डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक भारतीय शिक्षाविद्, विचारक, महान विद्वान, राजनीतिज्ञ, भारत के महान नेताओ में से एक और भारतीय जन संघ के संस्थापक थे। उन्हें एक उत्साही राष्ट्रवादी राजनेता के रूप में जाना जाता है। वह पंडित जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में उद्योग और आपूर्ति कैबिनेट मंत्री थे, लेकिन नेहरू के साथ मतभेदों के कारण, उन्होंने कैबिनेट और कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया और एक नई राजनीतिक पार्टी "भारतीय जनसंघ" की स्थापना की। केंद्र सरकार में मंत्री बनने से पहले वे पश्चिम बंगाल सरकार में वित्त मंत्री के पद पर कार्यरत रह चुके थे। 33 साल की आयु में ही वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति भी बने। वह इस पद पर नियुक्त होने वाले पहले कम उम्र के व्यक्ति या कुलपति थे।
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डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती कब है? (Shyama Prasad Mukherjee Birthday)
स्वतंत्रता के बाद देश को एक राष्ट्र के तौर पर आगे ले जाने और जन-जन तक आजादी की अहमियत को पहुंचाने के लिए तमाम दलों ने साथ मिलकर काम किया। आजादी के वक्त देश की अंतरिम जो सरकार बनी उसमें तमाम दलों के लोग शामिल थे। इन लोगों की राजनितिक राय एक दूसरे से अलग जरूर रही होगी लेकिन देश को नए रस्ते पर ले जाने की चाहत सबके मन में थी।
इनमे से कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्होंने अपनी विचारधारा और राष्ट्रवाद के अपने सिद्धांत से कभी समझौता नहीं किया और देश की अखंडता के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर का दिया। ऐसे ही शख्सियत थे श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक दक्ष राजनीतिज्ञ, विद्वान और स्पष्टवादी के तौर पर वो न सिर्फ अपने चाहने वालों को बल्कि वैचारिक विरोधियों के बीच भी सम्मान के साथ याद किये जाते है। इनकी जयंती 6 जुलाई को पुरे देश भर में मनाई जाती है।
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डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का प्रारम्भिक जीवन (shyama prasad mukherjee in hindi)
6 जुलाई 1901 कलकत्ता बंगाल के सुप्रसिद्ध समाज सेवी, प्रतिष्ठित परिवार, न्यायविद और शिक्षशास्त्री सर आशुतोष मुखर्जी के घर एक तेजोमय बालक का जन्म हुआ और नाम रखा गया श्यामा प्रसाद। उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी जो की जज थे हाई कोर्ट ऑफ़ कलकत्ता के और एक शिक्षाविद् के रूप में जाने जाते थे और उनकी माता का नाम योगमाया देवी था।
पिता के राष्ट्रभक्यि और निरभीगता के गुण श्यामा बाबू को बिरासत में मिले और वे पढ़ाई लिखाई में बहुत तेज थे। उमा प्रसाद पुखोपध्याय उनके छोटे भाई थे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बचपन का नाम बेनी था लेकिन भाइयो के मुकाबले अधिक सावला होने के कारण सब उन्हें भूतिया या भूति कहकर बुलाते थे। पिता के निजी पुस्तकालय में विभिन्न विषयों पर 85 हजार श्रेष्ठ ग्रंथ थे जो उन्होंने पढ़ डाले। वे अत्यंत अध्ययनशील थे उनके निवास स्थान में चरों और केवल पुस्तके ही दिखाई देती थी हजारों पुस्तक थी।
उनकी प्राथमिक शिक्षा भवानीपुर के मित्र इंस्टीटूशन से हुई थी। उन्होंने 1917 में मैट्रिक किया और 1921 में बी. ए. की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। इसके बाद उन्होंने बंगाली विषय में एम.ए. किया। उन्होंने भी प्रथम स्थान के साथ उत्तीर्ण किया और 1924 में कानून की पढ़ाई पूरी की। इस प्रकार उन्होंने कम उम्र में शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलता हासिल की और जल्द ही उनकी प्रसिद्धि एक शिक्षाविद् और लोकप्रिय प्रशासक के रूप में फैल गई। 1924 में अपने पिता की मृत्यु के बाद, उन्होंने कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकालत के लिए पंजीकरण कराया।
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श्यामा प्रसाद मुखर्जी का वैवाहिक जीवन
सन 1922 में श्यामा बाबू का विवाह सुधा देवी से हुआ। उनके दो पुत्र और दो पुत्रियां थी। दुर्भाग्य से उनका दांपत्य जीवन अत्यंत अल्प रहा। सन 1933 में उनकी पत्नी का देहांत हो गया। लाख डबकं के बाद भी श्याम बाबू ने पुनः विवाह नहीं किया और अपना पूरा जीवन देश सेवा के लिए समर्पित कर दिया।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का कैरियर
वे 1926 में इंग्लैंड गए और 1927 में बैरिस्टर के रूप में भारत वापस आए। वे 1934 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बनने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे। डॉ. मुखर्जी 1938 तक इस पद पर कार्यरत रहे। 1937 में, उन्होंने गुरु रवींद्रनाथ टैगोर को कलकत्ता विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में भाषण देने के लिए आमंत्रित किया। कलकत्ता विश्वविद्यालय के इतिहास में यह पहली बार था कि किसी ने दीक्षांत समारोह में बंगाली में भाषण दिया।
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डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का राजनैतिक जीवन
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का राजनीतिक जीवन 1929 में शुरू हुआ जब उन्होंने कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर बंगाल विधान परिषद में प्रवेश किया, लेकिन जब कांग्रेस ने विधान परिषद का बहिष्कार करने का फैसला किया तो इस्तीफा दे दिया। इसके पश्चात उन्होंने स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े और चुने गए। सन 1941-42 में वह बंगाल राज्य के वित्त मंत्री रहे।
1937 और 1941 के बीच, जब कृषक प्रजा पार्टी और मुस्लिम लीग की गठबंधन की बानी हुई सरकार थी, तो वह उस समय विपक्ष के नेता थे और जब फजलुल हक के नेतृत्व में एक प्रगतिशील सरकार बनी, तो उन्होंने वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया लेकिन इस्तीफा दे दिया 1 साल के बाद। दिया। इसके बाद धीरे-धीरे वे हिंदुओं के हित की बात करने लगे और हिंदू महासभा में शामिल हो गए। 1944 में वे हिंदू महासभा के अध्यक्ष भी रहे।
श्याम प्रसाद मुखर्जी ने मुहम्मद अली जिन्ना और मुस्लिम लीग की सांप्रदायिक नीति का विरोध किया। उस समय जिन्ना मुसलमानों के लिए कई रियायतों की मांग कर रहे थे और पाकिस्तान के आंदोलन को भी हवा दे रहे थे। उन्होंने हिंदुओं को मुस्लिम लीग के सांप्रदायिक प्रचार से बचाने के लिए काम किया और मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति का विरोध किया।
डॉ. मुख़र्जी धर्म के आधार पर विभाजन के दौरान उस समय कट्टर विरोधी थे। उनके कथनानुसार विभाजन सम्बन्धी परिस्थिति ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से उत्पन्न हुई थी। वो यह भी मानते थे कि सत्य यह है की हम सब एक हैं और हममें कोई अंतर नहीं है। हम सब एक ही भाषा और संस्कृतिके हैं और रक ही हमारी विरासत है। इस सामन्यता के साथ आरम्भ में उन्होंने देश के विभाजन का विरोध किया था पर 1946-47 के दंगो के बाद उनके इस सोच में परिवर्तन आया। उन्होंने महसूस किया कि मुस्लिम लीग की सरकार में मुस्लिम बाहुल्य राज में हिन्दुओं का रहना असुरक्षित होगा। इसी कारण 1946 में उन्होंने बंगाल विभाजन का समर्थन किया।
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स्वतंत्रता के बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी का योगदान
स्वतंत्रता के बाद जब पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में सरकार बनी। बाद में, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, गांधी जी और सरदार पटेल के अनुरोध पर, भारत के पहले मंत्रिमंडल में शामिल हुए और उद्योग और आपूर्ति मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली। भारत की संविधान सभा और प्रांतीय संसद के सदस्य और केंद्रीय मंत्री के रूप में उन्होंने अपनी छाप छोड़ी लेकिन उनके राष्ट्रवादी दृष्टिकोण के कारण, अन्य कांग्रेस नेताओं के साथ मतभेद बने रहे।
अंततः सन 1950 में नेहरू-लियाकत समझौते के विरोध में उन्होंने 6 अप्रैल 1950 को मंत्रमंडल से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद उन्होंने एक नए राजनैतिक दल की स्थापना की जो उस समय सबसे बड़ा विरोधी दल था। इस प्रकार अक्टूबर 1951मे "भारतीय जनसंघ" का स्थपना हुआ। सं 1952 के चुनाव में भारतीय जनसंघ ने कुल तीन सीटें जीते जिसमें एक उनकी खुद की सीट शामिल थी।
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भारतीय जनसंघ की स्थापना
M.S. गोलवलकर से ये मिले RSS के हेड थे ये उसके बाद 21 अक्टूबर 1951 को भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई .भारतीय जन संघ बाद में दोस्तों बीजेपी बनी। 1952 के चुनाव में भारतीय जन संघ (BJS) ने डॉ. मुखर्जी सहित भारत की संसद में तीन सीटें जीतीं। भारतीय जन संघ (BJS) सभी गैर-हिंदुओं में भारतीय संस्कृति को विकसित करके राष्ट्र निर्माण और राष्ट्रीय चिन्ह के उद्देश्य से बनाया गया था। पार्टी वैचारिक रूप से आरएसएस के करीब थी और व्यापक रूप से हिंदू राष्ट्रवाद की प्रस्तावक मानी जाती थी।
भारत के विभाजन का विरोध
जब कांग्रेस के नेताओं ने देश का विभाजन स्वीकार किया तब सारा पंजाब, सारा बंगाल, असम. सिंध और पश्चिमी सीमांत प्रदेश पाकिस्तान को देने का विचार किया। ये देख डॉ. मुख़र्जी तुरंत गांधी जी के पास पहुंचे और जगह-जगह इसके खिलाफ जाग्रति की लहर पैदा की। डॉ. मुख़र्जी के अथक प्रयासों का ही परिणाम था कि आधा पंजाब. आधा बंगाल और पूरा असं पाकिस्तान के हाथों में जाने से बच गया।
जब 1947 में देश का विभाजन हुआ और पश्चिम बंगाल डॉ. मुख़र्जी के ही सतत् प्रयासों के कारण बचा रहे अन्यथा बंगाल ही नहीं बल्कि पंजाब भी पूरा का पूरा पाकिस्तान में जाने की स्थिति पैदा हो गई थी। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ आजादी के साथ-साथ बर्बरता का तांडव भी शुरू हुआ लाखों देशवासी के खून से सिज गई आजादी की कोप ने डॉ. मुखर्जी घूम-घूम कर दिलों में भरी इस घृणा की आग को मिटने का प्रयास करते रहे ये उनके ही प्रयासों का फल था कि पूर्वी पाकिस्तान में अल्प संख्यक हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार की लपटें फैलने से बट गई।
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डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के द्वारा जम्मू कश्मीर और धरा 370 का विरोध
डॉ. मुखर्जी जम्मू और कश्मीर राज्य को एक अलग दर्जा देने के सख्त खिलाफ थे और चाहते थे कि जम्मू और कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों की तरह माना जाए। वो जम्मू कश्मीर के अलग झण्डे, अलग निशान और अलग संविधान के विरोधी थे। उनको ये बात भी नागवार लगती थी कि वहां का मुख्यमंत्री (वजीरे-आजम) अर्थात प्रधानमंत्री कहलाता था। उन्होंने देश की संसद में धरा 370 को समाप्त करने का जोरदार वकालत किया।
अगस्त 1952 में, उन्होंने बिना परमिट के जम्मू और कश्मीर में अपने प्रवेश की घोषणा की, और इसे पूरा करने के लिए, उन्होंने 1953 में बिना परमिट के जम्मू और कश्मीर यात्रा पर निकल पड़े। वहाँ पहुँचते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 23 जुन 1953 को रहस्य्मय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई।
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श्यामा प्रसाद मुखर्जी पुण्यतिथि |
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का पुण्यतिथि कब मनाया जाता है? (Dr Shyama Prasad Mukherjee Punytithi)
इनका जीवन दुर्भाग से इतना लम्बा तो अनहि चला लेकिन शिक्षा से लेकर, महिला सशक्तिकरण और तकनीक को दिशा देने के लिए उन्होंने जो काम किया वो उस दौर की सोच से बहुत आगे था। खास तौर पर देश में विकास में जनभागीदारी की अहमियत को वो खुब ही समझते थे। 23 जून को भारतीय जन संघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी का पुण्यतिथि मनाया जाता है।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु कैसे हुई? (Shyama Prasad Mukherjee Death)
डॉ. मुखर्जी को 11 मई 1953 को कश्मीर में प्रवेश करने के दौरान उन्हें गिरफ्तार किया गया था। उन्हें और उसके दो गिरफ्तार साथियों को पहले श्रीनगर की सेंट्रल जेल ले जाया गया था। बाद में उन्हें शहर के बाहरी इलाके में एक झोपड़ी में स्थानांतरित कर दिया गया। मुखर्जी की हालत बिगड़ने लगी और 19 और 20 जून की दरमियानी रात को उन्हें कमर दर्द और तेज बुखार हो गया।
22 जून को उन्हें हृदय क्षेत्र में दर्द महसूस हुआ, पसीना आने लगा और ऐसा लगने लगा कि वे बेहोश हो रहे हैं। बाद में उन्हें एक अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया और अनंतिम रूप से दिल का दौरा पड़ने का पता चला, एक दिन बाद 23 जुन 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई।
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