ॐ सूर्य देवं नमस्ते स्तु गृहाणं करूणा करं।
अर्घ्यं च फ़लं संयुक्त गन्ध माल्याक्षतै युतम्।।
छठ पूजा भारत के कई राज्यों में मनाये जाने वाला एक प्रसिद्द त्यौहार है छठ पूजा या छठ पर्व का कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को को मनाया जाता है। इसे सूर्य षष्ठी के नाम के नाम से भी जानते है। छठ पूजा का महापर्व दीपावली के 6 दिन बाद आता है। यह सूर्य देव को समर्पित है, उत्तर भारत में यह पर्व खासा लोकप्रिय है। छठ पूजा के दिन सूर्य देव और उनकी बहन छठी मैया की पूजा व उन्हें अर्घ्य देने का विधान है। छठ पूजा मुख्य तौर से सूर्य देव की उपासना का पर्व है इस दौरान व्रती 36 घंटो का व्रत रखते है। आज हम इस लेख में आपको साल 2022 छठ पर्व की शुभ तिथि, छठ पूजा क्यों मनाया जाता है, पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इस व्रत के कुछ नियमो के बारे में कुछ बताएँगे।
छठ पूजा |
छठ पूजा शुभ मुहूर्त 2022 (Chhath Puja 2022 Date)
- साल 2022 में छठ पूजा का पर्व - 30 अक्टूबर रविवार के दिन मनाया जायेगा।
- षष्ठी तिथि प्रारम्भ होगा - 30 अक्टूबर प्रातःकाल 5 बजकर 49 मिनट पर।
- षष्ठी तिथि समाप्त होगा - 31 अक्टूबर प्रातःकाल 3 बजकर 27 मिनट पर।
- नहाय खाय की तिथि होगा- 28 अक्टूबर दिन शुक्रवार।
- खरना की तिथि होगा - 29 अक्टूबर दिन शनिवार।
- सूर्य को अर्घ्य दिया जायेगा - 30 अक्टूबरदिन शुक्रवार।
- छठ पर्व का समापन होगा - 31 अक्टूबर दिन शनिवार।
- अस्तगामी सूर्य को अर्घ्य देने का मुहूर्त होगा - 30 अक्टूबर शाम 5 बजकर 37 मिनट पर
- उषा अर्घ्य का शुभ मुहूर्त होगा - 31 अक्टूबर सुबह 6 बजकर 31 मिनट पर।
छठ पूजा कब है (chhath puja kab hai)
यह सूर्य देव को समर्पित पर है, उत्तर भारत में यह पर्व खास लोकप्रिय है। हर साल छठ पर्व कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि यानि छठी के दिन मनाया जाता है। इसे सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। पंचांग के अनुसार छठ पूजा का त्यौहार दीपावली के 6 दिन बाद आता है। छठ पूजा के दिन सूर्य देव और उनकी बहिन छठी मैया की पूजा व उन्हें अर्घ्य देने का विधान है। साल 2022 छठ पूजा का पर्व 30 अक्टूबर रविवार के दिन है।
छठ पूजा क्यों मनाया जाता है (chhath puja kyu manaya jata hai)
पुराणों के अनुसार छठ पूजा की शुरुआत रामायण के दौरान हुई थी। रावण का वध कर जब प्रभु श्री राम माँ सीता वनवास से अयोध्या लौटे तब उह्नोने इस उपवास का पालन किया था। ऐसा भी मानते है की कर्ण जो सूर्यदेव के पुत्र है व सत्य भगवान के परम भक्त थे और पानी में घंटो खड़े रहकर अर्घ्य देते थे। पांडुओं के स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए द्रोपती भी सूर्यदेव कराती थी कहते है की उसकी इसी श्रध्या के कारण पांडुओं को अपना राज्य फिर से मिला था।
chhath puja kyu manaya jata hai
छठ पूजा एक प्राचीन हिंदू पर्व है, जिसे मुख्य रूप से भारत के बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया की उपासना के लिए समर्पित है।
छठ पूजा में सूर्य देव, जो ऊर्जा और जीवन के स्रोत माने जाते हैं, की आराधना की जाती है, ताकि परिवार की सुख-समृद्धि, अच्छे स्वास्थ्य और संतान की प्राप्ति हो सके।
इस पर्व का वैज्ञानिक महत्व भी है, क्योंकि यह सूर्य की उपासना के माध्यम से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने और मानसिक व शारीरिक शुद्धि पर बल देता है।
छठ पूजा चार दिनों तक चलता है, जिसमें भक्त उपवास रखते हैं, पवित्र स्नान करते हैं, और विशेष रूप से निर्मित प्रसाद अर्पित करते हैं।
इस पूजा में व्रत रखने वाले लोग सूर्यास्त और सूर्योदय के समय सूर्य को अर्घ्य देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
छठ पूजा कथा और इतिहास (Chhath Puja Story and History in Hindi)
इस पर्व से जुडी एक और कहानी प्रचलित है। राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी निःसंतान थे । जिस कारण वह बहुत दुःखी थे। तब महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्र कामेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी। जब उन्होंने यह यज्ञ किया तब महर्षि कश्यप ने यज्ञ के प्रसाद के रूप में रानी मालिनी को खीर खाने को दी। कुछ समय पश्चात् ही राजा और रानी को पुत्र की प्राप्ति हुई। लेकिन उनकी किस्मत इतनी खराब थी की वह बच्चा मृत अवस्था में पैदा हुआ। राजा जब अपने पुत्र का मृत दे लेकर शमसान गए और उन्होंने अपने प्राणो की ही आहुति देनी चाही तभी उनके सामने देवसेना यानि की छठ देवी वहाँ पर प्रकट हुई। जिन्हे षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है।
उन्होंने राजा को बताया की अगर कोई सच्चे मन से विधिवत उनकी पूजा करे तो उस व्यक्ति के मन की इच्छा पूरी होती है। देवी ने राजा को उनकी पूजा करने की सलाह दी। इस बात को सुनकर राजा ने देवी षष्ठी की सच्चे मन से पूजा की और व्रत कर उन्हें प्रसन्न किया। राजा से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें पुत्र प्राप्ति वरदान दिया। कहते है की राजा ने जिस दिन वह पूजा की थी वह कार्तिक शुक्ल षष्ठी का दिन था और उस दिन से आज तक इस पूजा की प्रथा चलती आ रही है।
छठ पूजा सामग्री
केले के पत्ते, गन्ने, कुछ फल, केले, इलाइची, लौंग, हल्दी कुमकुम लगे अक्षत, कपूर, सिंदूर, हल्दी पौधा सहित, घी का एक छोटा दिया, एक कटोरी में दूध, जल पात्र, कलश, पूजा के लिए पान के पत्ते, कच्चे धागे से बनी एक माला, सुपारी, अगरबत्ती, धुप, कुछ मेवे, मूली पत्तों के साथ, एक सूप और एक टोकरी, घंटी, भोग के लिए रोटी, चने की दाल, खीर, लौकी की सब्जी और ठेकुआ, इसके साथ छठ पूजा की कथा पुस्तक और एक थाली में दही, छुट्टे फूल, पूजा का नारियल और एक चौकी।
छठ पूजा कैसे मनाया जाता है और व्रत विधि
आज भी लोग इस व्रत को संतान प्राप्ति और अपने घर वालो की सुख-समृद्धि तथा दीर्घायु के लिए करते है। छठ पूजा के चार महत्वपूर्ण दिन होते है।
- नहाय खाय - छठ पूजा का पहला दिन होता है।
- खरना - छठ पूजा का दूसरा दिन है खरना।
- संध्या अर्घ्य - यह तीसरा दिन संध्या अर्घ्य का मुख्य दिन है।
- उषा अर्घ्य - छठ पूजा के चौथे दिन उगते सूरज की पूजा करते है।
छठ पूजा पहला दिन नहाय खाय
छठ पर्व की पूजा चार दिनों तक चलती है इसलिए इस चार दिवसीय उत्सव भी कहा जाता है। इस पर्व की शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से होकर कार्तिक शुक्ल सप्तमी तिथि को इसका समापन किया जाता है। नहाय खाय छठ पूजा का पहला दिन होता है इस दिन स्नान के बाद घर की साफ-सफाई की जाती है और सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है। इस दिन चना दाल लौकी की सब्जी रोटी के साथ खाया जाता है। पकाये खाने को सबसे पहले व्रती खाते है और उसके बाद घर के बाकि सदस्य कहते है।
छठ पूजा का दूसरा दिन खरना
हिन्दू पंचांग के अनुसार छठ पूजा का खरना कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होता है। खरना छठ पूजा का दूसरा महत्वपूर्ण दिन होता है। इस दिन निर्जल उपवास रखा जाता है। यानि की इस दिन व्रत रखने वाला व्यक्ति जल ग्रहण नहीं करता इस दिन संध्याकल के समय गुड़ की खीर, घी लगी हुई रोटी और फल प्रसाद के तौर पर ग्रहण किये जाते है। इस लोहंडा भी कहा जाता है। उसी रत छठी मैया के लिए घी से बनाई मिठाई, ठेकुआ प्रसाद के तौर पर बनाते है।
छठ पूजा का तीसरा दिन संध्या अर्घ्य
छठ पूजा के तीसरे दिन शाम के समय सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है। अर्घ्य देने के लिए बाँस की टोकरी में फल, ठेकुआ, चावल से बने लड्डू आदि चींजो से सूप सजाया जाता है और व्रत करने वाला व्यक्ति अपने परिवार के साथ संध्याकाल के समय सूर्य भगवान को अर्घ्य देता है। सूर्यदेव को जल और दूध का अर्घ्य देने के बाद सजाये गए सूप से छठी मैया की पूजा किया जाता है। सूर्य उपासना के बाद छठी मैया के गीत गाकर व्रत कथा सुना जाता है।
छठ पूजा का चौथा दिन उषा काल अर्घ्य
छठ पर्व के अंतिम दिन सुबह के समय सूर्य देव को अर्घ्य देने का विधान है। छठ पर्व के चौथे दिन प्रातःकाल सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए किसी नदी या घाट पर पहुंचकर उगते हुए सूरज को अर्घ्य दिया जाता है और छठ मैया से अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।
छठ पूजा का महत्त्व
छठ पूजा हिन्दू धर्म में मनाया जाने वाला एक बड़ा त्यौहार है। इसमें सूर्य भगवान का पूजन किया जाता है। ये पर्व पूर्वी भारत जैसे बिहार, जहरखांड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में भी मनाया जाता है। छठ एक प्राचीन हिन्दू वैदिक उत्सव है जो भगवान सूर्य और देवी छथि को समर्पित है। यह चार दिन का उत्सव होता है जो कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल सप्तमी को समाप्त होता है। पृथ्वी पर जीवन बनाए रखने के लिए भगवान सूर्य का धन्यवाद करने के लिए यह पूजा किया जाता है। महिलाये भहगवां सूर्य और माता छथि का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस दिन उपवास रखती है। इस दिन सुख-समृद्धि और प्रगति की प्राप्ति के लिए भगवान सूर्य का पूजा किया जाता है। सूर्य को लौकिक देवता और ऊर्जा और जीवन शक्ति के प्रदाता के रूप में माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।
छठ पूजा नियम
वैज्ञानिक और ज्योतिषी दोनों ही दृष्टिकोण दे छठ पर्व बेहद महत्वपूर्ण होता है। सूर्य के प्रकाश में कई रोगो को नष्ट करने की क्षमता होती है। इसके प्रभाव से व्यक्ति को आरोग्य और तेज की प्राप्ति होती है। छठ पूजा का व्रत करने वाले व्यक्ति इस पर्व के चारो दिन साफ स्वच्छ कपड़े पहनने चाहिए। इस व्रत के नियमो के अनुसार व्रत करने वाले व्यक्ति और घर के सदस्यों को सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए। पूजा के लिए बांस से बने टोकरी और सूप इस्तेमाल करना चाहिए।
षष्ठी देवी कौन है? और क्यों किया जाता है इनका पूजा इस दिन
भगवान सूर्य देव जिन्हे आदित्य भी कहा जाता है तथा जिनके प्रकाश से इस सम्पूर्ण सृष्टि में जीवन चक्र चलता है। जिनकी किरणों से ही इस धरती में प्राण का संचार होता है। ऐसे कृपा के भंडार भगवान सूर्य देव की इस अपार कृपा के लिए सूर्य षष्ठी अथवा छठ पूजा का त्यौहार भगवान सूर्य को पूर्ण रूप से समप्रित है। यह पर्व भगवान सूर्य के प्रति मनुष्य की प्रियव्रता को दर्शाता है। छठ पूजा के इस महापर्व में भगवान सूर्य के साथ-साथ देवी षष्ठी की भी उपासना किया जाता है।
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार इस सृष्टि की अधिठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को 6 भागो में विभाजित किया है। इनके छठे अंश को सर्व श्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है। छठे आशा में प्रकट होने के कारण यह षष्ठी देवी कहलाती है। इन्हे विष्णु माया तथा बालदा भी कहा जाता है। उत्तम व्रत का पालन करने वाली इन सातवीं देवी को ब्रह्म देव की मानस पुत्री तथा स्वामी कार्तिके का पत्नी कोने का सौभाग्य प्राप्त है।
कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी को इन्ही देवी की उपासना किया जाता है। बच्चे के जन्म के छठे दिन भी इसी देवी की पूजा करने का विधान है। छठ पूजा का यह महान पर्व सम्पूर्ण भारत वर्ष के उत्तर प्रदेश तथा बिहार में अत्यंत धूम धन के साथ मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है की छठ पूजा पर व्रत रखने से स्त्रियों को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। इस पर्व को सूर्य उपासना के साथ-साथ सूर्य देव की दोनों शक्तियों उषा तथा प्रत्युषा की भी पूजा किया जाता है। प्रातःकाल उषा देवी की तथा संध्या कल में देवी प्रत्युषा की पूजा किया जाता है। यह महँ पर्व चार दिवस तक चलता है ।
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