देश की स्वतंत्रता के लिए भारतीयों ने जिस यज्ञ को शुरू किया था उसमे जिन-जिन स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया था उसमें सुभाष चंद्र बोस भी थे। सुभाष चंद्र बोस का नाम बहुत ही स्नेह और श्रद्धा के साथ लिया जाता है।
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सुभाष चंद्र बोस जयंती |
वीर पुरुष हमेशा एक ही बार मृत्यु का वरण करते है लेकिन वे अमर हो जाते है उनके यश और नाम को मृत्यु मिटा नहीं पाती है। सुभाष चंद्र बोस जी ने स्वतंत्रता के लिए जिस रास्ते को अपनाया था वह सबसे अलग था। स्वतंत्रता की बलिवेदी पर मर मिटने वाले वीर पुरुषों में से सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) का नाम अग्रणीय है।
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वे अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध करके देश को आजाद कराना चाहते थे। बोस जी ने भारतवासियों से आह्वान किया "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा"। सुभाष चंद्र बोस जी की इस दहाड़ से अंग्रेजों की सत्ता हिलने लगी थी। उनके इस आवाज के पीछे लाखों हिंदुस्तानी लोग कुर्बान होने के लिए तत्पर हो गये थे।
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ऐसे वीर पुरुष को भारत इतिहास में बहुत ही श्रद्धा से याद किया जायेगा। नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी की याद में हर साल 23 जनवरी को देश भर में सुभाष चंद्र बोस जयंती (Subhash Chandra Bose Jayanti) और देश प्रेम दिवस के रूप में मनाया जाता है। देश प्रेम दिवस के दिन फॉरवर्ड ब्लाक की पार्टी के सदस्यों में एक भव्य तरिके से मनाया जाता है।
आजाद हिन्द फ़ौज का मातृभूमि के लिए आजाद हिन्द फौजा का नेतृत्व करने वाले महान देशभक्त नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी जी की जयंती 23 जनवरी को मनाया जाता है। सभी जिला प्रशासन और स्थानीय निकायों में भी इस दिन को मनाया जाता है। बहुत से गैर सरकारी संगठनों द्वारा इस दिन रक्त शिविरों का आयोजन किया जाता है। इस दिन स्कूलों और कॉलेजों में विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया जाता है।
Subhash Chandra Bos Ki Jayanti Kab Manae Jaati Hai
सुभाष चंद्र बोस की जयंती हर साल 23 जनवरी को मनाई जाती है। इसे "पराक्रम दिवस" के रूप में भी मनाया जाता है। सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें नेताजी के नाम से जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता थे। उनकी जयंती पर देशभर में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
netaji subhash chandra bose jayanti 2025
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती 2025 में गुरुवार, 23 जनवरी को मनाई जाएगी। इसे पराक्रम दिवस के रूप में भी मनाया जाता है, जो उनकी देशभक्ति और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को श्रद्धांजलि देने के लिए समर्पित है। इस दिन देशभर में कई कार्यक्रम और आयोजन किए जाते हैं।
सुभाष चंद्र बोस जन्म कब और कहा हुआ था? (subhash chandra bos ka janm kab hua)
नेता सुभाष चंद्र बोस जी का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा प्रान्त के कटक में हुआ था।इनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस था और माता का नाम प्रभावती बोस था। इनके पिता एक वकील थे और बंगाल विधानसभा के अध्यक्ष भी रहे थे। नेता जी अपने 14 बहन-भाइयों में से नौवें संतान थे। सुभाष चंद्र जी के 7 भाई और 6 बहनें भी थी। अपने भाई-बहनों में से सबसे ज्यादा लगाव उन्हें शरदचंद्र बोस से था।
सुभाष चंद्र बोस का जन्म कब और कहां हुआ था
सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक शहर में हुआ था। उनके पिता जानकीनाथ बोस एक प्रसिद्ध वकील थे और उनकी माता प्रभावती एक धार्मिक महिला थीं। सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता थे और "आजाद हिंद फौज" (Indian National Army) के संस्थापक के रूप में जाने जाते हैं।
23 जनवरी को क्या मनाया जाता है (23 january ko kya manaya jata hai)
23 जनवरी को भारत में "पराक्रम दिवस" (Parakram Diwas) के रूप में मनाया जाता है। यह दिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
भारत सरकार ने 2021 में नेताजी के अदम्य साहस, राष्ट्रभक्ति और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए 23 जनवरी को "पराक्रम दिवस" के रूप में घोषित किया। इस दिन नेताजी को श्रद्धांजलि दी जाती है और उनके जीवन एवं विचारों से प्रेरणा ली जाती है।
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सुभाष चंद्र बोस जी की शिक्षा
बोस जी को बचपन से ही पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था। बोस जी की प्रारम्भिक शिक्षा कटक के एक प्रतिष्ठित विद्यालय प्रोटेस्टैंड यूरोपियन स्कूल से प्राइमरी की शिक्षा पूरी किया था। प्राइमरी के बाद उन्होंने रेवेनशा कोलेजियेट स्कूल में प्रवेश ले लिया। मैट्रिक की परीक्षा बोस जी ने कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया था।
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बोस जी ने सन 1915 में बीमार होने के बाद 12 की परीक्षा को द्रितीय श्रेणी से उत्तीर्ण किया था। अंग्रेजी में उनके इतने अच्छे नंबर आये थे कि परीक्षक को विवश होकर यह कहना ही पड़ा था कि "इतनी अच्छी अंग्रेजी में तो मैं स्वयं भी नहीं लिख सकता"। बोस जी ने सन 1916 में अपनी आगे की पढाई के लिए कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कालेज में दाखिला लिया जहाँ पर इनकी मुलाकात डॉ. सुरेश बाबू से हुआ था।
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उन्होंने कलकत्ता के स्कॉटिश कॉलेज से ही सन 1919 में बी.ए. की परीक्षा को प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया था। बी. ए. की परीक्षा के बाद पिता पर उन्हें आई.सी.यस. की परीक्षा के लिए इंग्लैंड जाना पड़ा था। इंग्लैंड में उन्हें कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में प्रवेश लेना पड़ा था और वही से आई.सी.यस. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद स्वदेश लौटे और यहाँ एक उच्च पदस्य अधिकारी बन गए।
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सुभाष चंद्र बोस जी का जीवन
सुभाष चंद्र बोस जी की मुलाकात सुरेश बाबू से प्रेसिडेंसी कॉलेज में हुआ था। सुरेश बाबू देश-सेवा हेतु उत्सुक युवकों का संगठन बना रहे थे। क्योकि युवा सुभाष चंद्र बोस में ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध विद्रोह का कीड़ा पहले से ही कुलबुला रहा था। इसी वजह से उन्होंने इस संगठन में भाग लेने में बिलकुल भी देरी नहीं किया था।
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यहाँ पर उन्होंने अपने जीवन को देश सेवा में लगाने की कठोर प्रतिज्ञा ली थी। सुभाष चंद्र बोस जी को कलेक्टर बनाकर ठाठ का जीवन व्यतीत करने की कोई इच्छा नहीं था। उनके परिवार वालों ने उन्हें बहुत समझाया, कई उदाहरणों और तर्कों से सुभाष चंद्र बोस की राह को मोड़ने को कोशिश की लेकिन परिवार वाले किसी भी प्रयत्न में सफल नहीं हुए।
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सुभाष चंद्र बोस एक सच्चे सेनानी थे। भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में बोस जी का एक महत्वपूर्ण योगदान रहा था। सुभाष चंद्र बोस जी ने गाँधी जी के विपरीत हिंसक दृष्टिकोण को अपनाया था। बोस जी ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए क्रांतिकारी और हिंसक तरीके की वकालत की थी। बोस जी ने भारतीय कांग्रेस से अलग होकर ऑल इंडिया फॉरवर्ड की स्थापना किया था।
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सुभाष चंद्र बोस का स्वतंत्रता आंदोलन में प्रवेश
सुभाष चंद्र बोस जी, अरविन्द घोष और गाँधी जी के जीवन से बहुत अधिक प्रभावित थे। सन 1920 में गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन चलाया हुआ था जिसमें बहुत से लोग अपना-अपना काम छोड़कर भाग ले रहे थे। इस आंदोलन की वजह से लोगो में बहुत उत्साह था।
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सुभाष चंद्र बोस जी ने अपनी नौकरी को छोड़कर आंदोलन में भाग लेने का दृढ निश्चय कर लिया था। सन 1920 के नागपुर अधिवेशन ने उन्हें बहुत प्रभावित किया था। 20 जुलाई 1921 में सुभाष चंद्र बोस जी गाँधी जी से पहली बल मिले थे। सुभाष चंद्र बोस जी को नेताजी नाम भी गाँधी जी ने ही दिया था।
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गाँधी जी उस समय में स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे जिसमें लोग बहुत ही बढ़-चढ़ाकरभाग ले रहे थे।क्योकि बंगाल में असहयोग आंदोलन का नेतृत्व दासबाबू कर रहे थे इसलिए गाँधी जी ने बोस जी को कलकत्ता जाकर दासबाबू से मिलने की सलाह दी। बोस जी कलकत्ता में असहयोग आंदोलन में दासबाबू के सहभागी बन गए थे।
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सन 1921 में जब प्रिंस ऑफ़ वेल्स के भारत आने पर उनके स्वागत का पुरे जोर से वहिष्कार किया गया था तो उसके परिणामस्वरूप बोस जी को 6 महीने जेल जाना पड़ा था। कांग्रेस द्वारा सन 1923 में स्वराज पार्टी की स्थापना किया गया। इस पार्टी के अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू, चितरंजन दास थे। इस पार्टी का उद्देश्य विधानसभा से ब्रिटिश सरकार का विरोध करना था।
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स्वराज पार्टी महापालिका के चुनाव को जित लिया था जिसकी वजह से दासबाबू कलकत्ता के महापौर बन गए थे। महापौर चुने जाने के बाद दासबाबू ने बोस जी को महापालिका का कार्यकारी अधिकारी बना दिया था। इसी दौरान सुभाष चंद्र बोस जी ने बंगाल में देशभक्ति की ज्वाला को भड़का दिया था जिसकी वजह से सुभाष चंद्र बोस देश के एक महत्वपूर्ण युवा नेता और क्रांति के अग्रदूत बना गये थे।
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इसी दौरान बंगाल में किसी विदेशी का हत्या कर दिया गया था। हत्या करने के शक में के शक में नेताजी सुभाष चंद्र बोस को गिरफ्तार कर लिया गया था। बोस जी जी-जान से आंदोलन में भाग लेने लगे और कई बार उन्हें जेल का यात्रा भी करना पड़ा। सन 1929 और सन 1937 में वे कलकत्ता अधिवेशन के मेयर बनाये गए थे। सन 1938 और 1939 में वे कांग्रेस के सभापति के रूप में चुने गए थे।
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सन 1920 में सुभाष चंद्र बोस जी को भारतीय जनपद सेवा में चुना गया था लेकिन खुद को देश की सेवा के लिए समर्पित कर देने की वजह से उन्होंने गाँधी जी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गये थे। सुभाष चंद्र बोस जी ने सन 1921 में अपनी नौकरी को छोड़कर राजनीति में प्रवेश किया।
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क्रांति का सूत्रपात
चंद्र बोस जी के मन में छात्र काल से ही क्रांति का सूत्रपात हो गया था। जब कॉलेज समय में एक अंग्रेजी के अध्यापक ने हिंदी के छात्रों खिलाफ नफरत से भरे शब्दों का प्रयोग किया तो उन्होंने उसे थप्पड़ मार दिया। वही से उनके विचार क्रांतिकारी बन गए। वे एक पक्के क्रांतिकारी रोलेक्ट एक्ट और जालियांबाला बाग के हत्याकांड से बने थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक सबसे प्रमुख नेता थे। बोस जी ने जनता के बीच राष्ट्रिय एकता, बलिदान और साम्प्रदायिक सौहार्द की भावना जागृत किया था।
कांग्रेस से त्याग पात्र क्यों दिया?
वे क्रांतिकारी विचारधारा रखते थे इसलिए वे अहिंसा पूर्ण आंदोलन में विश्वास नहीं रखते थे इसलिए उन्होंने कांग्रेस से त्याग पात्र दे दिया था। बोस जी अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़कर देश को स्वाधीन करवाना चाहते थे। उन्होंने देश में हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए फॉरवर्ड ब्लाक की स्थापना की।
उनके तीव्र क्रांतिकारी विचारों और कार्यो से त्रस्त होकर अंग्रेजी सरकार ने उन्हें जेल भेज दिया। जेल में उन्होंने भूख हड़ताल कर दी जिसकी वजह से देश में अशांति फ़ैल गया था। जिसके फलस्वरूप उनके घर पर ही नजरबन्द रखा गया था। बोस जी ने 26 जनवरी 1942 को पुलिस और जासूसों को चकमा दिया था।
वे जियाउद्दीन के नाम से काबुल के रास्ते से होकर जर्मनी पहुंचे थे। जर्मनी के नेता हिटलर ने उनका स्वागत किया। बोस जी ने जर्मनी रेडियो केंद्र से भारतवासियों के नाम स्वाधीनता का सन्देश दिया था। देश की आजादी के लिए किया गया उनका संघर्ष, त्याग और बलिदान इतिहास में सदैव प्रकाशमान रहेगा।
आजाद हिन्द फ़ौज का गठन और योगदान
बोस जी ने देखा कि शक्तिशाली संगठन के बिना स्वाधीनता मिलना मुश्किल है। \वे जर्मनी से टोकियो गए और वहां पर आजाद हिन्द फ़ौज की स्थापना की। उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी का नेतृत्व किया था। यह अंग्रेजों के खिलाफ लड़कर भारत को स्वाधीन कराने के लिए बनाई गयी थी। आजाद हिन्द ने ये फैसला लिया कि वे लड़ते हुए दिल्ली पहुंचकर अपने देश की आजादी की घोषणा करेंगे या वीरगति को प्राप्त होंगे। द्रितीय महायुद्ध में जापान के हार जाने की वजह से आजाद हिन्द फ़ौज को भी अपने शास्त्र को त्यागना पड़ा।
सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु कैसे हुई (Subhash Chandra Bose Death)
जापान के हार जाने की वजह से आजाद हिन्द फ़ौज को भी आत्म-समर्पण करना पड़ा था। जब नेताजी विमान से बैंकाक से टोकयो आ रहे थे तो मार्ग में विमान में आग लग जाने की वजह से उनका स्वर्गवास गया था। लेकिन नेता जी के शव या कोई चिन्ह न मिलने की वजह से बहुत से लोगों को नेताजी की मौत पर संदेह हो रहा है।
18 अगस्त 1945 को टोकियो रेडियो ने इस शोक समाचार को प्रचारित किया कि सुभाष चंद बोस जी एक विमान दुर्घटना में मारे गए।लेकिन उनकी मृत्यु आज तक एक रहस्य बना हुआ है। इसलिए देश के आजाद होने पर सरकार ने उस रहस्य की छानबीन के लिए एक आयोग भी बिठाया लेकिन उसका भी कोई परिणाम नहीं निकला।
सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय (subhash chandra bos ka jivan parichay)
सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय
पूरा नाम: सुभाष चंद्र बोस
जन्म: 23 जनवरी 1897, कटक (ओडिशा)
मृत्यु: 18 अगस्त 1945 (विवादित)
पिता का नाम: जानकीनाथ बोस
माता का नाम: प्रभावती देवी
पत्नी का नाम: एमिली शेंकल
संतान: अनिता बोस फाफ
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
सुभाष चंद्र बोस का जन्म एक प्रतिष्ठित और संपन्न बंगाली परिवार में हुआ। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कटक के रेवेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल से प्राप्त की। बाद में वे उच्च शिक्षा के लिए कलकत्ता विश्वविद्यालय और फिर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड गए, जहाँ से उन्होंने भारतीय सिविल सेवा (ICS) की परीक्षा पास की।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
सुभाष चंद्र बोस का झुकाव राष्ट्रभक्ति की ओर था, और महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोड़ दी। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए और जल्द ही स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक बन गए।
1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष:
1938 और 1939 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने। उनके क्रांतिकारी विचारों के कारण गांधीजी से मतभेद हुआ, और उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी।
2. आजाद हिंद फौज (INA):
उन्होंने 1943 में जापान के सहयोग से आजाद हिंद फौज का गठन किया और "दिल्ली चलो" का नारा दिया।
3. नारे:
- "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।"
- "जय हिंद।"
मृत्यु
सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु रहस्यमय है। यह माना जाता है कि 18 अगस्त 1945 को ताइवान में विमान दुर्घटना में उनका निधन हो गया, लेकिन इस पर आज भी विवाद है और कई लोग इसे सत्य नहीं मानते।
विरासत
सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक थे। उनके साहस, नेतृत्व और क्रांतिकारी विचारों ने भारत के युवाओं को प्रेरित किया। उनकी जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है।
प्रमुख योगदान:
- "आजाद हिंद रेडियो" की स्थापना।
- रानी झांसी रेजीमेंट का गठन।
- भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय समर्थन दिलाना।
यादगार शब्द: "स्वतंत्रता बलिदान मांगती है।"
subhash chandra bose essay in hindi
सुभाष चंद्र बोस पर निबंध
परिचय:
सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें नेताजी के नाम से जाना जाता है, भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी नेता थे। उनका जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था। उनके पिता जानकीनाथ बोस एक प्रसिद्ध वकील थे, और उनकी माता प्रभावती देवी एक धार्मिक महिला थीं। बचपन से ही सुभाष में देशभक्ति और त्याग की भावना थी।
शिक्षा और प्रेरणा:
सुभाष चंद्र बोस ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए। उन्होंने भारतीय सिविल सेवा (ICS) की परीक्षा पास की, लेकिन देश की सेवा के लिए उन्होंने इस प्रतिष्ठित नौकरी को ठुकरा दिया। उनके जीवन पर स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा, हालांकि वे गांधीजी के अहिंसात्मक दृष्टिकोण से सहमत नहीं थे।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:
सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और दो बार इसके अध्यक्ष बने। उन्होंने "आजाद हिंद फौज" का गठन किया और भारतीय स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र संघर्ष का मार्ग अपनाया। उनका प्रसिद्ध नारा "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" आज भी लोगों के दिलों में गूंजता है।
आजाद हिंद फौज:
नेताजी ने जापान और जर्मनी के समर्थन से आजाद हिंद फौज का गठन किया। उन्होंने सिंगापुर में भारतीयों को संगठित किया और अंग्रेजों के खिलाफ एक मजबूत सेना बनाई। उनकी फौज ने "दिल्ली चलो" का नारा दिया और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह को आजाद कर भारत के झंडे को वहां फहराया।
मृत्यु और रहस्य:
सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइवान में एक विमान दुर्घटना में मानी जाती है। हालांकि, उनकी मृत्यु आज भी रहस्य बनी हुई है, और इस पर कई विवाद हैं।
निष्कर्ष:
सुभाष चंद्र बोस न केवल एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि वे भारत के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत भी हैं। उनका साहस, देशभक्ति, और त्याग हमें अपने देश के प्रति निष्ठा और समर्पण की सीख देता है। उनका योगदान भारतीय इतिहास में अमर है, और उनकी स्मृति हमें हमेशा प्रेरित करती रहेगी।
सुभाष चंद्र बोस के मुख्य कार्य लिखो
सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें नेताजी के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक थे। उनके प्रमुख कार्य और योगदान निम्नलिखित हैं:
1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में योगदान
- 1938 और 1939 में सुभाष चंद्र बोस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने।
- उन्होंने कांग्रेस के भीतर क्रांतिकारी विचारधारा को बढ़ावा दिया और तत्काल स्वतंत्रता की मांग की।
2. आजाद हिंद फौज की स्थापना
- 1943 में सुभाष चंद्र बोस ने "आजाद हिंद फौज" (Indian National Army - INA) का गठन किया।
- उन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय सैनिकों को संगठित किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई शुरू की।
3. आजाद हिंद सरकार की स्थापना
- 1943 में सिंगापुर में "आजाद हिंद सरकार" (Provisional Government of Free India) की स्थापना की।
- यह भारत की पहली निर्वासित सरकार थी जिसे जापान, जर्मनी और इटली सहित कई देशों का समर्थन प्राप्त था।
4. जय हिंद और अन्य नारों का प्रचार
- "जय हिंद", "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा" और "दिल्ली चलो" जैसे प्रसिद्ध नारे दिए, जो देशभक्ति के प्रतीक बन गए।
5. युद्ध में सक्रिय भूमिका
- आजाद हिंद फौज ने भारत में अंग्रेजों के खिलाफ मणिपुर और नागालैंड में संघर्ष किया।
- हालांकि यह प्रयास पूरी तरह सफल नहीं हुआ, लेकिन इससे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरणा मिली।
6. रंगून और सिंगापुर में सक्रियता
- उन्होंने रंगून और सिंगापुर में भाषण देकर भारतीयों को एकजुट किया और स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।
7. अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाना
- बोस ने भारत की आजादी के लिए जापान और जर्मनी जैसे देशों से सहायता प्राप्त की।
- उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को पहचान दिलाई।
सुभाष चंद्र बोस के कार्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में प्रेरणा का स्रोत बने और उनकी क्रांतिकारी विचारधारा ने लाखों भारतीयों को संघर्ष के लिए प्रेरित किया।
सुभाष चंद्र बोस के सामाजिक विचार
सुभाष चंद्र बोस के सामाजिक विचार भारतीय समाज की उन्नति और स्वतंत्रता के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। उनके विचार समाज के सभी वर्गों को समानता, स्वतंत्रता, और सम्मान देने के लिए प्रेरित करते थे। उनके सामाजिक विचारों के कुछ महत्वपूर्ण पहलू निम्नलिखित हैं:
- जातिवाद और धर्मनिरपेक्षता: सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद को समाप्त करने की आवश्यकता को महसूस किया। उनका मानना था कि भारतीय समाज को एकजुट होने के लिए जातिगत भेदभाव को खत्म करना होगा। उन्होंने समाज में समानता की स्थापना पर जोर दिया और एक धर्मनिरपेक्ष समाज की कल्पना की, जिसमें सभी जातियाँ और धर्म समान रूप से सम्मानित हों।
- श्रमिकों और किसानों के अधिकार: बोस ने श्रमिकों और किसानों के अधिकारों का समर्थन किया। उनका मानना था कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम केवल राजनीतिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता की ओर भी अग्रसर होना चाहिए। उन्होंने मजदूरों और किसानों के अधिकारों की रक्षा करने का संकल्प लिया।
- महिलाओं की स्थिति: सुभाष चंद्र बोस महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए भी प्रतिबद्ध थे। उन्होंने महिलाओं को समाज के सभी क्षेत्रों में समान अवसर देने की वकालत की। उनका मानना था कि महिलाओं को शिक्षा और स्वतंत्रता का अधिकार होना चाहिए ताकि वे समाज में अपनी भूमिका निभा सकें।
- सामाजिक न्याय और सुधार: बोस ने भारतीय समाज में सुधार की आवश्यकता को महसूस किया, विशेष रूप से शिक्षा, स्वास्थ्य, और अन्य बुनियादी सुविधाओं के क्षेत्र में। वे भारतीय समाज को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने के पक्षधर थे।
- स्वदेशी आंदोलन: सुभाष चंद्र बोस ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ स्वदेशी आंदोलन की पुरजोर वकालत की। उनका मानना था कि भारत को अपनी सांस्कृतिक धरोहर, परंपराओं और संसाधनों का सम्मान करते हुए आत्मनिर्भर बनना चाहिए।
सामाजिक दृष्टिकोण से, बोस का सपना था कि भारत एक मजबूत, एकजुट और समावेशी राष्ट्र बने, जहाँ हर व्यक्ति को समान अधिकार और अवसर मिलें। उनके विचार आज भी समाज में सुधार और समानता की दिशा में प्रेरणा देने वाले हैं।
सुभाष चंद्र बोस के अच्छे विचार
सुभाष चंद्र बोस के कुछ प्रसिद्ध और प्रेरणादायक विचार निम्नलिखित हैं:
1. "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा।"
यह उनका सबसे प्रसिद्ध उद्धरण है, जिसमें उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए लोगों से अपील की थी।
2. "स्वतंत्रता प्राप्त करने का एक ही तरीका है - संघर्ष, संघर्ष और संघर्ष!"
इस विचार में उन्होंने यह बताया कि स्वतंत्रता एक संघर्ष की मांग करती है, और इसके लिए हमें निरंतर प्रयास करना होगा।
3. "अपने कर्तव्यों को निभाओ, परिणामों को छोड़ दो।"
इस विचार में बोस ने कर्म की महिमा को बताया और यह सिखाया कि हमें केवल अपने कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, परिणामों की चिंता नहीं करनी चाहिए।
4. "आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प सफलता की कुंजी हैं।"
यहाँ उन्होंने आत्मविश्वास और संकल्प को सफलता के लिए आवश्यक तत्व बताया।
5. "अगर कोई चीज़ आपके दिल में नहीं है, तो उसे करने की कोशिश मत करो।"
इस विचार से उन्होंने यह बताया कि जो काम हम करते हैं, वह हमारी रुचि और जुनून से जुड़े होने चाहिए।
सुभाष चंद्र बोस के विचार आज भी हमें प्रेरित करते हैं और हमें अपने उद्देश्य की ओर दृढ़ कदम बढ़ाने की प्रेरणा देते हैं।
सुभाष चंद्र बोस के पिता का नाम
सुभाष चंद्र बोस के पिता का नाम जननीनाथ बोस था। वे एक प्रतिष्ठित वकील थे और भारतीय बंगाल के कटक (अब ओडिशा) में रहते थे। जननीनाथ बोस ने अपने बच्चों को शिक्षा और उच्च आदर्शों की ओर प्रोत्साहित किया।
सुभाष चंद्र बोस पर कविता
सुभाष चंद्र बोस
तुमने देखा था स्वप्न आज़ादी का,
भर दिया दिलों में इरादों का।
तुम्हारे शब्दों ने जोश जगाया,
"तुम मुझे खून दो," नारा सुनाया।
देश की माटी के सच्चे पुजारी,
तुमने बलिदान की रचना संवारी।
आजाद हिंद फौज के नायक बने,
स्वतंत्रता के दीपक सदा जलाए।
तुम्हारी हुंकार से दुश्मन डरे,
भारत माता के सपने सजे।
तुमने दिखाया संघर्ष का मार्ग,
तुम्हारे कदमों से बना नया व्याकरण।
अमर है तुमसे हर एक कहानी,
रगों में बहती है देशभक्ति का पानी।
हे वीर सुभाष, हम तुम्हें नमन करते,
तुम्हारी प्रेरणा से कदम बढ़ाते।
सुभाष चंद्र बोस को किसने मारा
सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु आज भी एक रहस्य बनी हुई है, और इस पर कई वर्षों से विवाद होता आया है। आधिकारिक तौर पर यह माना जाता है कि 18 अगस्त 1945 को ताइवान के ताइहोकू (अब ताइपेई) में एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई थी। कहा जाता है कि विमान के इंजन में आग लगने के कारण उन्हें गंभीर चोटें आईं, जिससे उनका निधन हो गया।
हालांकि, कई लोग इस आधिकारिक बयान को सच नहीं मानते। भारत में लंबे समय से यह चर्चा होती रही है कि उनकी मृत्यु विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी, और वे गुप्त रूप से जीवित थे। कुछ लोग मानते हैं कि वे सोवियत संघ में कैद हुए थे, जबकि अन्य का मानना है कि उन्होंने साधु के रूप में अपना जीवन व्यतीत किया।
नेताजी की मृत्यु पर बनी जांच समितियां:
- शाह नवाज समिति (1956): इसने विमान दुर्घटना की थ्योरी को स्वीकार किया।
- खोसला आयोग (1970): इसने भी यही निष्कर्ष निकाला।
- मुखर्जी आयोग (1999-2005): इसने विमान दुर्घटना की थ्योरी को खारिज कर दिया और उनकी मृत्यु के अन्य पहलुओं की जांच की।
लेकिन आज तक यह स्पष्ट रूप से साबित नहीं हो सका है कि सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु कैसे और किसने की। उनका जीवन और मृत्यु भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा रहस्य बना हुआ है।
सुभाष चंद्र बोस की पुण्यतिथि (subhash chandra bose punyatithi)
सुभाष चंद्र बोस की पुण्यतिथि को हर साल 18 अगस्त को मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन 1945 में ताइवान में एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई थी। हालांकि, उनकी मृत्यु के हालात आज भी विवादास्पद हैं और कई लोग इस पर सवाल उठाते रहे हैं।
सुभाष चंद्र बोस भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और आज़ाद हिंद फौज के संस्थापक थे। उनके नारे "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा" ने देश के युवाओं में आजादी की ललक जगाई। उनकी पुण्यतिथि पर लोग उनके बलिदान और भारत की स्वतंत्रता में उनके योगदान को याद करते हैं।
निष्कर्ष
नेताजी भारत के ऐसे सपूत थे जिन्होंने भारतवासियों को सिखाया कि झुकना नहीं बल्कि शेर की तरह दहाड़ना चाहिए। खून देना एक वीर पुरुष का ही काम होता है।नेताजी ने जो आह्वान किया यह सिर्फ आजादी प्राप्त तक ही सीमित नहीं था बल्कि भारतीय जन-जन को युग-युग तक के लिए एक वीर बनाना था। आजादी मिलने के बाद एक वीर पुरुष ही अपनी आजादी की रक्षा कर सकता है। आजादी को पाने से ज्यादा आजादी की रक्षा करना उसका कर्तव्य होता है।
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