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दूर्वा अष्टमी कब है जाने शुभ तिथि, पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्त्व के बारे में

पंचांग के अनुसार दूर्वा अष्टमी - Durva Ashtami का पर्व भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है इस दिन दूर्वा घास का पूजन करने की परंपरा है मान्यता है कि दूर्वा अष्टमी के दिन दूर्वा की पूजा करने से व्यक्ति के सभी मनोकामनाएं पूरी होती है और दूर्वा घास की ही तरह उसके परिवार व कुल की वृद्धि होती है। दूर्वा अष्टमी एक ऐसा खास व्रत व त्यौहार है जो दूर्वा घास को समर्पित है दूर्वा घास जिसे शास्त्रों में मात्र घास नहीं मन जाता बल्कि इसका धार्मिक दृष्टि से भी विशेष महत्त्व है

दूर्वा घास का प्रयोग हिन्दू अनुष्ठानो में किया जाता है इसे बहुत ही शुद्ध माना जाता है गणेश जी को दूर्वा अतिप्रिय है। दूर्वा के बिना भगवान गणेश जी की पूजा अधूरा माना जाता है इसलिए जो भी इस दिन व्रत रखकर दूर्वा की पूजा करता है तो उसके जीवन में सुख-समृद्धि हमेशा बनी रहती है। आज इस लेख में हम आपको दूर्वा अष्टमी के शुभ तिथि, पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्त्व और इस दिन सुख समृद्धि के लिए किये जाने वाले एक छोटे से उपाय के बारे में बताएंगे। 👇👇👇👇👇


दूर्वा अष्टमी कब है जाने शुभ तिथि, पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्त्व के बारे में
दूर्वा अष्टमी

दूर्वा अष्टमी शुभ मुहूर्त - Durva Ashtami Shubh Muhurt

👉 साल 2020 में दूर्वा अष्टमी - 25 अगस्त मंगलवार के दिन मनाया जायेगा।

👉 अष्टमी तिथि प्रारंभ होगा - 25 अगस्त सांयकल 12 बजकर 21 मिनट पर।

👉 अष्टमी तिथि समाप्त होगा - 26 अगस्त प्रातःकाल 10 बजकर 39 मिनट पर।

👉 दूर्वा अष्टमी पूर्वविद्धा का समय होगा - सांयकाल 12 बजकर 21 मिनट से सांयकाल 06 बजकर 50 मिनट तक।

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दूर्वा अष्टमी पूजा विधि

भाद्रपद शुक्ल अष्टमी के दिन प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद व्रत का संकल्प लेकर पूजा स्थल पर देवताओं को फल, फूल, चावल, धूपबत्ती, दही और अन्य जरूरी पूजन सामग्री अर्पित करना चाहिए। आज के दिन दूर्वा अष्टमी के पालनकर्ता भगवान शिव और गणेश जी की विधिवत पूजा कर गणेश जी को दूर्वा अर्पित करें। मान्यतानुसार इस दिन महिलाओं द्वारा पूरी श्रद्धा के साथ व्रत, पूजा और भोग चढाने से घर में सुख-समृद्धि और खुशियां आती है और मनीलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होता है। पूजन के बाद को ब्राह्मणों को भोजन और वस्त्र दान करें।

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दूर्वा अष्टमी का महत्त्व

भविष्य पुराण के अनुसार जब समुन्द्र मंथन चल रहा था तब भगवान विष्णु ने मंदराचल पर्वत को अपनी जंघा पर धारण किया और जब समुन्द्र मंथन हुआ उसकी रगड़ से भगवान विष्णु के जंघ के कुछ रोम उखड गए वे रोम समुंदर की लहरों से जब बाहर आये कहा जाता है की उन्ही रोमो से दुर्वे की उत्पत्ति हुई। भगवान विष्णु के रोम से दुर्वे की उत्पत्ति हुई तो देवताओं को भी दूर्वा अतिप्रिय उस दिन से लगने लगा। दूर्वा घास का धार्मिक महत्त्व है।

शास्त्रों के अनुसार दूर्वा का बहुत अधिक महत्व है। इसे सम्पन्नता का का ही प्रतिक माना जाता है मान्यता है कि जो व्यक्ति भक्ति के साथ दूर्वा अष्टमी के दिन दूर्वा घास की पूजा करता है, तो उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। जो व्यक्ति धार्मिक रूप से दूर्वा अष्टमी की पूजा करता है उसे पारिवारिक सुख और कुल वृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।

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दूर्वा अष्टमी के दिन करें ये उपाय

विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश जी की आराधना बहुत ही शुभ और मंगलकारी मानी गई है दूर्वा अष्टमी के दिन श्री गणेश का पूजन कर उन्हें दूर्वा अर्पित करते समय जो व्यक्ति श्रीं गणेशाय नमः दुर्वाकुरान समर्पयामि इस चमत्कारी मंत्र का जाप कर लेता है तो भगवान गणेश जी के आशीर्वाद से उसके सभी संकटों का निवारण हो जाता है और उसके जीवन में सम्पन्नता आती है।

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दूर्वा अष्टमी व्रत पर श्री गणेश जी का पूजन कर उन्हें दूर्वा अर्पित करने का विशेष महत्त्व है। इस दिन जीवन के सभी संकटों से मुक्ति पाने और सुख-समृद्धि के लिए भगवान शिव के समस्त परिवार का पूजन कर गणपति जी के मंत्र का उच्चारण करते हुए गणेश जी को दूर्वा अर्पण करें। आज के दिन किया यह उपाय बेहद लाभकारी होता है।

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