दोस्तों आज हम ऐसे नायक की बात करेंगे जिन्होंने भारत को बदल दिया। भारत को बदलने के लिए इन्होने जो मार्ग बताये है अगर उसपर हम चल दिए तो समझ लीजिये तो क्या राम राज हो जायेगा भारत जी है सच में भारत में राम राज आजायेगा और भारत पूरी तरीके से बदल जायेगा। Ram Manohar Lohia जी की अगर हम बात करते है तो सोशिलिजम के सबसे बड़े नेता है।
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एक ऐसी शख्सियत जो क्रांति की धुनि रमाये, निड़र, योगी, चिंतक, लेखक, अपने पुरजोर विरोधियो के साथ के साथ भी मैत्री पूर्ण सम्बन्ध रखने वाला भारतीय समाज का ध्रुव तारा डाक्टर राम मनोहर लोहिया उत्तर प्रदेश के फ़ैजाबाद जिले के अकबरपुर के रहने वाले है।
Ram Manohar Lohia |
आज हम आपको अपने लेख के माध्यम से लोहिया जी के बारे में पूरी जानकारी आपको प्रदान करेंगे। डाक्टर राम मनोहर लोहिया देश के उस स्वतंत्रता संग्राम सेनामि का नाम है जो एक नयी सोच और प्रगतिशील विचारधारा के मालिक थे। उनके सिद्धांत और बताये गए आदर्श आज भी लोगो के अंदर एक नयी ऊर्जा भरते है। राम मनोहर लोहिया का भारतीय राजनीति में अहम् योगदान रहा है, कई दसको तक स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा रहे। लोहिया छोटी सी उम्र से ही भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए।
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भारत में समाजवादी चिंतको में राम मनोहर लोहिया जी का नाम बहुत ही प्रमुखता से लिया जाता है। उनकी जो गणना है भारत के प्रमुख समाजवादी बुद्धिजीवी और प्रचारकों में की जाती है। लोहिया समाजवादी विचारको में उग्र विचारक थे और समाजवादी आंदोलन को आगे बढ़ाने में उन्होंने बहुत ज्यादा सहयोग किया था। उनके जो भाषण थे बहुत ज्यादा आलोचना से युक्त और आकड़ो से पूरी तरह से परिपूर्ण होते थे। जब हमारा देश स्वाधीन था तो स्वाधीनता संग्राम में उन्होंने बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका भी अदा की थी और भारत के समाजवादी आंदोलन को आगे बढ़ाने उनका बहुत ही ज्यादा योगदान भी था।
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राम मनोहर लोहिया का जन्म कब हुआ
राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को उत्तर प्रदेश के फ़ैजाबाद जिले के अकबरपुर गांव माड़वाड़ी परिवार में हुआ था। उनके पिता श्री हीरा लाल पेशे से अध्यापक है और मात्र ढाई वर्ष की आयु में उनकी माता जी चंदा देवी का देहांत सन 1912 में हो गया था। माता जी के न इनका पालन-पोषण इनकी दादी जी ने किया। बचपन से ही यह अपने पिता जी के साथ रहे और उनके जीवन से ही इन्हे राष्ट्रप्रेम की प्रेरणा मिली। इनके पिता जी गांधी जी से काफी प्रभावित थे। इसके कारण नन्हे लोहिया पर भी काफी असर हो गया। 14 वर्ष की किशोर अवस्था में गया कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया।
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राम मनोहर लोहिया का जीवन परिचय
भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, प्रखर चिंतक तथा समाजवादी राजनेता थे। राम मनोहर लोहिया को भारत एक अजय योद्धा और महान विचार के रूप में देखता है। देश की राजनीति में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान और स्वंत्रता के बाद ऐसे कई नेता हुए जिन्होंने अपने पर शासन का रुख बदल दिया और उन्ही में से एक थे राम मनोहर लोहिया।
अपनी प्रखर देशभक्ति और बेलौस तेजस्वी समाजवादी विचारो कारण अपने समर्थको के साथ ही डॉ० लोहिया ने अपने विरोधियो के मध्य अपना सम्मान हासिल किया। डॉ० लोहिया सहज परन्तु निडर अवधूत राजनीतिज्ञ थे।उनमे संत की संतता, फक्कड़पन, मस्ती, निर्लिप्तता और अपूर्व त्याग की भागना थी। वे दार्शनिक व्यवहार के पक्ष में नहीं थे।
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राम मनोहर लोहिया का शिक्षा
इसने पिता जी ने इनको बहुत अच्छी दी। इनके पता जी श्री हीरालाल पेशे से अध्यापक व ह्रदय के सच्चे राष्ट्रभक्त थे। टंडन पाठशाला में चौथी तक पढाई करने के बाद विश्वेश्वरनाथ हाई स्कूल में दाखिला लिया। उनके पिता जी गाँधी जी के अनुयायी थे। जब वे गाँधी जी से मिलने जाते थे तो राम मनोहर लोहिया को भी अपने साथ ले जाया करते थे।
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इसी कारण वे गाँधी जी के विराट व्यक्तित्व का उनपर गहरा असर हुआ था। पिता जी के साथ 1918 में अहमदाबाद कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार शामिल हुए। बम्बई के माड़वाड़ी स्कूल में उन्होंने पढाई की। लोकमान्य गंगाधर तिलक के मृत्यु के दिन विद्यालय में लड़को के साथ 1920 इन्होने हड़ताल कर दी।
गाँधी जी की पुकार पर 10 वर्ष की आयु में इन्होने स्कूल त्याग दिया। पिता जी को विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के आंदोलन के चलते सजा हुई। 1921 फ़ैजाबाद किसान आंदोलन के दौरान जवाहरलाल नेहरू से इनकी मुलाकात हुई। 1924 में प्रतिनिधि के रूप में कांग्रेस के गया अधिवेशन में ये शामिल हुए।
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1925 में मैट्रिक की परीक्षा दी। इंटर की दो वर्ष की पढाई बनारस काशी हिन्दू विश्विद्यालय (BHU) में हुई। आगे की पढाई के लिए कलकत्ता चले गए और वहा से ताराचंद्र दत्त स्ट्रीट पर स्थित पोद्दार छात्र हॉस्टल में ये रहने लगे। अखिल बंग विद्यार्थी परिषद् के सम्मलेन में सुभाषचंद्र बोस के न पहुंचने पर उन्होंने सम्मलेन की अध्यक्षता की।
1930 में लोहिया अग्रवाल समाज के कोष से पढाई के लिए इंग्लैण्ड रावण हुए। वहां से बर्लिन गएऔर विश्वविद्यालय के नियम के अनुसार उन्होंने प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो० बर्नर जेम्बार्ट को अपना प्राध्यापक चुना। 1932 लोहिया ने नामक सत्याग्रह विषय पर अपना शोध प्रबंध पूरा कर बर्लिन विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
पीएचडी करने के लिए बर्लिन विश्वविद्यालय जर्मनी चले गए जहा से उन्होंने वर्ष 1932 इसे पूरा किया और वह उनोने शीघ्र ही जर्मन भाषा सिख लिया। यहाँ से लोहिया जी ने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। डॉक्टरेट की उपाधि के लिए डाक्टर लोहिया ने प्रो० बर्नर जोंबर्ट के निर्देशन में नामक सत्याग्रह पर अपना शोध कार्य पूरा किया ।
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डॉ० लोहिया का स्वदेश वापसी
डॉ० लोहिया सन 193ई० के आरम्भ में स्वदेश लौटे। स्वदेश लौटने के बाद ये समाज के उत्थान हेतु देश में संचालित समाजवादी आंदोलन के साथ जुड़ गए। देश की स्वतंत्रता से पूर्व ये भारत में ब्रिटिश साम्राजयवाद का मुखर विरोध करते रहे। सन 1942 ई० के भारत छोडो आंदोलन में भी इन्होने सक्रिय रूप से भाग लिया और इसे आजादी की आखिरी लड़ी के रूप में स्वीकार किया। ये कई माह तक भूमिगत रहे और इसी समय इन्होने गुप्त रेडियो स्टेशन की स्थापना की।
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भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान
स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने की उनकी बचपन से ही प्रबल इच्छा थी जो बड़े होने पर भी ख़त्म नहीं हुई। जब ये यूरोप में थे उन्होंने वहा एक क्लब बनाया जिसका नाम असोसिएशन ऑफ़ यूरोपियन इंडियंस रखा। जिसका उद्देश्य यूरोपीय भारतोयो के अंदर भारतीय राष्ट्रवाद के प्रति जागरूकता पैदा करना था। न्होंने जिनेवा में लीग ऑफ़ नेशन्स की सभा में भी भाग लिया, यद्यपि भारत का प्रतिनिधित्व ब्रिटिश राज्य के एक सहयोगी के रूप में बीकानेर के महाराजा द्वारा किया गया था, परन्तु लोहिया इसके अपवाद थे।
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उन्होंने दर्शक गैलरी के विरोध प्रदर्शन शुरू किया और बाद में अपने विरोध के कारण को स्पष्ट करने के लिए उन्होंने समाचार पत्र और प्रत्रिकाओं के सम्पादको को कई पत्र लिखे। इस पूरी घटना ने रातोरात राम मनोहर लोहिया को भारत का एक सुपर स्टार बना दिया। भारत वापस आने के बाद उन्होंने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए और वर्ष 1934 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की।
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वर्ष 1936 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का पहला सचिव नियुक्त किया था। भारत छोडो आंदोलन के दौरान वर्ष 1942 में महात्मा गाँधी, नेहरू, मौलाना आजाद और बल्लभ भाई पटेल जैसे कई शीर्ष नेताओं के साथ उन्हें भी कैद कर लिया गया गया था और जब भारत स्वतन्त्र होने के करीब तो उन्होंने दृढ़ता से अपने लेखो और भाषणों के माध्यम से देश के विभाजन का विरोध किया था।
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डॉ० लोहिया का राजनीति सफर
तेज-तर्राक शोशलिस्ट नेता कांग्रेस के सपोर्टर थे ये लेकिन फिर बाद में चलकर कुछ ऐसा हुआ की कांग्रेस से अलग हो गए। डॉ० लोहिया गाँधी के प्रचंड भक्त थे मतलब की गाँधी जी के कट्टर फॉलोवर थेव् गाँधीवादी जो निति है उसी का हम समर्थन करे।
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नेहरू जी के साथ भी इनका मतभेद रहा क्युकी नेहरू का जो बड़ा रुतबा था। नेहरू उस समय इतने बड़े लीडर हुआ करते थे। उनका नाम ही काफी था कोई भी खड़ा है चुनाव में नहीं है कांग्रेस को वोट देकर आना है जनता को बस ये पता था और कांग्रेस लगातार जीतती थी।
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लोहिया बात कर रहे थे लोकतंत्र की, लोहिया ने सिर्फ ये साबित करने के लिए की ऐसा लोकतंत्र है की पिछले 15 साल से सिर्फ कांग्रेस ही जित रही है। लोकतंत्र तो जब होता है न जब पार्टियों का बदलाव हो ये लोहिया चाहते थे और लोहिया ने दिखाने के लिए कहा की मई नेहरू को हराऊंगा।
सन 1957 में 489 सीटों पर चुनाव होने थेलोक सभा फूलपुर से दो लोग चुनाव लड़े पंडित जवाह लाल नेहरू और दूसरा जो व्यक्ति है उसका नाम राम मनोहर लोहिया था। दो लाख से पंडित जवाहर लाल नेहरू जीते और एक लाख अठ्ठासी हजार के आज पास राम मनोहर लोहिया जीते।
1960 में क्या हुआ जो इलेक्शन कमीशन था उस चीज को हटा दिया की हर संसदीय क्षेत्र से सिर्फ एक ही व्यक्ति चुनाव लड़ेगा। तब यहाँ से कौन चुनाव लड़ेगा फूलपुर से पंडित जवाहर लाल नेहरू क्युकी जाहिर है वो सीट छोड़ेंगे नहीं जो दूसरा वाला व्यक्ति था उसने सीट छोड़ दिया।
राम मनोहर लोहिया ने देखा मौका की बोले बस अब मई जो हूँ चुनाव लडूंगा नेहरू के खिलाफ आप ये सोच रहे होंगे क्या नेहरू से दुश्मनी थी राम मनोहर लोहिया की जी नहीं नेहरू से कोई दुश्मनी नहीं थी। वो ये कहा करते थे लोकतंत्र का मतलब है हर-जीत कम से कम 15 साल से जो कांग्रेस चली आ रही है ये तो हटे एक बार तो कांग्रेस हारे तब तो मै सोचूंगा की इस देश में लोकतंत्र है। ऐसे लोकतंत्र का क्या मतलब एकी पार्टी चली जा रहे है, है, चली जा रही है।
वो ये कहते थे नेहरू को वह दुखाऊंगा और नहीं हरा पाया तो इस नेहरू नामक चट्टान में दरार मै जरूर करूँगाव् वो लोकतंत्र के इतने बड़े हिमायती थे। वो एक पात्र लिखे नेहरू को की मैं आपके कांग्रेस पार्टी का ही मेंबर हूँ आपके साथ ही मैंने जीवन भर काम किया है लेकिन आज मैं आपके खिलाफ फूलपुर से पर्चा भरने जा रहा हूँ और मैं आशा करता हूँ की आने वाले समय में अगर आपको हरा नहीं पाया तो कम से कम हार के मुंह पर लेकर तो खड़ा ही कर दूंगा। ये राम मनोहर लोहिया के शब्द थे।
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उन्होंने खत लिखा था पंडिता जवाहर लाल नेहरू को। पंडित जवाहर लाल नेहरू गाँधी चेले बोला है उन्होंने दिया ठीक है आप लड़ रहे है और मैं चाहता हूँ की जो मुद्दे होंगे वो राजनैतिक मुद्दे होंगे, लोगो के सरोकार के मुद्दे होंगे ऐसा न हो की आप मेरी व्यक्तिगत बातो पर आके अटक जाय। व्यक्तिगत कोई भी हस्ताक्षेप नहीं होगा। एकदम विकास की बात करेंगे हम राम मनोहर लोहिया ने कहा ठीक है।
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नेहरू ने लोहिया को वादा किया वो वाद क्या है। नेहरू ने लोहिया को था की अगर परचा भर रहे है तो एक वादा करता हूँ की मैं फूलपुर नहीं आऊंगा प्रचार करने और ये बात इतनी ज्यादा घर कर गई लोहिया को लगा की वाह नेहरू प्रचार करने आएंगे नहीं और हम इस तरीके से प्रचार करेंगे की जीत जायेंगे। इस तरीके से समां बांधा लोहिया ने वहा सोशिलिजम का वहा की जो नेहरू के विदेशी दौरे थे और ये सारी थी जो विदेश निति थी सबको लेकर ताख पर रख दिया।
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इस तरीके से प्रचार हुआ ऐसा लग रहा था की नेहरू हार जायेंगे उस समय लोहिया के पास इतनी सारी चींजे नहीं थी। गाड़ी नहीं थी एक छोटा सा जीप लेकर ही प्रचार करना पड़ता था। लेकिन तब भी काफी समां बांध दिया था। अब तो चुनाव जीत ही जायेंगे नेहरू पहुंची की साहब आप हो आप सकता है फूलपुर से हार जाए। इस बार आप संसद ना पहुंचे, नेहरू ने कहा ये कैसे हो सकता है ऐसा भी नहीं हो सकता है की मै चुनाव हार जाऊ, नेहरू को ये भरोसा नहीं हुआ तब भी नेहरू ने बोला ठीक है अगर आप लोग बोल रहे है की मैं चुनाव हार जाऊंगा तब तो मुझे प्रचार करने जाना ही पड़ेगा।
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बस नेहरू जैसे प्रचार करने उतरे लोहिया को लग गया अब तो जीत ही सकते। क्युकी नेहरू जब आये तो अपने साथ पूरा काफ़िला लेकर आये गाड़ियों का जुलुस वो प्रधानमंत्री थे उस समय नेहरू को देखने के लिए दूर-दूर, कई-कई सौ किलोमीटर पैदल चलकर आते थे। तो नेहरू को कोई कैसे हराएगा लेकिन चुनाव एकतरफा नहीं था ये चुनाव में साठ हजार वोट मिले थे लगभग राम मनोहर लोहिया को पहले जहा नेहरू दो लाख वोटो से जीतते थे वहा वह सिर्फ पचास हजार वोटो से जीते थे।
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मातृ भाषा के प्रति प्रेम
लोहिया ने हमेशा भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में अंग्रेजी से अधिक हिंदी को प्राथमिकता दी। उनका विश्वाश था की अंग्रेजी शिक्षित और अशिक्षित अजंता में भेद पैदा करती है। इंग्लिश कट्टर विरोधी चाहते नहीं थे की इंग्लिश की पढाई हो। चाहते थे के इंग्लिश पढ़ो लेकिन इतना भी ना पढ़ो की तुम अपनी क्षेत्री भाषाएँ भूल जाओ। राम मनोहर लोहिया खुद इंग्लिश के बहुत बड़े ज्ञाता थे। बहुत सारी किताबे लिखी है इन्होने इंग्लिश में और आज राम मनोहर लोहिया की कही गई बाते किताबी रह गई है।
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राम मनोहर लोहिया की रचनाएँ
डॉ० राम मनोहर लोहिया एक प्रबुद्ध विचारक और लेखक भी थे। इनकी रचनाएँ जीवन के विविध पक्षों से सम्बंधित है। इनकी प्रमुख रचनाएँ है - इतिहास चक्र, अंग्रेजी हटाओ, धर्म पर एक दृष्टि, मार्क्सवाद और समाजवाद, समाजवादी चिंतन, संसदीय आचरण आदि।
इन्होने कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया था उनके लिए लेख भी लिखे।भूमिगत रहते हुए इनकी जंगनू आगे बढ़ो तथा मैं आजाद हूँ आदि पुस्तिकाएँ प्रकाशित हुई।इनकी रचनाओं में मौलिक चिंतन के भी पर्याप्त अंश हैं। भूमि सेना और एक घंटा देश को दो उनके मॉल;इक चिंतन के प्रमुख उदहारण है।
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राम मनोहर लोहिया की मृत्यु
देश की स्वतंत्रता के बाद ये जीवनपर्यंत समाजवादी आंदोलन के साथ जुड़े रहे। लोहिया को 30 सितम्बर 1967 को नई दिल्ली के विलिंग्डन अस्पताल में ऑपरेशन करने के लिए भर्ती कराया गया, अब इस अस्पताल को लोहिया अस्पताल जाना जाता है। जहा इन्होने मात्र ५७ वर्ष में 12 अक्टूबर 1967 को उनका देहावसान हो गया।
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