इन दिनों शारदीय नवरात्र का पर्व चल रहा है। नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में माँ दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की आराधना की जाती है। शास्त्रों में माँ दुर्गा को शक्ति की की देवी माना गया है इसलिए दुर्गा पूजा का यह पर्व शक्ति की उपासना का पर्व भी कहलाता है। नवरात्रों में अष्टमी और नवमी तिथि कन्या पूजन के लिए विशेष होती है।
शक्ति की आराधना का पर्व नवरात्र अब समापन ओर है और सभी लोग महाष्टमी और महानवमी के इंतजार में है क्युकी नवरात्रि के ये दो तिथियां बहुत ही खास मानी जाती है। इन दो तिथियों में कन्याओं का पूजन करने की मान्यता है। महाष्टमी और महानवमी के दिन देवी माँ की पूजा करने के साथ-साथ कन्याओं की कर उन्हें भोजन कराया जाता है और उपहार व दक्षिणा भी दिया जाता है। नवरात्रि की इन दो तिथियों में कन्या पूजन करने से भक्तो को माँ का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त होता है।
इस बार नवरात्रि का पर्व आठ दिनों का है लेकिन इस बार अष्टमी, नवमी और दशमी तिथि को लेकर लोगो में संशय स्थिति बनी हुई है। आज हम अपने इस लेख में इसी बारे में बताएँगे। अष्टमी, नवमी और दशहरे का पर्व किन तिथियों मनाया जायेगा, दुर्गा पूजा और कन्या पूजन कब है और कन्या पूजन के समय किन जरुरी बातों का ध्यान आपको रखना चाहिए।
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दुर्गा पूजा और कन्या पूजन |
दुर्गा पूजा शुभ मुहूर्त 2021 (Durga Puja Start Date)
- अष्टमी तिथि प्रारम्भ होगा - 12 अक्टूबर 2021 को शाम 6 बजकर 56 मिनट से लेकर
- अष्टमी तिथि समाप्त होगा - 13 अक्टूबर 2021 को शाम 6 बजकर 55 मिनट पर होगा।
- नवमी तिथि प्रारम्भ होगा - 13 अक्टूबर 2021 बुधवार रात्रि 11 बजकर 41 मिनट पर।
- नवमी तिथि समाप्त होगा - 14 अक्टूबर 2021 गुरुवार रात्रि 9 बजकर 51 मिनट तक।
- कन्या पूजन तिथि - दुर्गा महाष्टमी और महानवमी का कन्या पूजन 14 अक्टूबर शुभ होगा ।
- इसलिए ऐसे में अष्टमी और नवमी को कन्या पूजन एक ही दिन किया जा सकेगा।
- इस वजह से नवरात्र के नौवें दिन 15 अक्टूबर को दशमी अर्थात दशहरा मनाया जायेगा।
- दशहरा पूजन का समय होगा - दोपहर 1 बजकर 52 मिनट से लेकर 2 बजकर 38 मिनट तक।
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दुर्गा पूजा क्यों मनाया जाता है
दुर्गा माता के द्वारा राक्षस महिषासुर का वध करने के ख़ुशी में दुर्गा पूजा का पर्व मनाया जाता है। यह त्यौहार मुख्य तौर पर भारत के पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा, मडिपुर, उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा समेत देश भर में मनाया जाता है। माँ दुर्गा के इस पवित्र त्यौहार को बुराई पर अच्छी की जित के रूप में मनाया जाता है। माँ दुर्गा के इस पवित्र दिन को दुर्गा उत्सव, शारदीय पूजा, महापूजा और विजयादशमी के नाम से से भी जाना जाता है। बंगाल में तो दुर्गा पूजा को बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है।
इस समय जगह-जगह पंडाल सजाकर माता की प्रतिमा स्थापित किया जाता है। यज्ञ और हवन किये जाते है। लोग दुर्गा पूजा पर व्रत रखते है और माँ से अपने मंगल की कामना करते है। दुर्गा उत्सव के पहले दिन को महालय कहा जाता है। इस दिन पितरो का तर्पण करने का विधान है। कहा जाता है की महालय के दिन असुरो और देवताओं के बीच युद्ध हुआ था। इसमें काफी संख्या में देवता और ऋषियों की मृत्यु हो गई थी।
उन्हें तर्पण देने के लिए महालय होता है। जब की दुर्गा पूजा की विधिवत शुरुआत षष्टी से प्रारम्भ होती है। कहा जाता है की देवी दुर्गा का इस दिन धरतीय पर आई थी। षष्टी के दिन बिल्व निमत्रण पूजन आमंत्रण की परंपरा होती है। अगले दिन महासप्तमी पर नवपत्रिका या कलाबाऊ का पूजन होता है। वही दुर्गा पूजा का सबसे मुख्य दिन महाष्टमी को माना गया है। महाष्टमी पर संधि पूजा होती है जो अष्टमी और नवमी दोनों दिन तक चलती है और अंत में दशमी के दिन दुर्गा विसर्जन, सिंदूर उत्सव और विजयादशमी का का पर्व मनाया जाता है।
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दुर्गा पूजा कब से शुरू है (durga puja 2021 list in hindi)
- दुर्गा पूजा प्रारम्भ होगा - 11 अक्टूबर 2021 दिन सोमवार से लेकर
- दुर्गा पूजा समाप्त होगा - 15 अक्टूबर 2021 दिन शुक्रवार तक मनाया जायेगा।
- दुर्गा पूजा का पहला दिन - षष्टी तिथि 11 अक्टूबर 2021 दिन सोमवार को मनाया जायेगा।
- दुर्गा पूजा का दूसरा दिन - सप्तमी तिथि 12 अक्टूबर 2021 दिन मंगलवार को मनाया जायेगा।
- दुर्गा पूजा का तीसरा दिन - मुख्य दिन महाष्टमी 13 अक्टूबर 2021 दिन बुधवार को पड़ेगा
- अष्टमी तिथि की शुरुआत - 12 अक्टूबर 2021 को शाम 6 बजकर 56 मिनट से लेकर
- अष्टमी तिथि का समापन - 13 अक्टूबर 2021 को शाम 6 बजकर 55 मिनट पर होगा।
- दुर्गा पूजा का चौथा दिन - नवमी तिथि 14 अक्टूबर 2021 दिन गुरुवार को मनाया जायेगा।
- नवमी तिथि की शुरुआत - 13 अक्टूबर 2021 बुधवार रात्रि 11 बजकर 41 मिनट पर।
- नवमी तिथि का समापन - 14 अक्टूबर 2021 गुरुवार रात्रि 9 बजकर 51 मिनट तक।
- दुर्गा पूजा का पांचवा दिन - दुर्गा विसर्जन 15 अक्टूबर 2021 दिन शुक्रवार को मनाया जायेगा।
- दशमी तिथि की शुरुआत - 14 अक्टूबर 2021 को रात्रि 9 बजकर 51 मिनट से लेकर
- दशमी तिथि की समाप्ति - 15 अक्टूबर 2021 को रात्रि 8 बजकर 21 मिनट तक रहेगा।
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कन्या पूजन शुभ मुहूर्त 2021
नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष महत्त्व है। नवरात्रि माँ आदिशक्ति की उपसना का पर्व है और कन्याओं को माँ दुर्गा का ही एक स्वरूप माना जाता है। कन्या पूजन में 2 से 10 वर्ष तक की कन्याओं की पूजा करने की मान्यता है। दुर्गा अष्टमी और महानवमी के दिन कन्या पूजन करने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होकर उसे माँ का आशीर्वाद मिलता है। शास्त्रों के अनुसर साल 2021 शारदीय नवरात्रि में कन्या पूजन 13 अक्टूबर अष्टमी और 14 अक्टूबर नवमी के दिन करना बेहद शुभ रहेगा।
कन्या पूजन कब किया जाता है (Kanya Pujan Kab Kiya Jata Hai)
अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन किया जाता है। मान्यता है की इन कन्याओं के माध्यम से ही माँ भक्तो के द्वारा की गयी उनकी पूजा-आराधना स्वीकार करती है। नवरात्रों में कन्या पूजन का विशेष महत्त्व होता है इसलिए कन्या पूजन के दौरान कुछ बातों का ख्याल रखना बहुत जरुरी माना गया है। 14 अक्टूबर 2021 गुरुवार को पूरे दिन और पूरी रात में कभी भी हवन और कन्या पूजन व् कन्या भोजन करा सकते है।
कन्या पूजन के लिए कन्याये ना मिले तो क्या करें (Kanya Pujan aur Durga Puja at Home)
इस बार हालातों के चलते बहुत से लोगो को कन्या पूजन के लिए कन्यायें मिलने में परेशानी हो सकती है। अगर आपको इस तरह की परेशानी है तो घबराने की जरुरत नहीं है क्युकी शास्त्रों में कुछ ऐसी बाते बताई गयी है जिन्हे ध्यान में रखकर आप ऐसी परिस्थिति में आसानी से कन्या पूजन कर माता रानी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते है।
जब आप घर बाहर के कन्याओं को घर में आमंत्रित नहीं कर सकते है तो ऐसे में कन्या पूजन के लिए अपने ही घर, रिश्तेदारी की बेटी, भतीजी को भोजन के लिए आमंत्रित कर उनका कर सकते है। लेकिन ध्यान रखे की कन्या पूजन से पहले हाथ में जल लेकर कन्या पूजन का संकल्प जरूर कर लें।
यदि घर में भी कन्याये ना हो तब ऐसी स्थिति में घर के मंदिर में ही माता रानी की पूजा कर उन्हें आपके द्वारा बनाये गए भोग भेंट सामग्री अर्पण करें। जो भी भोग आपने माता रानी को लगाया है उसमें से कुछ हिस्सा गौ माता को खिलाकर बाकी घर के सभी सदस्य प्रसाद के रूप में ग्रहण कर लें। नवरात्रि के बाद माता रानी को चढ़ाई गयी सुहाग की सामग्री को किसी सुहागन महिला को भेंट कर दें। इस तरह घर में आप कन्या पूजन और सुहाग की परंपरा का पालन करते हुए माँ को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते है।
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कन्या पूजन के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें
आप चाहे अष्टमी के दिन कन्या पूजन करें या नवमी के दिन हमेशा ध्यान रखे की इन कन्याओं के साथ दो बटुक कुमारो गणेश जी और भैरव के रूप में भोजन कराये क्युकी शास्त्रों में ये बात कही गयी है की देवी माँ की पूजा गणेश जी और भैरव बाबा के बिना अधूरी होती है।
- कन्या पूजन के समय कन्याओं को हलवा, छोले, पूड़ी के साथ फल अवश्य दें।
- भोजन के बाद कन्याओं को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा जरूर दें।
- कन्या पूजन के समय कन्याओं की उम्र 2 वर्ष से लेकर 10 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए।
- कन्याओं को घर से विदा करते हुए उनका आशीर्वाद भी जरूर लेना चाहिए।
- कन्या पूजन के बाद कलश का जल पुरे घर की चरों में अवश्य छिड़कना चाहिए। देवी भागवत पुराण में कन्या पूजन का वर्णन मिलता है। जिसके आधार पर नवरात्रि का का पर्व कन्या भोज के बिना अधूरा माना जाता है।
- पौराणिक कताओं के अनुसार नवरात्रि के अंतिम दो दिन अष्टमी और नवमी कन्या पूजन के लिए सबसे श्रेष्ठ है।
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कन्या पूजन कैसे करें
कन्या पूजन अष्टमी या नवमी में से किसी भी एक दिन करना श्रेष्ट माना जाता है। कन्या पूजन के लिए 10 वर्ष तक की 9 कन्याओं की आवश्यकता होती है। इन 9 कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर पूजा करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार कन्या पूजन के लिए कुछ नियम बताये गए है, जिनका सभी को ध्यान रखना चाहिए।
अपने घर बुलाई जाने वाली कन्याओं की आयु 2 वर्ष से 10 वर्ष के भीतर होना जरुरी है और काम से काम 9 कन्याओं को पूजन के लिए बुलाना चाहिए। जिसमे से एक बालक भी होना अनिवार्य है। जिसे हनुमान जी का रूप माना जाता है। जिस प्रकार माँ दुर्गा की पूजा भैरो के बिना पूरी नहीं होती है ठीक उसी प्रकार कन्या पूजन भी एक बालक के बिना पूरा नहीं माना जाता है।
नवरात्र के दौरान सभी दिन एक कन्या का पूजन होता है जबकि अष्टमी और नवमी के दिन 9 कन्याओं का पूजन किया जाता है। ध्यान रखे जिन कन्याओं को भोज पर आप खाने के लिए बुला रहे है उन्हें एक दिन पहले ही न्योता दे दें। कन्या पूजन के समय इधर उधर से कन्याओं को पकड़कर लाना ठीक नहीं माना जाता है। कन्या पूजन के लिए सबसे पहले व्यक्ति को प्रातःकाल स्नान करके विभिन्न प्रकार के भोजन बनाने चाहिए। ध्यान रहे माता के लिए जो आप भोग बनाये वही प्रसाद आप कन्याओं को भी खिलाये।
बस ध्यान रखे की बनाये गए प्रसाद में किसी भी प्रकार की खटाई का बिलकुल भी प्रयोग नहीं चाहिए। जैसे नीबू, आमचूर, इमिली या टमाटर इत्यादि। शास्त्रों में माँ दुर्गा के भोग में खटाई का प्रयोग बिलकुल वर्जित बताया गया है। इसके अलावा आप ये भी ध्यान रखे की कन्या भोजन में आप प्याज लहसुन का प्रयोग भी बिलकुल ना करें। अगर आप कन्या भोज में कुछ नमकीन बना रहे है तो इसमें आप सफ़ेद नमक का इस्तेमाल ना करें।
कन्या भोज बनाने के लिए व्रत वाला नमक ही यानि की सेंधा नमक का ही प्रयोग करें। आज कल के दौर में कुछ लोग कन्याओं के भोजन में मैगी, चौमिंग या पास्ता आदि खिला देते है उनका ये सोचना होता है आज कल के बच्चे हलवा, पूड़ी, चना आदि पसंद नहीं करते है और मैगी , पास्ता वे प्रेम से खा लेते है। आपको बता दूँ की अगर आप ही ऐसा कर रहे है तो आप माँ जगतम्बा को प्रसन्न नहीं बल्कि उन्हें रुष्ट कर रहे है।
इसलिए इस नवरात्र में आप ये गलती ना करें पूर्ण श्रद्धा और शुद्धता के साथ माता का प्रसाद बनाना चाहिए। आप भोग में हलवा, पूड़ी, चना, खीर, मेवे की मिठाई आदि बना सकते है। प्रसाद बनाने के बाद सबसे पहले माँ दुर्गा को अर्पित करें। फिर इसी प्रसाद से कन्याओं को भोजन कराये। बहुत कन्याओं को भोजन कराने के बाद उन्हें फल जरूर देना चाहिए जैसे केला, सेव, आम, अनार इत्यादि। लेकिन शास्त्रों के अनुसार ये सही नहीं बताया गया है ऐसा माना जाता है की हम नवरात्रो में देवी स्वरूप कन्याओं को भोजन कराकर उनसे फल की प्राप्ति की कामना करते है।
ना की फल देने की कामना करते है। इसलिए कन्याओं को फल देने की बजाय कुछ उपहार में ऐसी चीज दे जो कन्याओं के काम आये। क्युकी जितने लम्बे समय तक कन्याये उस उपहार का प्रयोग करेंगी उसका फल आपको उतने समय तक ही मिलेगा। कन्याओं को भोजन करने से पहले उनके पैर शुद्ध जल से अवश्य धोये और उन्हें अच्छे से पोछ दें। फिर इसके बाद कन्याओं को स्वच्छ आसन पर बिठाना चाहिए। कन्याओं को एक बिठाकर इनके हाथो में रक्षा सूत्र बांधना चाहिए और माथे पर रोली का टिका लगाना चाहिए।
फिर कनयों को पेट भर भोजन करना चाहिए इसके बाद कुछ दान दक्षिणा और उपहार भेंट में अवश्य दें। आप उन्हें शिक्षा से सम्बंधित चींजे दे सकते है और अंत में कन्याओ के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लेकर उन्हें प्रेम पूर्वक बिदा करना चाहिए। अंतिम दिन जो भी व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक कन्याओं की पूजा कर उन्हें भोजन कराते है माँ दुर्गा उनकी सभी मनोकामनाएं अवश्य ही पूर्ण कराती है।
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