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शारदीय नवरात्रि 2022 कब से कब तक है | Navaratri Pooja Date 2022

आश्विन माह में आने वाली नवरात्रि शारदीय नवरात्रि कहलाती है। इस साल शारदीय नवरात्रि का पर्व 26 सितंबर से शुरू हो रहा है। शास्त्रों के अनुसार माँ की भक्ति के लिए इन नवरात्रो का विशेष महत्त्व बताया गया है। छोटे-बड़े शहरों, गाँवो में माँ दुर्गा की मिट्टी से बनी हुई प्रतिमा का अस्थाई स्थापना करके नवरात्रि के दौरान माँ भगवती के 9 भिन्न-भिन्न स्वरूपों की पूजा-आराधना की जाती है। 

शरद ऋतू की इस आश्विन नवरात्रि को माँ दुर्गा की असुरो पर विजय पर्व के रूप में मनाया जाता है। इसीलिए नौ दिनों तक माँ दुर्गा के नौ विभिन्न नौ स्वरूपों की विशेष पूजा किया जाता है। इस बार के शारदीय नवरात्र कई शुभ योगो में आ रहे है जिस कारण इसका महत्त्व और भी अधिक होगा। आज हम आपको इस लेख में साल 2022 शारदीय नवरात्रो के दौरान कलश स्थापना की सही तारीख, शरद नवरात्रि 2022, शुभ मुहूर्त, शुभ योग, कलश स्थापना कब और कैसे करें इन सभी बातो के बारे में बताएँगे।

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शारदीय नवरात्रि शुभ मुहूर्त 2022 (Sharadiy Navaratri Pooja Shubh Muhurt 2022)

  • साल 2022 में शारदीय नवरात्रि का पर्व 26 सितंबर सोमवार से शुरू होकर 4 अक्टूबर तक चलेगा, इसी दिन कलश स्थापना किया जायेगा।
  • प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ होगा - 26 सितंबर प्रातःकाल 3 बजकर 23 मिनट पर।
  • प्रतिपदा तिथि समाप्त होगा - 27 सितंबर प्रातःकाल 3 बजकर 8 मिनट पर।
  • कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त होगा - 26 सितंबर प्रातःकाल 6 बजकर 11 मिनट से प्रातःकाल 7 बजकर 51 मिनट तक।
  • कुल अवधि - 03 घंटे 46 मिनट की। 
  • घटस्थापना अभिजित मुहूर्त होगा - 26 सितंबर सुबह 11 बजकर 48 मिनट से दोपहर 12 बजकर 36 मिनट तक।
  • दुर्गा अष्टमी तिथि - 3 अक्टूबर सोमवार।
  • दुर्गा नवमी तिथि - 4 अक्टूबर मंगलवार।
  • दशमी तिथि विजयादशी दशहरा का पर्व - 5 अक्टूबर बुधवार को मनाया जायेगा।

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शारदीय नवरात्र 2022 की तिथियां एवं उनका कार्य

  • 26 सितंबर 2022 - नवरात्रि का पहला दिन, प्रतिपदा, कलश स्‍थापना, चंद्र दर्शन एवं  माँ शैलपुत्री का पूजन।
  • 27 सितंबर 2022 - नवरात्रि का दूसरा दिन, द्व‍ितीया, माँ बह्मचारिणी का पूजन।
  • 28 सितंबर 2022 -  नवरात्रि का तीसरा दिन, तृतीया, माँ चंद्रघंटा का पूजन।
  • 29 सितंबर 2022 - नवरात्रि का चौथा दिन, चतुर्थी, माँ कुष्‍मांडा का पूजन।
  • 30 सितंबर 2022 - नवरात्रि का पांचवां दिन, पंचमी, माँ स्‍कंदमाता का पूजन।
  • 1 अक्टूबर 2022 - नवरात्रि का छठा दिन, षष्‍ठी, माँ कात्यायनी का पूजन।
  • 2 अक्टूबर 2022 - नवरात्रि का सातवां दिन, सप्‍तमी, माँ कालरात्रि का पूजन।
  • 3 अक्टूबर 2022 - नवरात्रि का आठवां दिन, अष्‍टमी, माँ भगवती महागौरी का पूजन।
  • 4 अक्टूबर 2022 - नवरात्रि का नौवां दिन,  नवरात्रि पारण, कन्‍या पूजन, नवमी हवन, माँ सिद्धिदात्री का पूजन।
  • 5 अक्टूबर 2022 - दशमी तिथि विजय दशमी दशहरा 

शारदीय नवरात्र 2021 (sharad navratri 2022)

शारदीय नवरात्रि की शुरुआत अश्विन मास के शुक प्रतिपदा से होता है। शास्त्रों में इन नवरात्रों का विशेष महत्त्व है। मान्यता है कि नवरात्रि के 9 दिनों तक माँ दुर्गा के 9 स्वरूपों की आराधना से जीवन में रिद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है। शारदीय नवरात्र 2022 सोमवार 26 सितंबर से प्रारम्भ हो रहा है जो 4 अक्टूबर को समाप्त होगा। अश्विन माह में आने वाली नवरात्रि सितंबर या अक्टूबर माह में पड़ता है। अष्टमी-नवमी तिथि को कन्या पूजन कर माँ का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। शारदीय नवरात्रि का समापन दशमी तिथि को विजय दशमी के रूप में किया जाता है। 

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कलश स्थापना विधि 

कलश स्थापना प्रतिपदा तिथि और अभिजित मुहूर्त में करना लाभकारी होता है। नवरात्रि पूजा से एक दिन पहले ही आपको पूजा की सामग्री एकत्रित कर लेना चाहिए। नवरात्रि के पहले दिन कलश और माता शैलपुत्री पूजन का विधान है। कलश स्थापना के लिए सर्वप्रथम मिट्टी  बर्तन सप्त धान्य बौ ले अब उसमे जल से भरा कलश रखकर रोली से कलश पर स्वास्तिक बना ले कलश के ऊपरी भाग में कलावा बांधकर इसे उस मिट्टी के पात्र में रख दें।

अब कलश के ऊपर अशोक या आम के पत्ते रखें इसके बाद एक नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर कर कलश के ऊपर स्थापित कर दें। इस पुरे विधि विधान से घट या कलश स्थापना करने के बाद समस्त देवी-देताओं और देवी माँ का आह्वान कर विधिवत माता शैलपुत्री का पूजन करें।

नवरात्रि में माता की चौकी, कलश का चावल, नारियल कब और कैसे हटाये 

नवरात्रि के पहले दिन लोग घरों में कलश की स्थापना और माता की चौकी को सजाते है लेकिन कई लोगों को इस बात की जानकरी नहीं होती है कि नवरात्रि पूजन के बाद माता की चौकी को कब हटाना चाहिए, नवरात्रि पारण कब और कैसे करें। कलश के चावलों, नारियल और जल का क्या करना चाहिए आज इस लेख में हम इसी बारे में बताएँगे। 

कलश के चावलों का क्या करें

माता की पूजा के पहले दिन कलश स्थापना के लिए जिन चावलों से आप अष्टदल कमल बनाते है उन्हें पवित्र नदी में प्रवाहित करना चाहिए और कलश या घट स्थापना के लिए घट के ऊपर रखे चावलों को आप अपने घर के अनाज में डाल दें। इससे आपके घर में अन्नपूर्णा का होगा या फिर आप इन चावलों को पशु-पक्षियों को डाल दें। 

नारियल का क्या करें

नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के समय अपने कक्ष में जो नारियल को रखा था, उसे आप फोड़कर प्रसाद के रूप में ग्रहण करें या आप इस नारियल को ग्रहण नहीं करना चाहते हैं तो नारियल को किसी पवित्र नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए। 

अखंड जोत का क्या करें

बहुत से लोग नवरात्रि के दौरान अखंड जोत जलाते है। शास्त्रों के अनुसार अखंड जोत के कई सारे नियम होते है अगर अपने अखंड जोत जलाई है तो उसका विशेष ख्याल रखे। नवरात्रि व्रत के पारण के बाद इस जोट को एक दोने में रखकर नदी में प्रवाहित कर दें या फिर इसे ऐसे ही जले रहने दें। इसे गलती से भी ना बुझाये। 

कलश में रखी चीजों का क्या करें

नवरात्रि के दौरान कलश स्थापना करते समय अपने जो भी चीजे कलश के अंदर रखी थी उसमें अक्षत, हल्दी की गांठ, पान-सुपारी को प्रवाहित कर दें और कलश में डाले सिक्के को अपने धन रखने के स्थान पर रख दें। इससे आपके धन-संपदा में वृद्धि होगी। 

सुहाग सामग्री का क्या करें

नवरात्रि पूजा के दौरान अपने जो सुहाग का सामान देवी दुर्गा को चढ़ाया है उसे घर की सुहागन महिलाओं को इस्तेमाल कर लेना चाहिए। अन्यथा इसे किसी अन्य सुहागन महिला को दान करना चाहिए। 

नवरात्रि व्रत का पारण कब और कैसे करें

कुछ लोग नवरात्रि व्रत का पारण अष्टमी थी में करते हैं। इस तिथि को महाअष्टमी भी कहा जाता है। नवरात्रि नौ दिनों का पावन पर्व होता है शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि व्रत का पारण दशमी तिथि के दिन करना चाहिए। जो लोग नौ दिनों के व्रत रखते है उन्हें नौ दिनों तक व्रत करने के बाद दशमी तिथि को व्रत का पारण विधि-विधान से करना चाहिए। इस दिन विधिवत माँ की पूजा कर कन्या पूजन और हवन कर व्रत का पारण करना चाहिए। 

माता की चौकी कब हटाए

नवरात्रि का पर्व पूरे नौ दिनों का होता है इसलिए नवरात्रि में माता की चौकी, बोये हुये जवारे व अन्य विसर्जन का सामान नौ दिन पूरे होने के बाद दशमी तिथि को हटाने चाहिए। शास्त्रों के अनुसार पुरे विधि-विधान से की गयी माँ की आराधना अवश्य ही फलीभूत होती है और भक्तों को माँ का आशीर्वाद अवश्य ही प्राप्त होता है। 

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शारदीय नवरात्रि के दिन घर लाये ये 1 चीज

नवरात्रि के इस 9 दिनों के दौरान हर कोई दुर्गा माँ को प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजा-पथ, व्रत-उपवास व् कुछ आसान उपाय करता है। वास्तु अनुसार और शास्त्रों में कुछ ऐसी चीजें बताई गयी है जिन्हे यदि आप नवरात्रि से पहले घर लाते हैं तो माँ दुर्गा प्रसन्न होकर आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं तो आइये जानते है कि वे कौन सी चीजें हैं जिन्हें नवरात्रि के दौरान घर लाना अति शुभ माना जाता है। 

  • माना जाता है कि नवरात्रि के दौरान घर में सोने या चांदी का सिक्का लाना शुभ होता है। 
  • नवरात्रि में घर में केले का पौधा लकर लगाना और नित्य इसकी पूजा करना शुभ फल देता है। 
  • इसके अलावा यदि आप नवरात्रों में कमल का पुष्प, कमल पर विराजमान माँ की प्रतिमा या मोरपंख घर लेकर आते है तो आप पर सदा माता रानी की कृपा बरसती है। 
  • मान्यता है कि नवरातों के इन नौ दिनों में सोलह श्रृंगार का सामान घर लाना चाहिए और उसे माँ दुर्गा को अर्पण करना चाहिए इससे माँ दुर्गा की कृपा सदैव आपके घर पर बनी रहती है। 

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घट या कलश स्थापना के नियम 

  • घट या कलश स्थापना हमेशा शुभ मुहूर्त में करें
  • कलश स्थापना करने के लिए पूजा स्थल में स्थल से अलग एक एक पाटे पर लाल व सफेद कपड़ा बिछाए इसपर अक्षत से अष्टदल बनाकर उसपर जल से भरा कलश स्थापित करें
  • कलश का मुँह खुला ना रखे इसे किसी चीज से ढक देना चाहिए। कलश को किसी  ढक्कन से ढाका है तो उसे चावलों से भर दें और उसके बीचो बिच एक नारियल भी रखे
  • अगर कलश की स्थापना कर रहे है तो दोनों समय मंत्रो का जाप करें 
  • पूजा करने के बाद माँ को दोनों समय भोग लगाए सबसे सरल व उत्तम भोग है लौंग और बतासा
  • माँ के लिए लाल फूल सर्वोत्तम होता है पर माँ को आक, मदार दुब, तुलसी बिल्कुल ना चढ़ाये
  • नवरात्रि  के दौरान पुरे नौ दिनों तक अपना खान-पान और आहार सात्विक रखे

घट स्थापना सामग्री 

घट स्थापना के लिए कुछ वस्तुओं की आवश्यकता होती है।  ये वास्तु है सात प्रकार के अनाज, मिट्टी का एक बर्तन जिसका मुँह चौड़ा हो। पवित्र स्थान से लाई गई मिट्टी, कलश, गंगाजल, आम या अशोक के पत्ते, सुपारी, जटावाला नारियल, अक्षत, साबुत अक्षत, साबुत चावल, लाल वस्त्र, फूल, चौकी, चुनरी व माता के लिए श्रृंगार का सामान आदि चीजों की आवश्यकता होगी

शारदीय नवरात्रि के दौरान 9 दिंनो तक पहने अलग-अलग कपड़े

नवरात्रि का पर्व 9 दिनों तक चलता है नौ दिनों में मां के नौ रूपों का पूजा किया जाता है। नवरात्रि में रंगों का विशेष महत्त्व होता है कहा जाता है कि इन नौ दिनों के नौ रंग माता दुर्गा के हर एक स्वरुप को समर्पित है। शास्त्रों के अनुसार यदि नवरात्रि के इस नौ दिन मां के पसंदीदा रंग के कपड़े पहनकर मां दुर्गा की पूजा की जाय तो माँ जल्दी प्रसन्न होकर भक्तों की हर मनोकामना को पूरी करती है। 

नवरात्र का पहला दिन माता शैलपुत्री का

नवरात्रि का पहला दिन प्रतिपदा कहलाता है इस दिन कलश स्थापना और माता शैलपुत्री का पूजन किया जाता है। नवदुर्गाओं में यह माता प्रथम स्वरुप है। इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनना बेहद शुभ होता है। कहते है की इस दिन पीले रंग के वस्त्र पहनकर पूजा करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। 

नवरात्र का दूसरा दिन माता ब्रह्मचारिणी का

नवरात्रि के दूसरे दिन मां के दूसरे स्वरूप माता ब्रह्मचारिणी का पूजा किया जाता है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी का मतलब है आचरण अर्थत ब्रह्मचारिणी का अर्थ है तप का आचरण करने वाली। मान्यता है की माता ब्रह्मचारिणी की पूजा में यदि नारंगी और हरे रंग के वस्त्र धारण किये जाय तो भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। 

नवरात्र का तीसरा दिन माता चंद्रघंटा का

नवरात्र के तीसरे दिन माँ दुर्गा के तीसरे रूप माँ चंद्रघंटा का पूजन किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार यदि तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की पूजा में भूरे रंग का वस्त्र पहनकर पूजा किया जाय तो माँ दुर्गा के आशीर्वाद से भक्तों को हर काम में सफलता मिलती है। 

नवरात्र का चौथ दिन माता कुष्मांडा का 

नवरात्रि के चौथे दिन माता दुर्गा के चौथे रूप माता कुष्मांडा की आराधना किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार कहा जाता है की यदि चौथे दिन माँ कुष्मांडा की पूजा में लाल रंग और नारंगी रंग के कपड़े पहनकर माता का पूजन किया जाय तो माता रानी जल्दी प्रसन्न होती है। 

नवरात्र का पांचवा दिन माता स्कंदमाता का

नवरात्रि के पांचवें दिन देवी दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप का पूजन किया जाता है। मानता है कि देवी दुर्गा का पांचवा रूप मोक्ष के दरवाजे खोलने वाला और हर सुख प्रदान करने वाला है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार इस दिन यदि देवी माँ का पूजन नीले, सफेद या क्रीम रंग के कपड़े पहनकर किया जाय तो माँ अपने भक्तों की सारी इच्छाओं को पूरा करती है। 

नवरात्र का छठा दिन माता कात्यायनी का

नवरात्रि के छठे दिन माँ दुर्गा के छठे स्वरूप माता कात्यायनी का पूजन किया जाता है। छठे दिन माँ की पूजा में लाल रंग का विशेष महत्त्व है। शास्त्रों के अनुसार यदि देवी कात्यायनी की पूजा पीले या लाल रंग के कपड़ेपहनकर किया जाय तो माँ अपने भक्तों की हर इच्छा को जल्दी पूरा करती है। 

नवरात्रि का सातवाँ दिन माता कालरात्रि का

नवरात्रि के सातवें दिन माता कालरात्रि के पूजा का विधान है। माँ कालरात्रि के शरीर का रंग श्याम, सर के बाल बिखरे, गले में विद्युत् की माता और तीन आंखे है। मान्यता है की यदि इस दिन माँ की आराधना नीले रंग के वस्त्र पहनकर की जय तो यह बहुत ही शुभ होता है। 

नवरात्र का आठवां दिन माता महागौरी का

नवरात्रि के आठवें दिन देवी मां के आठवें स्वरूप माता महागौरी का पूजन किया जाता है। आठवां दिन अष्टमी का होता है इस दिन कन्या पूजन भी किया जाता है। आठवें दिन माता महागौरी का मोरपंखी रंग से श्रीनगर और इस दिन लाल, गुलाबी या मोरपंखी हरे रंग के कपड़े पहनकर पूजा करना बहुत ही शुभ होता है। 

नवरात्र का नौवां दिन माता सिद्धिदात्री का

नवरात्रि के नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री का पूजन किया जाता है। माता का यह रूप अपने भक्तों को सिद्धि प्रदान करने वाला है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार इस दिन माँ की आराधना जामुनी या गुलाबी रंग के कपड़े पहनकर करने से भक्तों को पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है। 

क्या होगी मां की सवारी

नवरात्रि के पहले दिन के आधार पर माँ दुर्गा की सवारी का अनुमान लगाया जाता है। नवरात्रि के दौरान माता की सवारी का विशेष महत्त्व होता है। देवीभाग्वत पुराण के अनुसार सोमवार या रविवार को नवरात्रि की शुरुआत होने पर दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती है। जबकि शनिवार और मंगलवार के दिन नवरात्रि शुरू होने पर माता अश्व यानि घोड़े पर सवार होकर आती है। वहीं गुरवार या शुक्रवार को नवरात्रि का पर्व शुरू होने पर माता डोली पर सवार होकर आती है। इस साल शरद नवरात्रि गुरवार से शुरू हो रहे है इसलिए इस बार माता रानी डोली या पालकी पर सवार होकर आएंगी। 

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नवरात्रि में माँ भगवती के नौ अलग-अलग रूप

  1. शैलपुत्री ( पर्वत की बेटी )
  2. ब्रह्मचारिणी (माँ दुर्गा का शांति पूर्ण रूप)
  3. चंद्रघंटा ( माँ का गुस्से का रूप )
  4. कुष्मांडा ( माँ का ख़ुशी भरा रूप )
  5. स्कंदमाता ( माँ के आशीर्वाद का रूप )
  6. कात्यायनी ( माँ दुर्गा की बेटी जैसी )
  7. कालरात्रि ( माँ का भयंकर रूप )
  8. महागौरी ( माँ पार्वती का रूप और पवित्रता का स्वरुप )
  9. सिद्धिदात्री (माँ का ज्ञानी रूप )

प्रथम माता शैलपुत्री ( पर्वत की बेटी )

प्रथम माता शैलपुत्री ( पर्वत की बेटी )
प्रथम माता शैलपुत्री

माँ शैलपुत्री की पूजा आपको पहले दिन करनी है और भगवती दुर्गा देवी को गाय के शुद्ध घी का भोग आपको लगाना है या गाय के शुद्ध घी से बनी वस्तुओं का भोग भगवती शैलपुत्री को आपको लगाना है। प्रसन्न होकर भगवती शैलपुत्री हमें आरोग्य देती है, सभी रोगों को नष्ट कर देती है भगवती शैलपुत्री, सभी व्याधियों का हमारी नाश हो जाता है मानसिक रूप से जो चिंताएं मन में चल रही हो भगवती शैलपुत्री के आराधना से सभी समाप्त हो जाती है प्रतिदिन हमें सप्तशती का भी पाठ करना चाहिए भगवती दुर्गा देवी के नवारण मात्र का हमे पाठ करना चाहिए ।।ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।। इस मन्त्र का हमे यथाशक्ति सामर्थनुसार जप करना चाहिए कम से कम 108 बार जाप करना ही चाहिए।

माँ शैलपुत्री की पूजा

नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री की पूजा के समय लाल या पीले रंग का वस्त्र पहनाना शुभ माना जाता है। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना करने के बाद माँ शैलपुत्री का ध्यान करते हुए उन्हें अक्षत, सिंदूर, धुप, गंध, पुष्प आदि अर्पित करें व भोग के रूप में घी का भोग लगाएं। मान्यता है की माँ शैलपुत्री को आज के दिन घी अर्पित करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है। इसके बाद माता शैलपुत्री के मंत्र ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः का जाप करें और स्त्रोत पाठ व देवी कवच का पाठ करें। शाम के समय माँ शैलपुत्री की पुनः पूजा आरती कर सभी में प्रसाद बांटे और व्रत खोलें।

पहला दिन पूजा उपाय

नवरात्रि के पहले दिन देवी शैलपुत्री का विधिवत पूजा करने के बाद पूजास्थल व् घर पर कपूर जलाकर रखने से घर से सारी नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होने लगती है। और घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है जिससे कार्य में सफलता की प्राप्ति होती है। 

द्रितीय माता  ब्रह्मचारिणी (माँ दुर्गा का शांति पूर्ण रूप)

द्रितीय माता  ब्रह्मचारिणी
द्रितीय माता  ब्रह्मचारिणी

दूसरे नवरात्रि के दिन माँ भगवती ब्रह्मचारिणी की पूजा इस दिन होती है भगवती का दूसरा स्वरूप माँ ब्रह्मचारिणी  है। माँ ब्रह्मचारिणी आयु को देने वाली है, अगर किसी प्रकार का मन में भय रहता है, किसी व्यक्ति के प्रति भय रहता है उसकी आयु को लेकर के चिंता रहती है की मेरी तो आयु कम है ऐसा मन में अगर संका आ रहा हो तो भगवती ब्रह्मचारिणी की पूजा से कम आयु का जो भय है जो नष्ट हो जाता है आयु आरोग्य की प्राप्ति माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से होती है। भगवती ब्रह्मचारिणी को दूसरे दिन शक्कर का भोग हमे लगाना चाहिए।

माता ब्रह्मचारिणी का पूजन विधि

नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी का पूजा-अर्चना किया जाता है। प्रातःकाल स्नान के बाद माँ की पूजा से पहले सभी देवी देवताओं का आह्वाहन करें और माता रानी को पंचामृत से स्नान कराकर इनके प्रिय फूल, अक्षत, रोली, चन्दन, पैन, सुपारी और दक्षिणा अर्पित कर शक्कर का भोग लगाएं। इसके बाद हाथों में फूल लेकर प्रार्थना करते हुए माँ के मन्त्र ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः का जाप करें। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और फिर ब्रह्मा जी की पूजा करना भी बहुत ही शुभ होता है। 

तृतीय माता चंद्रघंटा ( माँ का गुस्से का रूप )

तृतीय माता चंद्रघंटा
तृतीय माता चंद्रघंटा

तीसरे नवरात्रि को भगवती चंद्रघंटा की पूजा होती है भगवती चंद्रघंटा को तीसरे दिन दूध का भोग लगाना चाहिए गाय का दूध भगवती को अर्पण करना चाहिए या दूध से बनी हुई मिठाइयों का भोग माँ चंद्रघंटा को हमें लगाना चाहिए और इस दूध व मिठाई को ब्राह्मण के घर दे देना चाहिए या ब्राह्मण को खिला देना चाहिए सभी दुखो का नाश करने वाली माँ चंद्रघंटा की कृपा किसी व्यक्ति पर हो जाये तो फिर जीवन में कोई दुःख अनहि आता।

माता चंद्रघंटा का पूजन विधि 

तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा की पूजा से पहले सभी देवी-देवताओं का आह्वाहन करें और फिर माँ चंद्रघंटा को पंचामृत से स्नान कराये। शास्त्रों के अनुसार इस दिन माता रानी की पूजा में क्रीम व भूरे रंग के वस्त्र का प्रयोग कर माँ को कमल व् शंखपुष्पी के पुष्प अर्पण करें और उन्हें दूध या दूध से बनी मिठाई या खीर का भोग लगाया जाय इसके बाद हाथों में फूल लेकर प्रार्थना करते हुए माँ के मन्त्र ॐ देवी चन्द्रघंटाय नमः का जाप करें। 

चतुर्थ माता कुष्मांडा ( माँ का ख़ुशी भरा रूप )

चतुर्थ माता कुष्मांडा
चतुर्थ माता कुष्मांडा

चौथे दिन माँ कुष्मांडा की पूजा-अर्चना की जाती है। बुद्धि को देने वाली, बुद्धि को विकसित करने वाली, विद्या को देने वाली माँ कूष्माण्डा को मालपुए का भोग हम चौथे दिन लगाते है मालपुआ बनाकर भगवती का पूरी श्रद्धा से भोग लगाइये और ये सामग्री भी आप ब्राह्मण के यहाँ दे दीजिये या ब्राह्मण को खिला दीजिए बुद्धि के अन्दर विकास नहीं हो रहा हो कोई बच्चा अगर पढ़ाई में कमजोर हो तो इस दिन माँ कुष्मांडा की पूजा हमें करनी चाहिए उस बच्चे को भी वहाँ बिठाकर उससे भी थोड़ा बहुत जाप हमें करवाना चाहिए।

माता कुष्मांडा का पूजन विधि

चौथे दिन माता कूष्माण्डा की विधिवत पूजा-अर्चना करें। सबसे पहले स्नान कर हरे रंग का वस्त्र पहने। अब पूजा स्थल पर स्थापित कलश, माता की प्रतिमा और अन्य सभी देवी-देवताओं का आह्वाहन कर पूजा करें अब हाथों में फूल लेकर माँ के चौथे स्वरूप देवी कूष्माण्डा की पूजा करें और साथ ही सच्चे मन से माँ का ध्यान करें। 

पंचम माता स्कंदमाता ( माँ के आशीर्वाद का रूप )

पंचम माता स्कंदमाता
पंचम माता स्कंदमाता

पांचवे दिन माँ स्कंदमाता की पूजा होती है। माँ स्कंदमाता निरोगी काया देने वाली और स्वास्थ को  बढ़ाने  वाली है अगर कोई अस्वस्थ व्यक्ति है बार-बार रोगों से परेशान होता है तो पांचवे दिन माँ स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए और केले के फल का भोग हमे माँ स्कन्दमाता को लगाना चाहिए साथ ही साथ संतान सम्बंधित समस्या परेशान कर रही है संतान नहीं है आपको तो माँ स्कंदमाता की पूजा जरूर कीजियेगा।

माता स्कंदमाता का भोग

नवरात्री के पांचवे दिन देवी स्कंदमाता को केले का भोग और माँ को नील या क्रीम, पीली रंग की वस्तुएं अर्पित करना चाहिए। यदि आज के दिन माँ के भक्त माँ को केसर डालकर खीर अर्पण करते है तो माता रानी प्रसन्न होकर आपकी हर मनोकामना पूरी करती है। 

माता स्कंदमाता का पूजन विधि

नवरात्रि के पांचवें दिन देवी स्कंदमाता की पूजा होती है। मान्यता है कि देवी स्कंदमाता भक्तों की भक्ति-भाव से प्रसन्न होकर उनकी हर इच्छा को पूरी करती है। पांचवें नवरात्रि पर प्रातःकाल स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेकर भगवान गणेश जी, सभी देवी-देवताओं और देवी स्कंदमाता का आह्वाहन करें। स्कंदमाता की पूजा में धनुष-बाण अर्पित करने का विशेष महत्त्व है। माता की पूजा में सुहाग का सामान, फूल और अक्षत आदि चीजें अर्पित कर उनके मन्त्र ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः का 108 बार जाय करें। इसके बाद माँ की आरती कर उन्हें केले का भोग लगाये। 

षष्टम माता कात्यायनी ( माँ दुर्गा की बेटी जैसी )

षष्टम माता कात्यायनी
षष्टम माता कात्यायनी

छठे दिन माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है। माँ कात्यायनी की पूजा हम इस दिन करते है और भगवती कात्यायनी आकर्षण की शक्ति बढ़ा देती है कही भी आप जायेंगे दस व्यक्तियों के बीच में आपकी बात का वजन होगा आपकी बात को सुना जायेगा अगर आपकी बात को अनसुना कर दिया जाता है तो भगवती कात्यायनी की कृपा आपके लिए बहुत जरुरी है माँ कात्यायनी की पूजा कीजिये और छठे दिन माँ कात्यायनी को शाहद अर्पण करना चाहिए शहद का भोग हमें माँ कात्यायनी को लगना चाहिए।

माता कात्यायनी का भोग

शास्त्रों के अनुसार दुर्गा माँ के इस छठे रूप माँ कात्यायनी का पसंदीदा रंग लाल है। माँ को आज के दिन पूजा में शहद का भोग लगाना शुभ होता है जिसे पाकर वह बेहद प्रसन्न रहती है। और अपने भक्तों को मनचाहा वरदान देती है। 

माँ कात्यायनी का पूजा विधि

नवरात्रि के छठे दिन प्रातःकाल स्नान करने के बाद व्रत का संकप्ल लेकर भगवान गणेश जी, सभी देवी-देवताओं और दुर्गा माँ के छठे रूप देवी कात्यायनी का आह्वाहन करें। पूजा में माँ के समक्ष घी का दीपक व् धूप जलाकर रोली, चावल, पुष्प से उनका पूजन करें। माँ कात्यायनी की पूजा में उन्हें पीले या लाल फूल, कच्ची हल्दी की गांठ और उनके प्रिय भोग शहद अर्पित करें। अंत में कथा पढ़ ले या सुने। अब उनके मन्त्र ॐ देवी कात्यायन्यै नमः का 108 बार जाप करें इसके बाद माँ की आरती कर लें। 

सप्तम माता कालरात्रि ( माँ का भयंकर रूप )

सप्तम माता कालरात्रि
सप्तम माता कालरात्रि

सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा की होती है। माँ काली का सप्तम नवरात्रि, माँ कालरात्रि सिद्धियों को देने वाली शक्ति हमारे शरीर के अंदर एक अलग ही शक्ति का व्यक्ति अनुभव करता है सकारात्मक ऊर्जा को देने वाली माँ कालरात्रि की सातवे दिन पूजा की जाती है और माँ कालरात्रि की रात्रि के समय पूजा  बहुत विशेष पूजा होती है, सातवे दिन माँ कालरात्रि को गुड़ का भोग लगाइएगा या गुड से बनी हुई मिठाई का भोग लगाइएगा।

माँ कालरात्रि का पसंदीदा रंग, फूल व भोग

नवरात्रि का सातवाँ दिन माँ कालरात्रि को समर्पित है। देवी कालरात्रि के इस रूप को भोग के रूप में गुड़ बहुत पसंद है इसलिए इसलिए सप्तमी के दिन उन्हें गुड़ का भोग लगाना चाहिए। मान्यता है की आज के दिन माँ को गुड़ का भोग चढाने और ब्राह्मणों को गुड़ का दान करने से वह जल्दी होती है। माँ कालरात्रि को नीला रंग प्रिय है साथ ही माँ काली को गुड़हल का पुष्प अर्पित करना चाहिए। 

माँ कालरात्रि पूजन विधि

मान्यता अनुसार नवरात्रि के सातवें दिन देवी कालरात्रि स्वरूप की भक्ति-भाव से पूजा करने से देवी माँ भय से मुक्ति और हर मनोकामना पूरी करती है। नवरात्रि के सातवें दिन प्रातःकाल स्नान करने के बाद व्रत का संकलप लेकर भगवान गणेश जी, सभी देवी-देवताओं और देवी माँ कालरात्रि का स्मरण कर उनके आह्वाहन करें। माँ के समक्ष घी का दीपक जलाकर कलश पूजन कर माँ की आरती करें। माता को अक्षत, गुड़हल के पुष्प और गुड़ नैवेद्य के रूप में अर्पित करें। इसके बाद माँ कालरात्रि का मन्त्र ॐ ऐं हीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ॐ कालरात्री दैव्ये नमः का जाप कर व्रत कथा पढ़कर आरती करें। 

अष्टम माता महागौरी ( माँ पार्वती का रूप और पवित्रता का स्वरुप )

अष्टम माता महागौरी
अष्टम माता महागौरी

आठवें दिन माँ महागौरी की पूजा होती है। माँ भगवती महागौरी को  पानी वाले नारियल का भोग लगाना चाहिए और संतान सम्बंधित कोई भी बाधा जीवन में चल रही हो संतान सुख आपको नहीं मिल रहा हो विवाह उपरांत या आपकी संतान आपके कहे अनुसार नहीं चलती संतान की चिंता सताती रहती है तो आठवें दिन नवरात्रि महागौरी को पानी वाले नारियल का भोग हमें लगाना चाहिए अर्पण करना चाहिए।

माँ गौरी का पसंदीदा रंग, फूल व भोग

नवरात्रि का आठवां दिन माँ महागौरी को समर्पित है। देवी महागौरी के इस रूप को भोग के रूप में नारियल चढ़ाया जाता है और प्रसाद के रूप में ग्रहण भी किया जाता है। माँ महागौरी को गुलाबी रंग प्रिय है साथ ही माता रातरानी का फूल अर्पित करना चाहिए। 

माँ महागौरी का पूजन विधि

अष्टमी तिथि के दिन सुबह उठकर स्नानादि कर साफ वस्त्र धारण कर लें। इसके बाद एक लकड़ी की चौकी ले और उस पर माता महागौरी की प्रतिमा को स्थापित करें। अब उनके सामने दीपक जलाकर माँ का ध्यान करते हुए फल, फल और नैवेद्य अर्पित करें व नारियल का भोग लगाये। अब माँ की आरती करें और उनके मंत्र का जाप करें। इस दिन कन्या पूजा किया जाता है। माता की पूजा के बाद कन्या पूजन कर उनका आशीर्वाद लें और कन्याओं को विदा करें। 

नवम माता सिद्धिदात्री (माँ का ज्ञानी रूप )

नवम माता सिद्धिदात्री
नवम माता सिद्धिदात्री

नैवे दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा होती है नैवा दिन माँ सिद्धिदात्री का होता है सभी सिद्धियों को देने वाली और किसी भी अनहोनी व्यक्ति के जीवन में नहीं होती पुरे परिवार के अंदर कोई किसी प्रकार की अकाल मृत्यु कभी नहीं होती अगर सिद्धदात्री की कृपा आपके ऊपर हो जाये किसी भी प्रकार की सिद्धि आप करना चाहते है तो माँ सिद्धिदात्री को तिल से बनी हुई मिठाई का आप भोग लगाइएगा या तिलो का भोग आप लगा सकते है। 

माँ सिद्धिदात्री का पसंदीदा रंग, फूल व भोग

नवरात्रि का नौवां दिन माँ सिद्धिदात्री को समर्पित है। देवी सिद्द्धिदात्री के इस रूप को भोग के रूप में फल, चना, पूड़ी, खीर, नारियल और हलवा चाँधने से माँ बहुत प्रसन्न होती हैं। नवरात्रि की नवमी तिथि को बैंगनी या जामुनी रंग पहनना शुभ होता है। यह रंग अध्यात्म का प्रतिक और माता की अति प्रिय है। 

माँ सिद्धिदात्री का पूजन विधि

पूजा स्थल पर माँ की प्रतिमा के समक्ष धुप-दीप जलाकर माता सिद्धिदात्री को नौ प्रकार के पुष्प और नौ प्रकार के फल अर्पित करना चाहिए। सर्वप्रथम कलश की पूजा कर सभी देवी देवताओं का ध्यान करें। इसके बाद माता के मंत्रों का जाप कर उनकी पूजा करना चाहिए। पूजा में माँ को चना, पूड़ी, खीर, नारियल और हलवा का भोग लगाये। इस दिन भक्तों को माँ सिद्धिदात्री की पूजा से उनके निर्वाण चक्र में उपस्थित शक्ति स्वतः ही प्राप्त हो जाती है। इस दिन कन्या पूजन किया जाता है। माता की पूजा के बाद कन्या पूजन कर कन्याओं का आशीर्वाद लेकर उन्हें विदा करें। 

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घर में नवरात्रि की सजावट कैसे करें (Navaratri Alankaram or Navaratri Decoration at Home)

नवरात्रि के दौरान घर पर माता रानी की सजावट करने के लिए सबसे पहले जहाँ पर आपको सजावट करना है वह जगह अच्छे तरह से साफ कर लीजिये। गिफ्ट पैकिंग पेपर लीजिये एक चौकी लीजिये  ऊपर पेपर लगाइये एक लाल कपड़ा चौकी पर बिछा दीजिये माता रानी के लिए आप लाल या पीला कोई भी वस्त्र बिछा सकते है और उसके ऊपर चाहे तो एक चुनरी डाल दें। इससे थोड़ा अच्छा लगने लगता है।

अब माता रानी को बिठाने के लिए एक आसान लगाना होगा और आसान बनाने के लिए एक छोटे से चौकी का प्रयोग कर सकते है।चौकी के ऊपर कोई चुनरी या कपड़ा बिछा सकते है। माता रानी को सजाने के लिए वस्त्र, चुनरी, हार, आभूषण इत्यादि से सजा लें।

हम जो पूजा करते है उसमे गणेश जी की पूजा जरूर करते है तो गणेश जी वस्त्र, आभूषण इत्यादि से सजा कर पीले आसान  पर स्थापित जरूर करें। और दूसरी तरफ लड्डू गोपाल जी को भी सजाकर कर आसान पर स्थापित करें। अष्टदल कमल बनाकर कलश की स्थापना करें। माता को तिलक लगाकर चावल अर्पण करें और गणपति जी को भी तिलक लगाकर चावल और लड्डूगोपाल को तिलक लगाकर चावल अर्पण करें। लाल पुष्प अर्पित करें और दिप को प्रज्योलित करे।

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