देश की स्वतंत्रता के लिए भारतीयों ने जिस यज्ञ को शुरू किया था उसमे जिन-जिन स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया था उसमें सुभाष चंद्र बोस भी थे। सुभाष चंद्र बोस का नाम बहुत ही स्नेह और श्रद्धा के साथ लिया जाता है।
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सुभाष चंद्र बोस जयंती |
वीर पुरुष हमेशा एक ही बार मृत्यु का वरण करते है लेकिन वे अमर हो जाते है उनके यश और नाम को मृत्यु मिटा नहीं पाती है। सुभाष चंद्र बोस जी ने स्वतंत्रता के लिए जिस रास्ते को अपनाया था वह सबसे अलग था। स्वतंत्रता की बलिवेदी पर मर मिटने वाले वीर पुरुषों में से सुभाष चंद्र बोस Subhash Chandra Bose का नाम अग्रणीय है।
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वे अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध करके देश को आजाद कराना चाहते थे। बोस जी ने भारतवासियों से आह्वान किया "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा"। सुभाष चंद्र बोस जी की इस दहाड़ से अंग्रेजों की सत्ता हिलने लगी थी। उनके इस आवाज के पीछे लाखों हिंदुस्तानी लोग कुर्बान होने के लिए तत्पर हो गये थे।
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ऐसे वीर पुरुष को भारत इतिहास में बहुत ही श्रद्धा से याद किया जायेगा। नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी की याद में हर साल 23 जनवरी को देश भर में सुभाष चंद्र बोस जयंती Subhash Chandra Bose Jayanti और देश प्रेम दिवस के रूप में मनाया जाता है। देश प्रेम दिवस के दिन फॉरवर्ड ब्लाक की पार्टी के सदस्यों में एक भव्य तरिके से मनाया जाता है।
आजाद हिन्द फ़ौज का मातृभूमि के लिए आजाद हिन्द फौजा का नेतृत्व करने वाले महान देशभक्त नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी जी की जयंती 23 जनवरी को मनाया जाता है। सभी जिला प्रशासन और स्थानीय निकायों में भी इस दिन को मनाया जाता है। बहुत से गैर सरकारी संगठनों द्वारा इस दिन रक्त शिविरों का आयोजन किया जाता है। इस दिन स्कूलों और कॉलेजों में विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया जाता है।
सुभाष चंद्र बोस जन्म कब और कहा हुआ था?
नेता सुभाष चंद्र बोस जी का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा प्रान्त के कटक में हुआ था।इनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस था और माता का नाम प्रभावती बोस था। इनके पिता एक वकील थे और बंगाल विधानसभा के अध्यक्ष भी रहे थे। नेता जी अपने 14 बहन-भाइयों में से नौवें संतान थे। सुभाष चंद्र जी के 7 भाई और 6 बहनें भी थी। अपने भाई-बहनों में से सबसे ज्यादा लगाव उन्हें शरदचंद्र बोस से था।
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सुभाष चंद्र बोस जी की शिक्षा
बोस जी को बचपन से ही पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था। बोस जी की प्रारम्भिक शिक्षा कटक के एक प्रतिष्ठित विद्यालय प्रोटेस्टैंड यूरोपियन स्कूल से प्राइमरी की शिक्षा पूरी किया था। प्राइमरी के बाद उन्होंने रेवेनशा कोलेजियेट स्कूल में प्रवेश ले लिया। मैट्रिक की परीक्षा बोस जी ने कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया था।
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बोस जी ने सन 1915 में बीमार होने के बाद 12 की परीक्षा को द्रितीय श्रेणी से उत्तीर्ण किया था। अंग्रेजी में उनके इतने अच्छे नंबर आये थे कि परीक्षक को विवश होकर यह कहना ही पड़ा था कि "इतनी अच्छी अंग्रेजी में तो मैं स्वयं भी नहीं लिख सकता"। बोस जी ने सन 1916 में अपनी आगे की पढाई के लिए कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कालेज में दाखिला लिया जहाँ पर इनकी मुलाकात डॉ. सुरेश बाबू से हुआ था।
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उन्होंने कलकत्ता के स्कॉटिश कॉलेज से ही सन 1919 में बी.ए. की परीक्षा को प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया था। बी. ए. की परीक्षा के बाद पिता पर उन्हें आई.सी.यस. की परीक्षा के लिए इंग्लैंड जाना पड़ा था। इंग्लैंड में उन्हें कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में प्रवेश लेना पड़ा था और वही से आई.सी.यस. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद स्वदेश लौटे और यहाँ एक उच्च पदस्य अधिकारी बन गए।
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सुभाष चंद्र बोस जी का जीवन
सुभाष चंद्र बोस जी की मुलाकात सुरेश बाबू से प्रेसिडेंसी कॉलेज में हुआ था। सुरेश बाबू देश-सेवा हेतु उत्सुक युवकों का संगठन बना रहे थे। क्योकि युवा सुभाष चंद्र बोस में ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध विद्रोह का कीड़ा पहले से ही कुलबुला रहा था। इसी वजह से उन्होंने इस संगठन में भाग लेने में बिलकुल भी देरी नहीं किया था।
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यहाँ पर उन्होंने अपने जीवन को देश सेवा में लगाने की कठोर प्रतिज्ञा ली थी। सुभाष चंद्र बोस जी को कलेक्टर बनाकर ठाठ का जीवन व्यतीत करने की कोई इच्छा नहीं था। उनके परिवार वालों ने उन्हें बहुत समझाया, कई उदाहरणों और तर्कों से सुभाष चंद्र बोस की राह को मोड़ने को कोशिश की लेकिन परिवार वाले किसी भी प्रयत्न में सफल नहीं हुए।
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सुभाष चंद्र बोस एक सच्चे सेनानी थे। भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में बोस जी का एक महत्वपूर्ण योगदान रहा था। सुभाष चंद्र बोस जी ने गाँधी जी के विपरीत हिंसक दृष्टिकोण को अपनाया था। बोस जी ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए क्रांतिकारी और हिंसक तरीके की वकालत की थी। बोस जी ने भारतीय कांग्रेस से अलग होकर ऑल इंडिया फॉरवर्ड की स्थापना किया था।
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सुभाष चंद्र बोस का स्वतंत्रता आंदोलन में प्रवेश
सुभाष चंद्र बोस जी, अरविन्द घोष और गाँधी जी के जीवन से बहुत अधिक प्रभावित थे। सन 1920 में गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन चलाया हुआ था जिसमें बहुत से लोग अपना-अपना काम छोड़कर भाग ले रहे थे। इस आंदोलन की वजह से लोगो में बहुत उत्साह था।
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सुभाष चंद्र बोस जी ने अपनी नौकरी को छोड़कर आंदोलन में भाग लेने का दृढ निश्चय कर लिया था। सन 1920 के नागपुर अधिवेशन ने उन्हें बहुत प्रभावित किया था। 20 जुलाई 1921 में सुभाष चंद्र बोस जी गाँधी जी से पहली बल मिले थे। सुभाष चंद्र बोस जी को नेताजी नाम भी गाँधी जी ने ही दिया था।
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गाँधी जी उस समय में स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे जिसमें लोग बहुत ही बढ़-चढ़ाकरभाग ले रहे थे।क्योकि बंगाल में असहयोग आंदोलन का नेतृत्व दासबाबू कर रहे थे इसलिए गाँधी जी ने बोस जी को कलकत्ता जाकर दासबाबू से मिलने की सलाह दी। बोस जी कलकत्ता में असहयोग आंदोलन में दासबाबू के सहभागी बन गए थे।
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सन 1921 में जब प्रिंस ऑफ़ वेल्स के भारत आने पर उनके स्वागत का पुरे जोर से वहिष्कार किया गया था तो उसके परिणामस्वरूप बोस जी को 6 महीने जेल जाना पड़ा था। कांग्रेस द्वारा सन 1923 में स्वराज पार्टी की स्थापना किया गया। इस पार्टी के अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू, चितरंजन दास थे। इस पार्टी का उद्देश्य विधानसभा से ब्रिटिश सरकार का विरोध करना था।
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स्वराज पार्टी महापालिका के चुनाव को जित लिया था जिसकी वजह से दासबाबू कलकत्ता के महापौर बन गए थे। महापौर चुने जाने के बाद दासबाबू ने बोस जी को महापालिका का कार्यकारी अधिकारी बना दिया था। इसी दौरान सुभाष चंद्र बोस जी ने बंगाल में देशभक्ति की ज्वाला को भड़का दिया था जिसकी वजह से सुभाष चंद्र बोस देश के एक महत्वपूर्ण युवा नेता और क्रांति के अग्रदूत बना गये थे।
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इसी दौरान बंगाल में किसी विदेशी का हत्या कर दिया गया था। हत्या करने के शक में के शक में नेताजी सुभाष चंद्र बोस को गिरफ्तार कर लिया गया था। बोस जी जी-जान से आंदोलन में भाग लेने लगे और कई बार उन्हें जेल का यात्रा भी करना पड़ा। सन 1929 और सन 1937 में वे कलकत्ता अधिवेशन के मेयर बनाये गए थे। सन 1938 और 1939 में वे कांग्रेस के सभापति के रूप में चुने गए थे।
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सन 1920 में सुभाष चंद्र बोस जी को भारतीय जनपद सेवा में चुना गया था लेकिन खुद को देश की सेवा के लिए समर्पित कर देने की वजह से उन्होंने गाँधी जी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गये थे। सुभाष चंद्र बोस जी ने सन 1921 में अपनी नौकरी को छोड़कर राजनीति में प्रवेश किया।
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क्रांति का सूत्रपात
चंद्र बोस जी के मन में छात्र काल से ही क्रांति का सूत्रपात हो गया था। जब कॉलेज समय में एक अंग्रेजी के अध्यापक ने हिंदी के छात्रों खिलाफ नफरत से भरे शब्दों का प्रयोग किया तो उन्होंने उसे थप्पड़ मार दिया। वही से उनके विचार क्रांतिकारी बन गए। वे एक पक्के क्रांतिकारी रोलेक्ट एक्ट और जालियांबाला बाग के हत्याकांड से बने थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक सबसे प्रमुख नेता थे। बोस जी ने जनता के बीच राष्ट्रिय एकता, बलिदान और साम्प्रदायिक सौहार्द की भावना जागृत किया था।
कांग्रेस से त्याग पात्र क्यों दिया?
वे क्रांतिकारी विचारधारा रखते थे इसलिए वे अहिंसा पूर्ण आंदोलन में विश्वास नहीं रखते थे इसलिए उन्होंने कांग्रेस से त्याग पात्र दे दिया था। बोस जी अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़कर देश को स्वाधीन करवाना चाहते थे। उन्होंने देश में हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए फॉरवर्ड ब्लाक की स्थापना की।
उनके तीव्र क्रांतिकारी विचारों और कार्यो से त्रस्त होकर अंग्रेजी सरकार ने उन्हें जेल भेज दिया। जेल में उन्होंने भूख हड़ताल कर दी जिसकी वजह से देश में अशांति फ़ैल गया था। जिसके फलस्वरूप उनके घर पर ही नजरबन्द रखा गया था। बोस जी ने 26 जनवरी 1942 को पुलिस और जासूसों को चकमा दिया था।
वे जियाउद्दीन के नाम से काबुल के रास्ते से होकर जर्मनी पहुंचे थे। जर्मनी के नेता हिटलर ने उनका स्वागत किया। बोस जी ने जर्मनी रेडियो केंद्र से भारतवासियों के नाम स्वाधीनता का सन्देश दिया था। देश की आजादी के लिए किया गया उनका संघर्ष, त्याग और बलिदान इतिहास में सदैव प्रकाशमान रहेगा।
आजाद हिन्द फ़ौज का गठन और योगदान
बोस जी ने देखा कि शक्तिशाली संगठन के बिना स्वाधीनता मिलना मुश्किल है। \वे जर्मनी से टोकियो गए और वहां पर आजाद हिन्द फ़ौज की स्थापना की। उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी का नेतृत्व किया था। यह अंग्रेजों के खिलाफ लड़कर भारत को स्वाधीन कराने के लिए बनाई गयी थी। आजाद हिन्द ने ये फैसला लिया कि वे लड़ते हुए दिल्ली पहुंचकर अपने देश की आजादी की घोषणा करेंगे या वीरगति को प्राप्त होंगे। द्रितीय महायुद्ध में जापान के हार जाने की वजह से आजाद हिन्द फ़ौज को भी अपने शास्त्र को त्यागना पड़ा।
सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु कैसे हुई Subhash Chandra Bose Death
जापान के हार जाने की वजह से आजाद हिन्द फ़ौज को भी आत्म-समर्पण करना पड़ा था। जब नेताजी विमान से बैंकाक से टोकयो आ रहे थे तो मार्ग में विमान में आग लग जाने की वजह से उनका स्वर्गवास गया था। लेकिन नेता जी के शव या कोई चिन्ह न मिलने की वजह से बहुत से लोगों को नेताजी की मौत पर संदेह हो रहा है।
18 अगस्त 1945 को टोकियो रेडियो ने इस शोक समाचार को प्रचारित किया कि सुभाष चंद बोस जी एक विमान दुर्घटना में मारे गए।लेकिन उनकी मृत्यु आज तक एक रहस्य बना हुआ है। इसलिए देश के आजाद होने पर सरकार ने उस रहस्य की छानबीन के लिए एक आयोग भी बिठाया लेकिन उसका भी कोई परिणाम नहीं निकला।
निष्कर्ष
नेताजी भारत के ऐसे सपूत थे जिन्होंने भारतवासियों को सिखाया कि झुकना नहीं बल्कि शेर की तरह दहाड़ना चाहिए। खून देना एक वीर पुरुष का ही काम होता है।नेताजी ने जो आह्वान किया यह सिर्फ आजादी प्राप्त तक ही सीमित नहीं था बल्कि भारतीय जन-जन को युग-युग तक के लिए एक वीर बनाना था। आजादी मिलने के बाद एक वीर पुरुष ही अपनी आजादी की रक्षा कर सकता है। आजादी को पाने से ज्यादा आजादी की रक्षा करना उसका कर्तव्य होता है।
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