दशहरा भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी प्रमुख त्यौहारों में से एक है दशहरे का पर्व आश्विन माह के शुक्ल पक्ष पक्ष की दशमी तिथि को अपराह्न काल में मनाया जाता है। कुछ जगहों पर इसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतिक है, पौराणिक कथाओं के अनुसार जहाँ एक ओर भगवान श्री राम ने रावण का वध तो वही माँ दुर्गा ने महिषासुर का संहार भी किया था। इसलिए विजयादशमी का पर्व भगवान श्री राम की विजय और दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। आज इस लेख में हम आपको साल 2021 में मनाये जाने वाले विजयादशमी, दशहरा पर्व की तिथि, विजयादशमी या दशहरा क्यों मनाया जाता है, विजयादशमी या दशहरा कब मनाया जाता है? विजयादशमी क्यों मनाई जाती है, पूजा का शुभ मुहूर्त, पुज विधि और इसके महत्त्व के बारे में बताएँगे।
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दशहरा कब और क्यों मनाया जाता है |
दशहरा कब मनाया जाता है (Dussehra Kab Manaya Jata Hai)
इस समय शारदीय नवरात्र का समय चल रहा है। प्रत्येक दिन नौ दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की तिथियों के अनुसार पूजा-अर्चना किया जाता है। कलश स्थापना या घट स्थापना से प्रारम्भ होने वाली नवरात्रि का समापन दशहरा यानि की विजयादशमी के दिन होता है। दशहरे का त्यौहार पुरे भारत में बड़े धूम धाम के साथ मनाया जाता है। यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जित है। दशहरा हर साल आश्विन मास की दशमी तिथि को मनाया जाता है और इस दिन माँ दुर्गा की मूर्ति विसर्जन भी किया जाता है।
जो लोग नवरात्र में अपने घरो में माँ दुर्गा की मिट्टी की प्रतिमा स्थापित वह लोग दशमी तिथि में माँ दुर्गा का विसर्जन करते है। माँ दुर्गा को हर्ष पूर्वक विदा करना चाहिए इस कामना के साथ की वे अगले वर्ष भी हमारे घर पधारे और हमारे जीवन को खुशियों से भर दें। वही दशहरे को शाम को रावण दहन जाता है और इस दिन शास्त्र पूजा और भगवान श्री राम जी की पूजा, देवी अपराजिता की पूजा तथा सम्मी के पेड़ की पूजा का भी विधान है।पंचांग के अनुसार दशहरा का पर्व दीवाली से 20 दिन पूर्व मनाया जाता है। साल 2021 दशहरा का पर्व 15 अक्टूबर 2021 दिन शुक्रवार को मनाया जायेगा।
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दशहरा तिथि व शुभ मुहूर्त 2021 (Happy Dussehra 2021)
- 👉 साल 2021 में विजयादशमी दशहरे का पर्व - 15 अक्टूबर शुक्रवार के दिन मनाया जायेगा।
- 👉 दशमी तिथि प्रारंभ होगा - 14 अक्टूबर 2021 को रात्रि 9 बजकर 51 मिनट से लेकर
- 👉 दशमी तिथि समाप्त होगा - 15 अक्टूबर 2021 को रात्रि 8 बजकर 21 मिनट तक रहेगा।
- 👉 विजयादशमी विजय मुहुर्त होगा - 15 अक्टूबर 01 बजकर 57 मिनट से 02 बजकर 42 मिनट तक।
- 👉 पूजा का अपराह्न मुहूर्त होगा - 15 अक्टूबर को दोपहर 2 बजकर 2 मिनट से 2 बजकर 48 मिनट तक।
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दशमी तिथि दो दिन पड़ने पर कब मनाया जाता है दशहरा
अगर दशमी तिथि दो दिन पड़ती है तो हमारा शास्त्र किस दिन मानाने की इजाजत देता है। शास्त्रों के अनुसार दशहरा उस दिन मनाना चाहिए जिस दिन दशमी तिथि अपराह्न काल व्यापनी हो यानि की दोपहर पड़ रही हो या इसके अलावा जिस दशमी तिथि विजय मुहूर्त व्यापनी हो उस दिन हमें विजयादशमी यानि दशहरे का पर्व मनाना चाहिए। तो इस हिसाब से देखे तो दशहरे का पर्व 15 अक्टूबर को मनाना शास्त्र के अनुसारसही होगा क्युकी 15 अक्टूबर को दोपहर के समय दशमी तिथि होगी और 15 अक्टूबर को ही विजय मुहूर्त भी है। विजय मुहूर्त बहुत ही शुभ मुहूर्त होता है। इस समय कोई भी पूजा या कोई भी शुभ कार्य किया जाय तो उसका अच्छा और शुभ परिणाम मिलता है।
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दशहरा पर्व पूजा विधि
पौराणिक कथाओं के अनुसार दशहरे के दिन भगवान श्री राम के साथ लक्ष्मण, भारत, शत्रुघ्न की पूजा, साथ ही इस दिन माँ दुर्गा और शमी के वृक्ष की पूजा का खास महत्त्व है। इस दिन प्रातःकाल माँ दुर्गा की विधिवत पूजा कर शारदीय नवरात्रों का विसर्जन और पारण करना चाहिए। अपराह्न काल के समय ईशान कोण की भूमि को स्वच्छ कर चन्दन व कुमकुम से अष्टदल कमल बना ले और सभी पूजन सामग्री के साथ देवी अपराजिता और जया विजया देवियों का पूजन करें।
मान्यता है की यदि नवरात्र के नौ दिनों तक रोजाना शाम के समय शमी के वृक्ष का पूजन किया जाय तो व्यक्ति को अयोग्य व धन की प्राप्ति होती है। क्युकी माना जाता है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने लंका विजय से पहले शमी के वृक्ष के सामने नतमस्तक होकर विजय प्राप्ति के लिए प्रार्थना की थी और उन्हें विजय प्राप्त हुआ था।
दशहरे पर शस्त्र पूजन विधि
इस दिन प्रातःकाल उठकर परिवार के सभी सदस्य स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। सर्वप्रथम सभी शास्त्रों को पूजा के लिए निकल लें। सभी शास्त्रों पर गंगाजल छिड़कर उन्हें पवित्र करें। इसके बाद सभी शास्त्रों पर हल्दी या कुमकुम से तिलक करें और पुष्प अर्पित करें। शस्त्र पूजा के समय फूलों के साथ समि के पत्ते भी अर्पित करें।
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विजयादशमी का महत्त्व (Vijayadashami Ka Mahatv)
शास्त्रों में विजयादशमी का बड़ा ही धार्मिक महत्त्व बताया गया है यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतिक है मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री राम द्वारा रावण को परास्त कर असत्य पर सत्य की जीत हुई थी। इसी वजह से इस दिन को विजयादशमी या दशहरे के रूप में मनाया जाने लगा। कुछ जगहों पर यह दिन किसानों के घर नयी फसल के आने के रूप में महत्त्व रखता है तो वही भारतीय परंपरा के अनुसार इस दिन शमी के वृक्ष का पूजा बहुत ही महत्वपूर्ण और लाभकारी माना गया है आयुर्वेदिक रूप से भी शमी एक गुणकारी औषधि के रूप में प्रचलित है।
दशहरा या विजय दशमी के दिन श्री राघवेन्द्र सरकार की पूजा आराधना किया जाता है। कलिकाल के भवसागर से पार लगाने वाले दो अक्षर का पवित्र नाम है राम। जिसके जप से मनुष्य को भक्ति और मुक्ति सहज ही प्राप्त हो जाती है और सभी कष्ट दूर हो जाते है। वहीं इस दिन किसान ने फसलों का जश्न मनाते है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन हथियारों का पूजा भी किया जाता है। योद्धा इस दिन हथियारों की पूजा करते हैं और ऐसा कर वह अपनी जीत का जश्न मनाते है।
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दशहरा क्यों मनाया जाता है (Dussehra Kyu Manaya Jata Hai)
आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को दशहरे के रूप में मनाया जाता है। भगवान श्री राम दिन रावण का वध किया था तथा देवी दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के युद्ध के उपरांत महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। दशहरा वर्ष की तीन अत्यंत शुभ तिथियों में से एक है, अन्य दो है चैत्र शुक्ल एवं कार्तिक शुल्क की प्रतिपदा।
इस दिन लोग शास्त्र पूजा और नया कार्य प्रारम्भ करते है। (जैसे अक्षर लेखन आरम्भ करना, नया उद्योग आरम्भ, बीज बोना आदि) ऐसा विश्वास है की इस दिन जो कार्य आरम्भ किया है उसमे विजय मिलती है। प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे।
दशहरा अथवा विजय दशमी भगवान श्री राम की विजय के रूप में मनाया जाता है अथवा दुर्गा पूजा के रूप में दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा का पर्व है। शस्त्र पूजन की तिथि है। भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है,शौर्य जी उपासक है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरत प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है।पौराणिक कथाओं के अनुसार तारो के उदय होने का जो सांयकाल है।
उसका विजय से सम्बन्ध है जो सारे काम को पूरा करने वाला है। जो व्यक्ति आदर के साथ इस दिन व्रत रखता है वह सभी कामो में सफल होता है।सुबह के समय कई स्थानों पर रावण का पूजा होता है। दशहरे में रावण के दस सिर इन दस पापों के सूचक माने जाते है - काम, क्रोध, लोभ, मोह, हिंसा, आलस्य, झूठ, अहंकार, मद और चोरी। इस सभी पापों से हम किसी ना किसी रूप में मुक्ति चाहते है और सांयकाल में इसे जलाया जाता है।
इसे रावण दहन के नाम से भी जाना जाता है। दशहरा पूजन में उसके ऊपर जल,रोली, चावल,मिली, गुड़, दक्षिणा, फूल और जाऊ के ज्वारे चढ़ाया जाता है। इस दिन नीलकंठ के दर्शन भी शुभ माना जाता है। व्रती को संध्या के समय में भोजन करना चाहिए,भोजन के पूर्व ब्राह्मण को भोजन करना चाहिए।
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