पौराणिक मान्यतों के अनुसार जो मनुष्य एकादशी का नियमित रखते है उनके ऊपर श्री नारायण की कृपा सदैव बना रहता है। माना जाता है की एकादशी के व्रत के सामान दूसरा कोई व्रत नहीं है। जिन लोगो को संतान होने में बाधाएं आ रही हो या संतान संबंधी भी चिंता या समस्या हो उन्हें पुत्रदा एकादशी का व्रत जरूर रखना चाहिए। पुत्रदा एकादशी प्रतिवर्ष में दो बार पौष माह और श्रावण माह है।
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शास्त्रों के अनुसार पौष माह में शुक्ल पक्ष को एकादशी तिथि के दिन पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाता है। यह साल में आने वाली सभी एकादशी तिथियों में सबसे महत्वपूर्ण होती है। इस दिन व्रत उपवास करने से संतान सम्बन्धी सभी परेशानियां दूर होकर उनके उज्वल भविष्य का वरदान प्राप्त होता है। इस दिन सुदर्शन धारी भगवान विष्णु जी या बाल गोपाल जी की पूजा किया जाता है। आज हम आपको साल 2022 में पौष पुत्रदा एकादशी व्रत की सही तिथि, पुत्रदा एकादशी कब है, पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इस व्रत के कुछ जरुरी नियमों के बारे में बताएंगे।
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पुत्रदा एकादशी किसे कहा जाता है
पौष मास में शुक्ल पक्ष एकादशी को पड़ने वाली इस एकादशी तिथि को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। मान्यता है की इस व्रत को करने से संतान होती है इसलिए इसे पौष पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी के व्रत के सामान कोई दूसरा व्रत नहीं है। इस व्रत को करने से संतान को आने वाली सभी बंधाये कट जाती है। इसलिए संतान की मंगल कामना के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत जरूर रखना चाहिए।
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इस व्रत को रखने से संतान संबंधी हर चिंता और समस्या का निवारण है। अगर किसी को संतान प्राप्ति में बांधा होती है तो उन्हें इस व्रत को जरूर करना चाहिए और व्रत के कथा को सुनने वाले को भी मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत दो प्रकार से रखा जाता है। निर्जल व्रत और फलाहारी या जलीय व्रत। इस व्रत के प्रभाव से संतान की रक्षा भी होता है।
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पौष पुत्रदा एकादशी शुभ मुहूर्त 2022 (Pausha Putrada Ekadashi 2022)
- साल 2022 में पौष पुत्रदा एकादशी - 13 जनवरी गुरुवारके दिन है।
- एकादशी तिथि प्रारम्भ होगा - 12 जनवरी रात्रि 08 बजकर 56 मिनट पर।
- एकादशी तिथि समाप्त होगा - 13 जनवरी रात्रि 10 बजकर ५७ मिनट पर।
- पौष पुत्रदा एकादशी व्रत के पारण का शुभ मुहूर्त होगा - 25 जनवरी प्रातःकाल 07 बजकर 13 मिनट से प्रातःकाल 09 बजकर 21 मिनट तक।
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पौष पुत्रदा एकादशी पूजा विधि
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत के नियमानुसार दशमी तिथि को दोपहर में एक समय का सात्विक भोजन ग्रहण करें ताकि एकादशी के दिन अन्न का एक दाना भी उनके पेट में ना रहे। दशमी की रात भगवान का नाम जपते हुए तो उनके समीप सोये एकादशी के दिन सुत्योदय से पहले उठे स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।पूजा घर साफ करें, आसान बैठकर व्रत का संकल्प लें।
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फिर पहले भगवान को गंगाजल से स्नान करवाए, धुप, दीप से पूजा करें। पूजा में भगवान को धुप, दिप, नैवेद्य, तुलसी के पत्ते, पीले फूल, चन्दन और पंचामृत अर्पित करें। भगवान को मिठाई और ऋतू फल जिसमें नारियल, बेल, अनार, आवला आदि का भोग लगाए। विष्णु शहस्त्र नाम का पाठ करें।
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इसके बाद व्रत कथा पाठ कर आरती कर लें और शाम के समय भगवान कृष्ण जी के मंदिर में दीया जलाकर पूजन करें। अगली सुबह द्वादशी के दिन पुनः भगवान विष्णु जी की पूजा व्रत का पारण करें और ब्राह्मण को भोजन व क्षमता अनुसार दान देकर विदा करें।
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पौष पुत्रदा एकादशी व्रत नियम
- एकादशी के दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति`को दिनभर निर्जल उपवास रखना चाहिए।
- व्रत के दिन पूजास्थाप के साथ ही घर में भी स्वच्छता का ख्याल रखना चाहिए।
- एकादशी के व्रत में तामसिक आहार जैसे प्याज, लहसुन, बासी भोजन का सेवन बिलकुल भी ना करें।
- पौष पुत्रदा एकादशी दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मन्त्र का जाप करें।
- एकादशी के दिन झूठ बोलना और घर में कलह जैसे कार्य बिलकुल न करें।
- एकादशी के व्रत में दशमी के दिन से ही व्रत के नियमों का अच्छी तरह से पालन करना चाहिए।
- क्रोध ना करें, निंदा ना करें, कम बोले, ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- न अन्न ग्रहण करें न किसी को अन्न दें।
- जाने अंजाने में अगर कोई भूल हो जाये तो भगवान से क्षमा याचना करें।
- हो सके तो रात्रि जागरण करें, नहीं तो मध्य रात्रि तक जाग कर भगवान का नाम जाप करें।
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पौष पुत्रदा एकादशी व्रत उपाय
- पौष पुत्रदा एकादशी के दिन संतान कामना के लिए भगवान विष्णु जी को पीले फल, फूल, तुलसी व पंचामृत का भोग जरूर लगाए और गोपाल मंत्र का जाप करें।
- इस दिन शाम के समय घी का दीपक तुलसी के पौधे के समक्ष जरूर जलाये। इससे घर में सुख और शांति का वास रहता है।
- पौष पुत्रदा एकादशी के दिन श्री कृष्ण जी के लड्डू गोपाल स्वरूप की पूजा अवश्य करें और उन्हें पंचामृत से स्नान कराये इससे संतान सम्बन्धी सभी प्रकार की समस्याएं समाप्त हो जाती है।
- पुत्रदा एकादशी के दिन विष्णु मंदिर में गेहूं और चावल चढ़ाकर किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दान कर दें इससे हर तरह की समस्याएं दूर हो जाती है।
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पौष पुत्रदा एकादशी का महत्त्व
पौष पुत्रदा एकादशी का महत्त्व ब्रह्माण्ड पुराण में धर्मराज युधिष्ठिर और भगवान श्री कृष्ण के बीच बात-चित के रूप में वर्णित है। यह व्रत पुत्र या संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है। इसके पुण्य से मनुष्य, तपस्वी, विद्वान और लक्ष्मीवान होता है। यह व्रत स्त्री और पुरुष दोनों को सामान रूप से लाभदायिक है। संतान प्राप्ति के लिए अगर ये व्रत पति-पत्नी दोनों मिलकर करें तो ये और भी फलदायक माना जाता है।
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संतान प्राप्ति के लिए पौष पुत्रदा एकादशी दिन क्या करें
- कोशिश करें की पति-पत्नी दोनों मिलकर ये मिलकर ये व्रत करें।
- सुबह-सुबह पति-पत्नी दोनों एक साथ श्री कृष्ण की उपासना करें।
- भगवान कृष्ण की आशीर्वाद मुद्रा के चित्र की स्थपना करें।
- धुप, दीप, पीले फल, फूल, तुलसी के पत्ते, पंचामृत से भगवान की पूजा करें। साथ ही एक पिले चन्दन की लकड़ी भी चढ़ाये।
- उन्हें हल्दी का तिलक लगाए और स्वंय भी लगाए।
- ऋतू फल का भोग लगाए।
- जिस गाय ने बच्चा दिया हो उस गाय के दूध का भोग लगाए। पूजा के बाद दोनों वो ग्रहण करें।
- चंदन के लकड़ी के दो हिस्से करके एक पति और एक पत्नी धारण कर लें ।
- पति-पत्नी दोनों एक-एक सोने या पीतल का छल्ला तर्जनी ऊँगली में धारण करें।
- संतान गोपाल मन्त्र का 108 बार जाप करें ये मंत्र इस प्रकार है.......
देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।।
- इसके अलावा............
ॐ क्लीन कृष्णयः नमः
- मंत्र का जाप भी करें।
- उनके समक्ष गजेंद्र मोक्ष का पाठ करें।
- व्रत की कथा पढ़े या सुने, पौष पुत्रदा एकादशी की कथा सुनने सुनाने तथा पढ़ने मात्र से 100 गायों के दान बराबर फल प्राप्त होता है।
- पति-पत्नी संयुक्त रूप से प्रसाद ग्रहण करें।
- इस दिन गरीबों को दान दक्षिणा जरूर दें।
- एकादशी के दिन फलो का दान और द्वादशी के दिन अन्न का दान करें।
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha
प्राचीन काल में भद्रावती नगर में राजा सुकेतुमान का शासन था। उनकी पत्नी का नाम शैव्या था। सालों बीत जाने के बावजूद संतान नहीं होने के कारण पति-पत्नी दोनों दुःखी और चिंतित रहते थे। इसी चिंता में एक दिन राजा सुकेतुमान अपने घोड़े पर सवार होकर वन की ओर चल दिए। घने वन में पहुँचने पर उन्हें प्यास लगी तो पानी की तलाश में वे एक सरोवर के पास पहुंचे।
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वहां उन्होंने देखा कि सरोवर के पास ऋषियों के आश्रम भी है और वहां ऋषि-मुनि, वेद-पाठ कर रहे है। पानी पीने के बाद राजा आश्रम में पहुंचे और ऋषियों को प्रणाम किया। राजा ऋषियों वहां जुटने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि वे सरोवर के निकट स्नान के लिए आये है। उन्होंने बताया कि आज से पांचवे दिन माघ मास का स्नान आरम्भ हो जायेगा और आज पुत्रदा एकादशी है।
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जो मनुष्य इस दिन व्रत करता है उन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है। इसके बाद राजा अपने राज्य पहुंचे और पुत्रदा एकादशी का व्रत शुरू किया और द्वादशी तिथि के दिन इस व्रत का पारण किया। व्रत के प्रभाव से कुछ समय के बाद रानी गर्भवती हो गई और उसने एक पुत्र जन्म दिया। अगर किसी को संतान प्राप्ति में बाधा हो रहा है तो उन्हें इस व्रत को करना चाहिए।
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