रविदास या कहें रैदास जी का भारत की मध्यकालीन संत परंपरा में महत्वपूर्ण स्थान है। संत रैदास जी कबीर के समकालीन थे। संत कवि रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा के दिन 1398 में वाराणसी के पास एक गाँव में हुआ था।
रविवार को पैदा होने के कारण उन्हें रविदास नाम दिया गया था। रविदास जी को रामानंद का शिष्य माना जाता है। इस वर्ष 2025 में, यह रविदास जयंती 12 फरवरी को मनाई जाएगी।
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रविदास जयंती कब मनाया जाता है? (ravidas jayanti kab manaya jata hai)
रविदास जयंती हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार माघ पूर्णिमा को मनाया जाता है। जो इस साल 2025 में 12 फरवरी के दिन पड़ रहा है। आज के दिन संत रविदास जी का जन्मदिवस बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है।
इस दिन लोग भजन-कीर्तन का आयोजन करते है इस दौरान गीत-संगीत, गाने, दोहे सड़कों पर बने मन्दिरों में गाये जाते है। संत रविदास जी के भक्त उनके जन्मदिवस के दिन घर या मंदिर में बनी उनकी प्रतिमा की पूजा करते है।
रविदास जयंती 2025 (Ravidas Jayanti 2025)
रविदास जयंती 2025 में बुधवार, 12 फरवरी को मनाई जाएगी। यह पर्व हर साल माघ पूर्णिमा के दिन संत रविदास जी की स्मृति और उनके उपदेशों को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। संत रविदास जी एक महान संत, समाज सुधारक और भक्ति आंदोलन के प्रमुख कवि थे, जिन्होंने समानता और आध्यात्मिक ज्ञान का संदेश दिया।
इस अवसर पर श्रद्धालु उनके भजनों का कीर्तन करते हैं, समाज सेवा के कार्य करते हैं, और उनके जीवन से प्रेरणा लेने का संकल्प लेते हैं। विशेष रूप से वाराणसी और पंजाब में इस दिन बड़े समारोह आयोजित किए जाते हैं।
रविदास जयंती कब है (ravidas jayanti kab hai)
गुरु रविदास जयंती 2025 में 12 फरवरी, बुधवार को मनाई जाएगी। यह दिन माघ पूर्णिमा के अवसर पर संत रविदास की याद में मनाया जाता है।
संत रविदास जयंती कब मनाई जाती है (ravidas jayanti kab manae jaati hai)
रविदास जयंती हर वर्ष माघ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है, जो हिंदू पंचांग के अनुसार माघ महीने की पूर्णिमा तिथि होती है। इस दिन संत रविदास जी की जयंती मनाई जाती है, जो समाज सुधारक, भक्त और महान संत थे। 2025 में रविदास जयंती 12 फरवरी (बुधवार) को मनाई जाएगी।
ravidas jayanti kab ki hai
रविदास जयंती 2025 में 12 फरवरी, बुधवार को है। यह दिन माघ पूर्णिमा के अवसर पर मनाया जाता है।
2025 mein ravidas jayanti kab hai
संत रविदास जयंती 2025 में बुधवार, 12 फरवरी को मनाई जाएगी। यह माघ पूर्णिमा के दिन आती है और गुरु रविदास जी के जन्मदिवस को समर्पित होती है।
गुरु रविदास जी का जन्म कब और कहां हुआ
गुरु रविदास जी का जन्म सन् 1377 (कुछ स्रोतों के अनुसार 1398) में माघ पूर्णिमा के दिन हुआ था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी (काशी) के पास स्थित सीर गोवर्धनपुर नामक गांव में हुआ था।
वे एक महान संत, भक्त, कवि और समाज सुधारक थे, जिन्होंने भक्ति आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया और समाज में समानता और भाईचारे का संदेश दिया।
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रविदास जयंती क्यों मनाई जाती है
रविदास जयंती मनाने के प्रमुख कारण:
1. समाज सुधार के प्रतीक:
2. भक्ति आंदोलन में योगदान:
3. सद्भाव और भाईचारे का संदेश:
4. आध्यात्मिक शिक्षा:
कैसे मनाई जाती है रविदास जयंती?
- गुरु रविदास के अनुयायी भजन-कीर्तन और उनके उपदेशों का स्मरण करते हैं।
- मंदिरों और उनके जन्मस्थान (सीर गोवर्धनपुर, वाराणसी) पर विशेष आयोजन होते हैं।
- उनकी शिक्षाओं पर आधारित प्रवचन और संगोष्ठी आयोजित की जाती हैं।
- अनुयायी शोभायात्रा और सामूहिक भोज का आयोजन करते हैं।
संत रविदास का जीवन परिचय (sant ravidas ka jivan parichay)
रैदास जी के जन्म के बारे में उचित प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। कुछ विद्वानों का मानना है कि रैदास का जन्म 1482-1527 ई। के बीच काशी में हुआ था, कुछ के अनुसार रैदास का जन्म 1398 में माघ पूर्णिमा के दिन काशी में हुआ था। संत कवि रविदास जी का जन्म चर्मकार कुल में हुआ था।
उनके पिता का नाम रग्घु और माता का नाम घुरविनिया बताया जाता है। टेनर्स का काम उनका पैतृक व्यवसाय था और उन्होंने इसे खुशी के साथ स्वीकार किया। वह अपना काम बड़ी लगन और मेहनत से करता था। उनकी प्रवृत्ति और मधुर व्यवहार के कारण लोग उनसे बहुत खुश रहते थे।
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संत एवं भक्त कवि रविदास
हिंदी साहित्य के इतिहास में मध्यकाल को भक्तिकाल के नाम से जाना जाता है। इस काल में कई संत और धर्मात्मा कवि हुए, जिन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त अनेक बुराइयों को समाप्त करने का प्रयास किया। रैदास जी का इन महान संत कवियों की श्रेणी में प्रमुख स्थान है, उन्होंने जाति, वर्ग और धर्म के बीच की दूरी को मिटाने और कम करने की पूरी कोशिश की।
रविदास जी एक भक्त और साधक और कवि थे, उनके पदों में भगवान, भक्ति, ध्यान और आत्म-समर्पण की भावना को मुख्य रूप में देखा जा सकता है। रैदास जी ने सत्संग के माध्यम से भक्ति का मार्ग अपनाया था, उन्होंने अपने विचारों को लोगों के बीच फैलाया और अपने ज्ञान और उच्च विचारों से समाज को लाभान्वित किया।
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प्रभ जी तुम चंदन हम पानी।
जाकी अंग-अंग बास समानी।।
प्रभुजी तुम धनबन हम मोरा।
जैसे चितवत चन्द्र चकोरा।।
प्रभुजी तुम दीपक हम बाती।
जाकी जोति बरै दिन राती।।
प्रभुजी तुम मोती हम धागा।
जैसे सोनहि मिलत सुहागा।।
प्रभजी तुम स्वामी हम दासा।
ऐसी भक्ति करै रैदासा।।
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उपर्युक्त श्लोक में, रविदास ने अपनी कल्पना, आध्यात्मिक शक्ति और अपने चैतन्य को सरल और सरल भाषा में व्यक्त किया है। रैदास जी की सरल भाषा में कहे गए इन उच्च भावों को समझना आम आदमी के लिए बहुत आसान रहा है।
उनके जीवन की घटनाएं उन्हें उनके गुणों का ज्ञान देती हैं। एक घटना के अनुसार, रैदास के शिष्यों में से एक ने उनसे गंगा में स्नान करने के लिए चलने का आग्रह किया, तब उन्होंने कहा - मैं गंगा स्नान के लिए गया होगा, लेकिन मैंने आज किसी के लिए जूते बनाने का वादा किया है और अगर मेरे पास जूते नहीं हैं तो आप दे सकते हैं, तो शब्द टूट गया है।
इसलिए, यदि मन सही है, तो केवल इस पानी के पानी में ही गंगास्नान का आशीर्वाद मिल सकता है। कहा जाता है कि इस तरह के व्यवहार के बाद, यह कहावत लोकप्रिय हो गई - मन चंगा तो कठौती में गंगा।
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रविदास के भक्ति गीतों और दोहों ने भारतीय समाज में सद्भाव और प्रेम पैदा करने की कोशिश की है। रविदास जी ने कथक को हिंदू और मुस्लिम में सामंजस्य और सहिष्णुता बनाने के प्रयास किए और इस तथ्य का प्रमाण उनके गीतों में देखा जा सकता है। वह कहता है कि यदि वह तीर्थयात्रा नहीं करता है, तो भी वह अपने हृदय में भगवान को पा सकता है।
का मथुरा का द्वारिका का काशी हरिद्वार।
रैदास खोजा दिल आपना तह मिलिया दिलदार।।
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रविदास जयंती का महत्व
रविदास राम और कृष्ण भक्त परम्परा के कवि और संत माने जाते हैं। उनके प्रसिद्ध दोहे आज भी समाज में प्रचलित हैं जिनपर कई भजन बने हैं। संत रविदास जयंती (Sant Ravidas Jayanti) देश भर में उत्साह एवं धूम-धाम के साथ मनाई जाती है। इस अवसर पर शोभा यात्रा निकली जाती है।
तथा शोभा यात्रा में बैंड भाजों के साथ भव्य झांकियां भी देखने को मिलती हैं इसके अतिरिक्त रविदास जी के महत्व एवं उनके विचारों पर गोष्ठी और सत्संग का आयोजन भी होता है सभी लोग रविदास जी की जयंती और पुण्यतिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।
संत रविदास के दोहे इन हिंदी
संत रविदास के दोहे उनके गहन विचारों और आध्यात्मिक संदेशों का अद्भुत संग्रह हैं। यहाँ कुछ प्रसिद्ध दोहे प्रस्तुत हैं:
1. मन चंगा तो कठौती में गंगा
"मन चंगा तो कठौती में गंगा।"
अर्थ: यदि आपका मन पवित्र और निर्मल है, तो आप जहाँ भी हैं, वहीं पवित्रता है। बाहरी धार्मिक कर्मकांडों से अधिक महत्वपूर्ण है मन की शुद्धता।
2. जाति-जाति में जाति है
"जाति-जाति में जाति है, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके, जब तक जाति न जात।"
अर्थ: जैसे एक पत्ते में अनेक तंतु होते हैं, वैसे ही समाज में जाति का विभाजन है। जब तक जाति का भेदभाव नहीं मिटेगा, लोग एक नहीं हो सकते।
3. ऐसा चाहूं राज मैं
"ऐसा चाहूं राज मैं, जहाँ मिले सबन को अन्न।
छोट-बड़ो सब सम बसे, रैदास रहे प्रसन्न।"
अर्थ: मैं ऐसा संसार चाहता हूँ जहाँ सभी को समानता और भोजन मिले। कोई बड़ा या छोटा न हो, और सभी खुशी से रहें।
4. प्रेम का मर्म
"प्रेम न खरीदो हाट बिकाए, प्रेम न छूटे साथ।
रैदास प्रेम को मोल है, प्रेम ही परमात्म।"
अर्थ: प्रेम कोई बाजार में बिकने वाली वस्तु नहीं है। यह एक ऐसी अनुभूति है, जो हमेशा साथ रहती है। प्रेम ही ईश्वर है।
5. बंदे खोजो सत्य को
"बंदे खोजो सत्य को, झूठा मोह माया।
रैदास सतगुरु मिल गए, मिटा मन का छाया।"
अर्थ: सच्चे मार्ग की तलाश करो और माया-मोह से दूर रहो। सच्चा गुरु मिलने पर मन का अंधकार मिट जाता है।
6. साधु ऐसा चाहिए
"साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहे, थोथा देई उड़ाय।"
अर्थ: एक सच्चा साधु (महान व्यक्ति) वही है, जो अनाज से भूसे को अलग करने वाले सूप की तरह हो। वह अच्छे को स्वीकार करता है और बुराई को छोड़ देता है।
7. हरि से लगन
"जो मैं चाहूं हरि मिलै, मिलै न संतोष।
रैदास हरि से लगन है, मन लागा वहि दोष।"
अर्थ: यदि मैं सिर्फ अपनी इच्छा के अनुसार भगवान से कुछ मांगूं, तो संतोष नहीं होगा। सच्चा भक्ति भाव तब है जब मन हरि में ही लग जाए।
8. मुक्ति का मार्ग
"मुक्ति यहीं जगत में, सेवा कर दिन-रात।
रैदास वही संत है, जो हरि के संग साथ।"
अर्थ: मुक्ति पाने के लिए स्वर्ग जाने की आवश्यकता नहीं है। सच्चे मन से सेवा और भक्ति करने वाला व्यक्ति यहीं मुक्ति प्राप्त कर लेता है।
9. सत्य और माया
"माया महा ठगिनी हम जानी।
तिरगुन फांस ले करत बहाना।"
अर्थ: माया को एक बड़ी ठगिनी समझा है, जो तीन गुणों (सत्व, रजस, तमस) के जाल में उलझा कर जीव को भ्रमित करती है।
10. सभी समान हैं
"रैदास जन्म के कारणे, होत न कोउ नीच।
नर को नीच कर डारि है, ओछे करम की कीच।"
अर्थ: कोई व्यक्ति जन्म से नीच नहीं होता। उसे उसके छोटे और गलत कर्म ही नीच बनाते हैं।
11. हरि के प्रेम में
"हरि का सेवक वही बड़ा, जो नर सेवा करे।
रैदास जो हरि प्रेम में, जनम सफल वह धरे।"
अर्थ: ईश्वर का सच्चा भक्त वही है, जो मानवता की सेवा करता है। हरि प्रेम में डूबा हुआ व्यक्ति अपने जीवन को सार्थक बनाता है।
12. भेदभाव का विरोध
"एकै ब्रह्म सब में बसे, कौन भेद कराई।
रैदास कर्म के लेख से, कोऊ नीच नाई।"
अर्थ: हर प्राणी में एक ही ब्रह्म निवास करता है, तो फिर भेदभाव क्यों? मनुष्य की श्रेष्ठता उसके कर्म से होती है, जन्म से नहीं।
संत रविदास के दोहे मानवता, समानता, भक्ति, और आध्यात्मिकता की गहराई को सरल शब्दों में व्यक्त करते हैं। उनके विचार आज भी प्रेरणा देते हैं।
संत रविदास का जन्म कब हुआ था
संत रविदास का जन्म 15वीं शताब्दी में हुआ था। उनके जन्म की सही तिथि को लेकर विभिन्न मत हैं, लेकिन अधिकांश विद्वान मानते हैं कि उनका जन्म माघ पूर्णिमा (फरवरी माह के आसपास) को हुआ था। यह तिथि हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ महीने की पूर्णिमा को मनाई जाती है, जिसे "रविदास जयंती" के रूप में भी जाना जाता है।
संत रविदास का जन्म वाराणसी के पास एक निम्नवर्गीय परिवार में हुआ था। वे समाज सुधारक, भक्त कवि और संत थे, जिन्होंने भक्ति आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
संत रविदास पुण्यतिथि
संत रविदास जी की पुण्यतिथि के बारे में ऐतिहासिक रूप से सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है, क्योंकि उनके निधन की तिथि को लेकर विभिन्न मत हैं। हालांकि, उनके अनुयायी उनकी जयंती (माघ पूर्णिमा) के साथ-साथ उनकी शिक्षाओं को स्मरण करते हैं और पूरे वर्ष उनके विचारों का अनुसरण करते हैं।
संत रविदास जयंती, जो माघ पूर्णिमा को मनाई जाती है, उनके जीवन और शिक्षाओं को सम्मानित करने का मुख्य पर्व है। उनकी पुण्यतिथि को लेकर कोई विशेष तिथि नहीं मनाई जाती, बल्कि उनके द्वारा दिए गए उपदेश और भक्ति आंदोलन में योगदान को प्राथमिकता दी जाती है।
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संत रविदास का परिचय
संत रविदास 15वीं सदी के महान संत, समाज सुधारक, दार्शनिक और भक्ति आंदोलन के प्रमुख कवि थे। उनका जन्म माघ पूर्णिमा के दिन, 1398 ईस्वी (अनुमानित) में वाराणसी के पास सीर गोवर्धन गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री रघु और माता का नाम करमा देवी था। वे चर्मकार जाति से थे, जो समाज में उस समय निम्न मानी जाती थी, लेकिन उन्होंने अपने विचारों और भक्ति से समाज में भेदभाव को चुनौती दी।
जीवन दर्शन
संत रविदास ने मानवता, समानता और प्रेम पर आधारित समाज की परिकल्पना की। उन्होंने जातिवाद और छुआछूत का विरोध किया और सभी को एक समान समझा। उनके विचारों में भक्ति और ज्ञान का अद्भुत संगम था।
प्रमुख कृतियां
संत रविदास के भजन और दोहे बहुत प्रसिद्ध हैं। वे सरल भाषा में लिखे गए हैं और भक्ति रस से परिपूर्ण हैं। उनके पदों का संग्रह "गुरु ग्रंथ साहिब" में भी मिलता है। उनकी रचनाओं ने समाज में समरसता और सद्भाव फैलाने का काम किया।
प्रसिद्ध दोहे
1. "मन चंगा तो कठौती में गंगा"
इसका अर्थ है कि यदि मन पवित्र है, तो हर जगह पवित्रता है।
2. "जाके हिरदै प्रेम बसे, भगवान ताहि के पास"
इसका अर्थ है कि प्रेम और भक्ति भगवान को प्राप्त करने का साधन है।
संत रविदास की शिक्षाएं
- सभी मनुष्य समान हैं।
- जाति, धर्म और वर्ग से ऊपर उठकर प्रेम और भक्ति करना चाहिए।
- कर्म और सच्चाई का पालन करना चाहिए।
प्रेरणा
संत रविदास का जीवन आज भी प्रेरणा स्रोत है। उनके विचार समाज में समरसता और समानता लाने के लिए प्रासंगिक हैं। उनकी जयंती हर साल माघ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है।
निष्कर्ष
संत रविदास ने भक्ति आंदोलन को एक नई दिशा दी और समाज सुधार के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया। उनके विचार और शिक्षाएं मानवता के लिए सदैव प्रेरणादायक रहेंगी।
FQA
Q: ravidas jayanti kaun si tarikh ki hai
Ans: गुरु रविदास जयंती 2025 में बुधवार, 12 फरवरी को मनाई जाएगी।
Q: ravidas jayanti kab hai
Ans: साल 2025 में रविदास जयंती 13 फरवरी को है
Q: 2025 mein ravidas jayanti kis tarikh ko hai
Ans: गुरु रविदास जयंती 2025 में बुधवार, 12 फरवरी को मनाई जाएगी।
Q: ravidas jayanti 2025 mein kab hai
Ans: गुरु रविदास जयंती 2025 में 12 फरवरी बुधवार को मनाई जाएगी।
Q: ravidas jayanti kab hoti hai
Ans: गुरु रविदास जयंती हर साल माघ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है, जो हिंदू पंचांग के अनुसार माघ माह की पूर्णिमा तिथि को पड़ती है। यह तिथि आमतौर पर जनवरी या फरवरी में आती है।
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