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श्रावण पुत्रदा एकादशी 2021 कब है? | Shravana Putrada Ekadashi Vrat 2021, Date, Vrat Vidhi, Vrat Katha in Hindi

श्रावण पुत्रदा एकादशी 2021 कब है? | Shravana Putrada Ekadashi Vrat 2021, Date, Vrat Vidhi, Vrat Katha in Hindi 

शास्त्रों में एकादशी व्रत का बड़ा ही विशेष महत्त्व बताया गया है। कहा जाता है की एकादशी का व्रत रखने से मन की चंचलता कम होती है और व्यक्ति को धन आरोग्य की प्राप्ति होती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष में दो पुत्रदा एकादशी मनाया जाता है। पहली पुत्रदा एकादशी को पौष माह में मनाया जाता है। वहीं दूसरी पुत्रदा एकादशी श्रावण शुक्ल पक्ष में पड़ता है। 

श्रावण शुक्ल पुत्रदा एकादशी का व्रत जो कि सावन माह की एकादशी तिथि को रखा जाता है और इस बार यह व्रत बुधवार के दिन पड़ रहा है। यह संतान प्राप्ति या संतान संबंधित समस्याओं के निवारण के लिए रखना शुभ होता है। आज हम आपको साल 2021 सावन मास की श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत की सही तिथि, putrada ekadashi kab hai, पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा की विधि, व्रत के नियम और इस दिन किए जाने वाले उपायों के बारे में बताएंगे। 

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श्रावण पुत्रदा एकादशी 2021 कब है? | Shravana Putrada Ekadashi Vrat 2021, Date, Vrat Vidhi, Vrat Katha in Hindi
श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत 

श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत शुभ मुहूर्त 2021 (putrada ekadashi 2021 ekadashi date)

  • साल 2021 में श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत - 18 अगस्त बुधवार के दिन रखा जाएगा। 
  • एकादशी तिथि प्रारंभ होगा - 18 अगस्त बुधवार के दिन प्रातःकाल 3 बजकर 20 मिनट पर। 
  • एकादशी तिथि समाप्त होगा - 19 अगस्त रात्रि 1 बजकर 5 मिनट पर। 
  • एकादशी व्रत के  पारण का समय होगा - 19 अगस्त दिन गुरूवार प्रातःकाल 6 बजकर 32 मिनट से सुबह 8 बजकर 29 मिनट तक। 

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पुत्रदा एकादशी किसे कहते है?

शास्त्रों में एकादशी तिथि का बहुत महत्त्व है। सावन शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। साल 2021 में पुत्रदा एकादशी व्रत 18 अगस्त बुधवार को है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत कर्ण से संतान की प्राप्ति और व्रत के प्रभाव से संतान की रक्षा होती है। इस दिन श्रीकृष्ण के बाल रूप की पूजा करने से व्रत का फल कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। 

श्रावण पुत्रदा एकादशी पूजा विधि ( putrada ekadashi vrat vidhi in hindi)

श्रावण पुरादा एकादशी का व्रत दशमी तिथि से ही आरम्भ हो जाता है। इसलिये दशमी तिथि को सात्विक भोजन ग्रहण कर अगले दिन एकादशी तिथि को सुबह जल्दी स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेकर घर के मंदिर में भगवान विष्णु जी के समक्ष घी का दीपक जलाकर उन्हें पीली चीजें अर्पण कर भोग लगाये। इस दिन विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करना विशेष लाभकारी होता है। पूजा में आज के दिन विष्णु जी को तुलसी पत्र, फल, फूल, टिल, दूध और पंचामृत चढ़ायें। अगले दिन द्वादशी तिथि में ब्राह्मण को भोजन कराकर और दान दक्षिणा देकर व्रत के पारण के साथ व्रत संपन्न करें। 

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श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत के नियम (shravana putrada ekadashi niyam)

  • एकादशी की पूजा सुबह और शाम दोनों समय करना चाहिए और पूजा में स्वच्छता का विशेष ख्याल रखना चाहिए।
  • शास्त्रों के अनुसार इस दिन कांसे के बर्तन में खाना बनाना और कांसे के बर्तन में भोजन करना वर्जित माना गया है।
  • पुदरता एकादशी व्रत का नियम तीन दिन दशमी, एकादशी और द्वादशी का होता है। इन तीन दिनों के दौरान व्रत करने वाले व्यक्ति को चावल से परहेज करते हुए व्रत सम्पन्न करना चाहिए। 
  • एकादशी व्रत के दौरान व्रती को प्याज, लहसुन और मसूर दाल का सेवन वर्जित माना गया है।
  • इस व्रत का पालन और शुरुआत दशमी तिथि से हो जाता है जो द्वादशी तिथि तक चलता है। इसमें एकादशी के दिन पूर्ण व्रत रखना चाहिए। 

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श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत उपाय (shravana putrada ekadashi upay)

हर वर्ष पौष और सावन मास में पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाता है। सावन मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी सावन पुत्रदा एकादशी होती है। मान्यताओं के अनुसार सावन पुत्रदा एकादशी पय यदि कुछ विशेष उपाय किये जाय तो यह बहुत ही लाभदायक होता है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना व खास उपाय करने से सुन्दर और योग्य संतान की प्राप्ति होती है। तो आइये जानते है इस दिन किये जाने वाले उपाय क्या है? 
  • श्रावण पुत्रदा एकादशी के दिन यदि पति-पत्नी मिलकर श्रीकृष्ण जी की पूजा करें तो उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है।
  • इस दिन पूजा में भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल और पीली मिठाई चढ़ाने से कार्य में सफलता मिलती है।
  • आज के दिन तुलसी की माला से पीले आसन पर बैठकर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करने से विशेष मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। 
  • श्रवण पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान सत्य नारायण की कथा सुनें, ऐसा करने से आपके जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
  • सावन पुत्रदा एकादशी के दिन श्रीकृष्ण जी के लड्डू गोपाल स्वरूप की पूजा अवश्य करें और उन्हें पंचामृत से स्नान कराये इससे संतान सम्बंधी सभी प्रकार की समस्याएं समाप्त हो जाती है। 
  • सावन पुत्रदा एकादशी के दिन संतान कामना के लिए भगवान विष्णु को पीले फल-फूल, तुलसी व् पंचामृत का भोग जरूर लगाएं और गोपाल मंत्र का जाप करें। 
  • इस दिन शाम के समय घी का दीपक तुलसी के पौधे के सामने जरूर जलाएं। इससे घर में सुख और शांति का वास रहता है। 
  • पुत्रदा एकादशी के दिन विष्णु मन्दिर में गेंहू और चावल चढ़ाकर किसी जरुरतमंद व्यक्ति को दान कर दें इससे हर तरह की समस्याएं दूर हो जाती हैं। 
  • इस दिन व्यक्ति को राधा-कृष्ण मंदिर में पीले फूलों की माला अर्पित करना चाहिए। 

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श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (putrada ekadashi vrat katha in hindi)

धनुर्धर अर्जुन ने एकादशियों की महात्म्य का आनंद लेते हुए कहा - हे प्रभो! मेरी खुशी की कोई सीमा नहीं है कल्याणकारी और महापुण्यदायी कथाएं सुनकर मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही है। हे कमलनयन! 

अब कृपया आप मुझे श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी की व्रत कथा के बारे में  बताएं और इस एकादशी का नाम भी बताएं? तथा इसके व्रत का क्या विधान है? इस एकादशी में किस देवता की पूजन किया जाता है और इइस एकादशी व्रत को करने से क्या फल मिलता है.

श्रीकृष्ण ने कहा - हे धनुर्धर! श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी की कथा सुनने मात्र से ही अनंत यज्ञ का फल व्रत रखने वाले मनुष्य को प्राप्त हो जाते है। हे पार्थ!

द्वापर युग के आरम्भ में ही महि-+ष्मति नाम की एक नगरी थी। उस नगरी में महाजित नाम का एक राजा राज्य करता था। वह पुत्रहीन था, इसलिए वह सदा दुखी रहा करता था। उसे वह राज्य, सुख और वैभव सभी कुछ बड़ा ही कष्टदायक प्रतीत होता था। क्योकि पुत्र के बिना मनुष्य को इहलोक और परलोक दोनों में सुख नहीं मिलता है। 

राजा ने पुत्र प्राप्ति के लिए बहुत उपाय किये, किन्तु उसका हर उपाय निष्फल रहा। जैसे-जैसे राजा महाजित वृद्धावस्था की ओर बढ़ता जा रहा था, वैसे उनकी बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी। एक दिन राजा ने अपनी राज्य सभा को सम्बोधित करने के लिए सबको बुलाया और कहा - न तो मैंने अपने जीवन में कोई पाप किया है और न तो प्रजा से अन्यायपूर्वक धन इकट्ठा किया है, न प्रजा को कभी कष्ट पहुँचाया है, न ही कभी देवताओं और ब्राह्मणों का अनादर किया है।

मैंने प्रजा को सदैव अपने पुत्र की तरह पालन किया है, कभी किसी से ईर्ष्या भाव नहीं किया, सभी को एक सामान समझा है। मेरा राज्य का कानून भी ऐसा नहीं है कि वह लोगों में अनावश्यक भय पैदा करे। ऐसा धर्मी राज्य होने पर भी इस समय मैं बहुत कष्ट उठा रहा हूँ, इसका कारण क्या है? मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है। आप इस पर विचार करें कि इसका क्या कारण है क्या इस जीवन में मैं इस कष्ट से मुक्त हो पाऊंगा?

राजा के इस कष्ट के निवारण के लिए मंत्री आदि वन को गए, ताकि वहां जाकर किसी भी ऋषि-मुनि को राजा का दुःख बताकर कोई समाधान पा सकें। वन में जाकर उन्होंने श्रेष्ठ ऋषि-मुनियों के दर्शन किये। उस वन में वयोवृद्ध और धर्म के ज्ञाता महर्षि लोमेश भी रहते थे। वे सभी जन महर्षि लोमश के पास गए। उन सबने महर्षि लोमश को दंडवत प्रणाम किया और उनके सम्मुख बैठ गए। 

महर्षि के दर्शन से सभी बहुत प्रसन्न हुए और सभी ने महर्षि लोमश से प्रार्थना की और कहा - हे देव! हमारे अहो भाग्य है की हमें आपके दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मंत्री की बात सुनकर लोमश ऋषि ने कहा - हे मंत्रिवर! आप लोगों की विनम्रता और सदव्यवहार से मैं अति प्रसन्न हूँ। आप मुझसे अपने आने का प्रयोजन कहें। मैं आपके कार्य को अपने सामर्थ्य के अनुसार अवश्य ही करूँगा, क्योंकि हमारा शरीर ही परोपकार करने के लिए ही बना है। 

लोमेश ऋषि के ऐसे मृदु वचन सुनकर मंत्री ने कहा - हे ऋषिवर! आप हमारी सभी बातों को जानने में ब्रह्मा से भी ज्यादा समर्थ हैं, अतः आप हमारे संदेह को दूर कीजिए। महिष्मती नामक नगरी के हमारे महाराज महाजीत अत्यंत धर्मपरायण और प्रजावत्सल हैं। वह पुत्र के समान धर्म के अनुसार प्रजा का पालन करते है, लेकिन फिर भी वह पुत्रहीन है। हे महान ऋषि! इस बात से वह काफी दुखी रहते है। हम सब लोग उनकी प्रजा हैं। 

हम भी उनके दुःख से दुःखी हो रहे है, क्योकि प्रजा का यह कर्तव्य है की राजा के सुख में सुख माने और दुःख में दुःख माने। हमें उनके पुत्रहीन होने का अभी तक कारन ज्ञान नहीं हुआ है, इसलिए हम आपके पास आये हैं। अब आपके दर्शन करके, हमको पूर्ण विश्वास है कि हमारा दुःख अवश्य ही दूर हो जायेगा, क्योंकि महान पुरुषों के दर्शन मात्र से ही प्रत्येक कार्य की सिद्धि हो जारी है। 

अतः आप हमें बताने की कृपा करें कि किस विधान से हम्रे महाराज पुत्रवान हो सकते हैं। हे ऋषिवर! यह आपका हम पर  व् हमारे राज्य की प्रजा पर बड़ा ही उपकार होगा। ऐसी करुणामयी प्रार्थना सुनकर लोमश मुनि ने आंखें बंद कर लीं और राजा के पूर्व जन्मों का चिंतन करने लगे। कुछ देर बाद उसने सोचा और बोला - हे सज्जनों! यह राजा अपने पिछले जन्म में बहुत घमंडी था और बुरे काम करता था।

उस जन्म में यह एक गांव से दूसरे गांव में घूमता रहता था। एक बार बात है ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन वह दो दिन से भूखा था। दोपहर के समय एक जलाशय पर जल पिने गया। उस स्थान पर उस समय व्यायी हुई एक गाय जल पी रही थी। राजा ने उसे बिना पानी पिए ही भगा दिया और स्वयं पानी पीने लगा। हे श्रेष्ठ पुरुषों! इसलिए राजा को इसके लिए इतना कष्ट भोगना पड़ रहा है। एकादशी के दिन भूखे रहने का उसको यह फल प्राप्त हुआ कि इस जन्म में यह राजा है और प्यासी गाय को जलाशय से भगाने के कारण वह निःसंतान है। 

यह बात जानकर सभी सभासदगण प्रार्थना करने लगे - हे श्रेष्ठ ऋषि! शास्त्रों में ऐसा लिखा है कि पुण्य से पाप नष्ट हो जाते हैं, अतः कृपा करके आप हमें कोई ऐसा उपाय बताइए, जिससे हमारे राजा के पूर्व जन्म के पाप नष्ट हो जाएँ और उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हो। सभासदों को प्रार्थना सुनकर लोमश मुनि ने कहा - हे श्रेष्ठ पुरुषों! यदि आप सभी श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी का व्रत कर रात्रि जागरण कर उस व्रत का फल राजा को निमित करें तो आपके राजा को पुत्र की प्राप्ति होगी। राजा के सारे कष्ट इस व्रत के फल से दूर हो जाएंगे।

इस उपाय को जानकर मंत्री सहित सभी ने महर्षि को कोटि-कोटि धन्यवाद दोय तथा उनका आशीर्वाद लेकर अपने राज्य में लौट आए। तदुपरांत उन्होंने लोमश ऋषि की आज्ञानुसार पुत्रदा एकादशी का विधानपूर्वक उपवास किया और द्वादशी को उसका फल राजा को दे दिया। इस पुण्य के प्रभाव से रानी ने गर्भ धारण किया और  नौ माह पश्चात एक अत्यन्त तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। 

हे पांडु पुत्र! इसलिए इस एकादशी का नाम पुत्रदा पड़ा। पुत्र की इच्छा रखने वाले मनुष्य को विधानपूर्वक श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करना चाहिए। इस एकादशी व्रत के प्रभाव से इहलोक में सुख और परलोक में स्वर्ग व्यक्ति को प्राप्त होता है। 

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पुत्रदा एकादशी कथा का सार

पाप कर्म करते समय मनुष्य यह नहीं सोचता कि वह क्या कर रहा है, परंतु शास्त्रों में विदित होता है कि मनुष्य का छोटे से छोटा पाप् उसे भयंकर दुःख भोगने को विवश कर देता है, अतः मनुष्य को पाप कर्म करने से डरना चाहिए, क्योकि पाप् नामक यह दैत्य जन्म-जन्मांतर तक उसका पीछा नहीं छोड़ता। प्राणी को चाहिए कि सत्यव्रत का पालन करते हुए भगवान के प्रति पूरी श्रद्धा व भक्ति रखे और यह बात सदैव याद रखे की किसी के दिल को दुखाने से बड़ा पाप् दुनिया में कोई दूसरा नहीं हैं। 

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