गांव से लेकर प्रदेश, देश तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलों का रुझान बढ़ा है। निजी स्तर से लेकर सरकारी स्तर तक खेलों को बढ़ावा देने के लिए खेल कोटा निर्धरित किया गया है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में खेलों के प्रसारण के लिए बाकायदा प्रायोजक होते है। प्रिंट मीडिया तथा पत्र-पत्रिकाओं में भी खेलों से संबंधित विज्ञापनों की भीड़ होती है। इस तरह से खेल रिपोर्टरों की खेल समीक्षा ने खेल पत्रकारिता को लोकप्रिय बनाया है। पत्रकारिता के क्षेत्र में खेल पत्रकारिता ने एक अलग ही महत्वपूर्ण मुकाम हासिल किया है।
खेल जगत की खबरों के बिना आज पत्र-पत्रिका, टीबी और अन्य सूचना तंत्र को अधूरा माना जाता है क्योंकि आज का पाठक खेल की खबरों को बड़े चाव से पढ़ता और देखता है और यह युवा वर्ग के लिए मनोरजन का बहुत बड़ा साधन बन गया है। भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता का आलम यह है की इसे देश का धर्म तक कहा जाने लगा है। आज हम आपको विश्व खेल पत्रकारिता दिवस कब मान्या जाता है, क्यों मनाया जाता है, पत्रकारिता किसे कहते है, खेल पत्रकारिता किसे कहते है और इसके इतिहास के बारे में बताएँगे।
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विश्व खेल पत्रकारिता दिवस |
विश्व खेल पत्रकारिता दिवस कब मनाया जाता है?
हर साल 2 जुलाई को विश्व के विभिन्न देशों में विश्व खेल पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन खेल जगत से खबरें देकर मीडिया के बेहतरीन काम का सम्मान करने का दिन है। सभी देशों के बीच शांति और सद्भाव की मिसाल कायम करना खेल पत्रकारिता का दायित्व है।
विश्व खेल पत्रकारिता दिवस क्यों मनाया जाता है? (World Sports Journalists Day Kab Manaya Jata Hai)
विश्व में खेल के प्रचार के लिए और खेल पत्रकारों की सेवाओं को चिन्हित करने के लिए इस दिन को मनाया जाता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि खेल न केवल मनोरंजन का साधन है बल्कि यह अच्छे स्वास्थ्य और बौद्धिक क्षमता का भी प्रतीक है। यही कारण है कि प्राचीन काल से ही पूरे विश्व में खेलों का अभ्यास किया जाता रहा है।
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पत्रकारिता किसे कहते है?
पत्रकारिता आधुनिक सभ्यता का एक प्रमुख व्यवसाय है, जिसमें समाचार एकत्र करना, लिखना, सूचना एकत्र करना और प्रसार करना, सम्पादित करना और सम्यक प्रस्तुतीकरण आदि सम्मिलित हैं। आज के युग में समाचार पत्र, पत्रिकाएं, रेडियो, टेलीविजन, वेब पत्रकारिता आदि जैसे कई पत्रकारिता माध्यम हो गए हैं।
खेल पत्रकारिता किसे कहते हैं?
खेल केवल मनोरंजन का साधन नहीं बल्कि वह अच्छे स्वास्थ्य, शारीरिक दमखम और बौद्धिक क्षमता का प्रतीक है। यही कारण है कि पूरी दुनिया में अति प्राचीनकाल से खेलों का प्रचलन रहा है। मल्ल-युद्ध, तीरंदाजी, घुड़सवारी, तैराकी, गुल्ली-डंडा, पोलो रस्साकशी, मलखंभ, वॉल गेम्स जैसे आउटडोर या मैदानी खेलों के अलावा चौपड़, चौसर या शतरंज जैसे इंडोर खेल प्राचीनकाल से ही लोकप्रिय रहे हैं। आधुनिक काल में इन पुराने खेलों के अलावा इनसे मोलते-जुलते खेलों तथा अन्य आधुनिक स्पर्धात्मक खेलों ने पूरी दुनिया में अपना वर्चस्व कायम कर रखा है।
खेल आधुनिक हो या प्राचीन खेलों में होने वाले अद्भुत कारनामों को जगजाहिर करने तथा उनका व्यापक प्रचार-प्रसार करने में खेल पत्रकारिता का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आज अगर दुनिया भर में खेल लोकप्रियता के चरम पर है, तो इसका बहुत सारा श्रेय खेल पत्रकारिता को जाता है। खेल मानव खेल प्रतियोगिता के कई पहलुओं को शामिल करता है। साथ ही अख़बारों, पत्रिकाओं, रेडयो और टेलीविजन समाचार प्रसारण जैसे पत्रकारिता उत्पादों का अभिन्न अंग है।
जहां कुछ आलोचको खेल पत्रकारिता को सही मायने में पत्रकारिता नहीं मानते, वहीँ पश्चिमी संस्कृति में खेल की प्रमुखता ने प्रतिस्पर्धात्मक खेलों पर पत्रकारों के ध्यान को व्यायोचित रूप दिया है। एथलीटों और खेल के व्यवसाय पर ध्यान केंद्रित किया गया है। खेल पत्रकारिता जैसा कि नाम से पता चलता है, खेल विषयों और घटनाओं पर पत्रकारिता की रिपोर्ट और यह किसी भी समाचार मीडिया संगठन का एक अनिवार्य तत्व है। खेलों में करियर आज अपने उफान पर है और यह खेल पत्रकारों के लिए भी शानदार करियर के अवसर लाता है।
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प्रमुख पत्र-पत्रिकाएं
बिजनेस स्टैण्डर्ड, बिजनेस लाइन, इकॉनॉमिक टाइम्स, फाइनेंशियल एक्स्प्रेस, मनी कंट्रोल, इकॉनॉमिक वेल्थ, मिंट, व्यापार आदि।
पत्रकारिता के अन्य रूप
- ग्रामीण पत्रकारिता
- व्याख्यात्मक पत्रकारिता
- विकास पत्रकारिता
- संदर्भ पत्रकारिता
- संसदीय पत्रकारिता
- रेडियो पत्रकारिता
- दूरदर्शन पत्रकारिता
- फोटो पत्रकारिता
- विधि पत्तरकारिता
- अंतरिक्ष पत्रकारिता
- सर्वदाय पत्रकारिता
- चित्रपट पत्रकारिता
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खेल पत्रकारिता के दायरे
आज यह एक पुरस्कार व्यवसाय है जो प्रतिभाशाली और कुशल खेल मीडिया पेशेवरों की आवश्यकता है। एक स्पोर्ट्स रिपोर्टर बनने के लिए आपको अपने विषय को अंदर-बाहर जानना होगा और इस व्यवसाय में अपनी पहचान बनाने का जुनून होना चाहिए। यह बहुत मेहनत और जिम्मेदारी की भी मांग करता है। हालांकि आकर्षक पुरस्कार, एक खेल रिपोर्टर को खेल में बॉक्स सीटें मिलती हैं।
आज इंटरनेट खेल पत्रकारिता एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है, लगभग सभी पत्रकार जमीन से शुरू हो गए हैं।तो अगर आप एक महत्वाकांक्षी पत्रकार है, आप अपनी पसंदीदा टीम या विशेष रूप से खेल पर अपने ब्लॉग के साथ शुरू कर सकते है। यह आप स्वयं प्रकाशित क्लिप के अपने पोर्टफोलियो का निर्माण करने में मदद करता है और अगर किसी भी खेल संगठन अपने ब्लॉग दिलचस्प पता है तो आपको भी उनके साथ काम करने का मौका मिल सकता है।
आज खेल पत्रकारिता लम्बे समय फार्म लेखन में बदल गया है, यह भी लोकप्रिय खेल है जो आत्मकथाएँ, इतिहास और जाँच शामिल करने पर किताबे, कई पश्चिमी देशों में उनके खेल पत्रकारों की अपनी राष्ट्रीय संघ है। भारत में खेल पत्रकारिता में हाल ही में वृद्धि हुई है। विभिन्न प्रमुख समाचार पत्रों में स्पोर्ट्स कॉलम पाठकों के बीच व्यापक रूप से लोकप्रिय है। आज भारत को न केवल क्रिकेट द्वारा सराहा जाता है बल्कि वे अन्य खेलों जैसे फुलबॉल, हॉकी, कुश्ती, बॉक्सिंग आदि के महत्व को भी समझ चुके हैं। अपने लेखन और खेल कौशल को बढ़ाने के लिए खेल पत्रकारिता में डिग्री प्राप्त करें।
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आधुनिक भारत में खेल पत्रकारिता का विकास
खेल किसी भी सभ्यता और संस्कृति का अहम हिस्सा होते है और भारत के संबंध में भी यह तथ्य सत्य है। यहां हजारों साल के खेल की परंपरा रही है, लेकिन जब खेल पत्रकारिता की बात आती है, तो हम बात करते हैं कि यह एक नई शैली है, जिसे भारत में लगभग डेढ़ सौ साल पहले ही शुरू किया गया है। 18 वीं सदी के उत्तरार्ध में कुछ समाचार पत्र खेल की खबरों का प्रकाशन करने लगे थे। देश में कुछ फुलबॉल और कुछ क्रिकेट क्लब स्थापित हो चुके थे जिनके बारे में कभी कभार खबरे भी स्थानीय अख़बारों में प्रकाशित हो जाया करती थी।
यह खबरे ज्यादातर सूचनात्मक ही हुआ करती थी भारत में खेलों को कुछ हद तक लोकप्रिता तब मिली जब 1928 में भारतीय हॉकी टीम ओलम्पिक स्वर्ण पदक जीत लिया। यह भारतीय खेलों के इतिहास में एक नए युग की शुरुआत थी। 1932 में भारतीय क्रिकेट टीम ने टेस्ट क्रिकेट में भाग लिया और इन खेल घटनाओं से खोलों को नए पाठक वर्ग मील और खेल पत्रकारिता में विशेषज्ञों की आमद हुई। किन्तु अब तक ज्यादातर खेल खबरे मात्र सूचनात्मक ही थी।
स्वतंत्रता के बाद पत्रकारिता में आए बदलाव के चलते खेल समाचारों में भी बदलाव आया। सम्पादक पद की महत्ता बढ़ जाने के साथ-साथ अनेक अख़बारों में खेल संचारों को महत्व दिया जाने लगा। इसके पीछे के कारन में सम्पादको का खेलों के प्रति लगाव था। अंग्रेजी के अधिसंख्य अख़बारों में खेल की खबरे छपती थी किन्तु अल्प मात्र में ही, साथ ही साथ इन अख़बारों में छपने वाले अधिकतर खेल समाचार विदेशी धरती पर होने वाले खेलों के ही हुआ करते थे।
असा इनके स्वामित्व का विदेशियों या अंग्रेजों के हाथों में होने का कारण था। बहरत में खेल-लेखन सूत्रपात दिल्ली में 1950 में हुए एशियाड से माना जा सकता है। जब देश के अनेक अंग्रेजी समाचार पत्रों और एकाध हिंदी के समाचार पत्रों ने खेल परिशिष्ट निकाले। इसके परिणामस्वरूप समाचार पत्रों में हमेशा के लिए खेल का पन्ना नियत हो गया। स्वतंत्रता के पूर्व तक प्रकाशित होने वाले खेल समाचारों में खेल तत्वों की कमी थी।
ये या तो सूचनात्मक थे एक फिर भारतीयता को गौरवान्वित करने वाले हुआ करते थे। लेकिन एशियार्ड ने इस विचारधारा में परिवर्तन ला दिया, अंग्रेजी के समाचार पत्र इन सब में सबसे आगे थे लेकिन भारतीय भाषाओँ के संचार पत्रों ने भी खेल समाचारों के प्रति सकारात्मक भाव अपना लिया था। हालाँकि 50 से 60 के दशक में नई पीढ़ी जो खेलों के प्रति जागरूक और उत्सुक थी के लिए संचार पत्रों में प्रकशित होने वाले समाचार अपर्याप्त ही लग रहे थे।
संसाधनों से लैश राष्ट्रीय राजधानी से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र भी खेलों को पर्याप्त स्थान नहीं दे पा रहे थे। इसी धीमी रफ्तार में खेलों के प्रति आम भारतीय की मानसिकता भी जिम्मेदार थी। जो खेलों को बिगड़ जाने की वजह मानता आया है। उत्तर भारत में कहावत भी प्रचतिल है की 'पढोगे-लिखोगे तो होगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे तो होगे खराब'। 7 वें दशक के बाद खेलों के महाकुंभ ओलंपिक विश्व कप क्रिकेट, हॉकी एवं फुलबॉल तथा एशियाई खेलों के लिए समाचार पत्रों में विशेष पृष्ठ भी निकाले जाने लगे।
8वें दशक में इन बड़े खेल आयोजनों के समय हिंदी अख़बारों में खेल की ख़बरों के लिए तो पृष्ठ दिए जाने लगे थे। खेल रिपोर्टिंग ने पाठकों को खेलों की नई शब्दावली से भी परचित करवाया। ये शब्दावली इतनी लोकप्रिय हुई लोग आपसी बातचीत में इनका प्रयोग करने लगे यह शब्दावली जैसे एथलिटिक मिट, क्रास कंट्री रेस, शाटपुट, जेवलिन थ्रो, पोलवाल्ट, हैमर थ्रो, स्टीपल चेज, डेकानथलन, डाउन द लाइन शाट, यश टाई ब्रेकर, सदन डेथ, एक्स्ट्रा टाइम, हाफ टाइम, स्पिन बॉलिंग, मीडियम फास्ट, एलबीडब्लू पीच आदि 90 के दशक तक छायी रही।
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