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Maharana Pratap Biography & About of Maharana Pratap

वैसे तो हमारे देश में बहुत सारे राजाओं ने जन्म लिया लेकिन उनमें से एक महाराणा प्रताप जिन्हें लोग आज भी याद करते है और भविष्य में भी हमेशा याद करेंगे वह अपनी वीरता की वजह से अमर हो चुके है नमस्कार दोस्तों आप सभी का स्वागत है

हर कोई इतिहास नहीं बना पाता आज महाराणा प्रताप की कहानी से बहुत कुछ सिखने को मिलेगा इससे हम अपने लाइफ में बहुत आगे जा सकते है

महाराणा प्रताप का जन्म

महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 इस्वी को राजस्थान के कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआ उनके पिता का नाम महाराजा उदय सिंह और माता राणी जयवंत कंवर थी। वे राणा सांगा के पौत्र थे राणा प्रताप के पिता उदय सिंग ने अकबर से भयभीत होकर मेवाड़ त्याग कर अरावली पर्वत पर डेरा डाल लिया था

उदय सिंह ने अपने मृत्य के समय अपने छोटे पुत्र को गद्दी सौंप दी थी जो की नियमो के विरुद्ध था उदय सिंह की मृत्यु के बाद राजपूत सरदारों ने 1 मार्च 1576 को महाराणा प्रताप को मेवाड़ को गद्दी पर बैठा दिया था। वैसे तो महाराणा प्रताप वे सभी भाइयों में सबसे बड़े थे लेकिन उसके बावजूद उनके पिता ने अपने सबसे प्रिय रानी के पुत्र जगमाल को राज गद्दी सौंप दी

Maharana Pratap Information  महाराणा प्रताप सिंह   

उदय सिंह के यह नीति गलत थी क्योंकि राज गद्दी के हकदार महाराणा प्रताप थे। प्रजा तो महाराणा प्रताप से बहुत लगाव रखती थी क्योंकि महाराणा प्रताप  बचपन से ही एक लीडर के तौर पर थे एक मसीहा के तौर पर जाने जाते थे। जगमाल ने राज्य का शासन हाथ में लेते ही घमण्ड वश जनता पर अत्याचार करना शुरू कर दिया

क्योंकि वहां की जनता महाराणा प्रताप को पसंद करती थी जनता पर अत्याचार देखकर राणा प्रताप जगमाल के पास गए। और उनसे पूछा कि यह अत्याचार करके अपनी प्रजा को असन्तोष मत करो समय बड़ा नाजुक है अगर तुम नहीं सुधरे तो तुम्हारा और तुम्हारे राज का भविष्य खतरे में पड़ सकता है

जगमाल इससे गुस्से में आ गया और वो राणा प्रताप से बोला तुम्हारे पास कोई अधिकार नहीं है मै यहाँ का राजा हूँ और उन्हें सीमा से बाहर चले जाने का आदेश दे दिया राणा प्रताप तुरंत चुपचाप वहां से चले गए इन सबको ही देखकर समस्त सरदारों ने एकत्र होकर महाराणा प्रताप सिंह को राज गद्दी पर आसीन करवा दिया था


महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक कुम्भलगढ़ के राज सिंघासन पर किया गया था। ये सब देखते हुए जगमाल सिंह नाराज होकर बादशाह अकबर के पास चले गये और बादशाह ने उनको जहाजपुर का इलाका जागीर में प्रदान कर दिया इस तरह से जगमल को अकबर ने अपने साथ मिला लिया था जिस समय महाराणा प्रताप सिंह मेवाड़ की गद्दी संभाली उस समय राजपुताना साम्राज्य बेहद नाजुक तौर से गुजर रहा था

उस समय कई प्रतापी राजवंशो के उत्तराधिकारी ने अपनी कुल मर्यादा का सम्मान भुलाकर मुग़लिया वष से वैवाहिक सम्बन्ध भी स्थापित कर लिए थे और अकबर के अधीन हो गए थे। लेकिन वीर महाराणा प्रताप कभी भी अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की महाराणा प्रताप जिस घोड़े पर बैठते थे वह घोडा दुनिया के सर्वश्रेष्ठ घोड़ो में से एक था

महाराणा प्रताप जब 72 किलो का कवच पहन कर 81 किलो का भाला अपने हाथ में रखते थे। भाला और कवच सहित ढाल तलवार का वजन मिलकर कुक्ल 208 किलो का उठाकर वे युद्ध के मैदान में लड़ते थे। सोचिये तब उनकी शक्ति क्या रही होगी?

इस वजन के साथ रणभूमि में दुश्मनों से लड़ना मामूली बात नहीं है इस देश में जितने भी देश भक्त राजा हुये है उनके खिलाफ उनका ही कोई अपना जरूर रहा है। जयचंदो के कारण देश भक्तो को नुकसान उठाना पड़ा था। अकबर चाहता था कि महाराणा प्रताप अन्य राजाओं की तरह उसके कदमों में झुक जाये महाराणा प्रताप ने भी अकबर की अधीनता को कभी स्वीकार नहीं किया

अजमेर को अपना केन्द्र बनाकर अकबर ने प्रताप के विरुद्ध सैनिक अभियान छेड़ दिया था महाराणा प्रताप ने कभी अकबर से हार नहीं मानी  उनकी वीरता से अकबर की सेना में डर था। रात को सोते वक्त भी अकबर के सपनो में राणा प्रताप आते थे। प्रताप की वीरता ऐसी थी की उनके दुश्मन भी उनके युद्ध कौशल के कायल थे उदारता ऐसी की दूसरों की पकड़ी गई मुग़ल बेगमों को सम्मान पूर्वक उनके पास वापस भेज दिया जाता था

इस योद्धा ने साधन सीमित होने पर भी दुश्मन के सामने सर नहीं झुकाया और जंगल के कंद-मूल खाकर लड़ते रहे। माना जाता है कि इस योद्धा की मृत्यु पर अकबर की आंखें भी नम हो गई थी हल्दी घाटी के युद्ध के साथ ही महाराणा प्रताप की वीरता की चर्चा पूरे देश में होने लगी थी और उनके वीरता के चर्चा आग की तरह देश में फ़ैल रही थी

बहुत सारे राजपूत महाराणा प्रताप को अपना नेता मान लिये थे अकबर को इसी बात का डर भी सताने लगा था हल्दी घाटी युद्ध में अकबर के पास मुग़ल राजपूत, पठान योद्धाओं के साथ जबरदस्त टॉप कहना भी था अकबर के प्रसिद्ध सेनापति महावत खान , आसफ खान, महाराजा मान सिंह, सैहजात सलीम भी उस मुग़ल वाहिनी का संचालन कर रहे थे

जिसकी संख्या 80 हजार से एक लाख बताया जाता है इस युद्ध में प्रताप ने अभूद पूर्ण वीरता और साहस से मुगल सेना के दांत खट्टे कर दिए थे और अकबर के हजारों सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था और इसी युद्ध के दौरान महाराणा प्रताप ने मान सिंह को मारने के लिए उनके तरफ आगे बढ़े अपने घोड़े को उनके हाथी की तरफ लेके जाते ही उनकी ओर भाला से वार कर दिया लेकिन मन सिंह के हाथी में लगी तलवार से महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का पांव कट जाता है और चेतक घायल हो जाता है चेतक को लड़खड़ाने की वजह से राणा प्रताप भी लड़खड़ाने लगते है

इसी को देखते हुए विकत परिस्थिति में झरा सरदारों के एक वीर पुरुष ने जिनका कद महाराणा प्रताप जैसे था महाराणा प्रताप का मुकुट और छत्र अपने सर पर धारण कर लिया था मुगलो ने उसे ही प्रताप समझ लिया और वे उसके पीछे दौड़ पड़े इस प्रकार उन्होंने राणा को युद्ध क्षेत्र से निकल जाने का अवसर प्रदान कर दिया था

हालाँकि प्रताप बाहर नहीं जाना चाहते थे लेकिन उनके सरदार ने जाने के लिए विवश कर दिया क्योंकि भविष्य भी देखना था। वो नहीं रहते तो आगे क्या होता ये सब समझाकर राणा प्रताप को उन्होंने बाहर कर दिया और खुद युद्ध भूमि में वीरगति प्राप्त हुए थे राणा प्रताप के साथ-साथ उन्हें भी आज याद किया जाता है


उसी हल्दी घाटी के युद्ध के दौरान ही उनका प्रिय घोडा चेतक का भी मृत्यु हो गया था। लेकिन मरने से पहले चेतक ने राणा प्रताप को एक सुरक्षित स्थान पर पंहुचा दिया था और उसी दौरान चेतक के राजा के प्रति इस वफ़ादारी को देखकर उनका भाई जो कि अकबर से जा मिला था उस घोड़े की वफ़ादारी देखकर वह भी राणा प्रताप का कायल हो गया और अपने मन को बदल दिया और राणा प्रताप के चरणों में गिरकर माफ़ी मांगी और उनके साथ लड़ने की हैसला जाहिर की

प्राणा प्रताप के पास सिर्फ घोडा ही नहीं एक हाथी भी था जिसका नाम राम प्रसाद था राम प्रसाद एक बड़ा योद्धा था बहुत ही चालाक और समझदार था। जब वह युद्ध के मैदान में उतरता था तो दुश्मनों के दांत खट्टे हो जाते थे दुश्मनो में महाकर मच जाता था। दुश्मन उससे बहुत डरते थे यही वजह थी कि अकबर ने राम प्रसाद को पकड़ने का आदेश दे दिया था और मुग़ल सेना ने कई सारे हाथियों के बल पर आखिरकार राम प्रसाद को पकड़ लिया था

उसे लेजाकर अकबर को सौप दिया गया था अकबर चाहता था कि वह उसकी सेना में सामिल हो जाये लेकिन वह बंदी बनाये जाने के बाद राम प्रसाद अन्न जल सबकुछ त्याग दिया आखिरकार वह कुछ दिनों के बाद वह वीरगति को प्राप्त हुआ। यह देखकर अकबर ने कहा था कि जब हमने एक जानवर को नहीं झुका सकते तो उसे झुकना नामुमकिन है

राणा प्रताप ने कभी हार नहीं मानी जंगलों में रह कर घास की रोटी खाकर आखिर वह लड़ते रहे और आखिरी तक लड़ते रहे और कभी भी अधीनता स्वीकार नहीं किया यही वजह है कि वह आज भी अमर हैं इन कठिन परिस्थितियों में जिंदगी जीकर वह अमर है वह चाहते तो वाकई सभी राजाओं की तरह अकबर की अधीनता स्वीकार करके एसो आराम से अपनी जिंदगी जी सकते थे

Maharana Pratap Death Reason


बाद- बड़े राजमहलों में वो भी ऐसे आराम से रह सकते थे लेकिन राणा प्रताप ने कभी भी अधीनता स्वीकार नहीं की उन्होंने जंगलों में रहकर पत्थरो पर सोकर पत्थरो पर अपना राज सिंघासन बनाकर वही से राज का संचालन करके घास रोटी खाके उचित समझा और आधीनता कभी स्वीकार नहीं की इसके बाद मुगलों ने कई बार महाराणा प्रताप को चुनौती दी लेकिन मुगलों को मुंह की खानी पड़ी आखिर कर एक शेर के शिकार के दौरान लगी चोटों के वजह से महाराणा प्रताप की मृत्यु 29 जनवरी 1597 को चावंड में हुई

इस मृत्यु की खबर सुनकर अकबर भी खूब रोया था अकबर को इस बात का दुःख भी था उसने महाराणा प्रताप को कभी हरा नहीं पाया अकबर ने कहा था इस संसार में सभी नाशवान है राज और धन किसी भी समय नष्ट हो सकता है परन्तु महान व्यक्तियों की ख्याति कभी नष्ट नहीं हो सकती

Maharana Pratap


Maharana Pratap Information महाराणा प्रताप सिंह


इस पोस्ट को पढने के बाद अपको पता चल जयेगा की अकबर महान नहीं था बस हमेंं गुमराह किया जाता है कि अकबर महान था
नाम तो सुना ही होगा...अब एक छोटा सा किस्सा भी सुनिए खून उबाल न मार उठे तो कहना


 Maharana Pratap Singh


डरपोक अकबर ने 7 फ़ीट 8 इंची बहलोल खान को भेजा था Maharana Pratap का सर लाने, कभी नहीं हारा था बहलोल --------
मुगली अकबर का सबसे खतरनाक वाला एक सेना नायक हुआ करता था जिसका नाम बहलोल खां था, कहा गया है कि हाथी के समान उसका बदन हुआ करता था इसका और ताक़त का जोर इतना अधिक था कि नसें फटने को होती थीं 

Rana Pratap Singh

ज़ालिम इतना कि तीन दिन के बालक को भी गला रेत-रेत के मार देता था . बशर्ते वो हिंदुओं से एक भी लड़ाई कभी हारा नहीं था अपने पूरे जिवन में ये बहलोल खां॥

काफी लम्बा था, 7 फुट 8 इंच की हाइट थी, कहा जाता है की घोडा उसके सामने छोटा लगता था ॥ बहुत चौड़ा और ताकतवर था बहलोल खां, अकबर को बहलोल खां पर बहुत ही नाज हुआ करता था, लूटी हुई औरतों में से बहुत सी औरतें बहलोल खां को दे दिया करता था॥

हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर और महाराणा प्रताप की सेनाएं आमने सामने थी, अकबर Maharana Pratap से बहुत ही डरता था इसलिए वो खुद इस युद्ध से दूर रहा और बहलोल खां को भेज दिया॥

हिन्दू-वीर शेर Maharana Pratap और बहलोल खां के बिच युध्द हुआ लड़ाई  के दौरन बहलोल खां  और महारणा प्रताप आ गये दोनों में बहुत ही घमासान युध्द हुआ॥ बहलोल खां और भगवा विर शेर महारणा प्रताप भिडंत शुरु हो गई।

Veer Putra Maharana Pratab



Maharana Pratap Information  महाराणा प्रताप सिंह

कुछ देर तक तो राणा यूँ ही मज़ाक- मज़ाक खेलते रहे मुगलिया बहलोल खां के साथ . . . .और फिर गुस्से में आ के अपनी तलवार से एक ही वार में घोड़े सहित बहलोल खां का हाथी जैसा शरीर उस नर का पूरा धड़ एक  सीधी लाइन की तरह चीर दिया हिंदु शेर वीर शिरोमणि Maharana Pratap ने . . . ऐसा फाड़ा कि बहलोल खां के शरीर के दो हिस्से अलग-अलग होकर दो तरफ जमीन पर जा गिरा॥

ऐसे-ऐसे युद्ध में विजय प्राप्त कर भगवा चुनरी ओढ़े रण में तांडव किया और विजय प्राप्त की . . .जीसे लगता है अकबर महान था वो या तो अज्ञान से वसीभूत हैं या फिर दूषित DNA का परिणाम है।



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