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तुलसी विवाह कब मनाया जाता है? जाने शुभ मुहूर्त 2025, पूजा विधि और कथा के बारे में

शास्त्रों में तुलसी का विशेष महत्त्व है। वैसे तो साल भर तुलसी जी की पूजा होती है। लेकिन कार्तिक मास में किया गया तुलसी पूजन और तुलसी के सामने दीपदान मनवांछित फल प्रदान करने वाला और भगवान विष्णु की कृपा दिलाने वाला होता है। यदि आप कार्तिक मास के किसी भी दिन भगवान श्रीहरि को तुलसी चढ़ा देते है तो इसका फल गोदान के फल से कई गुना अधिक हो जाता है। 

तुलसी विवाह जैसा हम सभी जानते है देवउठनी एकादशी के अगले दिन यानि की द्वादशी तिथि पर कराया जाता है। शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली द्वादशी तिथि के दिन तुलसी विवाह करने की परंपरा है। कई जगहों पर एकादशी के दिन भी तुलसी विवाह कराया जाता है। इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु जी के शालीग्राम स्वरूप के साथ तुलसी जी का विवाह पुरे रीति-रिवाज के साथ संपन्न कराया जाता है। 

मान्यता यह है की इस दिन तुलसी विवाह कराने से न केवल माता तुलसी का बल्कि भगवान विष्णु का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसी दिन गवान श्रीहरि विष्णु चार महीने की निद्रा के बाद जागते हैभगवान विष्णु जी को तुलसी काफी प्रिय है इसलिए कहते है की जब भगवान निद्रा से जागते है तो सबसे पहली प्रार्थना वो हरिवल्लभा तुलसी जी की सुनते है। आज हमे इस लेख में आपको साल 2025 में तुलसी विवाह कब किया जायेगा, तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त क्या होगा, तुलसी विवाह विधि और इसकी कथा के बारे में बताएँगे

तुलसी विवाह कब मनाया जाता है? tulsi vivah kab hai
तुलसी विवाह कब है 

तुलसी विवाह शुभ मुहूर्त 2025 (tulsi vivah 2025 date)

  • साल 2025 में तुलसी विवाह का आयोजन - 5 नवम्बर शनिवार द्वादशी के दिन होगा
  • देवउठनी एकादशी व्रत 4 नवंबर को रखा जायेगा।
  • द्वादशी तिथि प्रारंभ होगा - 4 नवंबर सायंकाल 06 बजकर 08 मिनट पर।
  • द्वादशी तिथि समाप्त होगा - 5 नवंबर सायंकाल 05 बजकर 06 मिनट पर।
  • एकादशी तिथि प्रारम्भ होगा - 3 नवम्बर सांयकाल 07 बजकर 30 मिनट पर
  • एकादशी तिथि समाप्त होगा - 4 नवम्बर सांयकाल 06 बजकर 08 मिनट पर
  • पारण का समय होगा - 6 नवंबर रविवार दोपहर 1 बजकर 09 मिनट से 03 बजकर18 मिनट तक।

तुलसी विवाह कब है 2025 (tulsi vivah kab hai 2025)

तुलसी विवाह 2025 में 13 नवंबर को मनाया जाएगा। यह कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी (देवउठनी एकादशी) का दिन होता है, जो भगवान विष्णु के चातुर्मास के विश्राम के बाद उनके जागने का प्रतीक है।

तुलसी विवाह 2025 का समय:

  • एकादशी तिथि प्रारम्भ: 12 नवंबर 2025, रात्रि 09:17 बजे
  • एकादशी तिथि समाप्त: 13 नवंबर 2025, रात्रि 06:57 बजे
तुलसी विवाह का शुभ समय आमतौर पर दिन के समय होता है, और यह विवाह भगवान शालिग्राम और तुलसी के पौधे के बीच प्रतीकात्मक रूप से संपन्न किया जाता है।

तुलसी विवाह सामग्री (Tulsi Pooja Samagri)

आपको सबसे पहले तुलसी का पौधा और शालीग्राम या लड्डू गोपाल या फिर कृष्ण जी को या फिर विष्णु जी कोई कोई भी मूर्ति या फोटो की आवश्यकता होगी। इसके आलावा कलश, आम के पत्ते, एक जटा वाला नारियल, लाल चुनरी, पीला कपड़ा, चावल, गंगा जल, तिल, हल्दी, रोली, मौली, कपूर, घी, धुप और दीपक, श्रृंगार का सामान, गन्ना, आवला, सिंघाड़े और पांच प्रकार के फल और भोग में आप घर पर बनी पूड़ी, हलवा, खीर या पुआ आदि ले सकते है। पंचामृत, फूल-माला, लकड़ी की दो चौकी, आदि पूजन सामग्री का आपको आवश्यकता पड़ेगा।

तुलसी विवाह पूजा विधि (Tulsi Puja Vidhi in Hindi)

सबसे पहले तुलसी विवाह के लिए सारा परिवार इसी तरह तैयार हो जैसे विवाह समारोह के लिए होते है। बा तुलसी का गमला और पौधे को साफ--सुथरा करके पूजा स्थल पर आंगन या छत पर या बालकनी में या कोई भी खुला स्थान हो वहां बीचो-बिच में रख दें।ध्यान रखे की तुलसी के गमले को लकड़ी की चौकी पर ही  रखें। डायरेक्ट जमीन पर न्न रखें।

तुलसी के गमले के अस-पास सुन्दर सी रंगोली जरूर बना लें और अब आटे से चौक पुर के उसके ऊपर चौकी को रख दें। इसके बाद गन्ने से तुलसी जी और शालीग्राम जी के विवाह का मंडप सजाये। अब दूसरी चौकी पर शालीग्राम या भगवान विष्णु जी की मूर्ति या फोटो को स्थापित करें। आप चौकी पर स्वस्तिक का चिन्ह बना लें। बस रखे की तुलसी जी को शालीग्राम के दाहिने ओर स्थापित करें।

अब आप शालीग्राम की चौकी पर अष्टदल कमल बनाये और उसपर कलश की स्थापना करें। कलश पर स्वस्तिक का चिन्ह बनाये।मुख में मौली बांधे और कलश के अंदर गंगाजल, शुद्धजल, सुपारी, अक्षत, फूल और एक सिक्का डाले और अब कलश पर आम के पांच पल्लव लगाए और उसके ऊपर लाल कपडे में लपेटकर नारियल को रख दें। इसके बाद तुलसी जी के आगे घी का दीपक जलाएं।

क्युकी अग्नि को साक्षी मानकर ही तुलसी विवाह कराया जाता है। इसके बाद गंगा जल में फूल डुबोकर ॐ तुलिसाय नमः मन्त्र बोलते हुए गंगाजल का छिड़िकाब तुलसी जी पर करें। इसके बाद उसी फूल और गंगा जल से ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मन्त्र बोलते हुए गंगा जल आपको शालीग्राम जी पर छिड़कना है। इसके बाद तुलसी जो को रोली और शालीग्राम जी को चन्दन से तिलक करें। 

इसके बाद दूध में हल्दी डालकर तुलसी जी और शालीग्राम को लगाए। इसके बाद शालीग्राम पर तुलसी की मंजरी चढ़ाये। तत्पश्चात तुलसी जी को लाल चुनरी अर्पित करें।उन्हें लाल चूड़ी पहनाये और उन्हें सुहाग का सभी सामान थोड़ा-थोड़ा लगाए, उनका पूरा श्रृंगार करें। इसके बाद शालीग्राम जी को पंचामृत से स्नान कराये। फिर गंगाजल और शुद्धजल से स्नान कराने के बाद पीला कपडा अर्पितकरें।

इसके बाद कलश की पूजा करें और गणेश गौरी की स्थापना करके  पूजा करें। इसके बाद तुलसी और शालिग्राम को को भी फूल-माला पहनाये। इसके बाद किसी लाल कपडे या पीले कपडे से माता तुलसी और शालीग्राम जी का गठबंधन करें। इस गठबंधन में सुपारी, फूल, अक्षत और कुछ पैसे रखने चाहिए। इसके बाद घर के किसी पुरुष को शालिग्राम जी को हाथ में उठाकर तुलसी जी को सात बार परिक्रमा करना चाहिए।

यह सात परिक्रमा सात फेरे है और इसके बाद तुलसी जी को शालिग्राम के बायीं ओर स्थापित करें। तत्पश्चात भगवान को भोग अर्पित करें। खीर, पूड़ी, हलवा या जो भी अपने बनाया है।उसका भोग माँ तुलसी और शालिग्राम जी को लगाए। 

इसके बाद कपूर और धुप जलाये और अब विष्णु जी की और माता तुलसी जी की आरती करें और इसके बाद आपका तुलसी विवाह पूर्ण हो जायेगा।इसके बाद सभी में प्रसाद वितरित करें और गले दिन सुबह फिर से शालीग्राम और माता तुलसी जी की पूजा करें फिर तुलसी जी का पौधा और सभी सामग्री किसी मंदिर में दान क्र दें।

जिस तरह से कन्या के शादी के बाद विदाई करना जरुरी होता है। ठीक उसी प्रकार तुलसी विवाह के बाद तुलसी जी को भी दान करके विदा जिया जाता है।आप उनके साथ कोछा भी मंदिर भेजे जिसमे चावल, हल्दी और कुछ पैसे हों इस तरह से आप आसान विधि से अपने घर अपर भी तुलसी विवाह संपन्न कर सकते है।

तुलसी विवाह मान्यता 

प्राचीन मान्यतों के अनुसार आज के दिन जो लोग शालीग्राम और तुलसी विवाह करते है उन्हें कन्यादान के बराबर का फल प्राप्त। शास्त्रों के अनुसार तुलसी विवाह के लिए कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी और द्वादशी तिथि सबसे शुभ होती है। 

ऐसी मान्यता है की जिस घर में बेटियां नहीं होती है। यदि वे दंपत्ति आज के दिन तुलसी विवाह करते है तो उन्हें कन्यादान के बराबर का पुण्य प्राप्त होता है। तुलसी विवाह का आयोजन बिलकुल वैसे ही किया जैता है जैसे सामान्य वर-वधु का विवाह किया जाता है

तुलसी विवाह का महत्त्व 

सनातन धर्म में शास्त्रों की अगर हम माने तो तुलसी विवाह को बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण बताया गया है। ऐसा माना जाता है की इस दिन भगवान विष्णु जागृत अवस्था में आते है। 

जिसके बाद शालीग्राम को उनका स्वरूप मानकर उनका पुरे विधि-विधान के अनुसार तुलसी जी से विवाह कराया जाता है। इस दिन प्रत्येक घर में तुलसी जी की विशेष पूजा आराधना होती है।

माना जाता है की इस दिन तुलसी जी की  पूजा करने से कई गुणा ज्यादा फल प्राप्त होता है। इसी कारण इस दिन माता तुलसी का विवाह शालीग्राम जी से भी कराया जाता है। 

पुराणों के अनुसार देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार माह के निद्रा अवस्था से बहार आते है। जिसके बाद पृथ्वी पर सभी शुभ कार्यो का शुरुआत हो जाता है और इसके बाद तुलसी जी के साथ उनका विवाह भी संपन्न कराया जाता है। इसके बाद माना जाता है की सभी शुभ कार्यो का शुरुआत हो जाता है। 

तुलसी विवाह क्यों मनाया जाता है (tulsi vivah kyu manaya jata hai)

तुलसी विवाह हिंदू धर्म में एक विशेष धार्मिक परंपरा है, जो भगवान विष्णु और तुलसी माता के विवाह के रूप में मनाई जाती है। यह कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे देवउठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं, के दिन संपन्न होता है। यह त्यौहार भक्ति, शुभता, और विवाह की परंपरा का प्रतीक है।

तुलसी विवाह मनाने का महत्व:

1. धार्मिक महत्व: तुलसी जी को माता लक्ष्मी का स्वरूप और भगवान विष्णु की प्रिय मानी जाती हैं। तुलसी विवाह भगवान विष्णु और तुलसी माता के मिलन का उत्सव है, जो भक्ति और पवित्रता का प्रतीक है।

2. पौराणिक कथा: पौराणिक कथा के अनुसार, तुलसी माता का पूर्व जन्म में नाम वृंदा था, जो दानव राजा जालंधर की पत्नी थीं। वृंदा ने अपने पति की रक्षा के लिए घोर तपस्या की, जिससे भगवान विष्णु ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उनका पति रूप में धोखे से साथ दिया। इससे वृंदा क्रोधित हुईं और भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वे पत्थर (शालिग्राम) बन जाएंगे। बाद में भगवान विष्णु ने वृंदा से क्षमा मांगी और उन्हें अमरता का वरदान देते हुए तुलसी के रूप में प्रतिष्ठित किया। तुलसी विवाह इसी कथा का स्मरण है।

3. सकारात्मक ऊर्जा: तुलसी विवाह को संपन्न करने से घर में सुख-समृद्धि और शांति आती है। यह त्यौहार वैवाहिक जीवन में सौहार्द और मधुरता लाने का प्रतीक भी है।

4. वैवाहिक संस्कार: जिन परिवारों में विवाह योग्य कन्या या पुत्र नहीं होते, वे तुलसी विवाह का आयोजन करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस अनुष्ठान से भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है और उनके परिवार में समृद्धि और वैवाहिक सुख आता है।

तुलसी विवाह की परंपरा:

  • तुलसी जी को दुल्हन के रूप में सजाया जाता है।
  • भगवान शालिग्राम (भगवान विष्णु का स्वरूप) को दूल्हा माना जाता है।
  • विवाह हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार मंत्रोच्चार, वरमाला, और फेरे लेकर संपन्न होता है।
  • इस दिन विशेष पूजा और भजन-कीर्तन का आयोजन होता है।

आध्यात्मिक संदेश:

तुलसी विवाह आत्मसमर्पण, भक्ति और त्याग का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि धर्म और प्रेम का संबंध केवल मानव जीवन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रकृति और ईश्वर के बीच के गहरे संबंध को भी दर्शाता है।

तुलसी विवाह कथा (Tulsi Vivah ki Katha in Hindi)

पौराणिक कथा और हिन्दू पुराणों के अनुसार तुलसी एक राक्षस की कन्या थी। इनका नाम वृंदा था। राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थी। जब वृंदा बड़ी हुई तो उनका विवाह जलंधर नामक  असुर के साथ हुआ। वृंदा  पतिव्रता व्रत के कारण जलंधर अजेय हो गया जिसके कारण जलंधर को अपनी शक्तियों पर अभिमान हो गया।

उसकी वीरता का रहस्य उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म था। इसी कारण वह अजेय हुआ था। उसने स्वर्ग पर आक्रमण कर देव कन्याओ को अपने अधिकार में ले लिया जलंधर के उदण्डों से परेशान होकर देवता भगवान विष्णु जी के पास गए और रक्षा करने की प्रार्थना की। परन्तु वृंदा के सतत्व के कारण जलंधर का अंत होना लगभग असम्भव था

सभी की बात सुनकर भगवान विष्णु ने जलंधर की शक्ति को ख़त्म करने के लिए देवी वृंदा का पतिव्रत भंग करने का निश्चय किया और जलंधर का रूप धारण करके वृंदा के समक्ष गए। वृंदा विष्णु जी को अपना पति समझकर पूजा से उठ गई। जिससे उसका पतिव्रता धर्म टूट गया। वृंदा का पतिव्रत धर्म टूटने से जलंधर की शक्तियां काम हो गई और उसका अंत हो गया।

जब वृंदा को श्रीहरि के छल के बारे में ज्ञात हुआ तब उन्होंने भगवान विष्णु से कहा की ये नाथ मैंने आजीवन  की अपने मेरे साथ ऐसा कृत्य क्यों किया? श्रीहरि विष्णु ने वृंदा के इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया तब उन्होंने भगवान विष्णु से कहा की अपने मेरे साथ एक पाषाण की भांति व्यवहार किया मैं आपको श्राप देती हूँ की आप पाषाण बन जाये उनके श्राप के कारण भगवान विष्णु पत्थर बन गए।

विष्णु जी के पाषाण बन जाने का कारण सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा। सभी देवताओं ने वृंदा से इसके बाद याचना की वो अपना श्राप वापस ले ले। वृंदा ने देवो की प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और अपने श्राप को वापस लिया। 

परन्तु भगवान विष्णु वृंदा के साथ हुए छल के कारण लज्जित थे। अतः वृंदा की श्राप को स्वीकार करते हुए उन्होंने अपना एक रूप पत्थर में प्रविष्ट किया जिसे सभी शालीग्राम के नाम से जानते है।

भगवान विष्णु को श्राप मुक्त करने के पश्चात् वृंदा जलंधर के साथ सती हो गई। वृंदा की राख से एक पौधा उत्पन्न हुआ। इस पौधे  श्रीहरि विष्णु ने तुलसी नाम दिया और वरदान दिया तुलसी के बिना मैं किसी भी प्रसाद को ग्रहण  करूँगा। 

भगवान विष्णु ने कहा शालीग्राम रूप तुलसी का विवाह होगा। देवताओं ने वृंदा की मर्यादा और पवित्रता को बनाये रखने के लिए भगवान विष्णु के शालीग्राम रूप का विवाह तुलसी से कराया। कहा जाता है इसलिए हर वर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन तुलसी का विवाह शालीग्राम भगवान साथ कराया जाता है

रामा-श्यामा तुलसी की कहानी

रामा-श्यामा तुलसी की कहानी हिंदू धर्म में एक धार्मिक और प्रेरणादायक कथा है, जो तुलसी की उत्पत्ति और उसके प्रकारों का महत्व बताती है। यह कथा भक्ति, त्याग और भगवान की कृपा पर आधारित है।

कथा:

एक समय की बात है, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी अपने भक्तों की भक्ति से प्रसन्न होकर उनकी प्रार्थना सुन रहे थे। इसी समय, धरती पर दो तुलसी के पौधों—रामा तुलसी और श्यामा तुलसी—के बीच विवाद शुरू हो गया। दोनों यह जानना चाहती थीं कि भगवान विष्णु किसे अधिक पसंद करते हैं।

रामा तुलसी:

रामा तुलसी हरे रंग की होती है और उसे माता लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। यह शीतलता और शांति का प्रतीक है। रामा तुलसी भगवान विष्णु की आराधना के लिए अधिकतर उपयोग की जाती है और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी मानी जाती है।

श्यामा तुलसी:

श्यामा तुलसी काले रंग की होती है और इसे मां काली तथा भगवान कृष्ण का स्वरूप माना जाता है। यह शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है। श्यामा तुलसी भगवान कृष्ण की पूजा में प्रमुख रूप से उपयोग होती है।

विवाद का निपटारा:

भगवान विष्णु ने दोनों तुलसी को समझाया कि वे दोनों ही समान रूप से महत्वपूर्ण हैं और भक्तों की पूजा में उनकी उपस्थिति विशेष होती है। रामा तुलसी और श्यामा तुलसी को एक ही उद्देश्य के लिए सृष्टि में रखा गया है—भक्तों की भक्ति को स्वीकार करना और उनकी इच्छाओं को पूर्ण करना।

इस प्रकार, यह कथा सिखाती है कि प्रत्येक जीव या वस्तु का अपना महत्व है, और ईश्वर की दृष्टि में सभी समान हैं। रामा और श्यामा तुलसी दोनों ही भगवान की पूजा में अपनी-अपनी विशेषताओं के लिए पूजनीय हैं।

तुलसी जी के 108 नाम

तुलसी जी (श्री तुलसी देवी) के 108 नाम उनके भक्तों द्वारा उनकी महिमा का वर्णन करने और उन्हें सम्मानित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। ये नाम उनकी दिव्यता, गुणों और महिमा का बखान करते हैं। यहां तुलसी जी के 108 नाम दिए गए हैं:

1. श्रीतुलसी

2. वृन्दावनी

3. वृन्दा

4. विश्वपूजिता

5. पुष्पसारा

6. नन्दिनी

7. कृष्णजीवनी

8. विष्णुप्रिया

9. विष्णुमाया

10. क्षीरभवानी

11. देव्यतीर्थमयी

12. विश्वपावनी

13. गंगा

14. गौरी

15. लक्ष्मी

16. हेमपुष्पा

17. सुभान्नदाता

18. चन्द्रिका

19. पापहन्त्री

20. पावनदायिनी

21. कामधेनु

22. सुरधेनु

23. विष्णुधात्री

24. विष्णुकान्ता

25. विष्णुकीर्तिर्दायिनी

26. सत्यवती

27. ब्रह्मवृन्द्या

28. पुण्यवृन्द्या

29. पुण्यलक्ष्मी

30. धर्मदायिनी

31. धर्मविद्या

32. साध्वि

33. धर्मपत्नी

34. धर्मवृन्दा

35. कामरूपिणी

36. कामधात्रि

37. धर्मधात्री

38. ज्ञानदाता

39. सत्संगदाता

40. सिद्धिदायिनी

41. बुद्धिदायिनी

42. शीलदायिनी

43. शीलवृन्द्या

44. कृष्णधात्री

45. कृष्णेश्वरी

46. देवधात्री

47. देवकीर्तिर्दायिनी

48. विष्णुपत्नी

49. विष्णुवल्लभा

50. विष्णुपादोद्भवा

51. विष्णुसंप्रिया

52. विष्णुभक्तिप्रदा

53. विष्णुभक्तिकारिणी

54. विष्णुदास्यप्रदा

55. विष्णुसंनिधिकारी

56. विष्णुपादार्चनप्रीता

57. विष्णुगुणप्रकाशिका

58. विष्णुमन्त्रप्रिया

59. विष्णुसेवाविनोदिनी

60. विष्णुभक्तिप्रिया

61. विष्णुमय्या

62. विष्णुध्यानप्रकाशिका

63. विष्णुध्यानप्रीता

64. विष्णुपूजाप्रियंकरा

65. विष्णुपूजाविनोदिनी

66. विष्णुस्मरणहर्षिता

67. विष्णुविग्रहधारिणी

68. विष्णुमन्त्रधारिणी

69. विष्णुपूजकवन्दिता

70. विष्णुकथा-श्रवणप्रीता

71. विष्णुपूजाविनोदिनी

72. विष्णुभजननिष्ठा

73. विष्णुचरणार्चना

74. विष्णुमन:प्रसन्नता

75. विष्णुकेशवाधारा

76. विष्णुजन्मक्षेत्रिनी

77. विष्णुप्रदक्षिणाराधिता

78. विष्णुपदाभिवन्दिता

79. विष्णुप्रणम्यप्रिया

80. विष्णुदास्यकरणी

81. विष्णुसर्वशक्तिप्रदा

82. विष्णुरूपधरिणी

83. विष्णुकीर्तिवर्धिनी

84. विष्णुस्तवनप्रियंकरा

85. विष्णुचरणासक्तप्रिया

86. विष्णुस्मरणानन्दप्रदा

87. विष्णुमन्त्रधारिणी

88. विष्णुपादतुष्टिप्रदा

89. विष्णुचरणविनोदिनी

90. विष्णुजपप्रियंकरा

91. विष्णुचरणार्चना

92. विष्णुगीतरसासक्ता

93. विष्णुचरित्रगायिका

94. विष्णुकीर्तिवर्धिनी

95. विष्णुगीतप्रिया

96. विष्णुकीर्तिसंकीर्तिता

97. विष्णुभक्तिसंरक्षणी

98. विष्णुपादप्रणम्यप्रिया

99. विष्णुगीतगायिका

100. विष्णुगीतविनोदिनी

101. विष्णुगीतमनोज्ञा

102. विष्णुभक्तिसंप्रिया

103. विष्णुस्मरणे हर्षिता

104. विष्णुपदप्रणता

105. विष्णुकीर्तिवर्धिनी

106. विष्णुपूजाप्रियंकरा

107. विष्णुगीतमनोहरिणी

108. विष्णुस्मरणप्रीता

तुलसी जी के इन नामों का जाप करने से भक्तों को शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।

सवाल आपके जवाब हमारे 

Que. तुलसी विवाह किस समय करें? सुबह या शाम के समय 

Ans. तुलसी विवाह गौ धुली वेला के समय किया जाना जाना सबसे उत्तम माना गया है। गौ धुली बेला सूर्यास्त का समय होता है। जिस समय शाम हो रही हो उसी समय आपको तुलसी विवाह कराना चाहिए। 

Que. अगर शालीग्राम ना मिले तो तुलसी विवाह कैसे करें? 

Ans. यदि आपके पास शालीग्राम नहीं हैं तो आप लड्डू गोपाल जी का विवाह भी तुलसी जी के साथ करा सकते है। यदि आपके पास लल्लू गोपाल जी भी नहीं है तो फिर आप कृष्ण जी की या विष्णु जी की कोई भी मूर्ति या फोटो उसके साथ भी आप तुलसी विवाह कर सकते है। 

बस ध्यान रखे की ऐसी फोटो नहीं लेनी है जिसमे विष्णु जी माता लक्ष्मी जी के साथ हो। यानि को जोड़े वाली फोटो का विवाह नहीं करना है। आप विष्णु जी या श्री कृष्ण जी का कोई भी स्वरूप जिसमे वे अकेले हो उसके साथ ही तुलसी जी का विवाह कर सकते है।

Que. रामा या श्यामा तुलसी में किस तुलसी का विवाह करना चाहिए?

Ans. आप रामा या श्यामा कोई भी तुलसी अपने घर पर लाये। रामा या श्यामा तुलसी इसका कोई फर्क नहीं पड़ता है। कोई भी तुलसी हो आप उसका विवाह कर सकते है, तुलसी में कोई भी अंतर नहीं होता है।आप पूरी श्रद्धा भाव से उनका विवाह संपन्न करें। आपको उतने ही फल की प्राप्ति होगी।

Que. tulsi vivah kab ka hai

Ans. तुलसी विवाह हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी (देवउठनी एकादशी) के दिन मनाया जाता है। यह दिन भगवान विष्णु के चार महीने के योग निद्रा से जागने का प्रतीक है। इस दिन तुलसी के पौधे और भगवान शालिग्राम का विवाह किया जाता है। इस साल तुलसी पूजा या विवाह 13 नवंबर को पड़ रहा है।

Que. tulsi puja kab hai

Ans. तुलसी पूजा मुख्य रूप से तुलसी विवाह के दिन की जाती है, जो हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी (देवउठनी एकादशी) के दिन होती है। यह पूजा विशेष रूप से भगवान विष्णु और माता तुलसी के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए की जाती है। साल 2025 में तुलसी विवाह 13 नवंबर को है।

Que. Tulsi Diwas Kab Manaya Jata Hai

Ans. तुलसी दिवस हर साल 25 दिसंबर को मनाया जाता है। यह दिन तुलसी के धार्मिक, आयुर्वेदिक और पर्यावरणीय महत्व को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है।

इस दिन तुलसी के पौधे के संरक्षण, उपयोग और महत्व पर जागरूकता फैलाई जाती है। तुलसी को हिंदू धर्म में पवित्र माना गया है और इसे आयुर्वेद में एक अद्भुत औषधि के रूप में भी जाना जाता है।

तुलसी दिवस का उद्देश्य लोगों को पौधारोपण और प्रकृति के प्रति जागरूक करना है। यदि आप तुलसी दिवस या उससे संबंधित अन्य जानकारी चाहते हैं, तो बताएं!

Que. tulsi ji ki shadi kisse hui thi

Ans. हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, तुलसी जी का विवाह भगवान विष्णु के अवतार शालिग्राम से हुआ था। तुलसी जी को देवी लक्ष्मी का स्वरूप और उनकी पूजा को अत्यंत शुभ माना जाता है। तुलसी विवाह का आयोजन हर वर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी (देवउठनी एकादशी) को किया जाता है, जो धार्मिक रूप से विशेष महत्व रखता है।


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