आज विश्व जूनोसिस दिवस है ये दिन ऐसी बिमारियों के बारे जागरूकता फ़ैलाने के लिए मनाया जाता है जो संक्रामक बीमारी है। बैक्टीरिया, वायरस और पैरासाइट्स के कारण जानवरों में बहुत सारी बीमारियां पायी जाती है। कई बार जानवरों से यही बीमारियां इंसानों के शरीर में प्रवेश कर जाती है जो जानवरों से मनुष्यों में और फिर मनुष्यों से जानवरों में फैलते हैं। ऐसी संक्रामक बिमारियों को ही ज़ूनोसिस कहा जाता है।
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विश्व ज़ूनोसिस दिवस |
विश्व जूनोसिस दिवस कब मनाया जाता है?
विश्व जूनोसिस दिवस क्यों मनाया जाता है?
प्रकृति दृष्टि से देखें तो जानवरों और इंसानों में कोई खास फर्क नहीं है। इंसान भी अन्य जानवरों की तरह ही जीवों की एक प्रजाति है। लेकिन इंसान इस मामले में अलग है की वो सामाजिक हो गया है और ज्यादा साफ-सफाई के साथ रहने लगा है। बुद्धि और क्षमता में अधिक होने के कारण इनसार अपनी रक्षा के उपाय कर सकता है और परिस्थितियों को कुछ हद तक कंट्रोल भी कर सकता है। वहीँ जानवरों का अपने शरीर, अपने मस्तिष्क और क्षमता पर इतना कंट्रोल नहीं होता।
यही कारण है कि बैक्टीरिया, वाइरस के कारण जानवरों में बहुत सारी बीमारियां पायी जाती है। इन्ही बिमारियों से जानवर मरते रहते हैं और प्रकृति का संतुलन भी बना रहता है। कई बार जानवरों से यही बीमारियां इंसानों के शरीर में प्रवेश कर जाती है। ऐसी संक्रामक बिमारियों को ही जूनोसिस कहा जाता है। लेकिन प्रकति से संघर्ष और विकास की दौड़ में हजारों सालों से इंसान और जानवर साथ-साथ दौड़ रहे हैं और शायद हमेशा दौड़ते रहेंगे। जानवरों से मनुष्यों में फैलने वाले संक्रामक रोगों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 6 जुलाई को विश्व जूनोसिस दिवस मनाया जाता है।
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क्या है जूनोसिस?
जूनोसिस एक ग्रीक शब्द है जो ज़ून और नोसोस से मिलकर बना है। यहां जून से मतलब पशु या जानवर से है और नोसोस से मतलब बीमारी या रोग से है। हिंदी में कहा जाय तो जूनोसिस का मतलब पशु जन्य रोग से है। ऐसे रोग जो जानवरों से मनुष्यों में फैलते हैं, जूनोसिस या जूनोटिक रोग कहलाते हैं। जूनोसिस संक्रमण प्रक्रिया प्रकृति या मनुष्यों में जानवरों के अलावा बैक्टीरिया, वायरस या परजीवी के माध्यम से फैलती है।
हर साल 2.4 मिलियन से भी ज्यादा लोग जूनोसिस से बीमार होते है जिसमे से मिलियन की तो मृत्यु हो जाती है। जब मनुष्य जानवरों के संपर्क में आते है तो जानवरों में मौजूद रोगाणु मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाते है। यह जानवरों से इंसानों में फैलने वाली बीमारी है। जैसे रेबीज़, स्वाइन-फ्लू, कोरोना वायरस, मलेरिया, बर्ड-फ्लू, ज़ीका फीवर, डेंगू, हेपेटाइटिस, रेड बाईट फीवर और भी बहुत सारे।
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जूनोसिस के फ़ैलाने का कारण
जूनोसिस बीमारिया वाइरस, बैक्टीरियन, पैरासाइट्स और कवको जैसे हानिकारक रोगजनकों के कारण होती है। ये पैथजन न केवल मनुष्यों में विभिन्न तरह के बीमारियों को पैदा करते है बल्कि इनसे जानवरों में तरह-तरह केरोग पनपते रहते है। ये हल्की बीमारी से लेकर ऐसी बीमारियाँ पैदा करने में सहायक होते है जो मृत्यु तक का कारण बन जाती है।
- पशु प्रोटीन (Animal Protein) की बढ़ती मांग।
- गहन और गैर-टिकाऊ कृषि में बढ़ोत्तरी।
- वन्य जीवों का बढ़ता उपयोग एवं शोषण।
- प्राकृतिक संसाधनों का निरंतर उपयोग।
- यात्रा और परिवहन।
- खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं में बदलाव।
- जलवायु परिवर्तन संकट।
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मनुष्य पशुओं के संपर्क में कैसे आते है?
प्रत्यक्ष सम्पर्क
दरअसल कुछ रोग मनुष्यों के जानवरों से डायरेक्ट यानि प्रत्यक्ष सम्पर्क में आने के कारण पैदा होते है। इसमें पशुओं के लार, रक्त, यूरिन, मल और शरीर से बहने वाले तरल पदार्थों के सम्पर्क में आना शामिल है। इसके आलावा इस तरह के रोग जानवरों के काटने या खरोंचने से भी पैदा होते है।
अप्रत्यक्ष सम्पर्क
कुछ जूनोसिस रोग अप्रत्यक्ष संपर्क के कारण होते है इस तरह के रोग ऐसे संक्रमित क्षेत्र, सतह अथवा वस्तुओं के संपर्क में आने के कारण पैदा होते है। जो जानवरों को घूमने और रहने योग्य है।
वेक्टर जनित
इसके आलावा कुछ ज़ूनोटिक रोग वेक्टर जनित यानि वेक्टर बोर्न होते है जो मच्छर अथवा पिसु जैसे अहम् वेक्टर के काटने से फैलते है।
भोजन जनित
इसके अतिरिक्त संक्रमित भोजन के सेवन मसलन कच्चा दूध पीने, अधपका मांस अथवा अंडा खाने और संक्रमित जानवर के मल से दूषित कच्चे फल और सब्जियां खाने से भी ज़ूनोटिक बीमारियां फैल सकती है। इन्हे फूडबोर्न बीमारी के कैटेगरी में रखा गया है।
जल जनित
साथ ही पेय जल में अपशिष्ट पदार्थों के मिलने से फैलने वाले संक्रामक रोगों को वाटरबॉर्न जूनोटिक रोगों में शामिल किया गया है।
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जूनोटिक संक्रमण को रोकने के उपाय
- जूनोटिक रोगों के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
- स्वास्थ्य पहल को बढ़ावा देने वाले Interdisciplinary त्तरीकों में निवेश।
- जूनोटिक रोगों पर वैज्ञानिक खोज और अनुसंधान को बढ़ावा देना।
- खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए वैकल्पिक तरीकों को विकसित किया जाना चाहिए ताकि आवास स्थलों और जैव विविधता का संरक्षण किया जा सके।
- सभी देशी में स्वास्थ्य के क्षेत्र में हिस्सेदारों के क्षमताओं को मजबूत बनाने की भी बात कही गई है।
- जैव सुरक्षा और नियत्रण में सुधर लाना।
- जूनोटिक बिमारियों के होने के कारणों पहचान करना और उनके नियंत्रण के तरीकों को बढ़ावा देना।
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विश्व जूनोसिस दिवस का इतिहास
प्राचीन समय से रेबीज एक जानलेवा घातक बीमारी रही है लेकिन जब रेबीज का टीका (वैक्सीन) बनाया गया तो वास्तव में मानव के लिए बड़ी उपलब्धि थी। इस वैक्सीन के अविष्कार का श्रेय विशेष रूप से फ्रांस के वैज्ञानिक लुई पाश्चर को जाता है। जानकारी के अनुसार लुई पाश्चर ने यह पहला टिका 6 जुलाई 1885 को एक साल के बच्चे जोसेफ मिस्टर पर लगाया था। इसलिए 6 जुलाई को विश्व जूनोसिस दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया।
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