पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में आने वाली एकादशी को पद्मा एकादशी या परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों में ऐसी मान्यता है की आज ही के दिन भगवान विष्णु निद्रासन से अपनी करवट बदलते है। करवट बदलने से उनके स्थान में परिवर्तन हो जाता है और इसलिए इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु जी के वामन अवतार का पूजा किया जाता है।
स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने कहा था परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की वामन रूप में पूजा करना चाहिए क्यूंकि भगवान इन चार महीनो में चातुर्मास में वामन रूप में ही पाताल में निवास करते है। ऐसा माना जाता है की भगवान विष्णु चातुर्मास के चार महीने सोते रहते है जो कि मास पड़ते है आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और आश्विन ये चातुर्मास के महीने है और ओ जागते कब है देवउठनी एकादशी के दिन माना जाता है की भगवान विष्णु जाग जाते है।
परिवर्तिनी एकादशी का व्रत करने से बहुत ही ज्यादा पुण्य फल मिलता है। कथाओं के अनुसार जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है भगवान विष्णु उससे अति प्रसन्न होते है और उसकी हर मनोकामना पूरी करते है। आज हम आपको इस लेख में मेँ साल 2021 भाद्रपद मास की परिवर्तिनी एकदशी व्रत की सही तारीख, पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत के नियम और इस दिन किये जाने वाले उपायों के बारे में बताएंगे। 👇👇👇👇👇
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परिवर्तिनी एकादशी |
परिवर्तिनी एकादशी व्रत शुभ मुहूर्त 2021 (parivartini ekadashi 2021)
- 👉 साल 2021 में परिवर्तिनी एकादशी का व्रत - 17 सितंबर शुक्रवार के दिन रखा जायेगा।
- 👉 एकादशी तिथि प्रारंभ होगा - 17 सितंबर प्रातःकाल 09 बजकर 36 मिनट पर।
- 👉 एकादशी तिथि समाप्त होगा - 18 सितंबर प्रातःकाल 08 बजकर 07 मिनट पर।
- 👉 एकादशी व्रत के पारण का समय होगा - 18 अगस्त प्रातःकाल 06 बजकर 07 मिनट से प्रातःकाल 06 बजकर 54 मिनट तक।
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परिवर्तिनी एकादशी किसे कहते है?
पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को पद्मा, जलझूलनी या परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों में ऐसी मान्यता है की आज ही के दिन भगवान विष्णु निद्रासन में अपनी करवट बदलते हैं इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार का पूजन किया जाता है। कथाओं के अनुसार जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है भगवान विष्णु उससे अति प्रसन्न होते हैं और उसकी हर मनोकामना पूर्ण करते हैं।
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परिवर्तिनी एकदशी पूजा विधि
एकादशी तिथि के दिन प्रातःकाल स्नान के बाद आपको भगवान विष्णु के वामन अवतार को ध्यान में रखकर व्रत का संकल्प लेकर सूर्य देवता को जल का अर्घ्य दे यदि सम्भव हो तो आज के दिन पीले वस्त्र धारण करें। अब भगवान विष्णु जी और गणेश जी की विधिवत पूजा करें और पूजा में श्री हरी विष्णु जी को पीले फल-फूल, पंचामृत और तुलसी दल अर्पित करें। इसके बाद गंगा से स्नान करवाये और उसके बाद वस्त्रो के अर्पण करें फिर कुमकुम, अक्षत आदि का अर्पण करें और भगवान विष्णु को पिले रख के फूल अर्पित करें।
क्यूंकि ये गणेश महोत्सव का समय है इसीलिए आज के दिन गणेश जी और श्री हरी विष्णु जी दोनों का ही पूजन करन शुभ होता है। पूजा में गणेश जी को उनके प्रिय मोदक और दूर्वा अर्पित करें और इसके साथ ही पहले गणेश जी और फिर भगवान विष्णु जी के मंत्रों का जप करें और व्रत कथा पढ़े या सुने इस तरह विधि-विधान के पूजा के बाद किसी जरुरतमंद व्यक्ति को दान करें। भगवान को पीले रंग बहुत प्रिय है।
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परिवर्तिनी एकादशी व्रत नियम
- 👉 एकादशी के व्रत में पूजा सुबह और शाम दोनों समय करने का नियम है।
- 👉 ध्यान रखें की दोनों समय की पूजा में साफ-सुथरे कपड़े पहनकर ही पूजा करना चाहिए।
- 👉 एकादशी व्रत के दिन फलहार करके व्रत कथा जरूर सुनें।
- 👉 एकादशी के व्रत में कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए।
- 👉 एकादशी व्रत का नियम तीन दिन दशमी, एकादशी और द्वादशी का होता है इसलिए हो सके तो इन तीनों दिन चावल से परहेज करें।
- 👉 एकादशी के व्रत में लहसुन प्याज और मसूर की दाल का सेवन भी नहीं करना चाहिए।
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परिवर्तिनी एकादशी व्रत उपाय
- 👉 परिवर्तिनी एकादशी के दिन अगर आप विष्णु भगवान का केशर मिले दूध से अभिषेक करते है तो इससे आपके घर में पैसों की कमी नहीं रहता है।
- 👉 परिवर्तिनी एकादशी के दिन सुबह और शाम के समय पिकप्ल के वृक्ष को जल का अर्घ्य देने से सफलता और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है क्योंकि पीपल के वृक्ष में भगवान विष्णु जी का ही वास माना जाता है।
- 👉 भगवान विष्णु जी को तुलसी अतिप्रिय है इसलिए आज के दिन तुलसी को जल चढ़ाकर शाम के समय उनके समक्ष घी का दीपक जला दे इससे भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद आपको प्राप्त होता है।
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परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा (parivartini ekadashi vrat katha in hindi)
महाभारत की कथा में एकदशी व्रत की पूण्य का वर्णन आता है माना जाता है माना जाता है की भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को एकादशी के व्रत के महत्त्व के बारे में बताया था। श्री कृष्ण ने अर्जुन को पापो का नाश करने के लिए परिवर्तिनी एकादशी व्रत रखने के लिए कहा था। श्री कृष्ण ने अर्जुन को परिवर्तिनी एकादशी व्रत की कथा सुनाई थी।
कथा के अनुसार त्रेता युग में बलि नाम का असुर था जो असुर होने के बाद भी लोगो की मदद और सेवा करता था धर्म-कर्म के कार्यों में सदा लीन रहता था। अपने तप और भक्ति-भाव से बालि देवराज इंद्र के बराबर आ गया बाली के भक्ति से देवराज इंद्र और अन्य देवता घबरा गये देवराज को लगने लगा कि यदि बलि को नहीं रोका गया तो वह स्वर्ग का राजा बन जायेगा।
तब इंद्र ने भगवान विष्णु के शरण ली और अपनी चिंता प्रकट की रक्षा करने की प्रार्थना की इसके बाद भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण किये। वामन रूप में भगवान विष्णु ने विराट रूप धारण करके एक पाव से पृथ्वी, दूसरे पांव के एड़ी से स्वर्ग और पंजे से ब्रह्म लोको को नाप लिया अब तीसरे पर्व के लिए राजा बलि के पास कुछ भी नहीं बचा था।
तब बलि ने अपने सिर को आगे कर दिया और भगवान वामन ने तीसरा पैर उसके सर पर रख दिया। राजा बलि के इस भावना से भगवान विष्णु बेहद प्रसन्न हुए और बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया। राजा बने पाताल लोक में समाने लगे तब राजा बलि ने भगवान विष्णु को अपने साथ रहने के लिए आग्रह किया और भगवान विष्णु ने पाताल लोक चलने का वचन दिया और इसके बाद ऐसी मान्यता है कि चातुर्मास के चार महीने भगवान विष्णु पाताल लोक में राजा बलि के साथ रहते है। ऐसा माना गया है कि देवउठनी एकादशी के दिन ओ अपने शयन से जागते है और फिर से एक बार दोबारा पाना कार्यभार संभालते है।
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