व्यवस्था अपने आश्रम में की। मुनि ने आश्रम की चमत्कारी कामधेनु गाय के दूध से समस्त सैनिकों की भूख शांत की  कामधेनु गाय के चमत्कार से प्रभावित होकर उसके मन में लालच पैदा हो गई। 

इसके बाद जमदग्रि मुनि से कामधेनु गाय को उसने बलपूर्वक छीन लिया। जब यह बात परशुराम को पता चली तो उन्होंने सहस्त्रार्जुन का वध कर दिया ।सहस्त्रार्जुन के पुत्रो ने बदला लेने के लिए परशुराम के पिता का वध दिया और पिता के वियोग में भगवान परशुराम की माता चिता पर सती हो गई। पिता के शरीर पर 21 घाव को देखकर परसुराम ने प्रतिज्ञा ली कि वह इस धरती से समस्त क्षत्रिय वंशो का  संहार कर देंगे, इसके बात पुरे 21 बार उन्होंने पृथ्वी से क्षत्रियों का विनाश कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की।

परशुराम स्तुति मंत्र

भगवान परशुराम स्तुति मंत्र


भगवान परशुराम की कृपा पाने और उनकी स्तुति करने के लिए निम्नलिखित मंत्रों का जाप किया जाता है:

1. परशुराम ध्यान मंत्र


ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि।
तन्नो परशुरामः प्रचोदयात्॥

भावार्थ:
हम भगवान परशुराम का ध्यान करते हैं, जो महर्षि जमदग्नि के पुत्र और महावीर हैं। वे हमें सद्बुद्धि प्रदान करें।

2. परशुराम गायत्री मंत्र


ॐ भृगुपुत्राय विद्महे महादेवाय धीमहि।
तन्नो रामः प्रचोदयात्॥

भावार्थ:
हम भृगुवंशी भगवान परशुराम का ध्यान करते हैं, जो महादेव के समान हैं। वे हमें प्रबुद्ध करें।

3. परशुराम स्तुति मंत्र


ॐ रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः॥

भावार्थ:
भगवान राम, रामभद्र, रामचंद्र, सृष्टिकर्ता, रघुनाथ और सीता के स्वामी को मेरा नमन।

4. परशुराम कवच मंत्र


ॐ ह्रीं जामदग्न्याय विद्महे महादेवाय धीमहि।
तन्नो परशुरामः प्रचोदयात्॥

भावार्थ:
हम महर्षि जमदग्नि के पुत्र भगवान परशुराम का ध्यान करते हैं, जो महादेव के समान हैं। वे हमें शक्ति और रक्षा प्रदान करें।

5. परशुराम विजय मंत्र


ॐ परशुहस्ताय विद्महे क्षत्रियान्तकराय धीमहि।
तन्नो रामः प्रचोदयात्॥

भावार्थ:
हम भगवान परशुराम का ध्यान करते हैं, जो परशु (फरसा) धारण करने वाले और अधर्मी क्षत्रियों के संहारक हैं। वे हमें विजय और शक्ति प्रदान करें।

कैसे करें भगवान परशुराम की स्तुति?

  • सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • भगवान परशुराम की मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाएं।
  • इन मंत्रों का जाप 11, 21, या 108 बार करें।
  • भगवान परशुराम से धर्म, साहस और शक्ति की प्रार्थना करें।

परशुराम पर कविता

भगवान परशुराम पर कविता


शस्त्र और शास्त्र के ज्ञाता, परशुराम महान

धरती पर अवतरित हुए, विष्णु के संतान।
क्षत्रिय कुल में जन्म लिया, ब्राह्मण धर्म निभाया,
अन्याय के विरुद्ध उठे, सुदर्शन रूप दिखाया।

माता-पिता के आज्ञाकारी, संयम के थे धनी,
योग-साधना में लीन रहे, तपस्या में रत रहनी।
शंकर से पाया दिव्य फरसा, जिसका कोई तोड़ न था,
दुष्टों का विनाश किया, न्यायधर्म में मोड़ न था।

शस्त्र चलाए अधर्मियों पर, पर दया भाव भी था,
परशु के वार से कांप उठा, जब भी अन्याय खड़ा।
गुरु द्रोण को विद्या दी, कर्ण को भी संज्ञान दिया,
धनुर्विद्या के इस ज्ञाता ने, इतिहास नया रच दिया।

हर युग में गूंजेगा नाम, परशुराम के गौरव गान,
शौर्य, तपस्या, त्याग, धर्म के, हैं वे सच्चे प्रमाण।
नमन उन्हें, जिनकी गाथा से, धरती धन्य हो जाती है,
अन्याय जहां भी सिर उठाए, वहां परशु चल जाती है।

परशुराम जयंती का महत्व (Parshuram Jayanti ka Mahatv)


भगवान परशुराम का जन्म वैशाख की शुल्क पक्ष की अक्षय तृतीया  को पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम पहर में हुआ था। इनकी माता रेणुका और पिता जमदग्रि थे जिस समय भगवान परशुराम जी का जन्म हुआ था उस समय पर दुष्ट राजाओं से लोग अत्यधिक परेशान थे। 

उन्हीं में से एक दुष्ट राजा ने भगवान परशुराम के पिता जमदग्रि का वध कर दिया जिससे क्रोधित होकर भगवान परशुराम ने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था। भगवान परशुराम को परशु भगवान शिव ने दिया था जिसकी वजह से इन्हें परशुराम के नाम से जाना जाता है। भगवान परशुराम जी की पूजा करने से साहस में वृद्धि और भय से मुक्ति मिलती है, भगवान परशुराम को  श्री हरी विष्णु का छठा अवतार माना जाता है।

हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान परशुराम ने ब्राह्मणों और ऋषियों पर होने वाले अत्याचारों का अंत करने के लिए ही धरती पर जन्म लिया था। माना जाता है की परशुराम जयंती के दिन पूजा-पाठ करने से शुभ फल प्राप्त होते है और इस दिन दान-पुण्य करने का भी अपना एक विशेष महत्त्व है। 

जिन लोगों की संतान नहीं होती उन लोगो को इस व्रत को अवश्य करना चाहिए इस दिन भगवान परशुराम जी, विष्णु जी के साक्षात् हमे दोनों ही लोगों का एक ही साथ आशीर्वाद मिलता है। 

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भगवान परशुराम जी के मंदिर


जो भगवान परशुराम जी के मंदिर है उसके बारे में जैसे की अन्य जो अवतार है जैसे कि श्री कृष्ण हो गए, श्री राम जी हो गए उनके जैसा नहीं है परशुराम जी को हम मानते है की वे आज के युग में भी पृथ्वी पर निवास करते है।भारत में कई स्थान ऐसे है की जहा पर परशुराम जी के मंदिर है।
  1. प्रथम मंदिर जो है वह सलेमपुर उत्तर प्रदेश में है।
  2. दूसरा मंदिर जो कुम्भलगढ़ राजस्थान में है।
  3. तीसरा मंदिर जो अखनूर जम्मू कश्मीर में है।
  4. चौथा परशुराम जी का मंदिर अतिराला में जो कुंढापा और आंध्र प्रदेश में आता है।

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भगवान परशुराम की पूजा क्यों नहीं होती?

भगवान परशुराम को हिंदू धर्म में विष्णु के छठे अवतार के रूप में माना जाता है, लेकिन उनकी पूजा व्यापक रूप से नहीं की जाती, जैसा कि राम, कृष्ण, या शिव की होती है। इसके पीछे कई संभावित कारण हैं:

1. क्षत्रियों के खिलाफ संघर्ष

भगवान परशुराम को एक क्रोधी और युद्धप्रिय संत के रूप में देखा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, उन्होंने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रियों से मुक्त किया था। इस वजह से, क्षत्रिय समुदाय ने उन्हें देवता के रूप में पूजना कम कर दिया।

2. तपस्वी और सन्यासी जीवन

परशुराम ने एक सन्यासी जीवन जिया और सांसारिक सुखों से दूर रहे। हिंदू परंपरा में आमतौर पर गृहस्थ या लोकहितकारी कार्य करने वाले देवताओं की पूजा अधिक की जाती है।

3. स्थायी मंदिरों की कमी

भगवान परशुराम के बहुत कम प्रमुख मंदिर हैं, जबकि अन्य अवतारों जैसे राम और कृष्ण के हजारों मंदिर मौजूद हैं। पूजा की परंपरा आमतौर पर मंदिरों के माध्यम से ही व्यापक होती है।

4. उनका अवतार अभी भी "सक्रिय" है

पौराणिक मान्यता के अनुसार, परशुराम को अमर माना जाता है और वे आज भी जीवित हैं। लोग प्रायः उन देवताओं की पूजा करते हैं जो लोककल्याणकारी हैं या जिन्हें मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है।

5. विशेष अवसरों पर ही पूजा होती है

हालांकि उनकी दैनिक पूजा बहुत प्रचलित नहीं है, लेकिन परशुराम जयंती पर उनकी विशेष पूजा की जाती है। इसके अलावा, कुछ ब्राह्मण समुदाय विशेष रूप से उन्हें अपना गुरु मानते हैं और पूजते हैं।

निष्कर्ष

भगवान परशुराम की पूजा का प्रचलन अन्य देवताओं की तुलना में कम है, लेकिन वे हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उन्हें एक योद्धा-संत और न्यायप्रिय अवतार के रूप में देखा जाता है, जिनकी विशेष रूप से ब्राह्मण और कुछ अन्य समुदायों में मान्यता है।

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5 टिप्पणियाँ

  1. भगवान् परशुराम जयंती की पूरी जानकारी दी गयी है , हर बिंदु को विस्तार से बताया गया है , बहुत अच्छा अध्ययन किया है इस पोस्ट में।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद जो आपने प्रत्येक बिंदु को विस्तार से पढा है

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  2. भगवान परशुराम जयंती की जानकारी बहुत अच्छी है , हर बिंदु को विस्तार से बताया गया है ,बहुत ही सुन्दर अध्ययन है आपका। https://hindistoriesforkids.in/motivational-shayari/

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  3. अपना विचार प्रकट करने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद

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  4. आपका आर्टिकल बहुत अच्छा है और कॉफी की जानकारी देता ह परशुराम स्तुति पढ़ने के लिए https://jaibhole.co.in/home/parshuram-stuti

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