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क्या आप जानते है? विश्व थैलेसीमिया दिवस (World Thalassemia Day) कब मनाया जाता है?

विश्व थैलेसीमिया दिवस कब मनाया जाता है? World Thalassemia Day Kab Manaya Jata Hai?

विश्व थैलेसीमिया दिवस (world thalassemia day) सम्पूर्ण विश्व में प्रत्येक वर्ष 8 मई को मनाया जाता है। इस दिन इस दिवस को मनाने का उद्देश्य लोगों को थैलेसीमिया बीमारी के प्रति जागरूक करना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा विश्व थैलेसीमिया दिवस 8 मई को मनाने के लिए स्थापित किया गया था। 

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क्या आप जानते है? विश्व थैलेसीमिया दिवस (World Thalassemia Day) कब मनाया जाता है?
विश्व थैलेसीमिया दिवस

थैलेसीमिया क्या है?

थैलेसीमिया एक आनुवांशिक रोग है, जिससे शरीर में रक्त की कमी होती है। माता-पिता या दोनों में से किसी एक को अगर यह समस्या होती है तो शिशु को थैलेसीमिया हो सकता है। डॉक्टर के अनुसार इस रोग से बचाव बेहद आसान है। थैलेसीमिया के लिए जागरूक रहने की आवश्यकता है। इसकी रोकथाम के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रम चलाने की आवश्यकता है। 

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विश्व थैलेसीमिया दिवस क्यों मनाया जाता है?

विश्व थैलेसीमिया दिवस पूरे विश्व में मनाया जाता है ताकि थैलेसीमिया से पीड़ित लोगों की मदद की जा सके। इस दिन कई गतिविधियां आयोजित की जाती हैं। थैलेसीमिया के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए विभिन्न स्वास्थ्य संगठनों और गैर सरकारी संगठनों द्वारा सेमिनार आयोजित किए जाते हैं। बच्चों को थैलेसीमिया के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से विशेषज्ञ स्कूलों में प्रभावी गतिविधियों को अंजाम देते हैं।

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क्या है यह बीमारी

आमतौर पर हर सामान्य व्यक्ति के शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र 120 दिन होता है, लेकिन थैलेसीमिया से पीड़ित रोगी के शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र घटकर सिर्फ 20 दिन तक रह जाती है। इसका सीधा सिर व्यक्ति के हीमोग्लोबिन पर पड़ता है। जिसके कारण व्यक्ति एनीमिक हो जाता है और हर सत्र किसी न किसी बीमारी से पीड़ित होने लगता है।

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थैलेसीमिया के प्रकार

थैलेसीमिया दो तरह का होता है- माइनर थैलेसीमिया या मेजर थैलेसीमिया। यदि महिला या पुरुष के शरीर में क्रोमोसोन मौजूद हो तो एक बच्चा थैलेसीमिया का शिकार हो जाता है। लेकिन अगर महिला और पुरुष दोनों के गुणसूत्र बिगड़ते हैं, तो यह प्रमुख थैलेसीमिया की स्थिति पैदा करता है। किसी कारण से, बच्चे के जन्म के 6 महीने बाद, उसके शरीर में रक्त रुक जाता है और बार-बार रक्त देने की आवश्यकता होती है।

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थैलेसीमिया की पहचान 

थैलेसीमिया एक रक्त विकार है जो असामान्य हीमोग्लोबिन और लाल रक्तकोशिका के उत्पादन से जुड़ा होता है। इस बीमारी में रोगी के शरीर में रक्त कोशिकाओं के कम हो जाने के कारण वह एनीमिया का शिकार हो जाता है। जिसके कारण उसे हर समय कमजोरी, थकान, पेट में सूजन, काले रंग का पेशाब, त्वचा का रंग पीला महसूस हो सकता है।

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अनुवांशिक बीमारी है थैलेसीमिया

थैलेसीमिया एक आनुवांशिक बीमारी है जो परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी जारी रहती है। अगर किसी नवजात बच्चे को यह बीमारी हो जाती है, तो उसे जीवन भर इस बीमारी के साथ रहना होगा। यदि माता-पिता में से किसी एक को थैलेसीमिया है, तो इसके लक्षण बच्चों में दिखाई देंगे। ऐसे में गर्भवती महिलाओं को इसका खास ख्याल रखने की जरूरत है। थैलेसीमिया बीमारी से बचने के लिए, माता-पिता के लिए डीएनए (DNA) परीक्षण करना अनिवार्य है ताकि बीमारी को नियंत्रित किया जा सके।

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भारत में हर साल 8 से 10 बच्चे थैलेसीमिया के साथ पैदा होते हैं

एक शोध के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 8 से 10 बच्चे पैदा होते हैं, जिन्हें थैलेसीमिया की बीमारी होती है। बच्चों में लक्षण तब देखे जा सकते हैं जब उनकी उम्र 6 से 18 महीने के बीच हो। बच्चों में पीलापन, नींद की कमी, उचित आहार की कमी, उल्टी, बुखार जैसे लक्षण इसमें देखे जाते हैं। भारत में वर्तमान समय की बात करें तो 225000 से अधिक बच्चे हैं जो थैलेसीमिया बीमारी से पीड़ित हैं।

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थैलेसीमिया से बचने के लिए घरेलु उपचार

  • एक बच्चे को इस गंभीर बीमारी से बचाने के लिए, सबसे पहले, शादी से पहले, लड़के और लड़की के रक्त परीक्षण को अनिवार्य किया जाना चाहिए।
  • अगर अपने खून की जाँच करवाए बिना ही शादी कर ली है तो गर्भावस्था के 8 से 11 हप्ते के भीतर ही अपने डीएनए (DNA) की जाँच करवा लेना चाहिए। 
  • माइनर थैलेसीमिया से पीड़ित व्यक्ति किसी सामान्य व्यक्ति की तरह अपना जीवन यापन करता है। खून की जांच करवाए बिना कई बार उसे पता भी नहीं चलता कि उसके खून में कोई खराबी है। ऐसे में अगर शादी से पहले पति-पत्नी के खून की जांच की जाए तो इस आनुवांशिक बीमारी से होने वाले बच्चे को काफी हद तक बचाया जा सकता है।

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थैलेसीमिया का उपचार

थैलेसीमिया का उपचार इस रोग की गंभीरता पर निर्भर करता है। कई बार थैलेसीमिया रोग से पीड़ित बच्चों को एक महीने में 2-3 बार रक्त चढ़ाने की आवश्यकता हो सकता है। 

बोन मैरो प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांट) से इस बीमारी का इलाज संभव है, लेकिन बोन मैरो प्राप्त करना बहुत कठिन प्रक्रिया है।

इसके अलावा रक्तदान, बोन मैरो प्रत्यारोपण, दवाये और सप्लीमेंट्स, संभव प्लीहा या पित्ताशय की थैली को हटाने के लिए सर्जरी करके भी इस गंभीर रोग का उपचार किया जा सकता है .

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