मेरा घर सब जगह है, मैं इसे उत्सुकता से खोज रहा हूँ।
मेरा देश भी सब जगह है, इसे मैं जीतने के लिए लड़ूंगा।
प्रत्येक घर में मेरा निकटतम सम्बन्धी रहता है,
मैं उसे रह स्थान पर तलाश करता हूँ।
गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर
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रविंद्र नाथ टैगोर की पुण्यतिथि |
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शायद यह एक खोज थी कि वह अक्सर टक के लिए अपनी खिड़की के माध्यम से प्रकृति को घूरता रहेगा। वह स्वयं प्रकृति से बात करने लगता था। ऐसा प्रतीत होता है जैसे एक खुला नीला आकाश, चहकते हुए पक्षी, हरियाली, ठंडी हवा और प्रकृति की हर चीज उन्हें अपने पास बुला रही है।
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रविंद्र नाथ टैगोर की जयंती |
वह कल्पना की मोहक दुनिया में खो जाता यह दुनिया उसे बहुत ही सुन्दर और मनोहारी लगता। यह उसका प्रकृति के प्रति आकर्षक और कल्पनाशीलता ही थी की मात्र आठ वर्ष की आयु में ही वह कविता रचने लगा। उस समय किसी ने सोचा भी नहीं था की वह बड़ा होकर यह बालक महान साहित्यकार, चित्रकार और विचारक रविन्द्र नाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) के नाम से विश्वविख्यात होगा। आज हम आपको इस लेख में गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर की जयंती, पुण्यतिथि और जीवन परिचय के बारे में जानेगें।
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रवींद्रनाथ टैगोर जयंती कब है? (Rabindranath Tagore Jayanti)
टैगोर के राष्ट्रवाद सम्बन्धी विचारों की तो आज भी धाक है। कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, निबंधकार, नाटककार और चित्रकार ये सारी खूबियां रविन्द्र नाथ टैगोर जी की अंदर थी। इनकी जयंती 7 मई को पूरे देश में धूम-धाम से मनाया जाता है।
रबीन्द्रनाथ टैगोर जन्म की तारीख और समय
रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता के जोरासांको ठाकुरबाड़ी में हुआ था। उनके जन्म का समय प्राचीन हिंदू पंचांग के अनुसार सुबह 4:30 बजे माना जाता है। उनका जन्म एक समृद्ध और सांस्कृतिक रूप से प्रगतिशील ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
रविन्द्र नाथ टैगोर का जीवन परिचय (rabindranath tagore ka jivan parichay)
रविन्द्र नाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री देवेंद्रनाथ टैगोर और माता शारदा देवी था। घर के लोग रविंद्र नाथ टैगोर को रवि कहते थे। उन दिनों बच्चों के लिए मनोरंजन के कोई विशेष साधन जैसे - फिल्मे, टेलीविजन, रेडियो, गेम आदि नहीं थे। इसलिए नन्हा रवि अपनी कल्पना की दुनिया में ही मस्त रहता।
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जिसमे उसके मित्र राजकुमार, जादूगरनियाँ, परिया व राक्षस होते। प्रकृति से रवि को इतना प्रेम था कि सुबह उठते ही वह बगीचे की ओर भागता और ओस से भीगी हरी घास का स्पर्श करता है बगीचे में पत्तो पर पड़ती सूर्य की पहली किरण और ताजा खिले फूलों की महक उनका मन मोह लेता।
रविन्द्र नाथ टैगोर की शिक्षा
रवि को स्कूल में वर्ष 1868 में प्रवेश मिला था लेकिन उसे वहाँ का माहौल पसंद नहीं था। स्कूल ने उसे एक जेल की तरह महसूस कराया क्योंकि वह घर की तरह खिड़की से बाहर नहीं देख सकता था और सबक उबाऊ था। पाठ तैयार न करके आने की सजा था सर पर ढेर सारी स्लेटें रखकर बेंच पर खड़ा होना या डंडे की मार सहना। नतीजा बालक रवि उस विद्यालय में नहीं टिक पाया। उन्हें दूसरे स्कूल में एडमिशन दिलाया गया और रवि के बड़े भाई हेमेन्द्र ने रवि को पढ़ाने की जिम्मेदारी खुद ले ली।
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उन्होंने कुश्ती, चित्रकारी, व्यायाम और विज्ञान में विशेष रूचि लेना स्टार्ट कर दिया। कविता और संगीत ये दोनों ही गुण रविन्द्र नाथ टैगोर में पहले से ही मौजूद थे। रविन्द्र नाथ टैगोर ने बड़े होकर लिखा - मुझे ऐसा कोई समय याद नहीं जब मैं गा नहीं सका।
जब रविंद्र के माता-पिता ने देखा कि रविंद्र ने छोटी उम्र में कविता लिखना शुरू कर दिया है, तो उन्हें बहुत खुशी हुई कि 17 साल की उम्र में, रवींद्र को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए उनके परिवार द्वारा इंग्लैंड भेजा गया था। वह चित्रकला और लेखन में अधिक कुशल होते हुए वहां से भारत लौटे।
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रविन्द्र नाथ टैगोर का वैवाहिक जीवन
1883 में, रविन्द्र नाथ टैगोर का विवाह मृणालिनी देवी से हुआ था। रविन्द्र नाथ के पिता ने उनसे कहा - रवि, मुझे लगता है कि अब आप अपनी जिम्मेदारी को संभालने में सक्षम हो गए हैं, आप क्या सोचते हैं? रविन्द्र नाथ टैगोर यह सुनकर बहुत खुश हुए क्योंकि उन्हें हमेशा प्रकृति के बीच रहना पसंद था। इसलिए वह अपने गाँव गया, यह उसके जीवन का पहला मौका था जब वह ग्रामीण लोगों के इतने करीब आया।
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उन्होंने अनुभव किया कि भारत की प्रगति के लिए देहातो का विकास किया जाना आवश्यक है उन्होंने मासूस किया की ग्रामीण जनता की समस्याओं को हल करने के लिए उनकी समस्याओं की पूरी-पूरी जानकारी होना और निरंतर प्रयास किया जाना आवश्यक है।
रवींद्र नाथ टैगोर अपने किरायेदारों से इतना प्यार करते थे कि वे कहते थे - हमने पैगंबर को नहीं देखा है, लेकिन उनके बाबू मोशाय को देखा है। जब रवींद्र नाथ टैगोर ने देखा कि गरीब और अशिक्षित किसान अंधविश्वासों में जकड़े हुए है तो उन्होंने उनके लिए एक स्कूल खोलने का निश्चय किया।
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रविन्द्र नाथ ने अपनी पत्नी से पूछा - हमारे पास शान्तिनिकेतन (बेस्ट बंगाल में बोलपुर के निकट) में कुछ भूमि है वहा पर स्कूल खोलने के सम्बन्ध में तुम्हारा क्या विचार है? यह एक बहुत ही पवित्र कार्य होगा - मृणालिनी ने कहा, इसके बाद मृणालिनी ने टैगोर को थोड़ा चिढ़ाते हुए कहा - लेकिन मैंने सुना है कि उन्हें अपने स्कूल में पढ़ना कभी पसंद नहीं था।
तब टैगौर बोले - हाँ सच है लेकिन मैंने ऐसे स्कूल को खोलने की योजना बनाई है जो चहार दीवारों से घिरा हुआ नहीं होगा। वास्तव में, उन्होंने स्कूल की कल्पना करने के तरीके को भी महसूस किया। आज इस प्रकार का विद्यालय शान्तिनिकेतन के रूप में हमारे सामने है। इस स्कूल में कक्षाएं खुले वातावरण में पेड़ों के नीचे चलती हैं। इस स्कूल की स्थापना में रविंद्र नाथ को अत्यंत संघर्ष झेलने पड़े लेकिन वे खुश थे क्योंकि यह बहुत शुभ कार्य था।
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शांतिनिकेतन की स्थापना के पश्चात कई दुखद घटनाओं का तांता लग गया पहले रविंद्र नाथ की पत्नी फिर पुत्री तथा पिता का निधन हो गया और उसके कुछ दिनों बाद उनका छोटा बेटा भी चल बसा रविन्द्र नाथ ने अपने दुःख को ह्रदय की गहराइयों से दबाकर अपना सारा ध्यान स्कूल चलाने में लगा दिया। उन्होंने स्कूल में एक शैक्षिक माहौल बनाया जिसमें शिक्षक और छात्र एक साथ रहते थे और सभी एक साथ काम करते थे।
इस स्कूल का मुख्य उद्देश्य शिक्षा को जीवन का अभिन्न अंग बनाना था। शान्तिनिकेतन को बाद में विश्वभारती विश्वविद्यालय के रूप में जाना गया। रविंद्र नाथ टैगोर ने 28 दिसंबर 1921 को विश्व भारती विश्वविद्यालय को देश को समर्पित करते हुए कहा था - यह एक ऐसा स्थान है जहाँ सम्पूर्ण विश्व एक घोंसले में घर बनाता है।
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रवींद्र नाथ टैगोर इससे संतुष्ट नहीं थे और कहा कि भारत की समृद्धि के लिए आपसी भाईचारा और शांति आवश्यक थी। उन्होंने हस्तशिल्प और पशुपालन के उन्नत तरीकों के विकास और गांव की प्रगति के लिए हस्तशिल्प के विकास पर जोर दिया।
rabindranath tagore essay in hindi
रवींद्रनाथ टैगोर पर निबंध
परिचय:
रवींद्रनाथ टैगोर, जिन्हें प्यार से "गुरुदेव" कहा जाता है, भारतीय साहित्य, संगीत और कला के एक महान रत्न थे। उनका जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता के एक समृद्ध परिवार में हुआ था। वह एक कवि, उपन्यासकार, दार्शनिक और चित्रकार थे। उनकी कृतियों ने भारतीय संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दी।
शिक्षा और प्रारंभिक जीवन:
रवींद्रनाथ टैगोर ने औपचारिक शिक्षा को ज्यादा महत्व नहीं दिया और अपनी पढ़ाई घर पर ही पूरी की। वे बचपन से ही साहित्य, संगीत और कला में रुचि रखते थे। उन्होंने प्रकृति के सौंदर्य और मानव जीवन के जटिल पहलुओं को अपनी कविताओं और कहानियों में बड़ी गहराई से व्यक्त किया।
साहित्यिक योगदान:
रवींद्रनाथ टैगोर का साहित्यिक योगदान अद्वितीय है। उनकी प्रसिद्ध कृतियों में गीतांजलि, गोरा, घरे-बाइरे और काबुलीवाला शामिल हैं। गीतांजलि ने उन्हें 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिलाया। वे ऐसे पहले एशियाई व्यक्ति थे जिन्हें यह सम्मान मिला। उनकी कविताएं भावनाओं, प्रेम और प्रकृति के अद्भुत संगम को प्रस्तुत करती हैं।
राष्ट्रीय योगदान:
रवींद्रनाथ टैगोर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से भी जुड़े थे। हालांकि, वे अहिंसा और शांति के पक्षधर थे। उन्होंने "जन गण मन" की रचना की, जो बाद में भारत का राष्ट्रीय गान बना। उनके विचारों ने भारतीय समाज और राजनीति को गहराई से प्रभावित किया।
शांति निकेतन की स्थापना:
रवींद्रनाथ टैगोर ने 1901 में पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन में विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना की। इस विश्वविद्यालय का उद्देश्य शिक्षा को प्रकृति के करीब ले जाना और भारतीय संस्कृति के साथ-साथ विश्व संस्कृति का अध्ययन करना था।
समाज पर प्रभाव:
रवींद्रनाथ टैगोर ने भारतीय समाज में जागरूकता लाने के लिए अपने लेखन और विचारों का उपयोग किया। उन्होंने नारी सशक्तिकरण, जातिवाद, और शिक्षा के अधिकार पर जोर दिया। उनके विचार आधुनिक भारत के निर्माण में बहुत सहायक रहे।
निष्कर्ष:
रवींद्रनाथ टैगोर न केवल एक महान कवि और साहित्यकार थे, बल्कि वे मानवता के प्रतीक भी थे। उनकी रचनाएं और विचार हमें आज भी प्रेरित करते हैं। उन्होंने भारतीय संस्कृति को एक नई ऊंचाई दी और अपने अमूल्य योगदान से विश्व को प्रेरित किया। उनकी कृतियां सदैव अमर रहेंगी।
रवींद्रनाथ टैगोर की कविता हिंदी में
रवींद्रनाथ टैगोर की कविता "Where the Mind is Without Fear" (अंग्रेजी में लिखी गई) का हिंदी अनुवाद प्रसिद्ध है। इसे "जहां मन भयमुक्त हो" के रूप में जाना जाता है।
जहां मन हो भय से मुक्त
जहां मन हो भय से मुक्त,
और सिर सदा ऊंचा रहे।
जहां ज्ञान स्वतंत्र हो,
जहां घर की दीवारों से टूट न सके संसार।
जहां सच्चाई की गहराई हो,
जहां विचार न थके,
जहां कर्म बिना रुके बढ़े,
जहां बुद्धि की धारा हो निर्मल।
जहां मन चले,
उस ऊंचे लक्ष्य की ओर,
जहां हर जीवन हो सुंदर।
हे मेरे ईश्वर,
स्वर्ग ऐसा बना,
मेरे भारत को।
नोट: यह कविता मूल रूप से टैगोर की रचना है, लेकिन इसके कई हिंदी अनुवाद हैं। टैगोर की रचनाओं में जीवन, मानवता और प्रेम की गहराई को महसूस किया जा सकता है।
रविंद्र नाथ टैगोर के बारे में 5 लाइन
- रवींद्रनाथ टैगोर (1861-1941) एक महान भारतीय कवि, उपन्यासकार, दार्शनिक और संगीतकार थे।
- उन्हें 1913 में उनकी कृति गीतांजलि के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला, और वे यह पुरस्कार पाने वाले पहले एशियाई थे।
- उन्होंने "जन गण मन" (भारत का राष्ट्रीय गान) और "आमार सोनार बांग्ला" (बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान) की रचना की।
- उन्होंने शांतिनिकेतन में विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना की, जो शिक्षा और संस्कृति का प्रमुख केंद्र है।
- उनका जीवन भारतीय साहित्य, कला और समाज सुधार में एक प्रेरणा स्रोत है।
रविन्द्र नाथ टैगोर की रचनाये
रविन्द्र नाथ टैगोर की रचनात्मक प्रतिभा बहुमुखी थी। उनके चिंतन, विचारों, स्वपनों व आकाँक्षाओं की अभिव्यक्ति उनकी कबिताओं, कहानियों, उपन्यास,नाटकों, गीतों और चित्रों में होती है। उनके गीतों में से एक - 'आमार सोनार बांगला' बांग्लादेश का राष्ट्रीय गीत है और उन्ही का गीत - 'जन गण मन अधिनायक जय हे' हमारा राष्ट्रगान है। रविन्द्र नाथ टैगोर के गीतों को रबीन्द्र संगीत के नाम से जाना जाता है। इन गीतों का भारतीय संगीत में एक विशेष स्थान है।
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रविन्द्र नाथ टैगोर मातृभाषा के प्रबल पक्षधर थे। उनका कहना था कि जिस प्रकार माँ के दूध पर पलने वाला बच्चा अधिक स्वस्थ और बलवान होता है वैसे ही मातृभाषा पढ़ने से मन और मस्तिष्क अधिक मजबूत बनते है। समाज को अपने देश की महान विरासत की याद दिलाने के लिए रविन्द्र नाथ टैगोर ने भारतीय इतिहास की कीर्तिमय घटनाओं तथा प्रसिद्ध भारतीय व्यक्तियों के बारे में कवितायेँ तथा कहानियां लिखीं इनमें से अनेक कवितायेँ कथाओं कहानी प्रकाशित हुई।
रवीन्द्रनाथ टैगोर के शैक्षिक विचार
रवीन्द्रनाथ टैगोर, जिन्हें "गुरुदेव" के नाम से भी जाना जाता है, भारत के महान दार्शनिक, कवि, और शिक्षाविद थे। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अपनी अनूठी दृष्टि प्रस्तुत की, जिसमें उनकी विचारधारा का केंद्रबिंदु प्रकृति, स्वतंत्रता, और समग्र विकास था। उनके शैक्षिक विचार निम्नलिखित हैं:
1. प्रकृति के साथ शिक्षा
टैगोर का मानना था कि शिक्षा को प्रकृति के साथ जोड़ा जाना चाहिए। उनका विचार था कि बच्चे प्राकृतिक वातावरण में ही सबसे अच्छी तरह से सीखते हैं। इसी सिद्धांत के आधार पर उन्होंने शांति निकेतन (अब विश्वभारती विश्वविद्यालय) की स्थापना की, जहाँ शिक्षार्थी खुले वातावरण में पढ़ाई करते थे।
2. स्वतंत्रता पर बल
टैगोर ने बच्चों की रचनात्मकता और स्वतंत्रता को बढ़ावा देने पर जोर दिया। उनका मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य बच्चों को उनकी क्षमताओं को पहचानने और उनका उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना होना चाहिए, न कि उन्हें किसी निश्चित साँचे में ढालना।
3. समग्र शिक्षा
उन्होंने कहा कि शिक्षा केवल बौद्धिक विकास तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसमें मानसिक, शारीरिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विकास भी शामिल होना चाहिए। टैगोर ने गीत, नृत्य, कला और साहित्य को शिक्षा का अभिन्न हिस्सा बनाया।
4. सृजनात्मकता और कला
टैगोर ने सृजनात्मकता को शिक्षा में विशेष स्थान दिया। उनका विचार था कि संगीत, नृत्य, साहित्य, और चित्रकला जैसे रचनात्मक कौशल बच्चों के व्यक्तित्व विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
5. सार्वभौमिकता और मानवता
टैगोर ने शिक्षा को मानवता और सार्वभौमिकता से जोड़ा। उनका मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य ऐसा वातावरण बनाना होना चाहिए, जहाँ हर व्यक्ति एक-दूसरे की संस्कृति और परंपराओं का सम्मान करे और वैश्विक नागरिक बने।
6. गुरु-शिष्य परंपरा
टैगोर प्राचीन भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा के समर्थक थे। उन्होंने शिक्षक और छात्र के बीच घनिष्ठ संबंध को शिक्षा के लिए आवश्यक माना।
7. अनुभव आधारित शिक्षा
उनका मानना था कि शिक्षा केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं होनी चाहिए। बच्चों को व्यावहारिक और अनुभव आधारित शिक्षा दी जानी चाहिए, जिससे वे जीवन की समस्याओं का समाधान कर सकें।
8. शिक्षा में भाषा का महत्व
टैगोर ने मातृभाषा में शिक्षा के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि बच्चे अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करके बेहतर तरीके से ज्ञान को आत्मसात कर सकते हैं।
टैगोर की शिक्षा प्रणाली का प्रभाव
उनके विचार आधुनिक शिक्षा प्रणाली के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उन्होंने पारंपरिक शिक्षा की जड़ता को तोड़ते हुए एक नई दृष्टि प्रस्तुत की, जो आज भी प्रासंगिक है।
शांति निकेतन आज भी उनके शैक्षिक आदर्शों का उदाहरण प्रस्तुत करता है और उनके विचारों की स्थायित्व को दर्शाता है।
rabindranath tagore kaun the
Rabindranath Tagore (1861–1941) एक महान भारतीय कवि, साहित्यकार, दार्शनिक, संगीतकार और समाज सुधारक थे। वे भारत और एशिया के पहले व्यक्ति थे, जिन्हें 1913 में उनके कविता संग्रह "गीतांजलि" के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला।
उनकी प्रमुख विशेषताएँ:
1. कवि और लेखक:
उन्होंने बंगाली और अंग्रेज़ी में रचनाएँ लिखीं। उनकी कविताएँ, कहानियाँ, नाटक और उपन्यास आज भी बेहद लोकप्रिय हैं।
2. राष्ट्रीय गान के रचयिता:
- भारत का राष्ट्रीय गान "जन गण मन" और
- बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान "आमार सोनार बांग्ला" भी उन्होंने ही लिखा।
3. संगीतकार:
उन्होंने हजारों गीतों की रचना की, जिन्हें "रवींद्र संगीत" कहा जाता है। ये गीत बंगाल और भारत में अत्यधिक प्रिय हैं।
4. शिक्षा सुधारक:
उन्होंने 1921 में पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना की। यह विश्वविद्यालय आज भी भारतीय शिक्षा और संस्कृति का प्रमुख केंद्र है।
5. दर्शन और समाज सुधार:
वे भारतीय संस्कृति, मानवता और स्वतंत्रता के समर्थक थे। उन्होंने समाज में कई कुरीतियों और भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई।
उनकी रचनाएँ जैसे "गीतांजलि", "गोरा", "घरे बाइरे" (The Home and the World) और "चोखेर बाली" साहित्य के अमूल्य खजाने मानी जाती हैं।
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रवीन्द्रनाथ टैगोर: परिचय
रवीन्द्रनाथ टैगोर (1861-1941) भारतीय साहित्य, कला और संस्कृति के महान व्यक्तित्व थे। उन्हें "गुरुदेव" के नाम से भी जाना जाता है। वे एक कवि, उपन्यासकार, नाटककार, दार्शनिक, चित्रकार, और संगीतकार थे।
मुख्य जानकारी
1. जन्म:
- 7 मई 1861
- स्थान: कोलकाता, पश्चिम बंगाल
2. मृत्यु:
- 7 अगस्त 1941
शिक्षा और लेखन
- रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही प्राप्त की। वे बचपन से ही साहित्य और कला के प्रति रुचि रखते थे।
- उन्होंने बंगाली और अंग्रेजी में लेखन किया और उनकी कृतियों का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ।
महत्वपूर्ण कृतियाँ
1. गीतांजलि:
- उनके कविता संग्रह "गीतांजलि" के लिए उन्हें 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला।
2. उपन्यास:
- गोरा, चोखेर बाली, घरे बाइरे (द होम एंड द वर्ल्ड)
3. कहानी और नाटक:
- काबुलीवाला, डाकघर, विसर्जन
राष्ट्रीय गान और संगीत
- उन्होंने भारत का राष्ट्रीय गान "जन गण मन" और बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान "आमार सोनार बांग्ला" लिखा।
- उन्होंने 2,000 से अधिक गीतों की रचना की, जिन्हें रवींद्र संगीत के नाम से जाना जाता है।
शिक्षा और समाज सुधार
- 1921 में उन्होंने पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना की।
- वे समाज में समानता, शांति, और स्वतंत्रता के समर्थक थे।
सम्मान और योगदान
- टैगोर एशिया के पहले व्यक्ति थे, जिन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के समर्थक थे, लेकिन उन्होंने हिंसा का विरोध किया।
- उन्होंने 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में ब्रिटिश सरकार द्वारा दिया गया "नाइटहुड" का खिताब लौटा दिया।
रवीन्द्रनाथ टैगोर की विरासत
उनकी कृतियाँ, विचार और शिक्षाएँ भारतीय संस्कृति और विश्व साहित्य में अमूल्य योगदान हैं। टैगोर का जीवन मानवता, कला और साहित्य के प्रति उनकी अपार निष्ठा का प्रतीक है।
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रविन्द्र नाथ टैगोर को कौन-कौन उपाधि एवं पुरस्कार प्राप्त है?
- राष्ट्रपिता महात्मा गांधी रविन्द्र नाथ टैगोर के व्यक्तित्व से अत्यंत प्रभावित थे। रविन्द्र नाथ टैगोर ने गांधी को 'महात्मा' कहा और गांधी ने रविन्द्र नाथ टैगोर को 'गुरुदेव' की उपाधि दी।
- रविन्द्र नाथ टैगोर को उनकी कविता "गीतांजलि" के लिए 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। वह यह सम्मान पाने वाले पहले एशियाई व्यक्ति थे, और उन्होंने इस पुरस्कार में मिले सभी पैसे शांतिनिकेतन में निवेश किए।
- सन 1915 में अंग्रेजों द्वारा उन्हें सर की उपाधि दी गई। अप्रैल 1919 में जालियांवाला बाग हत्याकांड हुआ इस बर्बर हत्याकांड के विरोध में रविन्द्र नाथ टैगोर ने अंग्रेज सरकार द्वारा प्रदान की गई सर की उपाधि का त्याग कर दिया।
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रविंद्र नाथ टैगोर की पुण्यतिथि (rabindranath tagore punyatithi)
हम जब कभी अपने देश भारत की राष्ट्र्गान को सुनते है तो मन में देशभक्ति का भाव खुद-ब-खुद आ जाता है। आपको पता ही होगा हमारे देश का राष्ट्रगान श्री रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा था और 7 अगस्त के दिन को हम सभी लोग रविन्द्र नाथ टैगोर की पुण्यतिथि के रूप में मनाते है। यहीं नहीं पूरा विश्व उन्हें 7 अगस्त के दिन याद करता है।
रविंद्र नाथ टैगोर की मृत्यु कब हुई थी (rabindranath tagore ki mrityu kab hui)
7 अगस्त 1941 को एक लम्बी बीमारी के बाद 80 वर्ष की आयु में रविन्द्र नाथ टैगोर का निधन हो गया। रविन्द्र नाथ टैगोर एक ऐसे व्यक्ति है जो मर कर भी अमर है।
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