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अटल बिहार वाजपेयी जयंती और पुण्यतिथि कब है? | Atal Bihari Vajpayee in Hindi

बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे है 

टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ

गीत नया गाता हूँ..........

इसी तरह से ना जाने कितने कविताओं से लोगों के दिलों पर राज करने वाले भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी जी Atal Bihari Vajpayee एक अनुभवी भारतीय राजनीतिज्ञ थे, अटलजी भारत के 10वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण किया। अटल बिहारी जी एक ऐसे महान व्यक्ति थे जिनके विरोधी भी उनका दिल से सम्मान किया करते थे। एक सच्चे राजनेता के रूप में अटल जी ने अपने मेहनत, लगन और निष्ठा के बल पर अपनी एक अलग छवि बनाई और अपने विचारों को शब्दों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने की अद्भुत कला ने राजनीति के क्षेत्र में एक अलग पहचान दिलाई। 

उनके प्रधानमंत्रीय कार्यालय में तीन गैर-लगातार शामिल हैं - 15 दिन के लिए (16 मई 1996 से 1 जून 1996 तक), 13 महीने की अवधि (19 मार्च 1998 से 26 अप्रैल 1999 तक) के लिए, दूसरा और पांचवा वर्ष (13 अक्टूबर 1999 से 22 मई 2004 तक)। उनका चयन इस तथ्य से प्रभावित हो सकता है कि वह अपने छात्र जीवन के बाद से भारत की सवतंत्रता संग्राम में एक कार्यकर्त्ता रहे थे। उन्होंने हिंदी साप्ताहि पंचजन्य, हिंदी माध्यमिक, राष्ट्रधर्म और वीर अर्जुन और स्वदेश जैसे दैनिक समाचार पत्र  का प्रकाशन और संपादक के रूप में कार्य किया। 1951 में वह भारतीय जनसंघ के संस्थापकों और सदस्यों में से एक थे। 

आज हम इस लेख में अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन परिचय, atal bihari vajpayee jeevan parichay in hindi, जयंती, पुण्यतिथि, atal bihari vajpayee history in hindi, अटल बिहारी वाजपेयी की जीवनी, राजनैतिक सफर, atal bihari vajpayee in hindi, अटल बिहारी वाजपेयी जीवन परिचय, biography of atal bihari vajpayee in hindi, atal bihari bajpai biography in hindi, कार्यकाल, पद, प्रधानमंत्री के रूप में भूमिका, उनका कथन, कविता, कार्य, पुरस्कार और उनकी मृत्यु कैसे हुई इस बारे में बताएँगे। 

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अटल बिहार वाजपेयी  जयंती और पुण्यतिथि कब है? | Atal Bihari Vajpayee in Hindi
अटल बिहार वाजपेयी जयंती और पुण्यतिथि 

अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती कब है? (atal bihari vajpayee jayanti date) 

भारतीय राजनीति में अपनी एक अलग छाप छोड़ी है। भारतीय राजनीति  में एक ऐसा नाम जिनके स्वभाव व आदर्शों के उनके विरोधी भी मुरीद है। वह है अटल बिहारी वाजपेयी। अटल जी अपनी मात्र भाषा के बड़े प्रेमी थे, याद रहे वे पहले नेता थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में भाषण दिया था। अटल जी का एक अन्य भाषण जिसमें बहुत ही सुन्दर बात कही गयी है "सरकारें आएंगी-जाएगी, सत्ता आती है जाती है मगर यह देश अजर-अमर रहने वाला है आओ मिकार इस देश के लिए काम करें"। इस प्रकार के विचार रखते थे अटल बिहारी वाजपेयी जी। अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती हर वर्ष 25 दिसंबर को पूरे देश भर में मनाई जाती है।

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अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन परिचय (atal bihari vajpayee jeevan parichay in hindi) 

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री कृष्ण बिहारी वाजपेयी एवं माता का नाम श्रीमती कृष्णा देवी था। अटल जी के दादा पंडित श्यामलाल वाजपेयी उत्तर प्रदेश में अपने पैतृक गांव बटेश्वर से ग्वालियर गए थे। उनके पिता एक स्कूल मास्टर और एक अच्छे कवि थे। शायद अपने पिता से ही अटल जी को कविता लिखने का शौक हो गया था।

अटल बिहारी वाजपेयी ने ग्वालियर में सरस्वती शिशु मंदिर गोरखी से अपनी पढाई पूरी की। उन्होंने ग्वालियर में विक्टोरिया कॉलेज से हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी में स्नातक किया। जो इस समय लक्ष्मीबाई कॉलेज के नाम से विख्यात है। इसके बाद उन्होंने डीएवी (DAV) कॉलेज कानपुर से पढ़ाई की और उन्होंने एम.ए. राजनीति विज्ञान में प्रथम श्रेणी की डिग्री को अर्जित की।

अटल जी को अपने शुरूआती दौर से ही राजनीति से बहुत लगाव था। इसलिए वे जब केवल मात्र 15 वर्ष के थे, तब उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ गए और फिर आगे चलकर उन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) के दौरान उन्हें गिरफ्तार (Arrest) भी किया गया और इसी वजह से उन्हें 23 दिन जेल में भी  पड़े थे। दरअसल, अटल जी का राजनीति में आगमन 1944 में तब हुआ जब उन्हें ग्वालियर में आर्य समाज का महासचिव पद पर नियुक्त किया गया।

उनके करीबी रिश्तेदारों और दोस्तों द्वारा उन्हें प्यार से बापजी कहा जाता है। वह अपने पुरे जीवन में अकेले रहे और बाद में नामिता नाम की बेटी को अपना लिया। वह भारतीय संगीत और नृत्य पसंद करते हैं अटल बिहारी वाजपेयी प्रकृति के भी प्रेमी हैं और हिमांचल प्रदेश में मनाली उनकी पसंदीदा रिटीटस में से एक है। 

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अटल बिहारी वाजपेयी का राजनीतिक सफर

भारत छोड़ो आंदोलन के समय अगस्त 1942 में राजनीति के साथ उनका पहला मुठभेड़ हुआ। वाजपेयी Vajpayee और उनके बड़े भाई प्रेम को 23 दिनों के लिए गिरफ्तार किया गया था और बाद में वह भारतीय जनता संघ में शामिल हो गए। जब 1951 में इसे नवगठित किया गया था, पार्टी नेता श्रीमान श्यामा प्रसाद मुख़र्जी ने उन्हें प्रेरित किया।

इस उम्र तक आकर उन्होंने फैसला कर लिया कि देश की सेवा के लिए वो शादी नहीं करेंगे और फिर आगे चलकर 1947 में जब अपना देश आजाद हुआ तब वे RSS के फूल टाइम प्रचारक बन गए और फिर इसी साल उन्हें RSS का विस्तारक बनाकर उत्तर प्रदेश भेज दिया गया। जहाँ पर उन्होंने कई सारे समाचार पत्रों के के लिए लिखना भी शुरू कर दिया था।

अब उनका कद धीरे-धीरे राजनीति के गलियारों में बढ़ाने लगा था। 1957 में वह पहली बार भारतीय जनसंघ पार्टी में रहते हुए दो अलग-अलग जगहों से लोकसभा का चुनाव लड़े जिसमें वह मथुरा से तो नहीं जीत सके लेकिन बिलीरामपुर से जीतने में वे कामयाब रहे और उसी समय उनके भाषण देने की कमाल की क्षमता को देख कर उस वक्त के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने ने कहा अटल बिहारी जरूर ही किसी दिन भारत के प्रधानमंत्री बनेगे।

दीनदयाल उपाध्याय के मृत्यु के अब्द से अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनसंघ पार्टी का मुख्य चेहरा बन चुके थे। अब इस पार्टी को आगे ले जाने की जिम्मेदारी भी अटल जी के कंधो पर थी। हालाँकि आगे चलकर 1975 से 1977 में इमरजंसी के दौरान उनको भी कई सारे नेताओं के साथ गिरफ्तार किया गया। लेकिन जब 1977 में दोबारा से चुनाव हुए तो जनता दल ने सरकार बनाई जिसमे मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने और अटल जी को उस वक्त का विदेश मंत्री बनाया गया।

अटल जी ही पहले ऐसे भारतीय विदेश मंत्री थे जिन्होंने United Nations General Assembly में हिंदी भाषा में अपना भाषण दिया था। हालाँकि 1979 में जनता दल की सरकार गिर गई तब तक अटल जी खुद को एक सम्माननीय राजनेता के तौर पर खुद को स्थापित कर चुके थे। फिर 1980 में अटल जी ने अपने ला,लम्बे समय से मित्र रहे लाल कृष्ण आडवाणी और भैरव सिंह शेखावत के साथ मिककर भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की और इस तरह से वे पार्टी के पहले अध्यक्ष नियुक्त किये गए।

1984 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को सिर्फ दो सीट ही हासिल हुई। जिसमें एक अटल जी को और दूसरी लाल कृष्ण आडवाणी को लेकिन इस हार से अटल जो को कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ा वे अपना काम करते रहे और फिर धीरे-धीरे आगे चलकर 1996 तक अटल जी की पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और वह पहली बार 16 मई  1996 को भारत के प्रधानमंत्री बने। लेकिन दुर्भाग्यवश यह सरकार चुकी गठबंधन की सरकार थी इसलिए ज्यादा नहीं चल सकी और सिर्फ 13 दिन के बाद अटल जी ने इस्थिफा देकर सरकार को गिरा दिया।

फिर आगे चलकर 1998 में जब एक बार फिर से चुनाव हुए तो यहां पर BJP ने NDA के साथ मिलकर एक बार फिर से सरकार बनाई लेकिन यह सरकार भी सिर्फ 13 महीने में ही गिर गई। सरकार गिरने के कुछ समय बाद फिर से चुनाव कराये गए फिर इस बार BJP के नेतृत्व वाले NDA गठबंधन को 303 सीट मिली और इस तरह से 13 अक्टूबर 1999 को अटल जी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री की शपथ ली और इस बार वे अपना टर्म पूरा करने में भी कामयाब रहे।

अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने बहुत सारे अच्छे काम किये जिससे भारत की इकोनॉमिक भी काफी आगे बढ़ सकी लेकिन 2004 की चुनाव में हार के बाद से उन्होंने अपने उम्र को देखते हुए राजनीति से सन्यास ले लिया। लेकिन आज भी हर पार्टी के राजनेता उन्हें अपना आदर्श मानते है और देश के हित में किये गए शानदार काम के लिए उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया जा चूका है।

1995 में कश्मीर में माना जाता है कि निचले स्तर के ईलाज के खिलाफ उन्हें उपवास के रूप में मौत की सजा सुनाई गई थी। इस हड़ताल के दौरान श्रीमान प्रसाद मुखर्जी का जेल में निधन हो गया। वाजपेयी ने कुछ समय कानून का अध्ययन किया था, लेकिन पाठ्यक्रम पूरा नहीं किया क्योंकि वह पत्रकारिता के प्रति अधिक इच्छुक थे। अटल जी एक ऐसे नेता है जो चार अलग अलग प्रदेशों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात व दिल्ली से सांसद चुने गए थे। 

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अटल बिहारी वाजपेयी का संसद से प्रधानमंत्री बनने तक का सफर और अटल बिहारी वाजपेयी पिछले कार्य काल

  • 1193 में अटल जी चुनाव जीतकर संसद में विपक्ष के नेता बने। 
  • मई 1996 में बीजेपी को जीत मिली और 16 मई 1996 को अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किया। लेकिन दूसरे दल के समर्थन न करने के कारण अटल जी को मात्र 13 दिनों में ही अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।
  • 2 साल बाद एक बार पुनः 19 मार्च 1998 को एक साल के लिए प्रधानमंत्री बने।
  • मई 1999 में हुए आम चुनाव में भाजपा को जीत मिली और अटल जी पुनः एक बार फिर से प्रधानमंत्री बने और इस बार वह अपने कार्यकाल को पूरा किये।  
  • कारगिल में 1999 के भारत-पाक युद्ध में भारत की जीत ने अटल जी की सरकार को मजबूत किया। कारगिल युद्ध में पाकिस्तान के छक्कों को छुड़ाने और हराने वाले भारतीय सैनिकों का हौसला और मनोबल बढ़ाने के लिए अटल जी अग्रिम चौकी तक खुद चलकर गए थे।
  • अटल जी ने अपने भाषण में कहा था - वीर जवानों! 'हमें आपकी वीरता पर गर्व है'। आप "भारत माता" के 'सच्चे सपूत' हैं। पूरा 'देश' आपके साथ है। हर 'भारतीय आपके' आभारी है।"
  • 2000 में बिल क्लिंटन भारत दौरे पर आए जिससे भारत-अमेरिका संबंध मधुर बने सके। 
  • 20021 में पाक राष्ट्रपति परवेज मुसरफ को भारत आने का बुलावा भेजा। अटल जी चाहते थे की भारत-पाक रिश्ते को मधुर बनाया जाय और आगरा में हुई यह वार्ता आज भी लोगों को याद है। इन्होने ही लाहौर के लिए बस भी शुरू की और इनके इस कदम की बड़ी सराहनी हुई। 

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अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा आयोजित पद 

  • 1957 में उन्हें दूसरे लोकसभा के सदस्य के रूप में चुना गया था।
  • 1957 से 1977 तक वह संसद में भारतीय जनसंघ के नेता थे।
  • 1962 में वह राज्यसभा के सदस्य बन गए।
  • 1966 से 1967 तक वः सरकारी आश्वासन समिति के अध्यक्ष थे।
  • 1967 में उन्हें दूसरे कार्यकाल के लिए चौथी लोकसभा के सदस्य के रूप में चुना गया।
  • 1977 में चौथी अवधि के लिए उन्हें 6 वें लोकसभा का सदस्य चुना गया था।
  • 1977 से 1979 तक वह केंद्रीय मामलों के केंद्रीय कैबिनेट मंत्री थे।
  • 1977 से 1980 तक वह जनता पार्टी के संस्थापकों और सदस्यों में से एक थे।
  • 1980 में उन्हें पांचवीं अवधि के लिए 7 वें लोकसभा का सदस्य चुना गया।
  • 1980 से 1986 तक वह भारतीय जनता पार्टी  अध्यक्ष थे।
  • 1980 से 1984 तक, 1986 में और 1993 से 1996 तक वह संसद में भारतीय जनता पार्टी के नेता थे।
  • 1986 में वह राज्यसभा बन गए उन्हें सामान्य प्रयोजन समिति का सदस्य बनाया गया था।
  • 1988 से 1990 तक वह व्यापार सलाहकार समिति और हॉउस कमेटी के सदस्य बने रहे।
  • 1990 से 1991 तक वह याचिकाओं की समिति के अध्यक्ष थे।
  • 1991 में वे छठे कार्यकाल के लिए 10वीं लोकसभा के सदस्य चुने गए।
  • 1991 से 1993 तक वह लोक लेखा पर समिति के अध्यक्ष थे।
  • 1993 से 1996 तक वह विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष थे। वह लोकसभा में विपक्ष के नेता भी थे।
  • 1996 में उन्हें सातवे अवधि के लिए 11 वें लोकसभा का सदस्य चुना गया। 
  • 16 मई 1996 से 31 मई 1996 तक उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में अपना पहला कार्यकाल दिया।
  • 1996 से 1997 तक वह लोकसभा में विपक्ष के नेता थे।
  • 1997 से 1998 तक वह विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष थे।
  • 1998 में उन्हें आठवें पद के लिए 12 वीं लोकसभा का सदस्य चुना गया।
  • 1998 से 1999 तक उन्होंने दूसरी बार भारत के प्रधानमंत्री के रूप सेवा की। वह विदेश मंत्री भी थे और मंत्रालयों और विभागों के प्रभारी थे।
  • 1999 में उन्हें नौवीं कार्यकाल के लिए 13 वीं लोकसभा का सदस्य चुना गया था।
  • 13 अक्टूबर 1999 से 13 मई 2004 तक उन्होंने तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री के रूप में सेवा की। 
  • वह उन मंत्रालयों और विभागों के प्रभारी भी थे जो विशेष रूप से किसी मंत्री को आवंटित नहीं किए गए थे।

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अटल बिहारी बाजपेयी की भारत के प्रधानमंत्री के रूप में भूमिका 

राजस्थान में पोखरण के रेगिस्तान में मई 1998 में पांच भूमिगत परमाणु परीक्षण किये गए थे। 1998 में आखिर और 1999 के आरम्भ के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान के साथ एक राजनीतिक शांति प्रक्रिया शुरू की दशकों पुराने कश्मीर विवाद और कई अन्य संघर्षो को दूर करने के उद्देश्य से ऐतिहासिक दिल्ली-लाहौर बस सेवा का उद्घाटन फरवरी 1999 में हुआ।

कश्मीर घाटी में आतंकवादियों और पाकिस्तान के गैर-वर्दीधारी सैनिकों की घुसपैठ और उसके बाद सीमावर्ती पहाड़ी पर कब्ज़ा कर लिया गया था और कारगिल के शहर में स्थित पदों को अच्छी तरह से नियंत्रित किया गया।ऑपरेशन विजय सेना द्वारा शुरू किया गया था, तो उत्तरी लाइट इन्फैंट्री सैनिकों और पाकिस्तानी आतंकवादियों को वापस खींचने में सफल रहा था, लगभग 70% क्षेत्र वापस ले लिया था।

दिसंबर 1999 में भारत को एक संकट का सामना करना पड़ा जब इंडियन एयरलाइंस की उड़न आईसी 814 को पांच आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया था और अफगानिस्तान में भेजा गया था। उन्होंने बदले में कुछ आतंकवादियों को रिहा करने की मांग जी, जिसमें मौलाना मसूद अजहर के नाम भी शामिल थे।

अत्यधिक दबाव के तहत सरकार ने तत्कालीन मंत्री जसवंत सिंह को तालिबान शासन अफगानिस्तान में आतंकवादियों के साथ यात्रियों के लिए एक सुरक्षित मार्ग के लिए भेजा था। वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार ने कई बुनियादी ढांचे और आर्थिक सुधारों को शुरू किया, निजी और विदेशी क्षेत्रो से निवेश को प्रोत्साहित किया और अनुसन्धान और विकास को प्रेरित किया।

तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने मार्च 2000 में भारत का दौरा किया जो 22 वर्षों में भारत में एक अमेरिकी राष्ट्रपति की पहली यात्रा थी। एक बार फिर बर्फ को तोड़ने के प्रयास में वाजपेयी ने पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को दिल्ली और आगरा में संयुक्त शिखर सम्मलेन के लिए आमंत्रित किया था, हालाँकि शांति वार्ता सफलता हासिल करने में विफल रही। संसद को 13 दिसंबर 2001 को एक आतंकवादी हमले का सामना करना पड़ा जो सुरक्षा बलों द्वारा सफलतापूर्वक संभाला था जिन्होंने आतंकवादियों को मार गिराया। 

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अटल बिहारी वाजपेयी का कथन 

"आप 'दोस्तों'✌ को "बदल" सकते हैं ✸ लेकिन 'पड़ोसियों' को नहीं"।

"सूर्य☀ एक "सत्य"✔ है, ✸जिसे झुठलाया✖ नहीं ✔जा सकता"
"मगर 'ओस' भी तो एक "सच्चाई" है ✸ यह बात अलग है कि 'क्षणिक' है।" 

"पेड़♧ के ऊपर चढ़ा "आदमी" ऊंचा✸ दिखाई देता है"
"जड़ से "खड़ा ✸आदमी" नीचा "दिखाई"✌ देता है"
"न 'आदमी✌ ऊँचा✸' होता है ✸ न "नीचा" होता है"
"न "बड़ा"✔ होता है ✸ न छोटा☺ होता है"
"आदमी सिर्फ ✸ आदमी होता है।" 

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कवि के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Hindi Poet)

कुशल राजनीतिज्ञ के साथ-साथ अटल जी बहुत अच्छे कवि भी थे। अपनी काव्य कला के कौशल से व्यंग्य कर सबको आश्चर्यचकित करते रहे हैं। इसी कड़ी में उन्ही की एक कविता है - 

भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता-जागता राष्ट्रपुरुष है। 

मिहली मस्तक है,
कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं। 

पूर्वी और ✸पश्चिमी घाट दो✌ विशाल जंघायें हैं। 

कन्याकुमारी इसके चरण हैं,
सागर इसके पग पखारता है। 

यह ✸'चन्दन' की भूमि है✸ "अभिनन्दन" की ✸भूमि है,

यह तर्पण की भूमि है,
यह अर्पण की भूमि है। 

इसका कंकर-कंकर शंकर है,
इसका बिंदु-बिंदु गंगाजल है। 

हम जिएंगे तो इसके लिए,
 मरेंगे तो इसके लिए। 

इसका तो उद्घोष है - हम जिएंगे तो देश के लिए, मरेंगे तो देश के लिए। भारत के मलिये हस्ते-हस्ते प्राण न्योछावर करने में गौरव और गर्व का अनुभव करूँगा। 

अटल जी के भाषणों का ऐसा जादू था कि लोग उन्हें सुनते ही रहना चाहते हैं। उनके व्याख्यानों की प्रशंसा संसद में उनके विरोधी भी किया करते थे। उनके अकाट्य तर्कों का लोहा हर कोई स्वीकार करता है। उनकी वाणी में हमेशा विवेक और संयम का ध्यान रखा जाता है। हंसी की झिलमिलाहट के बीच वे छोटी-छोटी बातें कह देते हैं। उनकी कवितायेँ उनके भाषणों से छनती रहती है-

जो कल थे,
वो आज नहीं हैं।
जो आज हैं,
वे कल नहीं रहेंगे,
होने, न होने का क्रम,
इसी तरह चलता रहेगा,
हम हैं, हम रहेंगे,
यह भ्रम भी सदा पलता रहेगा। 

दुनिया का इतहास पूछता,
रोम कहाँ, यूनान कहाँ?

घर-घर में शुभ अग्नि जलता।
वह उन्नत ईरान कहाँ है?

दीप बुझे पश्चिम गगन के,
व्याप्त हुआ बर्बर अँधियारा,
किन्तु चीर कर तम की छाती,
चमका हिंदुस्तान हमारा। 

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अटल बिहारी वाजपेयी मुख्य कार्य 

सत्ता में आते ही मई 1998 में राजस्थान के पोखरण में पांच अंडरग्राउंड परमाणु परिक्षण करवाया और उसकी चर्चा आज देश-विदेश में जोरों से हो रही है। 

अटल जी द्वारा शुरू किये गए नेशनल हाइवे डेवलपमेंट प्रोजेक्ट (NHDP) व् प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) उनके दिन के बेहद करीब थी। वे इसका काम खुद देखते थे। 

NHDP के द्वारा उन्होंने देश के चार मुख्य शहर दिल्ली, मुंबई, चिन्नई और कोलकत्ता को जोड़ने का काम किया। 

PMGSY के द्वारा पुरे भारत को अच्छी सड़के मिली, जो छीटे-छोटे गांवों को भी शहर से जोड़ती हैं। 

2001 में सर्व शिक्षा अभियान कि शुरुआत की। 

कारगिल युद्ध और आतंकवादी हमले के दौरान अटल जी द्वारा लिए गए फैसलों, उनके नेतृत्व और कूटनीति ने सभी को प्रभावित किया, जिससे उनकी छवि सबके सामने उभरी।

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अटल बिहारी वाजपेयी के द्वारा जीते गये पुरस्कार 

  • 1992 में उन्हें पद्म विभूषण प्राप्त हुआ।
  • 1993 में कानपुर विश्वविद्यालय से उन्हें डी. लिट. के साथ सम्मानित किया।
  • उन्हें 1994 में भारत रत्न पंडित गोविन्द वल्लभ पंत पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
  • उन्होंने 1994 में सर्वश्रेष्ठ संसदीय पुरस्कार प्राप्त किया।
  • उन्हें 1994 में लोकमान्य तिलक पुरस्कार दिया गया था।
  • उन्हें 2005 में भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार - भारत रत्न से सम्मानित किया।
  • बांग्लादेश सरकार द्वारा 7 जून 2015 को उन्हें बांग्लादेश के लिबरेशन वार सम्मान प्रदान किया गया था।

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अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि कब है? (atal bihari vajpayee punyatithi date)

पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी पुण्यतिथि 16 अगस्त को है। अटल जी के पुण्यतिथि पर देश भर में श्रद्धांजलि सभाएं आयोजित की जाती है। 93 वर्ष आयु में बीमारी की वजह से उनकी मृत्यु 16 अगस्त 2018 को दिल्ली के AIIMS हॉस्पिटल में हुआ था। प्रतिवर्ष 16 अगस्त को उनका पुण्यतिथि देशभर में मनाया जाता है।

अटल बिहारी वाजपेयी की मृत्यु व देहांत कैसे हुई (atal bihari vajpayee ki mrityu kab hui) 

लम्बे समय से बीमार चल रहे वाजपेयी को 11 जून को AIIMS में भर्ती किया गया था। अटल जी मधमेह की बीमारी से पीड़ित थे और उनका एक ही गुर्दा काम करता था। अटल बिहारी वाजपेयी जी की मृत्यु 93 वर्ष की आयु में 16 अगस्त 2018 को दिल्ली के AIIMS में हुई। उनका अंतिम संस्कार यमुना नदी के किनारे विजय घाट के बगल में किया गया। 

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