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रविन्द्र नाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) जयंती और पुण्यतिथि कब है?

मेरा घर सब जगह है, मैं इसे उत्सुकता से खोज रहा हूँ। 

मेरा देश भी सब जगह है, इसे मैं जीतने के लिए लड़ूंगा। 

प्रत्येक घर में मेरा निकटतम सम्बन्धी रहता है,

मैं उसे रह स्थान पर तलाश करता हूँ। 

                        गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर

रविंद्र नाथ टैगोर की पुण्यतिथि Rabindranath Tagore Punytithi

रविंद्र नाथ टैगोर की पुण्यतिथि 

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शायद यह एक खोज थी कि वह अक्सर टक के लिए अपनी खिड़की के माध्यम से प्रकृति को घूरता रहेगा। वह स्वयं प्रकृति से बात करने लगता था। ऐसा प्रतीत होता है जैसे एक खुला नीला आकाश, चहकते हुए पक्षी, हरियाली, ठंडी हवा और प्रकृति की हर चीज उन्हें अपने पास बुला रही है।

रविंद्र नाथ टैगोर की  जयंती  

वह कल्पना की मोहक दुनिया में खो जाता यह दुनिया उसे बहुत ही सुन्दर और मनोहारी लगता। यह उसका प्रकृति के प्रति आकर्षक और कल्पनाशीलता ही थी की मात्र आठ वर्ष की आयु में ही वह कविता रचने लगा। उस समय किसी ने सोचा भी नहीं था की वह बड़ा होकर यह बालक महान साहित्यकार, चित्रकार और विचारक रविन्द्र नाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) के नाम से विश्वविख्यात होगा। आज हम आपको इस लेख में गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर की जयंती, पुण्यतिथि और जीवन परिचय के बारे में जानेगें। 

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रविन्द्र नाथ टैगोर की जयंती कब है? Rabindranath Tagore Jayanti

टैगोर के राष्ट्रवाद  सम्बन्धी विचारों की तो आज भी धाक है। कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, निबंधकार, नाटककार और चित्रकार ये सारी खूबियां रविन्द्र नाथ टैगोर जी की अंदर थी। इनकी जयंती 7 मई को पूरे देश में धूम-धाम से मनाया जाता है। 

रविन्द्र नाथ टैगोर का जीवन परिचय 

रविन्द्र नाथ टैगोर  का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री देवेंद्रनाथ टैगोर और माता शारदा देवी था। घर के लोग रविंद्र नाथ टैगोर को रवि कहते थे। उन दिनों बच्चों के लिए मनोरंजन के कोई विशेष साधन जैसे - फिल्मे, टेलीविजन, रेडियो, गेम आदि नहीं थे। इसलिए नन्हा रवि  अपनी कल्पना की दुनिया में ही मस्त रहता। 

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जिसमे उसके मित्र राजकुमार, जादूगरनियाँ, परिया व राक्षस होते। प्रकृति से रवि को इतना प्रेम था कि सुबह उठते ही वह बगीचे की ओर भागता और ओस से भीगी हरी घास का स्पर्श करता है बगीचे में पत्तो पर पड़ती सूर्य की पहली किरण और ताजा खिले फूलों की महक उनका मन मोह लेता। 

रविन्द्र नाथ टैगोर की शिक्षा

रवि को स्कूल में वर्ष 1868 में प्रवेश मिला था लेकिन उसे वहाँ का माहौल पसंद नहीं था। स्कूल ने उसे एक जेल की तरह महसूस कराया क्योंकि वह घर की तरह खिड़की से बाहर नहीं देख सकता था और सबक उबाऊ था। पाठ तैयार न करके आने की सजा था सर पर ढेर सारी स्लेटें रखकर बेंच पर खड़ा होना या डंडे की मार सहना। नतीजा बालक रवि उस विद्यालय में नहीं टिक पाया। उन्हें दूसरे स्कूल में एडमिशन दिलाया गया और रवि के बड़े भाई हेमेन्द्र ने रवि को पढ़ाने की जिम्मेदारी खुद ले ली। 

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उन्होंने कुश्ती, चित्रकारी, व्यायाम और विज्ञान में विशेष रूचि लेना स्टार्ट कर दिया। कविता और संगीत ये दोनों ही गुण रविन्द्र नाथ टैगोर में पहले से ही मौजूद थे। रविन्द्र नाथ टैगोर ने बड़े होकर लिखा - मुझे ऐसा कोई समय याद नहीं जब मैं गा नहीं सका। 

जब  रविंद्र के माता-पिता ने देखा कि  रविंद्र ने छोटी उम्र में कविता लिखना शुरू कर दिया है, तो उन्हें बहुत खुशी हुई कि 17 साल की उम्र में, रवींद्र को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए उनके परिवार द्वारा इंग्लैंड भेजा गया था। वह चित्रकला और लेखन में अधिक कुशल होते हुए वहां से भारत लौटे।

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रविन्द्र नाथ टैगोर का वैवाहिक जीवन

1883 में, रविन्द्र नाथ टैगोर का विवाह मृणालिनी देवी से हुआ था। रविन्द्र नाथ के पिता ने उनसे कहा - रवि, मुझे लगता है कि अब आप अपनी जिम्मेदारी को संभालने में सक्षम हो गए हैं, आप क्या सोचते हैं? रविन्द्र नाथ टैगोर यह सुनकर बहुत खुश हुए क्योंकि उन्हें हमेशा प्रकृति के बीच रहना पसंद था। इसलिए वह अपने गाँव गया, यह उसके जीवन का पहला मौका था जब वह ग्रामीण लोगों के इतने करीब आया।

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उन्होंने अनुभव किया कि भारत की प्रगति के लिए देहातो का विकास किया जाना आवश्यक है उन्होंने मासूस किया की ग्रामीण जनता की समस्याओं को हल करने के लिए उनकी समस्याओं की पूरी-पूरी जानकारी होना और निरंतर प्रयास किया जाना आवश्यक है। 

रवींद्र नाथ टैगोर अपने किरायेदारों से इतना प्यार करते थे कि वे कहते थे - हमने पैगंबर को नहीं देखा है, लेकिन उनके बाबू मोशाय को देखा है। जब रवींद्र नाथ टैगोर ने देखा कि गरीब और अशिक्षित किसान अंधविश्वासों में जकड़े हुए है तो उन्होंने उनके लिए एक स्कूल खोलने का निश्चय किया। 

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रविन्द्र नाथ ने अपनी पत्नी से पूछा - हमारे पास शान्तिनिकेतन (बेस्ट बंगाल में बोलपुर के निकट) में कुछ भूमि है वहा पर स्कूल खोलने के सम्बन्ध में तुम्हारा क्या विचार है? यह एक बहुत ही पवित्र कार्य होगा - मृणालिनी ने कहा, इसके बाद मृणालिनी ने टैगोर को थोड़ा चिढ़ाते हुए कहा - लेकिन मैंने सुना है कि उन्हें अपने स्कूल में पढ़ना कभी पसंद नहीं था।

तब टैगौर बोले - हाँ सच है लेकिन मैंने ऐसे स्कूल को खोलने की योजना बनाई है जो चहार दीवारों से घिरा हुआ नहीं होगा। वास्तव में, उन्होंने स्कूल की कल्पना करने के तरीके को भी महसूस किया। आज इस प्रकार का विद्यालय शान्तिनिकेतन के रूप में हमारे सामने है। इस स्कूल में कक्षाएं खुले वातावरण में पेड़ों के नीचे चलती हैं। इस स्कूल की स्थापना में रविंद्र नाथ को अत्यंत संघर्ष झेलने पड़े लेकिन वे खुश थे क्योंकि यह बहुत शुभ कार्य था। 

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शांतिनिकेतन की स्थापना के पश्चात कई दुखद घटनाओं का तांता लग गया पहले रविंद्र नाथ की पत्नी  फिर पुत्री तथा पिता का निधन हो गया और उसके कुछ दिनों बाद उनका छोटा बेटा भी चल बसा रविन्द्र नाथ ने अपने दुःख को ह्रदय की गहराइयों से दबाकर अपना सारा ध्यान स्कूल चलाने में लगा दिया। उन्होंने स्कूल में एक शैक्षिक माहौल बनाया जिसमें शिक्षक और छात्र एक साथ रहते थे और सभी एक साथ काम करते थे।

इस स्कूल का मुख्य उद्देश्य शिक्षा को जीवन का अभिन्न अंग बनाना था। शान्तिनिकेतन को बाद में विश्वभारती विश्वविद्यालय के रूप में जाना गया। रविंद्र नाथ टैगोर ने 28 दिसंबर 1921 को विश्व भारती विश्वविद्यालय को देश को समर्पित करते हुए कहा था - यह एक ऐसा स्थान है जहाँ सम्पूर्ण विश्व एक घोंसले में घर बनाता है। 

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रवींद्र नाथ टैगोर इससे संतुष्ट नहीं थे और कहा कि भारत की समृद्धि के लिए आपसी भाईचारा और शांति आवश्यक थी। उन्होंने हस्तशिल्प और पशुपालन के उन्नत तरीकों के विकास और गांव की प्रगति के लिए हस्तशिल्प के विकास पर जोर दिया।

रविन्द्र नाथ टैगोर की रचनाये

रविन्द्र नाथ टैगोर की रचनात्मक प्रतिभा बहुमुखी थी। उनके चिंतन, विचारों, स्वपनों व आकाँक्षाओं की अभिव्यक्ति उनकी कबिताओं, कहानियों, उपन्यास,नाटकों, गीतों और चित्रों में होती है। उनके गीतों में से एक - 'आमार सोनार बांगला' बांग्लादेश का राष्ट्रीय गीत है और उन्ही का गीत - 'जन गण मन अधिनायक जय हे' हमारा राष्ट्रगान है। रविन्द्र नाथ टैगोर के गीतों को रबीन्द्र संगीत के नाम से जाना जाता है। इन गीतों का भारतीय संगीत में एक विशेष स्थान है।

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रविन्द्र नाथ टैगोर मातृभाषा के प्रबल पक्षधर थे। उनका कहना था कि जिस प्रकार माँ के दूध पर पलने वाला बच्चा अधिक स्वस्थ और बलवान होता है वैसे ही मातृभाषा पढ़ने से मन और मस्तिष्क अधिक मजबूत बनते है। समाज को अपने देश की महान विरासत की याद दिलाने के लिए रविन्द्र नाथ टैगोर ने भारतीय इतिहास की कीर्तिमय घटनाओं तथा प्रसिद्ध भारतीय व्यक्तियों के बारे में कवितायेँ तथा कहानियां लिखीं इनमें से अनेक कवितायेँ कथाओं कहानी प्रकाशित हुई। 

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रविन्द्र नाथ टैगोर को कौन-कौन उपाधि एवं पुरस्कार प्राप्त है?

  • राष्ट्रपिता महात्मा गांधी रविन्द्र नाथ टैगोर के व्यक्तित्व से अत्यंत प्रभावित थे। रविन्द्र नाथ टैगोर ने गांधी को 'महात्मा' कहा और गांधी ने रविन्द्र नाथ टैगोर को 'गुरुदेव' की उपाधि दी। 
  • रविन्द्र नाथ टैगोर को उनकी कविता "गीतांजलि" के लिए 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। वह यह सम्मान पाने वाले पहले एशियाई व्यक्ति थे, और उन्होंने इस पुरस्कार में मिले सभी पैसे शांतिनिकेतन में निवेश किए।
  • सन 1915 में अंग्रेजों द्वारा उन्हें सर की उपाधि दी गई। अप्रैल 1919 में जालियांवाला बाग हत्याकांड हुआ इस बर्बर हत्याकांड के विरोध में रविन्द्र नाथ टैगोर ने  अंग्रेज सरकार द्वारा प्रदान की गई सर की उपाधि का त्याग कर दिया।

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रविंद्र नाथ टैगोर की पुण्यतिथि Rabindranath Tagore Punytithi
रविंद्र नाथ टैगोर की पुण्यतिथि 

रविंद्र नाथ टैगोर की पुण्यतिथि Rabindranath Tagore Punytithi

हम जब कभी अपने देश भारत की राष्ट्र्गान को सुनते है तो मन में देशभक्ति का भाव खुद-ब-खुद आ जाता है। आपको पता ही होगा हमारे देश का राष्ट्रगान श्री रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा था और 7 अगस्त के दिन को हम सभी लोग रविन्द्र नाथ टैगोर की पुण्यतिथि के रूप में मनाते है। यहीं नहीं पूरा विश्व उन्हें 7 अगस्त के दिन याद करता है। 

रविन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु

7 अगस्त 1941 को एक लम्बी बीमारी के बाद 80 वर्ष की आयु में रविन्द्र नाथ टैगोर का निधन हो गया। रविन्द्र नाथ टैगोर एक ऐसे व्यक्ति है जो मर कर भी अमर है। 

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