हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनन्त चतुर्दशी मनाया जाता है। अनंत चतुर्दशी के दिन अनंत देव की पूजा किया जाता है, अनंत देव भगवान विष्णु का रूप माने जाते है। इस व्रत को विपत्ति से उबारने वाला व्रत कहा जाता है। शास्त्रों में अनंत चतुर्दशी का बड़ा महत्व बताया गया है। अनंत चतुर्दशी को अनंत चौदस के नाम से भी जानते है।
इस पूजा में अनंत सूत्र का विशेष महत्त्व है इस दिन भगवान अनन्त देव को सूत्र चढ़ाया जाता है और पूजा के बाद उस सूत्र को रक्षा सूत्र अथवा अनंत देव के तुल्य मानकर हाथ में धारण किया जाता है। यह सूत्र हर संकट से रक्षा करता है।
दोस्तों अनंत राखी के समान सूत्र या रेशम के धागे का और इसमें चौदह गाँठे लगी होती है जो भगवान श्री हरी विष्णु के चौदह लोकों के प्रतिक माना गया है इस अनंत रूपी धागे को पूजा में भगवान विष्णु पर चढ़ाकर व्रती अपने बाजु में बांधते है।
इस दिन भगवान विष्णु जी के अनंत स्वरूप की पूजा किया जाता है मान्यता है कि जो भी आज के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु जी की पूजा करता है और अनंत सूत्र को बांधता है तो उसके जीवन की सभी समस्याओं से उसे छुटकारा मिलता है।
इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन से सभी कष्ट दूर हो जाते है। आज हम आपको साल 2025 भाद्रपद मास की अनंत चतुर्दशी व्रत की सही तारीख, पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और व्रत के नियमों के बारे में बताएँगे।
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अनंत चतुर्दशी |
अनंत चतुर्दशी व्रत शुभ मुहूर्त 2025
- 👉 साल 2025 में अनंत चतुर्दशी का व्रत - 6 सितम्बर रविवार के दिन रखा जायेगा।
- 👉 चतुर्दशी तिथि प्रारंभ होगा - 6 सितंबर प्रातःकाल 5 बजकर 59 मिनट पर।
- 👉 चतुर्दशी तिथि समाप्त होगा - 7 सितंबर प्रातःकाल 5 बजकर 28 मिनट पर।
- 👉 अनंत चतुर्दशी पूजा का शुभ मुहूर्त होगा - 6 सितंबर प्रातःकाल 6 बजकर 8 मिनट से 20 सितंबर प्रातःकाल 5 बजकर 28 मिनट तक।
- 👉 पूजा की कुल अवधि - 23 घन्टे 20 मिनट का होगा।
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अनंत चतुर्दशी पूजन सामग्री (Anant Chaturdashi Puja Samagri)
पूजा में यमुना नदी, शेषनाग तथा अनंत यानि श्री हरी विष्णु का पूजा किया जाता है। इसमें कलश को यमुना का प्रतीक तथा दूर्वा को शेषनाग का प्रतिक और चौदह गांठों वाले अनंत धागे को भगवान श्री हरी विष्णु के प्रतिक के रूप में पूजा किया जाता है। इस पूजा में फूल, पत्ते, नैवेद्य आदि सभी सामग्री चौदह के गुड़क के रूप में उपयोग किया जाता है।
पूजा किए लिए शेषनाग पर बैठे हुए श्री हरी विष्णु की प्रतिमा या फोटो, फूल माला, फल, मिष्ठान, मालपुए, अनंत सूत्र, चौदह प्रकार के वृक्षों के पत्ते, एक मिट्टी का कलश, दूर्वा, रोली, अक्षत, कपूर, धुप, दिप, तुलसी दल, पान, सुपारी, लौंग, इलाइची, पंचामृत, दूध, दही, घी, शहद, शक्कर आदि सामग्री लेकर विधिवत पूजा करें
अनंत चतुर्दशी के दिन व्रती को प्रातःकाल उठकर स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए फिर एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर भगवान श्री हरी विष्णु की प्रतिमा को स्थान दें और कलश की स्थापना करें।
कलश पर अष्ट दल के सामान वर्त्तन में कुश से निर्मित अनंत की स्थापना किया जाता है। इसके आगे कुमकुम एवं हल्दी से रंगकर बनाया हुआ कच्चे डोरे का चौदह गांठों वाला अनंत रखा जाता है फिर भगवान विष्णु की विधिवत पूजा-अर्चना करें।
अग्नि पुराण के अनुसार व्रत करने वाले को एक सेर आटे की मालपुए अथवा पूड़ी बनाकर पूजा करना चाहिए और उसमें से आधी पुडी या मालपुए ब्राह्मण को दान दे दे और शेष को प्रसाद के रूप में स्वयं एवं परिवार जनों के साथ खाए।
इस व्रत में नमक का प्रयोग निषेध माना जाता है। पूजा के बस सभी को अनंत सूत्र बांधना चाहिए यह अनंत सूत्र हमपर आने वाले सभी कष्टों से रक्षा करता है ऐसा कहा जाता है की यदि यह व्रत चौदह वर्षों तक किया जाये तो व्रती को व्रती को विष्णु लोक की प्राप्ति होता है।
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अनंत चतुर्दशी पूजा विधि (Anant Chaturdashi Puja Vidhi)
अनंत चतुर्दशी के दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को सुबह स्नानादि के बाद व्रत का संकल्प करते हुए पूजा स्थल पर कलश और भगवान विष्णु जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा कारन चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु, माता यमुना और शेषनाग जी की पूजा किया जाता है।
कलश के रूप में माता यमुना और दूर्वा के रूप में शेषनाग जी को स्थापित करें। कलश पर कुशा से बने अनंत देव की स्थापना करें और इसके समीप कच्चे डोरे को केसर, कुमकुम या हल्दी से रंगकर चौदह गांठ लगा अनंत धागा रख दें।
यह धागा आप बाजार से भी खरीद कर ला सकते है इसके बाद अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा और विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करें। इससे व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है। पूजा के बाद अनंत देव का ध्यान करते हुए अनंत सूत्र को पुरुषों को अपनी दाहिने हाथ की कलाई पर और महिलाओं को अपने बाएं हाथ की कलाई पर बांधना चाहिए।
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अनंत चतुर्दशी व्रत कथा (anant chaturdashi katha in hindi)
पौराणिक युग में सुमन्त नाम का एक ब्राह्मण था जो बहुत ही विद्वान् था। उसकी पत्नी भी धार्मिक स्त्री थी, जिसका नाम दिक्षा था, सुमन्त और दिक्षा की एक संस्कारी पुत्री थी जिसका नाम सुशीला था। सुशीला के बड़े होते-होते उसकी माँ दिक्षा का स्वर्गवास हो गया सुशीला छोटी थी उसकी परवरिश को ध्यान में रखते हुए सुमन्त में कर्कशा नामक स्त्री से दूसरा विवाह किया।
कर्कशा का विवाह सुशीला के प्रति अच्छा नहीं था लेकिन सुशीला में उसकी माँ दिक्षा के गुण थे। वे अपने नाम के समान ही सुशिल एवं धार्मिक प्रवित्ति की थी। कुछ समय बाद जब सुशीला विवाह योग्य हुई तो उसका विवाह कौंडिन्य ऋषि के साथ किया गया।
कौंडिन्य ऋषि और सुशीला अपने माता-पिता के साथ उसी आश्रम में रहने लगे माता कर्कशा का स्वभाव अच्छा ना होने के कारण सुशीला और उनके पति कौंडिन्य को आश्रम छोड़कर जाना पड़ा।
जोवन बहुत कष्टमयी हो गया ना रहने को जगह थी और ना ही जीविका के लिए कोई भी जरिया दोनों काम की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान भटक रहे थे, तभी वे दोनों एक नदी तट पर पहुँचे जहाँ रात्रि का विश्राम किया।
उसी दौरान सुशीला ने वहा देखा कई स्त्री सुन्दर सजकर पूजा करा रही थी और एक दूसरे को रक्षासूत्र बांध रही थी सुशीला ने उनसे उस व्रत का महत्त्व पूछा वे सभी अनंत देव की पूजा कर रही थी और उनका रक्षा सूत्र जिसे अनंत सूत्र कहते है वह एक दूसरे को बांध रही थी जिसके प्रभाव से सभी कष्ट दूर होते है और व्यक्ति की मन की हर इच्छा पूरी होती है।
सुशीला ने व्रत का पूरा विधान सुनकर उसका पालन किया और विधि-विधान से पूजन कर अपने हाथ में अनंत सूत्र धारण किया और अनंत देव से अपनी अपने पति के सभी कष्ट दूर करने की प्रार्थना की समय बीतने लगा ऋषि कौंडिन्य और सुशीला का जीवन सुधारने लगा।
अनंत देव की कृपा से धन-धान्य की कोई कमी न थी अगले वर्ष फिर से अनंत चतुर्दशी का दिन आया सुशीला ने भगवान को धन्यवाद देने हेतु फिर से पूजा की और सूत्र धारण किया नदी तट पर वापस आई ऋषि कौंडिन्य ने हाथ में बंधे सूत्र के बारे में पूछा तब सुशीला ने पूरी बात बताई और कहा की ये सभी सुख भगवान अनंत के कारण मिले है।
यह सुनकर ऋषि को क्रोध आ गया और उन्हें लगा कि उनकी मेहनत का श्रेय भगवान को दे दिया गया है उन्होंने धागे को तोड़ दिया इस तरह से अपमान के कारण अनंत देव रुष्ट हो गए और धीरे-धीरे ऋषि कौंडिन्य के सारे सुख दुःख में बदल गए और वे वन-वन भटकने को मजबूर हो गए।
तब उन्हें एक प्रतापी ऋषि मिले जिसने उन्हें बताया कि यह सब भगवान के अपमान के कारण हुआ है तब ऋषि कौंडिन्य को उनके पाप का आभास हुआ और उन्होंने विधि-विधान से अपनी पत्नी के साथ अनन्त देव का पूजन एवं व्रत किया यह व्रत उन्होंने कई वर्षों तक किया।
जिसके चौदह वर्ष बाद अनंत देव प्रसन्न हुए उन्होंने ऋषि कौंडिन्य को क्षमा कर उन्हें दर्शन दिए जिसके फल स्वरुप ऋषि कौंडिन्य उनकी पत्नी के जीवन में सुखों का पुनः स्थान बना। अनंत चतुर्दशी व्रत की कहानी भगवान कृष्ण ने पांडुओं से भी कही थी।
जिसके कारण पांडुओं ने वनवास में प्रतिवर्ष इस व्रत का पालन किया था जिसके बाद उनकी विजय हुई थी अनंत चतुर्दशी का पालन राजा हरिश्चंद्र ने भी किया था जसके बाद उनसे प्रसन्न होकर उन्हें अपना राज-पाठ वापस मिला था।
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अनंत चतुर्दशी व्रत नियम (Anant Chaturdashi Vrat Niyam)
- 👉 अनंत चतुर्दशी का व्रत रखने वाले लोगो को ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानादि के बाद व्रत का संकल्प जरूर लेना चाहिए।
- 👉 इस दिन भगवान विष्णु, माता यमुना और शेषनाग जी की पूजा जरूर करें।
- 👉 अनंत चतुर्दशी के दिन 14 गांठों वाला अनन्त सूत्र जरूर धारण करना चाहिए इससे व्यक्ति के जीवन में कोई बँधा या परेशानी नहीं आती है।
- 👉 अनंत चतुर्दशी के दिन अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा अवश्य सुननी या पढ़नी चाहिए।
- 👉 इस दिन झूठ नहीं बोलना चाहिए और ना ही किसी की निन्दा और ना ही घर में कलह आदि करना चाहिए।
- 👉 अनंत चतुर्दशी के दिन ब्राह्मण और जरुरतमंद व्यक्ति को भोजन केआकार अपनी सामर्थ के अनुसार दान-दक्षिणा अवश्य देना चाहिए।
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