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जानकी जयंती 2021 | सीता नवमी शुभ मुहूर्त | सीता नवमी का महत्त्व | Sita Jayanti 2021

जिस प्रकार से रामनवमी को बहुत शुभ फलदाई पर्व के रूप में मनाया जाता है इस दिन भगवान श्री रामचंद्र जी का जन्मदिन होता है उसी तरह से शास्त्रों के अनुसार बैसाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माता सीता का प्राकट्य हुआ था इस दिन को श्री जानकी जयंती भी कहा जाता है माना जाता है कि देवी माता सीता का जन्म मध्याह्न काल में पुष्य नक्षत्र की मंगलवार के दिन हुआ था, जिस कारण यह तिथि सीता नवमी कहलाती है जिस प्रकार श्री राम नवमी का विशेष महत्व है ठीक उसी प्रकार सीता नवमी का भी है सीता नवमी के दिन की गई माता सीता की पूजा से सुख सौभाग्य में वृद्धि व दुखों से छुटकारा मिलता है।

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जानकी जयंती 2020 | सीता नवमी का महत्त्व | Sita Jayanti 2020 | सीता नवमी शुभ मुहूर्त
जानकी जयंती

पौराणिक शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को पुष्य नक्षत्र के मध्य काल में जब महाराजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए हल भूमि जोत रहे थे उसी समय पृथ्वी से एक बालिका का प्राकट्य हुआ अतः जनमानस में यह पर्व जानकी नवमी के नाम से प्रचलित है। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक माता जानकी का जन्मदिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जन्मदिन की एक माह बाद आता है मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है एवं श्री राम सीता का विधि विधान से पूजन करता है उसे 16 महान दानों का फल, पृथ्वी दान का फल तथा समस्त तीर्थों के दर्शन का फल मिल जाता है।

भगवान श्री राम स्वयं भगवान विष्णु के अवतार थे और माता सीता लक्ष्मी जी का अवतार थी माता सीता नवमी के दिन धरती पर अवतरित हुई थी इसी कारण इस सौभाग्यशाली दिन को माता सीता की पूजा और प्रभु श्री रामचंद्र जी की पूजा अर्चना की जाती है जो भी व्यक्ति सीता नवमी के दिन माता जी के लिए व्रत रखते हैं उन पर भगवान श्री हरि और मां लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है। सीता नवमी का व्रत सौभाग्यशाली स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं इस दिन सभी भक्तों को माता सीता के मंगल मय नाम ૐ श्रीं सीताय नमः का उच्चारण करना चाहिए इससे बहुत अधिक लाभ मिलता है।

सीता नवमी शुभ मुहूर्त 2021

  • साल 2021 में सीता नवमी का व्रत और पर्व 21 मई शुक्रवार के दिन मनाया जायेगा
  • नवमी तिथि प्रारंभ होगी - 20 मई सायंकाल 12 बजकर 23 मिनट पर
  • नवमी तिथि समाप्त होगी - 21 मई 11 बजकर 10 मिनट पर
  • पूजा का शुभ मुहूर्त होगा - 21 मई 2021शुक्रवार सुबह 10 बजकर 56 मिनट से दोपहर 1 बजकर 40 मिनट तक। 
  • पूजा की कुल अवधि - 2 घन्टे  44 मिनट की। 
  • इसी दिन श्रद्धालु व्रत का पारण भी करेंगे

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सीता नवमी पूजा विधि | Sita Navami Puja Vidhi

सीता नवमी पर व्रत एवं पूजन के लिए अष्टमी तिथि को ही स्वच्छ एवं शुद्ध भूमि पर सुंदर मंडप बनाए यह मंडप 16 स्तंभों, 8 स्तंभों या 4 स्तंभों का होना चाहिए मंडप के मध्य में सुंदर आसन रखकर भगवती सीता एवं भगवान श्री राम की स्थापना करें पूजन के लिए आप स्वर्ण रजत तांबा पीतल कार्ड एवं मिट्टी इनमें से किसी भी वस्तु की आप मूर्ति स्थापित कर सकते हैं लेकिन यदि आप मूर्ति स्थापित ना करना तो आप किस ने माता सीता और श्री रामचंद्र जी की फोटो की भी स्थापना कर सकते हैं।

नवमी के दिन स्नानादि के पश्चात जानकीराम का श्रद्धापूर्वक पूजन करना चाहिए ॐ श्री रामाय नमः ओम श्री सीता नमः इस मूल मंत्र के द्वारा माता सीता और श्री रामचंद्र जी को प्रणाम करना चाहिए  सीता नवमी के दिन जो लोग व्रत रखकर श्री राम और देवी सीता की पूजा करते हैं इनके पूजन से उन्हें पृथ्वी दान के बराबर का फल मिलता है सीता नवमी की पूजा के लिए अष्टमी तिथि के दिन घर में साफ सफाई कर ले।

फिर नवमी के दिन प्रात काल उठकर व्रत का संकल्प करें और चौकी पर सीताराम की प्रतिमा स्थापित करें अब श्री राम जानकी की एक साथ पूजा करें पूजा के दौरान देवी सीता को पीले रंग के फूल कपड़े और सुहाग का सामान अर्पित करें इसके बाद उन्हें भोग लगाते हुए आरती करें अंत में भगवान राम और माता सीता से अपने परिवार का सुहाग की लंबी आयु व सुख-समृद्धि की कामना करें।

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माता सीता और श्री रामचंद्र जी का पूजन शुरू करने से पहले भगवान श्री गणेश और माता गौरी जी की भी पूजा करनी चाहिए क्योंकि गणेश भगवान हमारी प्रथम पूज्य भगवान है और किसी भी पूजा में सबसे पहले गौरी गणेश की पूजा होती है तो श्री रामचंद्र और माता सीता जी की पूजा के भी पहले ही गणेश भगवान और गौरी माता जी का पूजन अवश्य करना चाहिए ૐ श्री जानकी रामाभ्यां नमः मंत्र द्वारा आसन पाध्य अर्थ और आचमन कर सकते हैं इसके बाद ही नाम से लिखी को पंचामृत से स्नान करा सकते हैं।

माता सीता को और श्री राम जी को वस्त्र और आभूषण आदि भेंट कर सकते हैं गंध सिंदूर चंदन आदि से माता सीता और श्री रामचंद्र जी का पूजन करना चाहिए उन्हें फल-फूल आदि अर्पित करने चाहिए उन्हें पुष्प माला अर्पित करनी चाहिए उन्हें नैवेद्य अर्पित करना चाहिए फल मिष्ठान आदि अर्पित करना चाहिए इसके बाद उन्हें धूप दिखाना चाहिए दीप दिखाना चाहिए और उसके बाद माता सीता और श्री रामचंद्र जी की आरती करनी चाहिए।

तो इस तरह से नवमी के दिन श्री रामचंद्र जी और माता सीता की पूजा करनी चाहिए और इसके बाद दशमी के दिन फिर विधि पूर्वक भगवती सीता और भगवान श्री रामचंद्र जी की पूजा अर्चना के बाद मंडप का विसर्जन कर देना चाहिए इस प्रकार श्रद्धा एवं भक्ति के साथ पूजन करने से भगवान श्री राम और माता सीता जी की कृपा सभी भक्तों पर बनी रहती है।

सीता नवमी का महत्व | Sita Navami Ka Mahatv

पौराणिक कथाओं के अनुसार वैसे तो सीता जी का जन्मदिन वैशाख शुक्ल नवमी को मनाया जाता है लेकिन भारत के कुछ हिस्सों में फाल्गुन कृष्ण अष्टमी को भी सीता जयंती के रूप में मनाया जाता है इसीलिए दोनों ही तिथि सीता जी के प्राकृतिक के लिए उचित मानी जाती हैं इस दिन माता सीता की विधिवत की गई पूजा बहुत ही लाभकारी होती है सीता माता के जन्मदिवस वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है माता सीता का जन्म पुष्य नक्षत्र में मंगलवार के दिन हुआ था माता सीता राजा जनक की पुत्री थी इसीलिए माता सीता को जानकी के नाम से भी जाना जाता है और इसलिए इस दिन को जानकी नवमी भी कहा जाता है।

सीता नवमी उपाय | Sita Navami Upay

सीता नवमी के दिन सभी सुहागन महिलाएं अपने घर की सुख शांति और पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं छात्रों में सीता नवमी के दिन कुछ ऐसे उपाय बताए गए हैं जिन्हें यदि सच्ची श्रद्धा के साथ किया जाए तो न सिर्फ अखंड सौभाग्य प्राप्त होता है बल्कि विवाह में आ रही परेशानियों का भी अंत होता है सीता नवमी के लिए बनाई जाने वाली प्रतिमा मिट्टी से बनाए इससे पूजन का 2 गुना फल प्राप्त होता है।

अखंड सौभाग्य के लिए इस दिन देवी सीता को पीले रंग के फूल और लाल चुनरी व श्रृंगार का सामान अर्पित करें विवाह में आ रही परेशानियों को दूर करने के लिए सीता नवमी की शाम श्री जानकी रामाभ्यां नमः मंत्र का 108 बार जाप करना बहुत ही लाभकारी होता है जानकी जी को प्रसन्न करने और सुख समृद्धि पाने के लिए सीता नवमी के दिन रामायण का पाठ शुरू करो जाना है इसका एक अध्याय परिणाम बेहद लाभकारी होता है इससे परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती है।

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जानकी जन्म कथा

ओम श्री गणेशाय नमः एक बार मिथिला में भयंकर अकाल पड़ा उस समय मिथिला के राजा जनक हुआ करते थे वह बहुत ही पुण्य आत्मा थे धर्म-कर्म के कार्यों में बढ़-चढ़कर रुचि लेते थे ज्ञान प्राप्ति के लिए सभा में कोई न कोई शास्त्रार्थ करवाते और विजेताओं को गोदान भी करते थे लेकिन इस आकार ने उन्हें बहुत विचलित कर दिया अपनी प्रजा को मरते देख उन्हें बहुत पीड़ा होती थी।

उन्होंने ज्ञानी पंडितों को दरबार में बुलाया और इस समस्या के कुछ उपाय जानने चाहे सभी ने अपनी-अपनी राय राजा के सामने रखी कुल मिलाकर बात यह सामने आई कि यदि राजा जनक स्वयं हल चलाकर भूमि जोते तो आकाल दूर हो सकता है अब अपनी प्रजा के लिए राजा जनक हल उठाकर चल पड़े।

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वह दिन था वैशाख मास शुक्ल पक्ष की नवमी का जहां पर उन्होंने हल चलाया वह स्थान वर्तमान में बिहार के सीतामढ़ी के पुनौरा नाम गांव को बताया जाता है तो राजा जनक हल जोतने लगे हल चलाते-चलाते एक जगह आकर हल अटक गया उन्होंने पूरी कोशिश की लेकिन हल की नोक ऐसी धसी हुई थी कि निकलने का नाम नहीं ले रही थी लेकिन वह तो राजा थे।

उन्होंने अपने सैनिकों से कहा कि यहां आसपास की जमीन की खुदाई करें और देखें कि हल की नोक कहां फंसी हुई है सैनिकों ने खुदाई करनी शुरू की तो देखा कि वहां बहुत ही सुंदर और बड़ा सा कलश है जिसमें हल की नोक फंसी हुई थी कलश को बाहर निकाला गया तो देखा उसमें एक नवजात कन्या है धरती मां के आशीर्वाद स्वरुप राजा जनक ने इसे अपनी कन्या के रूप में स्वीकार कर लिया।

बताते हैं कि उसी समय मिथिला में जोर की बारिश हुई और राज्य का आकार दूर हो गया तब कन्या का नामकरण किया जाने लगा क्योंकि हल की नोक को सीता कहा जाता है और उसी के कारण या कन्या उन्हें प्राप्त हुई थी इसलिए उन्होंने उस कन्या का नाम सीता रखा जिसका विवाह आगे चलकर प्रभु श्री राम के साथ हुआ

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सीता नवमी व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार मारवाड़ क्षेत्र में एक वेदवादी श्रेष्ठ धर्म धुरियन ब्राह्मण निवास करते थे उनका नाम देवदत्त था उन ब्राह्मण की बड़ी सुंदर रूप गर्विता पत्नी थी उसका नाम सोबना था ब्राह्मण देवता जीविका के लिए अपने ग्राम में अन्य किसी ग्राम में भिक्षा के लिए गए हुए थे इधर ब्राह्मणी कुसंगत में फंसकर व्यभिचार में प्रवृत्त हो गई।

अब तो पूरे गांव में उसके नित्य कर्म की चर्चाएं होने लगी परंतु उस दुष्ट आने गांव ही जलवा दिया दुष्कर्मों में रत रहने वाली वह दुर्बुद्धि मरी तो उसका अगला जन्म चांडाल के घर में हुआ पति का त्याग करने से चाण्डालिनी बनी और गांव जलाने से उसे भीषण कुष्ठ हो गया तथा व्यभिचार कर्म के कारण व अंधी हो गई अपने कर्म का फल उसे भोगना ही था इस प्रकार वह अपने कर्म के योग से दिनोंदिन दारुण दुख प्राप्त करती हुई देश देशांतर में भटकने लगी।

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एक बार देव योग से भटकती हुई कौशलपुरी पहुंचते संयोगवश उस दिन वैशाख मास शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी जो समस्त पापों का नाश करने में समर्थ सीता नवमी के पावन उत्सव पर भूख प्यास से व्याकुल व दुखियारी इस प्रकार प्रार्थना करने लगी है सज्जनों मुझ पर कृपा कर कुछ भोजन सामग्री प्रदान करो की तानों के पावन उत्सव पर भूख प्यास से व्याकुल व दुखियारी।

इस प्रकार प्रार्थना करने लगी कि यह सज्जनों मुझ पर कृपा कर कुछ भोजन सामग्री प्रदान करो में भूख से मरी जा रही ऐसा कहती हूं बस इतनी सी कनक भवन के सामने बने हुए 1000 कुछ मंडित स्तंभों से गुजरती हुई उसमें प्रविष्ट हुई उसने पुनः पुकार लगाई भैया कोई तो मेरी मदद करो कुछ भोजन दे दो इतने में एक भक्त ने उससे कहा देवी आज तो सीता नवमी है भोजन में अन्य देने वाले को पाप लगता है इसलिए आज तो अन्य नहीं मिलेगा कल पारण करने के समय आना ठाकुर जी का प्रसाद भरपेट मिलेगा किंतु वह नहीं मानी अधिक कहने पर उस भक्तों ने उसे तुलसी एवं जल प्रदान किया

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वह पापिनी भूख से मर गई किंतु इसी बहाने अनजाने में उसने सीता नवमी का व्रत पूरा कर लिया अब तो परम कपालिनी ने उसे समस्त पापों से मुक्त कर दिया इस व्रत के प्रभाव से वह पापिनी निर्मल होकर स्वर्ग में आनंद पूर्वक अनंत वर्षों तक रहे तत्पश्चात व कामरूप देश के महाराज की जय सिंह की महारानी कामकला के नाम से विख्यात हुई जाती स्वरा उस महान साध्वी ने अपने राज्य में अनेक देवालय बनवाए जिनमें जानकी रघुनाथ की प्रतिष्ठा कराई गई अतः सीता नवमी पर जो श्रद्धालु माता जानकी का पूजन अर्चन करते हैं उन्हें सभी प्रकार के सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है इस दिन जानकी स्त्रोत राम चंद्र अष्टकम रामचरितमानस आदि का पाठ करने से मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं

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