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संत कबीर दास जयंती कब मनाया जाता है? | Kabir Das Jayanti 2021 | Sant Kabir Das ke Dohe in Hindi

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब। पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब।।

यह देहा हम बचपन से किसी ना किसी के द्वारा सुनते आ रहे है। इस दोहे के रचयिता संत कबीर दास जी के और भी अनेकों दोहे हमारे जीवन शैली में प्रयोग में लाये जाते है। संत कबीर दास जी 15वीं सदी यानि मध्यकालीन युग के प्रसिद्ध भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। जिनके रचनाएं आज भी पढ़े जाते है। भक्तिकाल के उस दौर में कबीर दास जी ने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज सुधार में लगा दिया था। कबीर जी के जन्म के विषय में अलग-अलग मत है। खा जाता है की संवत 1455 में सं 1398 के आस-पास लहरतारा ताल काशी के समक्ष ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को उनका जन्म हुआ था। उन्हीं की याद में प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को कबीर जयंती मनाया जाता है। 

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संत कबीर दास जयंती 

कबीर दास जी के विचार (Kabir Das ji ke Vichar)

कबीरदास जी (Kabir Das) का प्रादुर्भाव उस समय हुआ था, जब देश में राजनितिक दृष्टि से चरों और अस्थिरता, अशांति और अव्यवस्था का आलम छाया हुआ था। कबीर के समय हिन्दू और मुस्लिम दो बड़ी जातियों के लोग निवास करते थे। इन दिनों में अचार-विचार, रीती-रिवाजों, सामाजिक धार्मिक मान्यताओं आदि के बारे में दृढ़ता और कट्टरता की भावना विद्यमान थी। जिसकी वजह से दोनों जातियां पारस्परिक द्वेष और वैमनस्य रखती थीं। 

दोनों ही धर्मों के ठेकेदार भोली-भाली जनता को भ्रमित कर रहे थे। समाज में कुप्रथाओं, कुरीतियों, मिथ्या आडंबरों का बोलबाला था। ऐसे में एक ऐसे समाज सुधारक की आवश्यकता थी, जो दोनों धर्मो की बुराइयों को दूर कर उनमें एकता स्थापित कर सकें। ऐसे समय में कबीरदास जी का प्रादुर्भाव हुआ। 

उन्होंने दोनों धर्मोक की बुराइयों को जनता के सामने रखा। हिन्दू धर्म के अनेक मत-मतान्तर प्रचलित थे। को निर्गुण, तो कोई सगुन, तो कोई वैष्णो, तो कोई शाक्त। कबीर ने दोनों धर्मो के आदर्शों का समन्वित रूप समाज के सामने रखा और उनका मार्ग प्रशस्त किया। हिन्दू-मुस्लिम में धार्मिक एकता कायम था। 

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कबीरदास जी का जीवन वृत एवं कृतित्व

भक्तिकालीन निर्गुण काव्यधारा के कविकुल शिरोमणि एवं समाज सुधारक कवि कबीरदास जी का जन्म ज्येष्ठ सुदी पूर्णिमा सोमवर संवत 1456 को हुआ था। कबीर के जन्म के संबंध में कहा जाता है की एक विधवा ब्राह्मणी की संतान थे जिसे लोक लाज के भय से उनकी माता ने लहरतारा तालाब के किनारे रख छोड़ा था। 

उधर से गुजर रहे नीरू और नीमा नामक जुलाहा दंपत्ति ने उन्हें देखा, तो वे उन्हें घर ले आये। निःसंतान जुलाहा दंपत्ति ने कबीर का पालन-पोषण किया। कालांतर में कबीरदास जी ने जुलाहा व्यवसाय अपनाया। कबीर जी के विषय में यह कहा जाता है की उनका विवाह लोई नामक स्त्री से हुआ था, जिससे उन्हें कमल और कमली नामक दो संतान हुई। 

कबीरदास जीवन भर काशी में ही रहे। संवत 1575 को वे ईश्वर में विलीन हो गए। कृतित्व - वैसे तो कबीरदास जी की वाणी का संग्रह "बीजक" है, जो को साखी, सबद, रमैनी का संग्रह है। यह भी कहा जाता है कि उन्होंने 6 लाख 84 हजार पदों की रचना की थी। कबीरदासजी ने अपनी साखियों में संसार के सत्य को लिखा है। 

उनके काव्य में निर्गुणोपासना का भाव है। उनकी कविता में वर्णित "राम" का अर्थ निर्गुण ब्रह्म है। कबीर जी ने ईश्वर के नाम स्मरण पर विशेष बल दिया है। गुरु महिमा बार बल देते हुए उन्होंने ईश्वर की सत्ता-महत्ता से गुरु को श्रेष्ठ बताया, जैसे -

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।

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कबीर दास का जीवन परिचय (Kabir Das Biography in Hindi)

कबीर दास भारत के माहन कवि और संत समाज सुधारक थे। जब भी भारत में धर्म, भाषा, संस्कृति की चर्चा होती है तो कबीर दास का जिक्र सबसे पहले होता है। उन्होंने अपने दोहों से समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने की कोशिश की है और भेद-भाव को मिटाया है। 

पोथी पढ़ि- पढ़ि जग मुआ, पंडित हुआ न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

कबीर मानते थे की अगर प्यार के केवल  ढाई अक्षर ही केवल अच्छी तरह से पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा। माना जाता है उनका जन्म 1398 में कशी में हुआ था। कुछ लोगो की माने तो वे एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से पैदा हुए थे, जिसको भूल से स्वामी रामानन्द जी ने पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया था। 

जिसके बाद ब्राह्मणी उस नवजात शिशु को काशी में लहरतारा ताल के पास फेंक आयी थीं, जिसके बाद उनका पालन -पोषण नीमा और नीरू ने किया था। बाद में इसी बालक ने महान संत कबीर बनकर भारत की जन्म भूमि को पवित्र का दिया। कहा जाता है की बारीर दास जी पढ़े-लिखे नहीं थे लेकिन वे अन्य बच्चों से एकदम अलग थे। गरीबी की वजह से उनके माता-पिता ने उन्हें मदरसे नहीं भेज सके। इसलिए कबीर दास जी किताबी विद्या नहीं ग्रहण कर सके।  

मसि कागद छूवो नहीं, क़लम गह्यो नहिं  हाथ। 

कबीर दास के धर्म को लेकर भी कोई पुष्टि नहीं किया गया है कहा जाता है कि कबीर जन्म से ही मुसलमान थे। वहीँ जब वे स्वामी रामानन्द के प्रभाव में आए तब उन्हें हिन्दू धर्म का ज्ञान हुआ था। इसके बाद उन्होंने रामानंद को अपना गुरु बना लिया। 

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संत कबीर दास जी का जन्म और मृत्यु कब हुआ था?

कबीर दास का जन्म 1440 में हुआ था और उनकी मृत्यु 1518 में हुई थी। कबीर दास के माता-पिता के बारे में कोई जानकारी नहीं है, हालांकि ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म एक हिंदू समुदाय में हुआ था, लेकिन उनका पालन-पोषण एक गरीब मुस्लिम परिवार ने किया था। उनका नाम  नीरू और नीमा था।  निःसंतान जुलाहा दंपत्ति ने कबीर को वाराणसी के लहरतारा तालाब के पास मिले थे। 

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संत कबीर दास जयंती कब मनाया जाता है? (kabir das jayanti)

कबीर जयंती को पूरे भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। मान्यता है कि कबीर दास जी का जन्म संवत 1455 की ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था। ऐसे में संत कबीर जयंती ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। जो की इस बार 24 जून गुरुवार को मनाया जायेगा। इन्हे संत कबीर दास या कबीर साहेब के नाम से भी पुकारा जाता है और साथ ही इनके नाम पर कबीरपंथ नामक संप्रदाय आज भी प्रचलित है। इस संप्रदाय के लोग संत कबीर को भगवान के रूप में पूजते और मानते है। संत कबीर दास जी समाज में फैले आडंबरों के सख्त विरोधी थे। उन्होंने लोगो को एकता के सूत्र का पाठ पढ़ाया। वे लेखक और कवि थे। उनके दोहे इंसान को जीवन की नई प्रेरणा देते थे। कबीर जी ने जिस भाषा में लिखा वे लोग प्रचलित तथा सरल भाषा थी। 

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कबीर दास जयंती 2021 (Kabir Das Jayanti 2021)

कबीर दास जी का जन्म संवत 1455 को ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था। इस लिए ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा के दिन देश भर में कबीर दास जी की जयंती मनाई जाती है। संत कबीर दास जी की जयंती 24 जून  2021 दिन गुरुवार के दिन 644 जयंती मनाई जाएगी 

  • पूर्णिमा तिथि प्रारंभ होगा - 24 जून प्रातःकाल 3 बजकर 32 मिनट पर। 
  • पूर्णिमा तिथि समाप्त होगा - 25 जून प्रातःकाल 12 बजकर 9 मिनट पर होगा।

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संत कबीर दास जी का चरित्र

संत कबीर दास जी को मानने वाले अनुयायी लोग उन्हें एक अलौकिक अवतारित पुरुष मानते हैं। संत कबीर दास जी उनके आराध्य हैं। इनकी शिक्षा एक हिन्दू गुरु द्वारा हुई थी। हालाँकि उनके बारे में यह भी कहा जाता है उनकी विधिवत शिक्षा नहीं हुई थी, कबीर दास जी ने अपना सारा जीवन ज्ञान साधु संगति से प्राप्त किया। अपने इस अनुभव को उन्होंने मौखिक रूप से कविता में लोगों को सुनाया। कबीर दास जी ने एक ही ईश्वर को माना वे धर्म व पूजा के नाम पर आडंबरों के विरोधी थे। उन्होंने ब्रह्मा जी के लिए राम, हरि आदि शब्दों का प्रयोग किया परन्तु वे शब्द ब्रह्मा के ही अन्य नाम है। उन्होंने ज्ञान का मार्ग दिखाया जिसमे गुरु का महत्त्व सर्वपरि है। उन्होंने लोगो को समझने के लिए अपने कृतियों में सरल और लोग भाषा का प्रयोग किया है। 

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कबीर दस जी की मृत्यु कब हुई?

कबीर जी की दृण मान्यता थी कि कर्मो के अनुसार ही गति मिलती है स्थान विशेष के कारण नहीं। अपनी इसी मान्यता को सिद्ध करने के लिए वह अपने अंतिम समय में मगहर चले गए क्योंकि लोगो की मान्यता थी कि काशी में मरने पर स्वर्ग और मगहर में मरने पर नर्क मिलता है। कहा जाता है की 1518 के आस-पास मगहर में उन्हे अपनी अंतिम सांस ली  कहते है की उनके निधन के पश्चात जब उनके देह को जलाने अथवा दफनाने के लिए हिन्दू और मुसलमानों में विवाद हुआ तो आपसी सहमति से उनके मृत्य देह से शरीर से जब चादर को हटाया गया तो वह कुछ पुष्प ही नजर आये। कहा जाता है की उन पुष्पों को हिन्दू और मुसलमानो ने आपस में बांट लिया और अपने-अपने धर्मो के अनुरूप दोनों ही समुदाय ने उनका अंतिम संस्कार किया। आज भी वहां पर मजार और समाधि स्थित है। 

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