लोहड़ी पौष मास के अंतिम दिन सूर्यास्त के बाद (माघ संक्रांति से पहली रात) यह पर्व मनाया जाता है। यह प्रायः 13 या 14 जनवरी को पड़ता है। साल 2023 में लोहड़ी 14 जनवरी शनिवार के दिन पड रहा है। मुख्यतः पंजाब का पर्व है। मकर संक्रांति की पूर्वसंध्या पर इस त्यौहार का उल्लास रहता है। रात्रि में खुले स्थान में परिवार और पास-पड़ोस के लोग मिलकर आग के किनारे घेरा बनाकर बैठते है। इस समय रेवड़ी, मूंगफली, लावा आदि खाये जाते है।
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लोहड़ी का त्यौहार |
लोहड़ी के त्यौहार का उद्देश्य
सामान्यतः यह त्यौहार प्रकृति में होने वाले परिवर्तन के साथ-साथ मनाये जाते है जैसे लोहड़ी में कहा कि इस दिन वर्ष की सबसे लम्बी अंतिम रात होती है। इसके अगले दिन से धीरे-धीरे दिन बढ़ने लगता है। साथ ही इस समय किसानो के लिए भी उल्लास का समय माना जाता है। खेतों में अनाज लहलहाने लगते है और मौसन सुहाना सा लगता है, जिसे मिल जुलकर परिवार एवं दोस्तों के साथ मनाया जाता है। इस तरह आपसी एकता बढ़ाना भी इस त्यौहार का मुख्य उद्देश्य है।
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लोहड़ी का त्यौहार क्यों मनाया जाता है? पौराणिक कथा
पुराणों के आधार पर इसे सती त्याग के रूप में प्रतिवर्ष याद करके मनाया जाता है। कथानुसार जब प्रजापति दक्ष ने अपनी पुत्री सती के पति महादेव शिव का तिरस्कार किया था और अपने जामाता को यज्ञ में शामिल ना करने से उनकी पुत्री ने अपने आप को अग्नि में समर्पित कर दिया था।
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उसी दिन एक पश्चाताप के रूप में प्रति वर्ष लोड़ही पर मनाया जाता है और इसी कारण घर की विवाहित बेटी को इस दिन तोहफे दिए जाते है और भोजन पर आमंत्रित कर उसका मान सम्मान किया जाता है। इसी ख़ुशी में श्रृंगार का सामान सभी विवाहित महिलाओं को बनता जाता है।
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लोहड़ी की कहानी
लोहड़ी की कहानी मान्यताओं की माने तो मुगलकाल के दौरान पंजाब का एक व्यापारी वहां की लड़कियों और महिलाओं को कुछ पैसे के लालच में बेचने का व्यापार किया करता था, उसके इस आतंक से इलाके में काफी दहशत का माहौल रहता था और अपनी बहन बेटियों को घर से बहार नहीं निकलने दिया करते थे। लेकिन वह कुख्यात व्यापारी घरों में घुसकर जबरन महिलाओं और लड़कियों को उठा लिया करता था।
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महिलाओं और लड़कियों को इस आतंक से बचने के लिए दुल्ला भाटी नौजवान शख्स ने उस व्यापारी को कैद कर लिया और उसकी हत्या कर दी। उस कुख्यात व्यापारी का अंत करने और लड़कियों को उससे बचाने के लिए पंजाब में सभी ने दुल्ला भाटी का शुक्रिया अदा किया और तभी से लोहड़ी Lohari का पर्व दुल्ला भाटी के याद में मनाया जाता है। उनकी याद में इस दिन लोकगीत भी गए जाते है। इन्ही पौराणिक एवं एतिहासिक कारणों के चलते पंजाब प्रान्त में लोहड़ी का उत्सव उल्लास के साथ मनाया जाता है।
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कैसे मनाया जाता है लोहड़ी का पर्व
पंजाबियों का विशेष त्यौहार है लोहड़ी जिसे वे धूमधाम से मनाते है। नाच, गान और ढोल तो तो पंजाबियों की शान होते है और इसके बिना इसके त्यौहार अधूरे है।
पंजाबी लोहड़ी गीत क्या होता है
लोहड़ी आने के कई दिनों पहले ही युवा एवं बच्चे लोहड़ी के गीत गाते है। पंद्रह दिनों पहले यह गीत गाना शुरू कर दिया जाता हैं जिन्हे घर-घर जाकर गाया जाता है। इन गीतों में वीर शहीदों को याद किया जाता है जिनमें दुल्ला भट्टी का नाम विशेष रूप से लिया जाता है।
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लोहड़ी खेती खलियान का महत्त्व
लोहड़ी में रबी की फसलें कट कर घरों में आती है और उसका जश्न मनाया जाता है। किसानों का जीवन इन्ही फसलों के उत्पादन पर निर्भर करता हैं और जब किसी मौसन के फसले घरों में आती है हर्षोल्लास से उत्सव मनाया हैं। लोहड़ी में खासतौर पर इन दिनों गन्ने की फसल बोई जाती हैं और पुरानी फसले काटी जाती है। इन मूली की फसल भी आती हैं और खेतों में सरसों भी आती है। यह ठण्ड की बिदाई का त्यौहार मना जाता है।
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लोहड़ी एवं पकवान
भारत देश में हर त्यौहार के विशेष व्यंजन होते हैं। लोहड़ी में गजक, रेवड़ी, मूंगफली आदि खाया जाता है और इन्ही के पकवान भी बनाये जाते हैं। इसमें विशेष रूप से सरसों का साग और मक्का की रोटी बनाई जाती है और खाया एवं प्यार से अपनों को खिलाया जाता है।
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लोहड़ी बहन-बेटियों का त्यौहार
इस दिन बड़े प्रेम से घर से बिदा हुई बहन और बेटियों को घर बुलाया जाता हैं और उनका आदर सत्कार किया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार इसे दक्ष की गलती के प्रायश्चित के तौर पर मनाया जाता हैं और बहन-बेटियों का सत्कार कर गलती को क्षमा माँगा जाता है। इन दिन विवाहित जोड़ों को भी पहले लोहड़ी की जाता है और शिशु के जन्म पर भी पहली लोहड़ी के तोहफे दिए जाते है।
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लोहड़ी में अलाव/अग्नि क्रीड़ा का महत्त्व
लोहड़ी के कई दिनों पहले से कई प्रकार की लकड़ियां इक्कठा किया जाता है जिन्हे नगर के बिच में एक अच्छे स्थान पर जहां सभी एकत्र हो सके वहां सही तरीके से जमाई जाती है और लोहरी की रात को सभी अपनों के साथ मिलकर इस अलाव आस-पास बैठते है। कई गीत गाते है, खेल खेलते है,आपसी गीले शिकवे भूलकर एक दूसरे को गले लगाते हैं और लोहड़ी की बधाई देते हैं।
इस लकड़ी के ढेर पर अग्नि देखकर इसके चारों तरफ परिक्रमा करते हैं और अपने लिए और अपनों के लिए दुआएं मांगते हैं। विवाहित लोग अपने साथी के साथ परिक्रमा करते हैं। इस अलाव चारों तरफ बैठकर रेवड़ी, गन्ने, गजक आदि का सेवन किया जाता है।
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लोहड़ी के साथ मनाते है नव वर्ष
किसान इन दिनों बहुत उत्साह से अपनी फसल घर लाते हैं और उत्सव मनाते है। लोहड़ी को पंजाब प्रान्त में किसान नव वर्ष के रूप में मनाते हैं। यह पर्व पंजाबी और हरियाणवी लोग ज्यादा मनाते है और यही इस दिन को नव वर्ष के रूप में भी मनाते है।
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लोहड़ी का आधुनिक रूप
आज भी लोहड़ी की धूम वैसी ही होती बस आज जश्न ने पार्टी लिया है और गले मिलने के बजाय लोग मोबाइल और इंटरनेट के जरिये एक दूसरे देते है। बधाई सन्देश भी व्हाट्सएप और मेल किये जाते है। लोहड़ी त्यौहार को इस तरह पुरे उत्साह साथ मनाया जाता है। देश के लोग विदेशों में भी बसे हुए हैं जिसमें पंजाबी ज्यादातर विदेशों में रहते है इसलिए लोहड़ी विदेशो में भी मनाया जाता है। खासतौर पर कनाडा में लोहड़ी रंग बहुत सजता है।
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