Sharad Purnima Ya Kojaagari Purnima Kab Hai
आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा या कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन श्रीहरी विष्णु जी के साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण के लिए निकलती है। इस दिन चावल की खीर बनाकर चन्द्रमा की रोशनी में रखने की परंपरा है, कहा जाता है कि इस दिन आकाश से अमृतवर्ष होती है। आज हम आपको इस लेख में शरद पूर्णिमा की सही तारीख, पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इस दिन माँ लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए किये जाने वाले उपाय के बारे में बताएँगे।
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शरद पूर्णिमा |
शरद पूर्णिमा शुभ मुहूर्त 2021 (sharad purnima 2021 date)
- साल 2021 में आश्विन शरद पूर्णिमा - 19 अक्टूबर मंगलवार को है।
- पूर्णिमा तिथि प्रारंभ होगा - 19 अक्टूबर सांयकाल 7 बजकर 3 मिनट पर।
- पूर्णिमा तिथि समाप्त होगा - 20 अक्टूबर सांयकाल 8 बजकर 26 मिनट पर।
- शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रोदय का समय - 19 अक्टूबर सांयकाल 5 बजकर 20 मिनट पर।
शरद पूर्णिमा पूजा विधि (Sharad purnima vrat vidhi)
पूर्णिमा तिथि की सुबह स्नानादि के बाद व्रत का संकल्प लेकर पूजास्थल पर माता लक्ष्मी और श्रीहरि की प्रतिमा स्थापित कर पूजा करें। हो सके तो आप गाय के दूध का इंतजाम करें और उससे खीर बनाकर रख लें। इसके बाद विधिवत भगवान श्रीहरि और माता लक्ष्मी की पूजा-आराधना आप करेंगे पूर्णिमा के दिन इसके लिए आप साफ चौकी या पाटा तैयार कर लें उसपर लाल या पिले रंग के कपडे बिछाए माता लक्ष्मी को विराजमान कराये और भगवान विष्णु की विराजमान कराये और विधिवत उनकी पूजा-आराधना करें।
भगवान की प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाये और उन्हें अक्षत, रोली से तिलक करे। तिलक के बाद सफ़ेद या पीले रंग की मिठाई व चावल की खीर का भोग लगाएं। माँ लक्ष्मी को लाल या पीले रंग के पुष्प अर्पित करे। भगवान विष्णु के लिए पीले पुष्पों का इंतजाम रखें और माता लक्ष्मी को लाल पुष्प बहुत पसंद है। तो माँ के लिए लाल पुष्प जरूर रखें। लाल गुबाब के फूल लाये अगर हो सके आपको कमल का फूल मिल जाय तो बहुत उत्तम है। क्युकी ऐसा माना जाता है की माता का अवतरण हुआ था इस दिन तो आप उनको कमल के फूल इस दिन कोशिश कर अर्पित जरूर करें।
माता की पूजा-आराधना में आप माता की प्रिय चीजें और भगवान विष्णु की पूजा आराधना में उनके प्रिय चींजो का नवैद्य का भोग लगाए, वस्त्र अर्पित करें, माता को लाल, गुलाबी वस्त्र अर्पित करें और भगवान विष्णु को पीले रंग के। शाम के समय चन्द्र निकलने पर चाँद की पूजा करें और भोग वाली खीर को छलनी से ढककर चन्द्रमा की रोशनी में रख दें। फिर अगली सुबह स्नान कर उस खीर को माँ लक्ष्मी जी को अर्पित करें और प्रसाद के रूप में घर-परिवार के सभी सदस्यों में बांट दें। इससे उत्तर स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
शरद पूर्णिमा कब मनाया जाता है (Sharad Purnima Kab Hai)
हर साल के आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा व्रत पड़ता है। साल 2021 में शरद पूर्णिमा का व्रत 19 अक्टूबर मंगलवार को पड़ रहा है।
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शरद पूर्णिमा का महत्व (Sharad Purnima significance)
शरद पूर्णिमा का हिन्दू धर्म में विशेष महत्त्व है। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। शरद पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा और रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत को कौमुदी व्रत भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है की ये वो दिन है जब चंद्रमा अपनी सोहल कलाओं से युक्त होकर धरती पर अमृत की वर्षा करता है।
शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा, माता लक्ष्मी और विष्णु जी की पूजा करने का विधान है। साथ ही शरद पूर्णिमा की रात खीर बनाकर उसे खुले आकाश के नीचे रखा जाता है फिर बारह बजे के बाद उस खीर का प्रसाद ग्रहण किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस खीर में अमृत होता है और यह कई रोगी को दूर करने की शक्ति रखता है। माना जाता है कि इस दिन चन्द्रमा के प्रकाश में औषधीय गुण मौजूद रहते है। जिसमें कई असाध्य रोगों को दूर करने की शक्ति होती है।
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शरद पूर्णिमा के दिन करें ये उपाय
ज्योतिषानुसार पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा अपनी पूर्ण आकृति में होता है। यह दिन माता लक्ष्मी को बेहद प्रिय है जिस कारण इस दिन किये गए कुछ खास उपायों से माँ लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होने लगती है तो आइये जानते है इस दिन किये जाने वाले खास उपायों के बारे मे......
- शरद पूर्णिमा की रात खीर बनाकर चाँद की रोशनी में पूरी रात जरूर रखें ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा पर चांद की किरणें अमृत बरसाती है और खीर में अमृत का अंश मिलने से व्यक्ति की आर्थिक सम्पन्नता, सुख-सृद्धि, आरोग्य और धन लाभ होता है इसलिए अमृत सामान खीर को प्रसाद के रूप में जरूर ग्रहण करना चाहिए।
- शरद पूर्णिमा पर माँ लक्ष्मी धरती पर भ्रमण करती है इसलिये इस दिन लक्ष्मी पूजन करने से सभी कर्जों से मुक्ति मिलती है।
- शरद पूर्णिमा की सुबह और शाम स्नान कर तुलसी को भोग और तुलसी के सामने दीपक अवश्य जलाएं इसा करने से माँ लक्ष्मी प्रसन्न होती है।
- शरद पूर्णिमा की रात में अनुमान जी की समक्ष चौमुखा दीपक जलाने से धन लाभ होता है।
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शरद पूर्णिमा नियम
इस बार शरद पूर्णिमा मंगलवार के शुभ दिन पर पड़ रहा है। जो की माता लक्ष्मी की आराधना का ही दिन है इसलिए यदि आप माँ लक्ष्मी जी का आशीर्वाद पाना चाहते है तो शरद पूर्णिमा के दिन कुछ बातों का खास ख्याल रखें। आइये जानते है ये बातें कौन सी है.......
- इस दिन घर में किसी भी प्रकार की तामसिक चींजे या भोजन का सेवन ना करें यदि आप व्रत रखते है तो इस बात का विशेष ख्याल रखें।
- इस दिन वातारवरण में चन्द्रमा का प्रभाव काफी तेज रहता है इसलिए ऐसे में पूर्णिमा के दिन क्रोध बिलकुल ना करें।
- चन्द्रमा का पृथ्वी के जल से संबंध माना गया है। हमारे शरीर में लगभग 85 प्रतिशत जल रहता है। पूर्णिमा के दिन इस जल की गति और गुण बदल जाते है। अतः इस दिन जल की मात्रा और स्वच्छता पर विशेष ध्यान रखें।
- यदि आप इस दिन का विशेष लाभ प्राप्त करना चाहते है तो पूर्ण रूप से सात्विक भोजन ही ग्रहण करें।
- शरद पूर्णिमा के दिन माँ लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण पर रही है। इसीलिए इस दिन माँ लक्ष्मी जी का आराधना करना बिलकुल भी ना भूलें।
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शरद पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है
शरद पूर्णिमा सबसे महत्वपूर्ण होती है। जैसा की पूर्णिमा तिथि हम सभी जानते है धन, वैभव, ऐश्वर्य की देवी माता लक्ष्मी का दिन होता है और शारद पूर्णिमा के दिन ही माता लक्ष्मी का अवतरण हुआ था और इसीलिए हर पूर्णिमा की तिथि को हम माता लक्ष्मी की विशेष आराधना भी करते है। शरद पूर्णिमा के दिन ये आराधना और ज्यादा विशेष हो जाती है।
शरद पूर्णिमा की पौराणिक व्रत कथा (Sharad Purnima Vrat Katha)
एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसकी दो बेटियां थीं, वो दोनों ही बड़ी धर्मिक थी। वह दोनों ही पूर्णिमा का व्रत करती थी। परन्तु दोनों में एक बड़ा अंतर था, बड़ी बेटी अपना व्रत पूरा करती थी परन्तु छोटी बेटी व्रत अधूरा छोड़ देती थी। समय बीतता गया साहूकार ने अपने दोनों बेटियों की शादी कर दी समय के साथ-साथ बड़ी बेटी ने एक स्वस्थ संतान को जन्म दिया परन्तु छोटी बेटी के जब भी सन्तान पैदा होती वह तुरंत मर जाती।
जब बार-बार ऐसा होने लगा तब वह बहुत दुखी रहने लगी। एक बार साहूकार अपनी छोटी बेटी को लेकर एक पंडित के पास गया और उसे सारी बात बताई। तब पंडित बोला तुमने जब भी पूर्णिमा का व्रत किया हमेशा उसे अधूरा छोड़ दिया जिसके परिणाम स्वरूप तुम्हारी सन्तान पैदा होते ही मर जाती है। तुम पूर्णिमा का व्रत विधि पूर्वक पूर्ण करो।
इसके बाद साहूकार की छोटी बेटी ने ऐसा ही किया। कुछ समय बाद उसके घर एक लड़के का जन्म हुआ परन्तु कुछ दिनों पश्चात वह लड़का मर गया। उसने उस बच्चे को एक चौकी पर लिटा कर एक कपडे से ढक दिया तभी उसकी बड़ी बहन उससे मिलने आयी तो छोटी बहन बोली बैठो जब बड़ी बहन उस चौकी पर बैठने लगी तभी उसके पल्ले से छूते ही वह बच्चा रोने लगा यह देखकर बड़ी बहन नाराज होकर छोटी बहन से बोली "तुमने बच्चो को यहाँ सुलाया है और मुझे यहीं बैठने को कह दिया अगर अभी इसे कुछ हो जाता तो मुझ पर तो कलंक लग जाता" तब छोटी बहन बोली नहीं-नहीं ऐसा नहीं है ये तो पहले से ही मरा हुआ था तुम्हारे पल्ले के छूते ही ये जीवित हो गया यह तो तुम्हारे ही भाग्य से जीवित हुआ है। क्योंकि तुमने हमेशा पूर्णिमा का व्रत पूरे विधी विधान से पूर्ण किया है। इसके बाद पुरे नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया गया कि सभी नगर वासी शरद पूर्णिमा का व्रत अवश्य करें।
शरद पूर्णिमा पर निबंध (sharad purnima essay in hindi)
शरद पूर्णिमा हिंदुओं का प्रसिद्ध त्यौहार है। शारदीय नवरात्रि के बाद पड़ने वाली पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। शरद पूर्णिमा का चाँद शीतलता प्रदान करता है। इस दिन चन्द्रमा की किरणें सभी के लिए बहुत लाभदायक होती है। मान्यता है कि आश्विन शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा से अमृत वर्षा होती है।
आकाश में चन्द्रमा हल्के नीले रंग का दिखाई देता है कहते हैं कि इस दिन रात को खीर बनानी चाहिए और उसे ऐसे स्थान पर रखना चाहिए जहाँ चन्द्रमा की किरणें सीधी पड़े जिससे वह खीर अमृतमयी हो जाए। इस दिन रात में खीर बनाकर खुले आसमान के निचे रखकर सुबह उसका सेवन करने से सभी रोग दूर हो जाते है।
ऐसी मान्यता है कि माता लक्ष्मी का भी जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था इसलिए देश के कई हिस्सों में शरद पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी पूजन किया जाता है। माँ लक्ष्मी को पांच तरह के फल और सब्जियों के साथ नारियल भी अर्पित किया जाता है। मंदिरों में भी विशेष पूजा अर्चना होती है। जब द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तब माँ लक्ष्मी राधा के रूप में अवतरित हुई। भगवान श्रीकृष्ण और राधा की अद्भुत रासलीला का आरंभ भी शरद पूर्णिमा के दिन माना जाता है।
मान्यता है की भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कुमार कार्तिकेय का जन्म भी शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था, इसी कारण से इसे कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है। पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में इस दिन कुमारी कन्याएं प्रातःकाल स्नान करके सूर्य और चन्द्रमा की पूजा करती है। माना जाता है कि इससे उन्हें योग्य पति की प्राप्ति होती है। इसे कामुदी महोत्स्व, रमोत्सव व अन्य नामों से भी जाना जाता है।
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