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राजा राममोहन राय जयंती और पुण्यतिथि कब है? | Raja Ram Mohan Roy History in Hindi

राजा राम मोहन रॉय एक नये युग के प्रवर्तक थे और और उन्होंने जो ज्योति जलाई वह आज भी अनवरल चल रही है। वात्सव में उनके कार्यों का विश्लेषणात्मक अध्ययन करने पर यह कहना पड़ता है की उनके योगदान रूपी जल से सिंचित भारत आज गर्व से प्रगति के शिखर विहंस कर रहा है। निष्कर्ष के तौर पर यह कहना कोई अत्युक्ति नही होगी कि भारतीय समाज रूपी रथ को अन्याय विसंगतियों और कु-प्रथाओं, पिछड़ापन, अशिक्षा आदि के धुंध से निकालकर प्रकाश प्रगति के पथ अग्रसारित करने वाले राजा साहब सफल सारथी थे। 

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राजा राम मोहन रॉय का जयंती कब मनाया जाता है? (Raja Ram Mohan Roy Jayanti Kab Hai)

राजा राममोहन राय Raja Ram Mohan Roy भारतीय व्यक्तित्वों के उन दीप्तिमान नक्षत्रों में से एक थे जिन्होंने अंधविश्वास और कई दर्दनाक बुराइयों जैसे शापों से भारतीय जीवन को अंधकार से प्रकाश की ओर ले गए। ऐसे महापुरुष ल जन्म पश्चिम बंगाल के वर्द्धमान जिलान्तर्गत राधा नगर ग्राम में एक संभ्रांत कट्टर ब्राह्मण परिवार में 22 मई 1772 को हुआ था और प्रत्येक वर्ष 22 मई को राजा राम मोहन रॉय का जयंती मनाया जाता है। प्रारम्भिक शिक्षा के दौरान उन्होंने संस्कृत और बांग्ला की शिक्षा प्राप्त की तथा 12 वर्ष की आयु में वे फ़ारसी और अरबी की सेवा में लगभग 14 वर्ष तक रहे। इस बीच उन्होंने अंग्रेजी भी सीख ली तथा ईसाई धर्म ग्रंथों के अध्ययन हेतु ग्रीक लैटिन और हिब्रू भाषा भी सीखी। 

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राजा राममोहन राय जयंती और पुण्यतिथि कब है? |  Raja Ram Mohan Roy History in Hindi
राजा राम मोहन रॉय जयंती 

राजा ने अपने नाम के साथ जिस शब्द का प्रयोग किया वह वंशानुगत नहीं बल्कि एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति द्वारा अर्जित उपाधि थी। जिसे मुगल बादशाह ने इंग्लैंड जाते समय उपलब्ध कराया था। राजा राम मोहन रॉय पहले महापुरुष थे जिन्होंने बह्माडंबर, आपसी वैमनस्यता, छुआछूत, गुलामी, सामाजिक और धार्मिक प्रथाओं की काली कोठरी में जाग्रत दीप जलाकर संसार से भागने का प्रयास किया।

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राजा राम मोहन रॉय का जीवन परिचय (Raja Ram Mohan Roy Ka Jivan Parichay)

राजा राममोहन राय का जन्म 22 मई 1772 को बंगाल के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता वैष्णव थे और माता शाक्त परिवार की थीं। इनके पत्नी का नाम था उमा देवी। 15 साल की उम्र तक उन्हें बंगाली, अरबी, संस्कृत और फारसी भाषाओं का ज्ञान हो गया था। 17 वर्ष की अल्पायु में ही वे मूर्ति-पूजा के विरोधी हो गए। वे ईश्वर की एकता में विश्वास करते थे और सभी प्रकार के धार्मिक अंधविश्वासों और कर्मकांडों का विरोध भी करते थे। उन्होंने अपने विचारों को लेखों और पुस्तकों में प्रकाशित करवाया ताकि लोगो को जागरूक किया जा सके। उन्होंने हिंदू और ईसाई प्रचारकों के साथ बहुत संघर्ष किया, लेकिन जीवन भर उनके विचारों का समर्थन करते रहे और अपने प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना भी की।

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राजा राममोहन राय को किन-किन उपाधियो के नाम से जाना जाता है

  • राजा राममोहन राय को "आधुनिक भारतीय समाज" का जन्मदाता भी कहा जाता है।
  • राजा राममोहन राय जी ब्रह्म समाज के संस्थापक, जन जागृति, भारतीय भाषायी प्रेस के प्रवर्तक और सामाजिक सुधार आंदोलन के अग्रदूत और बंगाल में नव-जागरण युग के पितामहभी कहे जाते है। 

राजा राममोहन राय का व्यवसाय

अपने पिता की मृत्यु के बाद, उन्होंने कलकत्ता में जमींदार की देखभाल करना शुरू किया। 1805 में ईस्ट इंडिया कंपनी के एक निम्न-रैंकिंग अधिकारी जॉन डिगबॉय ने उन्हें पश्चिमी सभ्यता और साहित्य से परिचित कराया। अगले 10 वर्षों तक उन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में डिग्बी के सहायक के रूप में काम किया, जबकि 1809 से 1814 तक उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के राजस्व विभाग में काम किया।

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राजा राममोहन राय से सम्बंधित महत्वपूर्ण बिंदु

  • राजा राममोहन राय आधुनिक शिक्षा के हिमायती थे और उन्होंने विज्ञान और गणित पर कई लेख और किताबें भो लिखीं है।
  • 1805 में, राजा राममोहन राय बंगाल में इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में शामिल हो गए और उन्होंने 1914 तक उसी काम को जारी रखा।
  • अपनी नौकरी से सेवानिवृत्त होकर, वे स्थायी रूप से कलकत्ता में रहने लगे और उन्होंने खुद को पूरी तरह से जनता की सेवा में लगा दिया।
  • 1814 में, उन्होंने आत्मीय सभा की शुरुआत की।
  • 1821 में उन्होंने यूनिटेरियन एसोसिएशन की स्थापना की। 
  • उन्होंने हिंदू समाज की बुराइयों के प्रति अत्यंत शत्रुतापूर्ण होने के कारण 20 अगस्त 1828 को ब्रह्म समाज की स्थापना की। 
  • 11831 में एक विशेष कार्य के सम्बन्ध में डिल के मुग़ल सम्राट के पक्ष का समर्थन करने के लिए इंग्लैंड गए। 

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समाचार पत्रों की स्वतंत्रता के लिए प्रयत्न

राजा राममोहन राय ने भी अखबारों की आजादी के लिए जमकर लड़ाई लड़ी। स्वयं एक बंगाली पत्रिका संवाद-कौमुदी का शुभारंभ और संपादन किया। 1833 में, अखबार के नियमों के खिलाफ एक मजबूत आंदोलन शुरू किया गया था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को एक ज्ञापन दिया, जिसमें उन्होंने समाचार पत्रों की स्वतंत्रता के लाभों पर अपने विचार व्यक्त किए। समाचार पत्रों की स्वतंत्रता के लिए उनके द्वारा शुरू किए गए आंदोलन से 1835 में समाचार पत्रों की स्वतंत्रता के आंदोलन को गति मिली।

सती प्रथा के विरुद्ध अभियान एवं सफलता

  • राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के खिलाफ आंदोलन जारी रखा।
  • यह आंदोलन समाचार पत्रों और मंच दोनों के माध्यम से चलाया गया था।
  • जिसके कारण लार्ड विलियम बैंटिक 1829 में सती प्रथा को बंद करने में समर्थ हो सके। 

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विदेश में प्रथम भारतीय

1831 से 1834 तक अपने इंग्लैंड प्रवास काल में राममोहन जी ने ब्रिटिश भारत की प्रशासनिक पद्धति में सुधार के लिए आंदोलन किया। ब्रटिश संसद के द्वारा भारतीय मामलों पर परामर्श के लिए आने वाले वे प्रथम भारतीय थे। 

राजा राममोहन राय के द्वारा लिखित पुस्तकें 

राजा राममोहन राय ने पत्रिका को अंग्रेजी, हिंदी, फारसी और बंगाली भाषाओं में भी प्रकाशित करवाया। 1815 में उन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना की जो अधिक समय तक नहीं चला सका। उन्हें हिंदू धर्म के साथ-साथ ईसाई धर्म में भी जिज्ञासा का ज्ञान हुआ। उन्होंने ओल्ड हरब्यू और न्यू टेस्टामेंटस (New Testaments) का भी अध्ययन किया। 1820 में उन्होंने एथिकल टीचिंग ऑफ क्राइस्ट, 4 गोस्पेल (Ethical Teaching of Christ, 4 Gospel) का एक हिस्सा भी प्रकाशित किया। इसे प्रिसेप्ट्स ऑफ जीसस (Precepts of Jesus) के शीर्षक के तहत प्रकाशित किया गया था।

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उस समय कुछ भी प्रकाशित करने से पहले अंग्रेजी अधिकारियों से अनुमति लेनी पड़ती थी। लेकिन राजा राममोहन राय ने इसका विरोध किया। उनका मानना था कि अखबार में सच दिखाना चाहिए और अगर सरकार को यह पसंद नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह किसी भी मुद्दे को दबा सकती है। राजा राममोहन राय, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्षधर थे, ने कई पत्रिकाएँ भी प्रकाशित की थीं।

1816 में राममोहन के ईशोपनिषद का अनुवाद, 1817 में कठोपनिषद, 1819 में मुंडुक उपनिषद। फिर उन्होंने 1821 में एक बंगाली अखबार संबाद कुमुदी में गाइड टू पीस एंड हैप्पीनेस लिखा। इसके बाद 1822 में उन्होंने मिरात-उल-अकबर नाम की एक फारसी पत्रिका में भी लिखा। 1826 में उन्होंने गौड़ीय व्याकरण, 1826 में ब्रह्मसोपासना और 1829 में ब्रह्मसंगीत और 1829 में सार्वभौमिक धर्म लिखा।

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राजा राममोहन राय ने सामाजिक सुधार में क्या योगदान दिया? (Raja Ram Mohan Roy contribute to social reformer?)

राजा राममोहन राय ने सामाजिक सुधार में निम्नलिखित  योगदान दिए है_____

सती प्रथा को समाप्त करने में राजा राममोहन राय का योगदान 

उस समय भारत में सती प्रथा प्रचलित थी। ऐसे में राजा राम मोहन के अथक प्रयासों से गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक ने राम मोहन को इस प्रथा को रोकने में मदद की। उन्होंने बंगाल सती नियमन या बंगाल कोड ऑफ़ रेगुलेशन 1829 पारित किया, जिसके अनुसार बंगाल में सती प्रथा को कानूनी अपराध घोषित किया गया था।

राजा राममोहन राय के द्वारा जातिवाद का विरोध 

उस समय तक भारतीय समाज का जाति वर्गीकरण पूरी तरह से खराब हो चुका था। यह कर्म आधारित होने के बजाय वर्ण आधारित हो गया था। जो क्रमशः अब तक जारी है। लेकिन राजा राममोहन राय का नाम उन सामाजिक प्रवर्तकों में है जिन्होंने जातिवाद के कारण उत्पन्न असमानता का विरोध करना शुरू कर दिया था। उन्होंने कहा कि हर कोई पिता परमेश्वर का पुत्र या पुत्री है। ऐसे में इंसानों में कोई मतभेद नहीं है। समाज में नफरत और दुश्मनी का कोई स्थान नहीं है, सभी को समान अधिकार मिलना चाहिए। ऐसा करके राजा राम मोहन सवर्णों की आंखों में खटकने लगे।

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राजा राममोहन राय के द्वारा मूर्ति पूजा का विरोध

राजा राममोहन राय ने भी मूर्ति पूजा का खुलकर विरोध किया और एकेश्वरवाद के पक्ष में अपने तर्क रखे। उन्होंने "त्रित्ववाद" का भी विरोध किया, जो एक ईसाई मान्यता है। इसके अनुसार, ईश्वर केवल तीन व्यक्तियों, ईश्वर, पुत्र (पुत्र) यीशु और पवित्र आत्मा में पाया जाता है। उन्होंने विभिन्न धर्मों की पूजा के तरीकों और बहुदेव सूट का भी विरोध किया। वह इस बात के पक्ष में थे कि एक ही ईश्वर है। उन्होंने लोगों को अपनी तर्क शक्ति और विवेक विकसित करने का सुझाव दिया। इस संदर्भ में उन्होंने इन शब्दों के साथ अपना पक्ष रखा - "मैंने पूरे देश के सुदूर क्षेत्रों की यात्रा की है और मैंने देखा है कि सभी लोग मानते हैं कि एक ही ईश्वर है जिसके साथ दुनिया संचालित होती है"। इसके बाद उन्होंने एक अंतरंग बैठक की जिसमें उन्होंने विद्वानों के साथ धर्म और दर्शन पर चर्चा की।

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महिलाओ की वैचारिक स्वतन्त्रता दिलाने में योगदान 

राजा राममोहन राय ने भी महिलाओं की स्वतंत्रता की वकालत की। वह महिलाओं को समाज में उपयुक्त स्थान देने के पक्षधर थे। उन्होंने सती प्रथा का विरोध करने के साथ-साथ विधवा विवाह के पक्ष में भी आवाज उठाई। उन्होंने यह भी कहा कि लड़कियों को भी बच्चों के समान अधिकार मिलना चाहिए। इसके लिए उन्होंने ब्रिटिश सरकार से मौजूदा कानून में बदलाव करने को भी कहा। वह स्त्री शिक्षा के भी पक्षधर थे, इसलिए उन्होंने महिलाओं को स्वतंत्र रूप से सोचने और अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए प्रेरित किया।

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राजा राममोहन राय का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान

राजा राममोहन राय ने अंग्रेजी स्कूलों की स्थापना के साथ-साथ कलकत्ता में हिंदू कॉलेज की भी स्थापना की, जो समय के साथ देश में सबसे अच्छा शिक्षण संस्थान बन गया। रॉय ने भौतिकी, रसायन विज्ञान और वनस्पति विज्ञान जैसे विज्ञान विषयों को प्रोत्साहित किया। वह चाहते थे कि देश के युवाओं और बच्चों को नई तकनीक की जानकारी नए स्तर से मिले, इसलिए अगर स्कूल में अंग्रेजी की पढ़ाई करनी है तो बेहतर है।

शिक्षा के क्षेत्र में काम करने के लिए राजा राममोहन 1815 में कलकत्ता आए। उनका मानना ​​था कि यदि भारतीय गणित, भूगोल और लैटिन का अध्ययन नहीं करते हैं तो वे पीछे रह जाएंगे। सरकार ने राम मोहन के विचार को तो स्वीकार कर लिया लेकिन उनकी मृत्यु तक उस पर अमल नहीं किया। राम मोहन ने सबसे पहले अपनी मातृभाषा के विकास पर ध्यान दिया। उनका गुड़िया व्याकरण बंगाली साहित्य की अनूठी कृति है। रवींद्र नाथ टैगोर और बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने भी उनके पदचिन्हों का अनुसरण किया।

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राजा राममोहन राय की पुण्यतिथि कब है? (Raja Ram Mohan Roy Death Anniversary)

राजा राममोहन राय की मृत्यु 27 सितम्बर 1833 को हुआ था और प्रत्येक वर्ष 27 सितम्बर को राजा राममोहन राय की पुण्यतिथि मनाया जाता है

राजा राममोहन राय की मृत्यु कब और कहाँ हुई? (Raja Ram Mohan Roy Death)

27 सितंबर 1833 में इंग्लैंड में राजा राममोहन राय की मृत्यु हो गई। यात्रा के मध्य मेइनजाइटिस हो जाने के कारण यहां ब्रिटेन में ही उनका अप्रत्याशित निधन हो गया था। ब्रिटेन में दाह संस्कार की अनुमति नहीं थी, इसलिए उनके शरीर को बस जमीन में दफना दिया गया था। यद्यपि वे आज हमारे बीच नहीं हैं फिर भी उनका स्मृति दीपक आज भी हमरे हृदय में जल रहा है और आने वाली पीढ़ियों के ह्रदय में भी जलता रहेगा। क्योकि उनके द्वारा प्रज्वलित कई ज्योतियाँ आज भी प्रदीप होकर सम्पूर्ण भारत को प्रकाशित कर रही हैं।

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