विश्व महासागर दिवस कब मनाया जाता है? | World Ocean Day 2022 Theme, History in Hindi
8 जून 2009 को पहला विश्व महासागर दिवस मनाया गया था। इसके बाद हर साल 8 जून को दुनिया भर में विश्व महासागर दिवस मनाया जाता है। यह दिवस सन 1992 में रियो डी जनेरियो में हुए पृथ्वी गृह नमक फोरम में प्रतिवर्ष विश्व महासागर दिवस मनाने के फैसले के बाद वर्ष 2008 में संयक्त राष्ट्र संघ द्वारा इस संबंध में आधिकारिक मान्यता दिए जाने दिए जाने के बाद से मनाया जाता है।
महासागर हमारी पृथ्वी पर न सिर्फ जीवन का प्रतीक है बल्कि पर्यावरण संतुलन में भी प्रमुख भूमिका करता है। पृथ्वी पर जीवन का आरंभ महासागरों से माना जाता है। महासागरीय जल में ही पहली बार जीवन का अंकुर फूटा था। आज महासागर असीम जैव विविधता का भंडार है। हमारे पृथ्वी का लगभग 70% भाग महासागरो से घिरा हुआ है। महासागरों में पृथ्वी पर उपलब्धय समस्त जल का लगभग 97% जल समाया है। महासागरों की विशालता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यदि पृथ्वी के सभी महासागरों को एक विशाल महासागर मान लिया जाय तो उसकी तुलना में पृथ्वी के सभी महाद्वीप एक छोटे द्वीप से प्रतीत होंगे। मुख्यतः पृथ्वी पर पांच महासागर है जिनके नाम इस प्रकार है___
- प्रशांत महासागर
- हिन्द महासागर
- अटलांटिक महासागर
- उत्तरी ध्रुव महासागर
- दक्षिणी ध्रुव महासगार
महासागरों का सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से महत्त्व मानव के लिए इन्हे अतिमहत्वपूर्ण बनाता है।इसलिए, 1992 से हर साल 8 जून को महासागरों के बारे में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से विश्व महासागर दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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विश्व महासागर दिवस |
विश्व महासागर दिवस कब मनाया जाता है?
विश्व महासागर दिवस मनाने का उद्देश्य
विश्व महासागर दिवस मनाने का प्रमुख कारण विश्व में महासागरों के महत्त्व और उसकी वजह से आने वाली चुनौतियों के बारे में विश्व में जागरूकता पैदा करना है। इसके आलावा महासगरों से जुड़े पहलुओं जैसे - खाद्य सुरक्षा, जैव-विविधता, पारिस्थितिक संतुलन, समुद्री संसाधनों के अंधाधुंध उपयोग, जलवायु परिवर्तन आदि पर प्रकाश डालना है। हर साल विश्व महासागर दिवस पर पूरे विश्व में महासागर से जुड़े विषयों मेंविभिन्न प्रकार के आयोजन किये जाते है। जो महासागर के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं के प्रति जागरूकता पैदा करने में मुख्य भूमिका निभाते है।
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विश्व महासागर दिवस का इतिहास (World Oceans Day History)
विश्व महासागर दिवस महागसरो को सम्मान देने, उनकी रक्षा और संरक्षण करने का अवसर प्रदान करता है। दरअसल कनाडा सरकार ने साल 1992 में रियो डी जनेरियो में आयोजित पृथ्वी सम्मलेन के दौरान विश्व महासागर दिवस की स्थपना का प्रस्ताव रखा था। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने दिसंबर 2008 में 8 जून को विश्व महासागर दिवस आधिकारिक तौर पर मानाने की मान्यता दी। तब से हर साल 8 जून को विश्व महासागर दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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जैव विविधता
अपने आरंभिक काल से ही आज तक महासागर जीवन के विविध रूपों को संजोए हुए है। पृथ्वी के विशाल क्षेत्र में फैले अथाह जल का भंडार होने के साथ महासागर अपने अंदर व् अस-पास अनेक छोटे-छोटे नाजुक पारितंत्रों को पनाह देते है, जिससे उस स्थान पर विभिन्न प्रकार के जिव व वनस्पतिया पनपती है। समुद्र में प्रवाल भित्ति क्षेत्र एक ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र का उदाहरण है जो अपार जैव विविधता का प्रतीक है।
इसी प्रकार तटीय क्षेत्रों में स्थित मेंग्रोव जैसी वनस्पतियों से संपन्न वन समुद्र के अनेक जीवों के लिए नर्सरी का काम करते हुए विभिन्न जीवों को आश्रय प्रदान करते है। अपने आरंभिक काल से ही आज तक महासागर जीवन के विविध रूपों को संजोए हुए है। महासागरों में पृथ्वी का सबसे विशालकाय जीव व्हेल से लेकर सूक्ष्म जिव भी मिलते है।
एक अनुमान के अनुसार केवल महासागर के अंदर करीब दस लाख प्रजातियाँ उपस्थित हो सकती है। जिव विविधता से सम्पन्न होने के साथ ही महासागर धरती के मौसम को निर्धारित करने करने वाले प्रमुख कारक है। समुद्री जल की लवणता और विशिष्ट उष्माधारिता का गुण पृथ्वी के मौसम को प्रभावित करता है। हम जानते हैं कि पृथ्वी की समस्त ऊष्मा में जल की ऊष्मा का विशेष महत्व होता है।
जिसकी ऊष्मा एक ग्राम जल के तापमान में एक डिग्री सेलसियसव की वृद्धि करेगी, उससे एक ग्राम लोहे का तापमान दस डिग्री बढ़ाया जा सकता है। अभिक विशिष्ट ऊष्मा के कारण समुद्री जल दिन में सूर्य की ऊर्जा का बहुत बड़ा भाग अपने में समा लेता है। इस प्रकार अधिक विशिष्ट ऊष्मा के कारण समुद्री ऊष्मा का भण्डारक बन जाता है, जिसके कारण विश्व भर में मौसम संतुलन बना रहता है या यूँ कहे की जीवन के लिए औसत तापमान बना रहता है।
मौसम के संतुलन में समुद्रीय जल की लवणता जीवन के लिए एक वरदान है। पृथ्वी पर जलवायु के बदलने की घटना और समुद्री जल का खारापन आपस में अंतःसंबन्धित है। यह तो हम जानते है की ठंडा जल, गर्म जल की तुलना में अधिक घनत्व वाला होता है। समुन्द्र में किसी स्थान पर सूर्य के ताप के कारण जल के वाष्पित होने से उस क्षेत्र के जल के तापमान में परिवर्तन होने के साथ वहां के समुद्री जल की लवणता और आस-पास की क्षेत्र की लवणता में अंतर उत्पन्न हो जाता है।
जिसके कारण गर्म जल की धाराएं ठन्डे क्षेत्रो की ओर चल देती है और ठंडा जल उष्ण और कम उष्ण प्रदेशों में जाता है। समुद्र में धाराएँ केवल इसलिए उत्पन्न होती हैं क्योंकि समुद्र का पानी खारा होता है। क्योंकि यदि समुद्र का सारा जल मीठा होता तो लवणता का क्रम कभी नहीं बनता और जल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने वाली धाराएँ सक्रिय नहीं होती। परिणामस्वरूप ठन्डे प्रदेश बहुत ठंडे रहते और गर्म प्रदेश बहुत गर्म। तब पृथ्वी पर जीवन के इतने रंग नहीं बिखरे होते क्योकि पृथिवी की असीम जैव-विविधता का एक प्रमुख कारण यह है की यहाँ अनेक प्रकार की जलवायु मौजूद है और जलवायु के निर्धारण में महासागरों का महत्वपूर्ण योगदान नकारा नहीं जा सकता है।
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जीवों के पर्यावास पर प्रभाव
महासागर में पानी का तापमान और ऑक्सीजन का घटना स्टार समुद्रीय जानवरों को भूमध्य रेखा से दूर रखने में एक साथ मिलकर भूमिका निभाते हैं, जहां ऑक्सीजन की आपूर्ति उनकी भावी जरूरतें पूरी कर सकती है। यह नई जानकारी एक शोध से सामने आई है। शोधकर्ताओं के मुताबित पानी का तापमान अक्सिजन के लिए जानवरों में मेटाबॉलिक जरूरतों की तीव्रता को बढ़ाता है।
ऐसा व्यायाम के दौरान भी होता है, लेकिन गर्म पानी में उनके शरीर को शक्ति देने के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा कम रहती है। ऊंचाई पर ही ऐसा होता है। जलवायु परिवर्तन की वजह से लगभग दो-तिहाई श्वास संबंधी तनाव गर्म तापमान की वजह से होता है, जबकि बाकि इसलिए होता है। क्योंकि गर्म पानी में गैसें कम घुली हुई होती है।
वाशिंगटन विश्वविद्यालय में समुद्र विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर और इस शोध के प्रमुख कर्टिस ड्यूच के मुताबित यदि आपके मेटाबालिज्म बढते है तो ऐसी स्थिति में आपको आर्थिक भोजन और ऑक्सीजन की जरूरत है। इसका मतलब यह है कि भविष्य में गर्म पानी की वजह से जल में रहने वाले जीवधारी ऑक्सीजन की कमी से मर जायेंगे। सभी जानते है की समुद्र में ऑक्सीजन का स्तर घट रहा है और यह जलवायु परिवर्त के साथ अधिक घटेगा।
यह शोध चार अटलांटिक महासागर प्रजातियों पर किया गया। अटलांटिक कॉड जो गहरे समुद्र में रहता है, अटलांटिक रॉक क्रैब जो तटीय पानी में रहता है, शार्प स्नाउट सीब्रीम जो उपोष्णकटिबंधीय अटलांटिक और भूमध्य सागर में रहता है और समुद्र तल में रहने वाली मछली ईलपाउट पर किया गया। यह शोध साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
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मानव गतिविधियों का असर
वर्तमान में मानव गतिविधियों का प्रभाव समुद्र पर भी दिखाई देने लगा है। महासागरों के तटीय क्षेत्रों में दिनों दिन प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। ज्यां तटीय क्षेत्र विषेकर नदियों के मुहानों पर सूर्य के प्रकाश की पर्याप्तता के कारण अधिक जैव-विविधता वाले क्षेत्रों के रूप में पहचाने जाते थे, वहीँ अब इन क्षेत्रों में समुद्री जल में भरी मात्रा में प्रदूषणकारी तत्वों के मिलने से वहां जीवन संकट में है।
तेलवाहक जहाजों से तेल रिसाव के कारण एवं समुद्री जल के मटमैला होने पर उसमें सूर्य का प्रकाश गहराई तक नहीं पहुँच पाता, जिससे वहां जीवन को पनपने में परेशानी होती है और उन स्थानों पर जैव-विविधता भी प्रभावित होती है। यदि किसी कारणवश पृथ्वी का तापमान बढ़ता है तो महासागरों की कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने की क्षमता में कमी आएगी, जिससे वायुमंडल में गैसों की अनुपातित मात्रा में परिवर्तन होगा और तब जीवन के लिए आवश्यक परिस्थितियों में असंतुलन होने से पृथ्वी पर जीवन संकट में पड़ सकता है।
समुद्रों से तेल व खनिज के अनियंत्रित व अव्यवस्थित खनन एवं अन्य औद्योगिक कार्यों से समुद्री परितंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध संस्था अंतर्-सरकारी पैनल की रिपोर्ट के अनुसार गतिविधियों से ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्री जल स्तर में वृद्धि हो रहा है और जिसके परिणाम स्वरूप विश्व भर के मौसम में बदलाव हो सकते है।
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