निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) कब है 2021 में ? जाने सही तिथि, पूजा व पारण मुहूर्त, एकादशी व्रत कैसे किया जाता है के बारे में

शास्त्रों में एकादशी का व्रत श्रेष्ठ बताया गया है और ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी Nirjala Ekadashi तो सभी एकादशी में उत्तम मानी जाती है। शास्त्रों के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि मात्र निर्जला एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है। इस व्रत में पानी पीना वर्जित है इसी कारण इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है। इसे भीमसेन या पांडव एकादशी भी कहते है। आज हम आपको साल 2021 ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी सही तिथि, पूजा व पारण मुहूर्त, एकादशी व्रत कैसे किया जाता है, कलश दान की विधि, पानी कब और कैसे पिए साथ ही इस व्रत से जुडी अन्य सभी बातों के बारे में बताएँगे। 

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निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) कब है 2021 में ? जाने  सही तिथि, पूजा व पारण मुहूर्त, एकादशी व्रत कैसे किया जाता है के बारे में
निर्जला एकादशी 

निर्जला एकादशी व्रत शुभ मुहूर्त 2021 -  Nirjala Ekadashi 2021 Date

  • साल 2021 में निर्जला एकादशी का व्रत 21 जून सोमवार के दिन रखा जायेगा। 
  • एकादशी तिथि प्रारंभ होगा - 20 जून शाम 4 बजकर 21 मिनट पर। 
  • एकादशी तिथि समाप्त होगा - 21 जून दोपहर 1 बजकर 31 मिनट पर। 
  • एकादशी व्रत पारण का समय होगा - 22 जून प्रातःकाल 5 बजकर 24 मिनट से 8 बजकर 22 मिनट तक।

इन शुभ मुहूर्तों में करें निर्जला एकादशी पूजा 

  • पंचाग के अनुसार इस बार निर्जला एकादशी की पूजा के शुभ मुहूर्त इस प्रकार है-
  • ब्रह्म मुहूर्त - प्रातःकाल 4 बजकर 4 मिनट से प्रातःकाल 4 बजकर 44 मिनट तक
  • अभिजित मुहूर्त - प्रातःकाल 11 बजकर 55 मिनट से दोपकर 12 बजकर 51 मिनट तक
  • विजय मुहूर्त - शाम 2 बजकर 43 मिनट से 3 बजकर 39 मिनट तक
  • गोधूलि मुहूर्त - शाम 7 बजकर 8 मिनट से शाम 7 बजकर 32 मिनट तक

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निर्जला एकादशी व्रत किसे कहते है? 

साल में आने वाली सभी एकादशी तिथियों में ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को सर्वोत्तम माना गया है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार इस व्रत में पानी पीना वर्जित है इसी कारण इसे निर्जला एकादशी कहा गया है। 

निर्जला एकादशी के दिन न करें ये गलतियां

शास्त्रों के अनुसार ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते है। साल 2021 में निर्जला एकादशी का व्रत 21 जून सोमवार के दिन रखा जायेगा। इस दिन भगवान विष्णु जी की पूजा आराधना किया जाता है। यह तिथि भगवान विष्णु जी को बेहद प्रिय है, शास्त्रों में निर्जला एकादशी के दिन कुछ ऐसे कार्य बताए गए हैं जिन्हें नहीं करने चाहिए। इस व्रत के विधि और नियम काफी कठिन होते है इसलिए ये एकादशी बेहद कठिन माना जाता है। 

बाल, नाख़ून, दाढ़ी, मूँछ ना बनाये और

जो लोग निर्जला एकादशी का व्रत करते है उन्हें इस बात का खास विशेष ख्याल रखना चाहिए की आज के दिन गहे में बाल, नाख़ून ,दाढ़ी, मूंछ किसी को भी ना बनाने दें। यह व्रत भगवान विष्णु जी की आराधना के लिए बेहद खास होता है इसलिए आज के दिन इस तरह के कार्य वर्जित माने गए है। 

इस दिन चावल ना बनाये

शास्त्रों में एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित माना जाता है। मान्यता के अनुसार चावल एकादशी तिथि के दिन ऋषि मेघ के अंश से उत्पन्न हुआ था जिस कारण आज के दिन चावल नहीं खाए जाते। वही चावल शरीर में पानी की मात्रा को बढ़ाता है जिससे मन की चंचलता बढ़ती है और व्यक्ति का मन आराधना में नहीं लग पाता है इसलिए निर्जला एकादशी के दिन घर में चावल ना बनाये और ना ही ग्रहण करें। 

किसी का भी अपमान या क्रोध ना करें

शास्त्रों में परनिंदा से बड़ा को पाप नहीं है इसलिए एकादशी के दिन दूसरों की बुराई या निंदा करने जैसे कार्यों से बचना चाहिए। मान्यता है की आज के दिन किसी बड़े-बूढ़े या अन्य किसी व्यक्ति की चुगली, क्रोध, बुराई या बुरे विचारों को मन में लाने से पुण्य कर्म क्षीण होने लगते है। इसलिए कोशिश करें की आज गलती से भी इस तरह के काम ना करें। 

तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए

शास्त्रों के अनुसार एकादशी तिथि के दिन तुलसी के पत्ते बिलकुल नहीं तोड़ने चाहिए आज का दिन भगवान विष्णु जी को समर्पित है और तुलसी भगवान विष्णु जी को अतिप्रिय है आज के दिन विष्णु जी को तुलसी चढ़ाई जाती हैपूजा में इस्तेमाल करने के लिए तुलसी के पत्ते एकादशी के पहले दिन ही तोड़कर सुरक्षित रख लेना चाहिए। 

तामसिक भोजन से परहेज करें

निर्जला एकादशी का व्रत निर्जला रहकर पूरा किया जाता है मान्यता है की आज के दिन घर में प्याज, लहसुन या किसी भी तरह के तामसिक भोजन से परहेज करना चाहिए। ज्यां तक सम्भव हो इस दौरान घर में सात्विक भोजन ही बनाना चाहिए अर्थात सात्विकता का खास ख्याल रखना चाहिए। 

ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए

शास्त्रों में एकादशी का व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। इसलिए इसके नियम भी कड़े होते है इस दिन निर्जल रहकर व्रत पूरा किया जाता है। निर्जला एकादशी के व्रत में ब्रह्मचर्य का पूर्ण रुप से पालन करना चाहिए। 

किसी को खाली हाथ न लौटाएं

निर्जला एकादशी के दिन घर पर आए किसी भी व्यक्ति का न तो अपमान करना चाहिए और द्वार पर आए किसी व्यक्ति या जरूरतमंद व्यक्ति को खाली हाथ लौटाना चाहिए। अपनी सामर्थ्य के अनुसार कुछ न कुछ दान अवश्य करें। 

निर्जला एकादशी व्रत या पूजा विधि -  Nirjala Ekadashi Vrat Vidhi

निर्जला एकादशी व्रत बेहद कठिन माना गया है क्योंकि इस व्रत में एकादशी तिथि से लेकर अगले दिन द्वादशी तिथि सूर्योदय तक जल और भोजन का त्याग कर दान, पूण्य कर व्रत पूर्ण होता है। इस दिन सर्वप्रथम ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान के बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा पूजा स्थल पर स्थापित कर विधिपूर्वक पूजा करें और उन्हें पीले चन्दन, पीले फल, फूल, पीली मिठाई, तुलसी पत्र अर्पण करें। भगवान विष्णु की पूजा में उनके मात्र ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः का जाप करें। व्रती को इस दिन जल से कलश का दान अवश्य करना चाहिए। यह उपवास निर्जल रहकर पूरा करना चाहिए। इस दिन शेषशायी के रूप में भगवान विष्णु की आराधना कर किसी जरुरतमंद व्यक्ति को अन्न, वस्त्र, छतरी, पंखा तथा फल आदि का दान करना शुभ होता है। 

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व्रत कौन कर सकता है

शास्त्रों के अनुसार ऐसा बताया गया है की एकादशी का व्रत वो सभी लोग कर सकते है जिनकी उम्र 8 वर्ष ज्यादा है। एकादशी व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ है इसलिए चाहे वो पुरुष हो या स्त्री, कुँवारी कन्या हो या विवाहित महिला व्रत कर सकते है और इस व्रत को विधिपूर्वक करने पर इसका फल भी आपको अवश्य मिलता है। इस व्रत को आप निर्जल या फलाहार कर सकते है। 

पानी कब और कैसे पिये 

बहुत से लोगों का यह प्रश्न होता है कि निर्जला एकादशी के व्रत में पानी पिए या नहीं या फिर कब और कैसे पीना चाहिए, शास्त्रों में बताया गया है कि अगर आप निर्जल रहकर इस व्रत को कर रहे है तो आपको एकादशी से लेकर द्वादशी के परं तक इस व्रत में पानी नहीं पीना चाहिए। अगर आप निर्जल व्रत नहीं कर सकते है तो इस व्रत को जलाहार भी कर सकते है। जैसे आप व्रत में पानी. चाय या जूस पी सकते है। जब तक आप निर्जल रह सकते है तब तक निर्जल रहें और फिर भगवान विष्णु जी की पूजा के बाद आचमन में जल लेकर ही जल ग्रहण करें। अगर अपने निर्जल व्रत का संकल्प लिया है तो आपको चाय, जूस या पानी द्वादशी के दिन पारण किए बैगर बिलकुल भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। 

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दान कब और किन चीजों का करें

मान्यता है कि व्रत के बाद दान करना बहुत ही शुभ होता है, दान आपको अपनी सामर्थ्य अनुसार ही करना चाहिए इससे व्रत का पुण्य फल मिलता है। शास्त्रों के अनुसार निर्जला एकादशी के दिन जल, गाय, स्वर्ण, अन्न, भूमि, वस्त्र्य फलों का दान करना चाहिए। कहते है की यदि आप आज के दिन स्वयं निर्जल रहकर जल का दान करते है तो आपको व्रत का पूर्ण फल मिलता है। दान आप एकादशी या द्वादशी के दिन पारण से पहले कभी भी कर सकते है।

जल कलश का दान कैसे करें

अगर आप कलश का दान निर्जला एकादशी के दिन कर रहे है तो इसके लिए शुद्ध जल से भरे एक कलश के साथ दान की जाने वाली कुछ अन्य सामग्री यदि आप रखना चाहते है तो रख ले साथ में, सामर्थ्य अनुसार कुछ दक्षिणा भी रखें अब इस कलश को किसी ब्राह्मण या किसी मंदिर में दान करें। 

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निर्जला एकादशी व्रत नियम

शास्त्रों में यह व्रत सबसे अधिक कठिन व्रतों में से एक है, इसलिये इस व्रत के कुछ नियम है। 

  • निर्जला एकादशी पर सूर्योदय से पहले उठकर व्रत का संकल्प करना चाहिए। 
  • इस दिन घर में लहसुन, प्याज और तामसिक भोजन का प्रयोग बिलकुल भी न करें। 
  • एकादशी की पूजा में स्वच्छता का विशेष ख्याल रखें। 
  • निर्जला एकादशी के दिन परिवार में शांतिपूर्ण माहौल बनाये रखें। 
  • एकादशी के इस व्रत को निर्जल रहकर पूरा करना चाहिए। 

निर्जला एकादशी महाउपाय

  • मान्यता है कि निर्जला एकादशी के दिन खुद प्यासे रहकर जरूरतमंद लोगों को फल, अन्न, छतरी, शरबत विशेषकर जल का दान करने से व्यक्ति की प्रत्येक इच्छा पूरी होती है। 
  • आज के दिन श्री विष्णु मन्त्र का 108 बार जाप श्रीहरि विष्णु जी के साथ माँ लक्ष्मी जी की उपासना से व्यक्ति को धनधान्य में वृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। 
  • मान्यता अनुसार विष्णु जी की पूजा तुलसी बिना अधूरी है इसलिए एकादशी के दिन तुलसी के पास घी का शुद्ध दीपक जलाकर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जाप कर परिक्रमा करें इससे मनोकामना पूरी होती है। 

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निर्जला एकादशी व्रत कथा - Nirjala Ekadashi Vrat Katha

कई बार लोग महाभारत और रामायण को एक काल्पनिक  कथा का नाम देते है और दर्भाग्य की बात यह है कि अकसर इसे लोग सच भी मान लेते है लेकिन वास्तविकता यह है की महाभारत और रामायण का समय किसी लेखक या कवि की कल्पना नहीं है अपितु एक इतिहास है। जो इसी धरातल पर कुछ हजार वर्षों पूर्व रचा गया है। तो चलिए इसी इतिहास के उन पन्नो में चलते है जहां पांच पाण्डवों में से दूसरे भाई भीम सेन अपने पितामह महर्षि व्यास जी के साथ एक महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा कर रहे है। और आप तो जानते ही है की भीम सेन के लिए महत्वपूर्ण बात यानि भोजन तो इसी विषय में भीम सेन व्यास देव जी से पूछा___

हे! पितामह हर एकादशी के दिन मेरे बड़े भाई युद्धिष्ठिर मेरी प्रिय माता कुंती, पत्नी द्रोपती और तीनो छोटे भाई सहित सम्पूर्ण परिवार पूर्ण उपवास करते है। वे सभी बड़े ही धार्मिक होने के कारण हर एकादशी पर प्रत्येक व्रत और नियम का पालन करके अन्न, जल का ज्याग करते है। और मुझे भी ये परम कल्याणकारी एकादशी व्रत करने के लिए कहते है। 

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लेकिन मुझे हर बार उन्हें यही कहना पड़ता है की मैं भोजन किए बिना नहीं रह सकता। क्योंकि मैं सामान प्राणवायु देव का पुत्र हूं इसलिए मेरे लिए भूखा रहना असंभव है। मैं बड़े से बड़ा दान से सकता हूँ अनेक सामग्रिया लाकर उससे भगवान केशव की पूजा कर सकता हूँ लेकिन एकादशी के दिन बिना कुछ खाये व्रत करना मेरे लिए असम्भव है। 

क्या कोई ऐसा मार्ग है जिससे मुझे एकादशी का व्रत, नियम और उपवास भी ना करना पड़े और मई वैकुण्ठ लोक को भी प्राप्त करूँ। तब सभी शास्त्रों के ज्ञाता वेद व्यास जी मुस्कुराये और उन्होंने कहा हे! भीमसेन अगर तुम नर्क लोक से बचना चाहते हो और स्वर्ग लोक में जाना चाहते हो तो तुम्हे प्रत्येक मास में आने वाली दोनों एकादशी का पालन करना ही चाहिए। 

यह सुनकर निराश हुए भीमसेन ने कहा पितामह मेरी व्यथा सुनिए! भोजन किये बिना मैं एक क्षण भी नहीं रह सकता तो भी मैं पूरा दिन बिना कुछा खाये-पिए उपवास करूँ ये तो असम्भव है। उसके बाद भीमसेन ने अपने पेट में छिपे हुए अग्नि के विषय में विस्तार पूर्वक बताया। उन्होंने कहा हे महामुनि भगवान विष्णु से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए, भ्रम से अंगिरस, अंगिरस से बृहस्पति, बृहस्पति से साम्यू और साम्यू ही अग्निदेव के पिता है। 

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अग्नि मुख्य रूप से तीन प्रकर की होती है। जंगल में लगने वाली दवाग्नि, पेट में पाचन करने वाली जठराग्नी और ठन्डे और गर्म समुद्र के संगम से उठते हुए धुएं में छिपी वादावाग्नि इन तीनो में से जठराग्नि का एक और नाम मृग है, जो की अत्यंत शक्तिशली है और यही मृग अग्नि सदैव मेरे पेट में प्रज्वलित रहती है। जब तक मैं पूर्ण सन्तुष्ट होकर भोजन ग्रहण न कर लूँ तब-तक वो शांत ही नहीं होती। 

ज्यादा से ज्यादा मैं एक बार उपवास कर सकता हूँ इसलिए आप मेरे पर अनुग्रह करें। मुझे ऐसे किसी व्रत के बारे में बताएं जिसे करने से मुझे बाकि सारि एकादशी का फल प्राप्त हो जाय, मैं पूर्ण निष्ठा से उसका पालन करूँगा और फिर मुझे आशा है की मुझे भगवान नारायण की कृपा मिलेगा और मैं भी आध्यात्मिक जगत में प्रवेश कर सकूंगा। 

भीमसेन की बात सुनकर जैसे व्यास देव जी उसके धैर्य की परीक्षा ले रहे थे वैसे फिर एक बार उन्होंने गम्भीर वाणी में कहा हे राजन! वेद और शास्त्रों में मनुष्य के लिए अने व्रत, जप, तप और निति-नियम भी दिए गए है लेकिन कलयुग के अंदर कोई भी मनुष्य इस सभी नियमों का पूर्ण निष्ठा से पालन नहीं कर पायेगा। इसलिए अब मैं तुम्हे एक अत्यन्त सरल उपाय बताता हूँ। 

जिससे कलयुग का मनुष्य बहुत छोटी सी तपस्या करके बड़ी सरलता से सारे सुख-ंस्रिद्धि प्राप्त कर सकेगा। जैसा की तुम जानते हो सारे वेदन का सार सीमद भागवतम में छिपा हुआ है। और इस श्रीमद्भागवत पुराण का सार भगवान श्री कृष्ण की शरणागत होना और उनकी प्रेमा भक्ति से सेवा करना है और इसलिए व्यक्ति को मास में दो बार आने वाली एकादशी का पालन करना चाहिए। जो की उसे इस भक्तिमय सेवा की मार्ग में आगे बढ़वाने में सहायता करेगी। 

वस इतना ही सुनना था कि भीमसेन के धैर्य के सारे बांध टूट गए और अत्यंत बौखलाकर उन्होंने कहा लेकिन पितामह मैं क्या करूँ महोने में दो बार उपवास करके भूखा रहना मेरे लिए असम्भव है कृपया आप मुझे साल में एक दिन ऐसा बताये जिसमें मैं उपवास करके सारे पुण्य-फल अर्जित कर सकूँ और तब श्री व्यास जी ने कहा ये वायु पुत्र अब ध्यान पूर्वक सुनो मैं तुम्हे अब एक ऐसे व्रत के बारे में बताने जा रहा हूँ जो सबसे पवित्र और मोक्ष देता है। 

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ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष जब सूर्य वृषभ और मिथुन राशि में होता है उस समय आने वाली एकादशी का तुम्हे पालन करना चाहिए। इस एकादशी को निर्जला एकादशी कहते है। क्योकि की इस दिन केवल अन्न ही खाना वर्जित नहीं है परन्तु इस दिन जल का भी त्याग करना होता है। इस एकादशी के दिन सूर्योदय से लेकर द्वादशी के दिन सूर्योदय होने तक व्यक्ति को सम्पूर्ण निर्जल उपवास रखना होता है। जिसमे पानी भी नहीं पिया जा सकता है। 

जो व्यक्ति इस प्रकार निर्जल एकादशी का व्रत करता है उसे वर्ष की सभी एकादशी करने का पूर्ण फल प्राप्त होता है। व्यास जी ने इस एकादशी से होने वाले लाभ के बारे में भी भीमसेन को बताया। उन्होंने कहा शंख, चक्र, गदा और पद्मधारी स्वयं भगवान विष्णु ने मुझे ये बताया था कि जो व्यक्ति सभी एकादशी व्रत का पालन करके उपवास करता है। 

वह सारे पाप कर्मों से मुक्त हो जाता है लेकिन जो व्यक्ति पूर्ण निष्ठा से निर्जला एकादशी का पालन करता है उसे सरे एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त हो जाता है और उसमे कोई शंका नहीं है। सिर्फ यही नहीं इस एकादशी के लाभ के विषय में व्यास जी आगे कहते है की जो व्यक्ति अपनी इन्द्रियों को नियंत्रण में रखते हुए पूर्ण श्रद्धा से इस एकादशी का पालन करता है उसके सुमेरु या मंदराचल पर्वत जितने बड़े से बड़े पापों का भी नाश हो जाता है और उसे वैकुण्ठ की प्राप्ति होती है। 

जो व्यक्ति अमावस्या के दिन सूर्यग्रहण काल में अपने पितरों का श्राद्ध करता है उसे अत्यंत पुण्य फल प्राप्त होते है लेकिन जो व्यक्ति निर्जला एकादशी का पालन करता है उसे भी यही पुण्य फल प्राप्त होते है। जो व्यक्ति निर्जला एकादशी के दिन अन्न और जल का सम्पूर्ण त्याग करके व्रत का पालन करता है भगवान विष्णु के त्रिविक्रम स्वरूप की पूजा करता है और सुपात्र ब्राह्मण को दान देता है वह जीवन के अंत समय में जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर वैकुण्ठ लोक को प्राप्त करता है। 

ये एकादशी बड़े से बड़े पाप जैसे कि ब्राह्मण हत्या, नशीले पदार्थों का सेवन, गुरु ईष्या करना और उनके आदेशों का उलंघन करना, झूठ बोलना इत्यादि से भी मुक्ति प्रदान करने वाली है। जब पांडवों ने इस निर्जला एकादशी का इतना महत्त्व सुना तो भीमसेन सहित सभी ने संकल्प लिया कि वे इस निर्जला एकादशी का सम्पूर्ण निष्ठा पूर्वक पालन करेंगे और तभी से ये एकादशी पांडव निर्जला एकादशी के नाम से जानी जाती है। 

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टिप्पणियाँ

  1. आपश्री का बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏🙏
    आप के ज्ञानवर्धक एवं महत्वपूर्ण जानकारी साझा करने से हमे उचित मार्गदर्शन प्राप्त हुआ । बहुत बहुत साधुवाद। जय श्री श्याम

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका जो अपने अपना विचार हमारे ब्लॉग पर साझा किया
      जय श्री राम

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जय श्री राम
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