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पुरुषोत्तम दास टंडन की जयंती और पुण्यतिथि कब है? | Purushottam Das Tandon Jayanti aur Punytithi Kab Hai?

पुरुषोत्तम दास टंडन एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, राजनयिक, हिंदी भाषा के सेवक, पत्रकार, वक्ता और समाज सुधारक थे। अपने निजी जीवन में सादगी अपनाने के कारण उन्हें राजर्षि उपनाम से प्रसिद्धि मिली। उन्होंने हिन्दी को देश की राजभाषा का स्थान दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1910 में, उन्होंने नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी में हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापना की। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वे कई बार जेल भी गए। वे 13 वर्षों तक यूनाइटेड प्रोविंस विधान सभा का अध्यक्ष भी रहे। वे स्वतंत्रता आंदोलन के साथ-साथ किसान आंदोलन से भी जुड़े रहे। आजादी के बाद वे लोकसभा और राज्यसभा के लिए चुने गए। पुरुषोत्तम दास टंडन को 1961 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

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पुरुषोत्तम दास टंडन की जयंती और पुण्यतिथि कब है? | Purushottam Das Tandon Jayanti aur Punytithi Kab Hai?
राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन जी की जयंती 

पुरुषोत्तम दास टंडन की जयंती कब है?

भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के अग्रणी पक्ति के नेता, पत्रकार, तेजस्वी वक्ता, समाज सुधारक, राजर्षि के नाम से विख्यात एवं हिंदी को राष्ट्रभाषा के रुप में प्रतिष्ठित कराने वाले भारत रत्न राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन जी की जयंती 1 अगस्त को मनाया जाता है। 

पुरुषोत्तम दास टंडन का प्रारम्भिक जीवन

पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म 1 अगस्त 1882 को उत्तर प्रदेश के इलाहबाद (प्रयागराज) शहर में हुआ था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा इलाहबाद स्थित सिटी एंग्लो वर्नाक्यूलर स्कुल में हुई। सन 1894 में उन्होंने इसी स्कुल से मिडिल की परीक्षा उर्त्तीण की। हाई स्कूल की परीक्षा उर्त्तीण करने के बाद उनका विवाह मुरादाबाद निवासी चन्द्रमुखी देवी के साथ करा दिया गया। 

सन 1899 में वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए और उसी साल इंटरमीडिएट की परीक्षा भी उर्त्तीण की। सन 1900 में उनकी पत्नी ने एक कन्या को जन्म दिया। लगभग इस दौरान वे स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए। इंटरमीडिएट की परीक्षा उर्त्तीण करनके के बाद आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने इलाहबाद विश्व विद्यालय में म्योर सेन्ट्रल कॉलेज में दाखिला लिया परन्तु अपने क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण उन्हें सान 1901 में कालेज से निष्कासित कर दिया गया। 

वर्ष 1903 में उनके पिता का स्वर्गवास हो गया। इन सब कठिन परिस्थियों के मध्य उन्होंने 1904 में स्नातक की परीक्षा उर्त्तीण की। इसके बाद उन्होंने इतिहास विषय एम् स्नातकोत्तर किया और फिर कानून की बधाई करने के बाद सन 1906 में वकालत प्रारम्भ कर दिया। इउसके बाद उन्होंने तत्कालीन प्रसिद्ध अधिवक्ता तेज बहादुर सप्रू की देख-रेख में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत शुरू की। उन्होंने 1921 में स्वतंत्रता आंदोलन और सामाजिक गतिविधियों के लिए अपनी वकालत छोड़ दी।

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पुरुषोत्तम दास टंडन का रजनीतिक जीवन

पुरुषोत्तम दास टंडन का राजनैतिक जीवन सन 1905  से प्रारम्भ हुआ जब बंगाल विभाजन के विरोध में समूचे देश में आंदोलन हो रहा था। बंगभंग आंदोलन के दौरान उन्होंने स्वदेशी अपनाने का प्रण किया और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार प्रारम्भ किया। अपने विद्यार्थी जीवन में सन 1899 में वे कांग्रेस पार्टी के सदस्य बन गए थे। 1906 में,  पुरुषोत्तम दास टंडन ने अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का इलाहाबाद में प्रतिनिधित्व किया था। 

कांग्रेस पार्टी ने जालियां वाला बाग कांड के जांच के लिए जो समिति बनाई थी उसमें पुरुषोत्तम दास टंडन भी शमिल थे। वे लोक सेवक संघ का हिंसा भी रहे। 1920 और 1930 के दशक में उन्होंने असहयोग आन्दोलन और नमक सत्याग्रह में भग लिया और जेल गए। सन 1931 में गांधी जी के लंदन गोलमेज आंदोलन से  वापस आने से पहले गिरफ्तार किए गए नेताओं में जवाहर लाल नेहरू के साथ-साथ वे भी थे। 

पुरुषोत्तम दास टंडन कृषक आंदोलन से भी जुड़े रहे और वर्ष 1934 में वे बिहार क्षेत्रीय किसान सभा के अध्यक्ष भी रहे। वह लाला राजपत राय द्वारा स्थापित लोक सेवा बोर्ड के अध्यक्ष भी थे। वे यूनाइटेड प्रोविंस (आधुनिक उत्तर प्रदेश) के विधान सभा का 13 साल (1937-1950) तक अध्यक्ष रहे। उन्हें सान 1946 में भारत की संविधान सभा में भी सम्मिलित किया गया। आजादी के बाद, 1948 में, उन्होंने पट्टाभि  सितारमैय्या के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा लेकिन वो ये चुनाव हार गए। 

सन 1950 में उन्होंने आचार्य जे.बी. कृपलानी को हराकर कांग्रेस अध्यक्ष पद प्राप्त किया पर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ वैचारिक मतभेद के कारण उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद से त्याग पत्र दे दिया। सन 1952 में लोकसभा और सन 1956 में राजयसभा के लिए चुने गए। इसके बाद खराब स्वास्थ्य के चलते उन्होंने सक्रिय सार्वजनिक जीवन से सन्यास ले लिया। 1961 में, भारत सरकार ने पुरुषोत्तम दास टंडन को भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार "भारत रत्न" से भी सम्मानित किया गया था।

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देश के विभाजन पर पुरुषोत्तम दास टंडन के विचार

12 जून 1947 को कांग्रेस कार्यसमिति ने देश के विभाजन को स्वीकार कर लिया। 14 जून को जब इस प्रस्ताव को मंजूरी के लिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सामने रखा गया तो इसका विरोध करने वालों में एक पुरुषोत्तम दास टंडन भी थे। उन्होंने कहा कि विभाजन को स्वीकार करने का मतलब ब्रिटिश और मुस्लिम लीग के सामने झुकना है। उन्होंने कहा वीभाजन में किसी का भला नहीं होगा - पाकिस्तान में हिन्दू और यहाँ भारत में मुसलमान डर के वातावरण  में जीवन व्यतीत करेंगे। 

हिंदी के समर्थक हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने वाले राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन का बड़ा योगदान था। हिंदी प्रचार भाषों के माध्यम से उन्होंने हिंदी को अग्र स्थान दिलाया। गांधी और दूसरे नेता हिंदुस्तानी (उर्दू और हिंदी का मिश्रण) को राष्ट्रभाषा बनाना चाहते थे पर उन्होंने देवनागरी लिपि के प्रयोग पर बल दिया और हिंदी में उर्दू लिपि और अरबी-फ़ारसी शब्दों के प्रयोग का भी विरोध किया। 

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पुरुषोत्तम दास टंडन का कार्यक्षेत्र

पुरुषोत्तम दास टंडन अत्यंत मेधावी और बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनका कार्यक्षेत्र मुख्यतः तीन भागो में बटा हुआ है - स्वतंत्रता संग्राम, साहित्य और समाज। 

स्वतंत्रता संग्राम में पुरुषोत्तम दास टंडन की भूमिका

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में दंडन जी ने एक योद्धा की भूमिका का निर्वाह किया। अपने विद्यार्थी जीवन में 1899 से ही कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे। 1906 में वे इलाहबाद से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिनिधि चुने गए। 1919 में जालियांवाला बाग हत्याकांड का अध्ययन करने वाली कांग्रेस पार्टी की समिति से भी वे संबंध थे। 1920 में असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ हुआ गांधी जी के आह्वान पर वे अवक़ालत से अपने फलते-फूलते पेशे को छोड़कर इस संग्राम में कूद पड़े। 

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पुरुषोत्तम दास टंडन के द्वारा हिंदी सेवा

पुरुषोत्तम दास टंडन भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के अग्रणी पक्ति के नेता थे। कुछ विचारों के अनुसार स्वतंत्रता प्राप्त करना उनका पहला साध्य था। हिंदी को वो वे साधन मानते थे - यदि हिंदी भारतीय स्वतंत्रता के आड़े आएगी तो मै स्वयं उसका गला घोंट दूँगा। वो हिंदी को देश की आजादी के पहले आजादी प्राप्त करने का साधन मानते रहे और आजादी मिलने के बाद आजादी को बनाये रखने का। यहाँ यह नहीं भूलना चाहिए कि टंडन जी का राजनीती में प्रवेश हिन्दी प्रेम के कारण ही हुआ। 

टंडन जी ने ग्वालियर कालेज में हिंदी के लेक्चरर के रूप में में कार्य किया। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी विक्टोरिया कालेज के छात्र हुआ करते थे। राजर्षि ने बाल्यकाल से ही हिंदी के प्रति अनुराग था। इस प्रेम को बालकृष्ण भट्ट और मदन मोहन मालवीय जी ने प्रौढ़ता प्रदान करने की बात कही है। 10 अक्टूबर 1990 को कशी में हिंदी साहित्य सम्मलेन का प्रथम अधिवेशन महामना मालवीय जी की अध्यक्षता में हुआ और टंडन जी सम्मलेन के मंत्री नियुक्त हुए। 

तदनन्तर हिंदी साहित्य सम्मेलन के माध्यम से हिंदी की अत्यधिक सेना की। टंडन जी ने हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए हिंदी विद्यापीठ प्रयाग की स्थापना की। इस पीठ की स्थापना का उद्देश्य हिंदी शिक्षा का प्रसार और अंग्रेजी वर्चस्व को समाप्त करना था। सन 1949 में जब सविंधान सभा में राजभाषा संबंधी प्रश्न उठाया गया तो उस समय एक विचित्र स्थिति थी। महात्मा गांधी तो हिंदुस्तानी के समर्थक थे ही, पंडित नेहरू और डॉ.राजेंद्र प्रसाद तथा अन्य नेता भी हिंदुस्तानी के पक्षधर थे, पर टंडन जी हारे नही,झुके नहीं। परिणामतः बिजय भी उनकी हुई। 

11, 12, 13, 14 दिसंबर 1949 को गरमागरम बहस के बाद हिंदी और हिंदुस्तानी को लेकर कांग्रेस में मतदान हुआ, हिंदी को 62 और हिंदुस्तानी को 32 मत मिले। अंततः हिंदी राष्ट्रभाषा और देवनागरी राजलिपि घोषित हुई। हिंदी को राष्ट्रभाषा और वंदेमातरम को राष्ट्रगीत स्वीकृत करने के लिए टंडन जी ने अपने सहयोगियों के साथ एक और अभियान चलाया था। 

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पुरुषोत्तम दास टंडन द्वारा पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य

पत्रकारिता के क्षेत्र में टण्डन जी अंग्रेजी के भी उद्भट विद्वान थे। श्री त्रिभुवन नारायण सिंह जी ने उल्लेख किया है कि सन 1950 में जब वे कांग्रेस के सभापति चुने गए तो उन्होंने अपना अभिभाषण हिंदी मेंलिखा और अंग्रेजी अनुवाद मैंने किया। श्री सम्पूर्णानंद जी ने भी उस अंग्रेजी अनुवाद को देखा, लेकिन तब टंडन जी ने उस अंग्रेजी अनुवाद को पढ़ा, तो उसमे कई पन्नों को फिर से लिखा। तब तब मुझे इस बात की अनुभूति हुई कि जहां वे हिंदी के प्रकांड विद्वान थे, वहीं अंग्रेजी साहित्य पर भी उनका बड़ा अधिकार था। 

पुरुषोत्तम दास टंडन का भारतीय संस्कृति के प्रति प्रेम

पुरुषोत्तम दास टंडन के बहु आयामी और प्रतिभाशाली व्यक्तित्व को देखकर उन्हें राजर्षि की उपाधि से विभूषित किया गया। 15 अप्रैल सं 1947-48 की संध्यावेला में सरयू तट पर वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ महंत देवरहा बाबा ने उनको  राजर्षि की उपाधि से अलंकृत किया। 

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पुरुषोत्तम दास टंडन की पुण्यतिथि कब है?

पुरुषोत्तम दास टंडन अपने खराब स्वास्थ्य के चलते निसक्रिय सार्वजनिक जीवन से सन्यास ले लिया। स्वाधीनता संग्राम सेनानी हिंदी की उन्नति को कृतसंकल्पित राजनीतिज्ञ, देश की अखंडता को समर्पित नेतृत्वकर्ता पुरुषोत्तम दास टंडन का 1 जुलाई 1962 को उनका स्वर्गवास हो गया और प्रत्येक वर्ष 1 जुलाई के दिन पुरुषोत्तम दास टंडन की पुण्यतिथि मनाया जाता है। 

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