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राष्ट्रीय विद्यार्थी दिवस और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद स्थापना दिवस कब मनाया जाता है? National Students Day and ABVP Foundation Day in Hindi

राष्ट्रीय विद्यार्थी दिवस कब मनाया जाता है?

दुनिया के सबसे बड़े छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के स्थापना दिवस 9 जुलाई को हर वर्ष भारत में राष्ट्रीय विद्यार्थी दिवस (National Students Day) के रूप में मनाया जाता है।  

राष्ट्रीय विद्यार्थी दिवस और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद स्थापना दिवस कब मनाया जाता है? National Students Day and ABVP Foundation Day in Hindi
राष्ट्रीय विद्यार्थी दिवस

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP)

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) एक भारतीय छात्र संगठन है। जिसका उद्देश्य छात्र हित और राष्ट्र हित है। विद्यार्थी परिषद का नारा है - ज्ञान, शील और एकता। विश्व का सब बड़ा छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद विगत 69 वर्षो से राष्ट्रहित और विद्यार्थी हित में सदैव अपना योगदान देता आया है। साथ ही, युवा पीढ़ी ने राष्ट्रीय हित में जागरूकता रखकर देश की ओर अपने दायित्वों की चेतना भी पैदा की है। 

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अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना कब हुई थी?

वैसे तो ABVP स्थापना 1948 में ही हो चुकी थी लेकिन औपचारिक रूप से इसकी स्थापना 9 जुलाई 1949 को हुई जब इसका पंजीकरण हुआ। इसकी स्थापना छात्रों और शिक्षकों के एक ग्रुप ने मिलकर की थी। अपने शुरुआती दौर में इसकी सक्रियता नाममात्र की ही थी लेकिन 1958 में मुंबई के प्रोफ़ेसर यशवंतराव केलकर को इसका मुख्य संयोजक बनने के बाद इसकी सक्रियता काफी बढ़ गई और इसने देश भर में अपना विस्तार शुरू कर दिया। इसलिए प्रोफ़ेसर यशवंतराव केलकर को ही वास्तविक संपादक सदस्य माना जाता है। 

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अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का आधिकारिक नारा या स्लोगन क्या है?

ABVP का आधिकारिक स्लोगन है - ज्ञान, शील, और एकता। यानि इस छात्र संगठन और इसके सदस्यों से यह अपेक्षा की जाती है की इन तीन शब्दों को केवल शब्द न माने बल्कि इसके गहरे अर्थ को तासीर को आत्मसात करते हुए इसके प्रति प्रतिबद्ध रहें। 

भारतीय राजनीति में छात्र राजनीति की भूमिका का अलग ही महत्व है। यही वजह है की लगभग हर राष्ट्रीय पार्टी का एक छात्र संगठन भी है, जो न सिर्फ उन पार्टियों को बल्कि देश को भी भविष्य का नेता सौंपता है। आम तौर पर, जहां छात्र राजनीतिक विचारों से छात्रों को प्राप्त करने के लिए राजनीति और राजनीतिक विचारों से संबंधित संगठनों को शुरू करते हैं। इसकी स्थापना का उद्देश्य अन्य छात्र संगठनों से बहुत अलग था। तो आइए जानते हैं कि कैसे ___

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आरएसएस पर प्रतिबंध की वजह से बना (RSS)

द कारवां मैग्नीज में छपी रिपोर्ट के मुताबित महत्वमा गांधी की हत्या के बाद, देश भर में आरएसएस पर प्रतिबन्ध लगने के कारण इस जुड़े लोगो का मिलना लगभग नामुमकिन सा हो गया था। अपने काम को आगे बढ़ाने के लिए और इससे जुड़े लोगों को मिलने के लिए अब कुछ इंतजामात की जरूरत पड़ी। ताकि वे अपने संगठन के काम को निरंतर रख सकें। 

इस इन्तजामातों ने शक़्ल ली अखिल भारतीय परिषद् के रूप में जिसके नाम के तहत संघ के लोग एकत्रित होते है और आगे की नीति बनाते। हालाँकि ABVP एक संगठन के तौर पर पंजीकरण आरएसएस पर लगा प्रतिबंध हटने के बाद करवाया गया था। दिलचस्प बात तो यह थी की स्थापना के समय इसका उद्देश्य छात्र राजनीति नहीं बल्कि आरएसएस के विचारों का प्रचार-प्रसार करना था। 

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मुंबई यूनिट गठन से आगे

बाद में 1949 के आस-पास जब आरएसएस पर लगा प्रतिबंध हट गया, तो अचानक ABVP की अहमियत उतनी नहीं रही। कुछ समय के लिए इसे साइडलाइन कर दिया गया, किन्तु 1950 के दशक में संघ के नेताओं ने यह फैसला लिया की वो एक सालाना कन्वेंशन के जरिये ABVP संगठन के तौर पर आगे बढ़ाएंगे। इस काम को अंजाम देने में संघ कार्यकर्ता यशवंतराव केलकर ने अहम भूमिका निभाई। 

उन्होंने ABVP मुंबई यूनिट का गठन किया। इसके के बाद ABVP को फ़ैलाने का काम शुरू किया गया। इसकी कई इकाइयां देश के कई राज्यों में खोले गए, जिसमें सबसे अहम था बिहार और महाराष्ट्र की शाखा। दत्ताजी दिदोलकर, मोरोपंत पिंगले जैसे संघ प्रचारकों ने ABVP के प्रचार में केलकर का साथ दिया। इन संघ प्रचारकों के परिप्रेक्ष्य का नतीजा यह है कि आज 30 लाख से अधिक युवा ABVP से जुड़े हुए हैं।

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आपातकाल ने बढ़ाई लोकप्रियता

25 वर्षों तक लगातार, कांग्रेस पार्टी कांग्रेस पार्टी के खिलाफ 1975 में बढ़ने लगी है, क्रोध की भावना बढ़ने लगी। कांग्रेस के खिलाफ बढ़ती निराशा ने ABVP जैसे कई संगठनों का मौका दिया कि वे लोगों से जुड़े हुए हैं और उनकी पहचान करते हैं।

रामचंद्रगुहा की किताब इंडिया आफ्टर गांधी के अनुसार जेपी आंदोलन और आपातकाल कुछ ऐसे मुख्य मुद्दे बनकर उभरे, जिन्होंने ABVP को दिशा दी। उस मौके का उन्होंने खूब फायदा भी उठाया। भ्रष्टाचार और खराब कानून व्यवस्था से झूठ रहे राज्य गुजरात और बिहार इसका केंद्र बने। सही मायने में वहीँ से ABVP ने एक बड़े राजनैतिक मोर्चे की शुरुआत की। 

1973-1974 में एक तरफ जहाँ कश्मीर और नागालैंड में हालात सुधर रहे थे वहीँ गुजरात में भ्रष्टाचार के चलते नए हालात पैदा हो रहे थे। उस समय के गुजरात के मुख्यमंत्री चिमानभाई पटेल के खिलाफ लोगों में गुस्सा बढ़ रहा था। यहाँ तक की उसकी भ्रष्ट छवि के चलते उनकी खूब खिंचाई हो रही थी। 

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नवनिर्माण आंदोलन की शुरुआत 

इस क्रम में जनवरी को चीमां भाई पटेल के खिलाफ  गुजरात के विद्यार्थियों ने नवनिर्माण आंदोलन की शुरुआत की। इसमें ABVP के कार्यकर्ताओंने ने भी अहम भूमिका निभाई। आगे आंदोनल ने आक्रामक रूप लिया तो केंद्र में बैठी इंदिरा सरकार को गुजरात में राष्ट्रपति शासन तक लागु करना पड़ा। गुजरात में सफलता मिलने के बाद बिहार में भी उसे दोहराने के प्रयास किया गया। 

नवनिर्माण आन्दोलन से प्रेरित होकर बिहार में विद्यार्थी और कुछ वाम संगठनों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। खाली कम्युनिस्टों पर सरकार से लड़ने की जिम्मेदारी न सौंपते हुए, ABVP जैसे संगठनो ने मौके का भरपूर उपयोग करते हुए खुद को मुख्यधारा में लाने की कोशिश की। बिहार छात्र-छात्राओं ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जो आंदोलन शुरू किया था उसका सीधा असर उनकी कैम्पस लाइफ़ पर पड़ रहा था। 

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1977 से 1982 के बीच बढ़ा कद

18 मार्च 1974 को बिहार की अलग-अलग जगहों पर आंदोलन उग्र हो गया। इसमें तीन लोगों की जान चली गई, तो आंदोलन को दिशा देने वाले नेता की जरुरत महसूस की गई। इसको पूरा करने के लिए जयप्रकाश नारायण को मनाया गया। जोकि देश की आजादी में अहम भूमिका निभा चुके थे। 

द कारवां मैग्नीज से हुई बातचीत में संघ प्रचारक गोविन्दाचार्य ये दावा करते है कि ABVP के बड़े छात्र नेता रामबहादुर राय ने जेपी को छात्र आंदोलन का नेतृत्व करने का अनुरोध किया था। साथ ही वह उन्हें म नाने में कामयाब भी रहे थे। 

इसी कड़ी सोच में संघ प्रचारक राजकुमार भाटिया की माने तो उस समय रामबहादुर रे ABVP के ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी थे और गोविंदाचार्य के पास संघ की पाटना डिविजन की बागडोर थी। आंदोलन के वक्त पटना यूनिवर्सिटी छात्र राजनीति का एक अहम केंद्र था। इस जगह से कई छात्र नेता राष्ट्रीय नेता के तौर पर उभरे थे। जिनमें राजद के लालू यादव, भाजपा के सुशील मोदी और रविशंकर प्रसाद शामिल मुख्य न रहे। आपातकाल से समय ABVP को काफी फायदा हुआ। 1977 से 1982 के बीच ABVP की सदस्य्ता 170000 से बढ़कर 250000 तक पहुँच गई थी। 

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उग्र होने के लगते रहे हैं इल्जाम

ABVP के सामने कई ऐसे मौके आये जब उन्हें सवालों के कठघरे में खड़ा होना पड़ा। उन पर सांप्रदायिक दंगों में शामिल होने का आरोप तक लगा। कहा गया कि छात्र राजनीति विद्यार्थियों को मौका देती है की वो किसी भी मुद्दे पर खुलकर बहस करें। उस पर विचार करें, लेकिन कई घटनाएं ऐसी हुई है जिसमे ABVP ने इस तरह के रिवाज से हटकर तोड़-फोड़ करते हुए और हिंसक रूप में अपने विचार सबके सामने थोपने की कोशिश की। 

किसी फल की स्क्रीनिंग से लेकर किसी सेमिनार को होने से रोकने तक ऐसे कई विवाद रहे है, जिसके चलते ABVP को छात्र संगठन के रूप में आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा। कहते है की अतिराष्ट्रवाद की भावना ही वो सबसे पड़ा पैतरा है, जो युवाओं को ABVP को  ओर आकर्षित करता रहा है। ABVP की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, यह संगठन देश में राष्ट्रवादी विचारों को संरक्षित कर रहा है।

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चुनौतियों की डगर पर छात्र राजनीति 

भारत की कुल जनसंख्या के 50 प्रतिशत लोग 25 साल से कम उम्र के है। 65 प्रतिशत लोगों की आयु 35 वर्ष से भी कम है। इससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है की राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने में युवा कितना अहम किरदार निभा रहे है। इन युवा मतदाताओं की भूमिका में जो एक अहम कड़ी है, वो छात्र राजनीति है। 

हालाँकि इतनी युवा जनसँख्या होने के बावजूद बहुत कब युवा ही छात्र राजनीति से जुड़ पाते है। इनमें महिलाओं की संख्या की हालात उसी तरह ख़राब है, जिस तरह से राष्ट्रीय राजनीति में है। ईएपीडब्लू की एक रिपोर्ट के मुताबित जेएनयु जो महिलाओं के लिए समान अवसर और समानता के लिए नामी शैक्षणिक संस्थान माना जाता है। वहां 50 प्रतिशत महिलाएं छात्र राजनीति से बिल्कुल ताल्लुक नहीं रखती हैं। केवल 5.6 प्रतिशत महिलाएं ही पूरी तरह छात्र राजनीती में सक्रीय हैं। 

कई बार छात्र संगठन अपनी मुख्य पार्टी के दबावों में आकर अपने कर्तव्यों और देशभर के छात्रों और समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारियों से पीछे हट जाते हैं, जिससे छात्र राजनीति पर सवाल उठते है और उससे आने वाले समय की राष्ट्रीय राजनीति को नुकसान पहुँचता है।

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ABVP शायरी (ABVP Quotes in Hindi)

ज्ञान शील एकता, चली अखंड साधना। 

ये मातृभू की अर्चना से , ये पुण्यभू की वंदना से।।

तेजस्वी हुंकार से, वनशक्ति संचार से।

दसों दिशाएं गूंज उठेंगी, भारत माँ की जय-जय कार से।।

दुनिया भर में पर गूंज रहा, भारत माता का जय-जय गान।

जय भारत-जय हिंदुस्तान, छात्र शक्ति है भारत देश की शान।।

मातृभूमि आराध्य हमारी राष्ट्रभक्ति है प्रेरणा।

ईश्वर का है कार्य हमारा जीवन की है यही धारणा।।

केशव प्रेरित संगमार्ग पर चरैवेती की है यही कामना।

निशिदिन प्रतिपल चलती आयी राष्ट्रधर्म आराधना।।

समाज और देश के लिए कुछ कर गुरजने की प्रेरणा,

हम छात्र-छात्राओं  को विद्यार्थी परिषद से ही मिलती है।।

ज्ञान शील एकता के मूल मन्त्र पर आगे बढ़ने,

वाले छात्र देश के उज्ज्वल भविष्य के निर्माता है।।

ज्ञान शील एकता सिर्फ एक नारा नहीं,

लाखों छात्रों का विश्वास है।।

1975 को हो अपातकाल या कोरोना का विकराल।

परिषद ने आगे आकर के अपना कर्तव्य को खूब निभाया है।।

जब शिक्षा पर पड़ी कोरोना की मार, 

तब परिषद की पाठशाला बनी विश्वास।

शिक्षा की अलख जगाना है,

परिषद की पाठशाला चलाना है।।

ज्ञान, शील, एकता ध्येय के साथ

छात्र शक्ति बढ़ रही ABVP के साथ।

1948 से आरम्भ हो राष्ट्रसेवा का सफर, 

छात्र शक्ति के साथ लेकर बढ़ रहे निरंतर।

छात्रों के तकनीफ के निवारण की आस हूँ,

हाँ मैं विद्यार्थी परिषद का विश्वास हूँ।।

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